ताज महल नहीं देखा, क्या मजाक कर रहे हो, जन्म से दिल्लीवासी हो फिर भी ताज नहीं देखा। दिल्ली से आगरा केवल 231 किमी ही तो है और बस, ट्रैन या फिर हवाई जहाज (जिससे जाने की तुम्हारी हैसियत फ़िलहाल है नहीं) जैसे भरपूर साधन उपलब्ध होने के बावजूद तुमने ताज नहीं देखा. अरे भाई अब तो यमुना एक्सप्रेस वे से दिल्ली-आगरा की दूरी भी घंटो में तय हो जाती है यही कोई तीन साढ़े तीन घंटे लगते है और तुमने कभी अपनी कार से जाने का भी प्रयत्न नहीं किया, कमाल है. एक बार देखो तो उस हसीं ईमारत को जिसे लगभग बीस हजार मजदूरो ने दिन रात काम करने के बाद तैयार किया था और तुम्हे पता है इसके निर्माण में लगाई गई सामग्री संगमरमर पत्थर राजस्थान के मकराणा से, अन्य कई प्रकार के कीमती पत्थर एवं रत्न बगदाद, अफगानिस्तान, तिब्बत, इजिप्त, रूस, ईरान आदि कई देशों से इकट्ठा कर उन्हें भारी कीमतों पर खरीद कर ताजमहल का निर्माण करवाया गया. और भाईसाहब कहते है की ताज नहीं देखा। अरे बाबा ताज केवल एक दूधिया ईमारत ही नहीं है बल्कि शाहजहाँ और मुमताज महल के प्रेम की एक अमिट निशानी है जिसे लोग जब देखते है तो देखने की इन्तहा हो जाती है लेकिन मन नहीं भरता।
ऐसे ही प्रश्नो के चक्रव्यूह में मैं स्वयं को अक्सर फंसा हुआ पाता था जब सामने उपस्थित विपक्षी दल को यह पता चलता था की मैंने कभी इंटरनेट के अलावा ताज नहीं देखा। वैसे एक दो बार मैंने अपने मित्रो से सप्ताहांत में ताज देखने के लिए कहा तो अवश्य था किन्तु अब वो सब मेरी तरह आजाद पंछी तो रहे नहीं थे और उनके गले में स्वेच्छा से घंटी (शादी) बंधी जा चुकी थी जिनमे से अब एक-आध घुंघरू (बच्चे) भी बजने लगे थे. बेचारे चक्की के दो पाटन (माता-पिता और सास-ससुर) के बीच ही पिसे जाते है, अब उनके लिए शनिवार और इतवार की दफ्तर से छुट्टी का मतलब घर की नौकरी ही रह गया है जहाँ से छुट्टी मिलना असंभव है….
खैर, कोई बात नहीं अपने घर में जब पता लगा की पड़ोस वाली आंटी एक बार ताज देखने के बाद फिर से ताज देखने जा रही है तो मेरी माताजी को भी अहसास हुआ की क्यों न एक बार हम भी देख आये उस दूधिया ईमारत को जिसे लोगो ने सात अजूबो की श्रेणी में शामिल कर रखा है. ऐसे ही बातो ही बातो में आगरा प्रस्थान की योजना बना ली गयी और नियत दिन व् तय समय पर हम तीन लोग में स्वयं, माताश्री और बहनाश्री अपनी विश्वसनीय वैगनर पर सवार हो कर दिल्ली की सड़को से निकलते हुए सीधे पहुँच गए यमुना एक्सप्रेस वे जहाँ साफ़, खुली और चौड़ी सड़क आपको सीधे आगरा में ले जाकर छोड़ देती है. मौसम की नजर से यह महीना पर्यटन हेतु काफी अच्छा प्रतीत हो रहा था, घरो में छिपे-दुबके लोग अब अपनी रजाइयों से बाहर झाँकने लगे थे और अधिकांशतः घरो की छतों पर सूखते रंग बिरंगे स्वेटर खेतो में खिले हुए फूलो से कम नहीं लगते। मतलब साफ़ है की दिल्ली की गुलाबी धुप अब विदा लेने के लिए आतुर है और अब हमे शीघ्र ही ग्रीष्म ऋतू का स्वागत करने के लिए तैयार होना पड़ेगा।
दिन गुरुवार, दिनांक उन्नीस फरवरी दो हजार पंद्रह, समय सुबह के आठ बजते ही हम लोग आगरा के लिए घर से रवाना हो गए. रास्ते में खाने के लिए वोही घर का बना खाना और साथ में नमकीन-बिस्किट पहले से ही पैक कर लिए थे. प्रस्थान मार्ग के रूप में यमुना एक्सप्रेसवे को सर्वसम्मति से तरजीह दी गयी जो की हमारे निवास स्थान (दक्षिण दिल्ली) से लगभग पैंतालीस किलोमीटर दूर है. फिर भी सुबह का समय होने के कारन अत्यधिक ट्रैफिक तो नहीं मिला और हमारी कार सरपट दौड़ते हुए सीधे एक्सप्रेसवे में प्रवेश कर गयी. मौसम बिलकुल साफ था और वर्किंग डे होने के कारन ज्यादा वाहन भी नजर नहीं आ रहे थे और हमारी कार अस्सी किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से आगरा की तरफ निरंतर बढ़ रही थी. वैसे एक्सप्रेसवे में कार के लिए सौ किलोमीटर प्रति घंटे की गति सीमा तय कर रखी है किन्तु जिस मटेरियल से इसका निर्माण हुआ है वो टायरों की सेहत के अनुकूल नहीं होता और अत्यधिक घर्षण की स्थिति में इनके गर्म होकर बर्स्ट होने के आसार काफी बढ़ जाते है अतः वाहन को धीमा ही चलाया जाये तो सुरक्षा और प्राकृतिक सौंदर्य का साथ पुरे सफर में बना रहता है.
तकरीबन तीन घंटे की स्मूथ ड्राइव के बाद आगरा शहर में दिशा निर्देशो का पीछा करते हुए हम लोग होटल मधुश्री के सामने आकर खड़े हो गए. यमुना एक्सप्रेसवे से बाहर निकल कर जब आप आगरा शहर में प्रवेश करते है तो नाक की सीध में चलते चले जाने से एत्माददुल्ला के मकबरे (किले) की तरफ जाने वाले रस्ते पर एक टी पॉइंट आता है जिसमे यह होटल बिलकुल कोने पर ही बना हुआ है और इस होटल से दो मार्ग जाते है पहला आपको रामबाग, मथुरा, दिल्ली की तरफ ले जाता है और दूसरा मार्ग एत्माददुला और ताज महल की तरफ ले जाता है। इस होटल की एक बात मुझे और अच्छी लगी की आगरा की भीड़ से आप बचे भी रहेंगे और शांति भी बनी रहेगी अन्यथा जैसे-२ आप शहर के भीतर बढ़ते चले जाते है बेतहाशा ट्रैफिक और गन्दगी के ढेर आपको परेशान करते रहते है. और एक बात जिसकी हमे बहुत आवश्यकता थी वो थी कार पार्किंग जिसका बंद गलियो वाले रास्तो पर मिलना बहुत ही कठिन कार्य लग रहा था और एक पल को तो हमे लगा की कहीं हम इस भूल भुलैया में ही घूमते हुए न रह जाये। होटल के प्रांगण में कार पार्किंग का पर्याप्त स्थान मिल जाने के कारन एक मुसीबत तो हल हो चुकी थी और अब बारी थी उस जोर के झटके की जो धीरे से लगने वाला था अर्थात कमरे का किराया। होटल के अंदर स्वागत कक्ष में उपलब्ध प्रबंधक साहब ने बताया की यह होटल अधिकतर बिजनेस मीटिंग्स के लिए ही बुक रहता है जिसमे फॉरेन डेलीगेट्स आकर ठहरते है अतः आपको एक कमरा मिल तो जायेगा किन्तु चार्जेज लगेंगे पूरे पच्चीस सौ रूपए। अब मरता क्या न करता, आगरा के भीतर घुसकर ट्रैफिक से जूझने और कमरा ढूंढने की हिम्मत तो नहीं हो रही थी अतः महाशय को एडवांस में रूम चार्जेज का भुगतान करने के बाद अब हम लोग निश्चिंत होकर ताज देखने के लिए अपनी आगे की योजना बनाने लगे. वैसे यहाँ एक बात और बताना चाहूंगा की साफ़-सफाई और सुविधा की दृष्टि से होटल में कोई कमी नहीं थी, कार पार्किंग के अलावा अलमारी, सोफ़ा, एक्स्ट्रा पलंग, कलर टीवी, एयर कंडीशनर, संलग्नित बाथरूम, फ़ोन व् फ्री वाईफाई जैसे तमाम विकल्प मौजूद थे.
Hotel Madhushree with Car parking
Hotel Room – Sufficient for 3 persons
खैर कमरे में थोड़ी देर सुस्ताने और खाना खाने के बाद अब बारी थी ताज महल के दीदार की जिसके लिए तीन बजते-२ हम लोग तैयार हो गए, तीन बजे इसलिए क्योंकि मैंने ताज की इ-टिकट बुक करवा रखी थी जिसमे समय तीन बजे के बाद का था. यह टिकट केवल पूर्वी द्वार से प्रवेश करने हेतु वैध थी जहाँ तक पहुँचने के लिए ऑटो वाले ने पुरे एक सौ अस्सी रूपए लिए.
Way to Shilpgram – Eastern Gate
हालांकि होटल से यहाँ तक की दूरी बमुश्किल ही पांच से छह किलोमीटर रही होगी। अब जब सर दिया ओखल में तो मूसल से क्या डरना, यही सोच कर हम लोग ऑटो वाले से ज्यादा बहस नहीं कर पाये और जलेबी नुमा गलियो से घूमते हुए भाईसाहब ने हमे ताज तक छोड़ दिया। यहाँ गेट पर टिकट चेक की गयी और थोड़ी बहुत फ्रिस्किंग भी हुयी, वैसे इस गेट पर विदेशी सैलानी ही अधिक नजर आ रहे थे और सभी ने हमारी तरह इ-टिकट हाथ में पकड़ रखी थी. यहाँ पर एक बात बताना चाहूंगा की इ-टिकट होने के बावजूद आपके पास एक पहचान पत्र होने अनिवार्ये है ताकि आपकी जांच करने में सम्बंधित सुरक्षा अधिकारी को किसी प्रकार की कोई समस्या न होने पाये। वैसे हमसे तो किसी ने पहचान पत्र माँगा नहीं फिर भी हम तो ले ही गए थे.
मुख्या द्वार जो स्वयं भी काफी भव्य है से प्रवेश करते ही आपको एक खूबसूरत नजारा दिखाई देता है ताज प्रांगण में स्थित सुन्दर से गार्डन का जिसकी हरियाली और रंग-बिरंगे फूलो की चमक आपका मन मोह लेती है
Entry Gate to Taj Mahal
Taj Campus – Beautiful Gardens
Lovely Garden
किन्तु हमे तो इंतजार था दीदार-अ-ताज का जिसकी खूबसूरती और भव्यता के चर्चे हमने बहुत सुन रखे थे और अब तो बस उस पर एक नजर डालना चाहते थे. शीघ्र ही हमारा इन्तेजार ख़त्म हुमा और जो दृश्य हमारे समक्ष था उस पर यकीं ही नहीं हो पा रहा था, एक अति विशाल सफ़ेद ईमारत जिसे बनाने और बनवाने वाले दोनों ने ही जुनून, दीवानगी, जी-तोड़ मेहनत और पागलपन की सभी हदो को शायद तक पर रख कर भावी पीढ़ी को एक अचंभित कर देने की जिद पकड़ रखी थी. और जिसमे वह सौ फीसदी सफल भी हुए.
First Deedar-E-Taj
बरबस ही ताज को देख ग़ालिब की कुछ पंक्तिया जेहन में आ गयी जिन पर गौर फरमाइयेगा –
की दुनिया की ईदों से मेरा क्या वास्ता, मेरा चाँद जब दीखता है तभी मेरी ईद हो जाती है….
ताज को देखते हुए एकबारगी अपने अवतार जी और भालसे जी की भी याद आयी और उनसे प्रेरणा लेते हुए मैंने भी धड़ाधड़ फोटोग्राफी पर हाथ आजमा लिया जिसमे स्वयं के आलावा कलकल बहती यमुना और ईदगाह को भी कैमरा में उतार लिया गया.
People running towards the Taj
Yamuna Ji
Another Fort in Taj Campus
Its Selfie time now
इस तरह हमारा आज का दिन संपन्न हुआ और मन में एक संतोष भी हुआ की चलो इस धरती पर मौजूद सात अजूबो में से कोई एक तो देखने को मिला। वैसे यह मानव जीवन भी किसी अजूबे से कम नहीं होता और जिस तरह की उठक-पाठक आये दिन हमे देखने को मिलती रहती है उससे तो यह ही लगता है, उदहारण के लिए हाल ही में संपन्न अपने डेल्ही के चुनावो के नतीजों पर ही नजर डालिये झाड़ू लेकर स्वच्छता अभियान चलाया किसी और ने और झाड़ू जीत गयी किसी और की…… हे न कमाल की बात.
अगले दिन सुबह छह कप चाय / दो कप प्रति व्यक्ति पीने और नमकीन-बिस्कुट का नाश्ता करने के बाद लगभग साढ़े नौ बजे हम लोग अपने होटल से दिल्ली की तरफ प्रस्थान कर चुके थे और कुछ नया ट्राई करने के चक्कर में इस बार हम दिल्ली-आगरा हाइवे पर आगे बढ़ चले इस उम्मीद में की मथुरा में रुक कर दोपहर का भोजन कर लेंगे किन्तु आश्चर्य की बात यह है की सुबह से ही कार का एयर कंडीशनर चालू करना पड़ा क्योंकि आगरा में तापमान बहुत बढ़ चूका था, और धूल-मिटटी के गुबार भी वातावरण को दूषित कर रहे थे. आगरा के सिकंदरा की तरफ बढ़ते हुए रेड लाइट पर गाड़ी रुकी तो देखकर हंसी आ गयी की हमारे समीप ही काफी मात्रा में पालतू पशु भी ट्रैफिक नियमो का पालन कर रहे थे और वो आगरा के उन ट्रक/ऑटो चालकों से कहीं अधिक समझदार थे जो आपको साइड नहीं देते, आप भले ही गाडी बैक कर रहे हो लेकिन वो आपके लिए नहीं रुकते, क्या हाथ गाडी, क्या साइकिल वाला और क्या पैदल यात्री सभी को जल्दी से जल्दी कहीं पहुंचना है फिर चाहे वो आपसे टकराये या आप उनसे।
खैर बाहर के प्रदुषण को ध्यान में रखते हुए हमने फिलहाल भोजन न करने का निर्णय लिया और पलवल पहुँच कर एक साफ़-सुथरे होटल (तंदूरी तड़का) में दोपहर का शुद्ध शाकाहारी भोजन किया। यहाँ एक बात कहना चाहूंगा की आगरा-दिल्ली हाईवे की हालत बहुत ही दयनीय है और यमुना एक्सप्रेसवे की तुलना में यह कहीं नहीं ठहरता। किन्तु धैर्य और सावधानी दोनों ही जगह अति आवश्यक है अतः धीरे चले और सुरक्षित रहे.
और इस प्रकार हमारी दिल्ली-आगरा की यात्रा सफलतापूर्वक संपन्न हुयी।