अकà¥à¤Ÿà¥‚बर का महिना और घूमने की पà¥à¤°à¤¬à¤² इचà¥à¤›à¤¾ की कही न कही तो जाना है लेकिन कà¥à¤› समठही नहीं आ रहा था कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि मनोज को अà¤à¥€ छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ नहीं मिल सकती थी, आखिर मे यही निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ हà¥à¤† कि सरिसà¥à¤•ा राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ पास ही है और कà¤à¥€ हम वहा गठà¤à¥€ नहीं है तो à¤à¤• बार तो जा ही सकते है, वैसे तो वहा शेर दिखना बहà¥à¤¤ मà¥à¤¶à¥à¤•िल है लेकिन कम से कम वनà¥à¤¯ जीवन का लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ तो उठा ही सकते है। शनिवार की रात को निकलने का निशà¥à¤šà¤¯ हà¥à¤† जिससे की सोमवार की सà¥à¤¬à¤¹ तक वापिस आ सके, इस बार हम चार ही लोग मै, à¤à¤—वानदास जी, मनमोहन और मनोज ही थे इसलिठइंडिगो बà¥à¤• कर दी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ छोटा था इसलिठबड़ी गाडी करने से कोई फायदा नहीं था।
शाम को ८ बजे गाडी सबसे पहले मेरे पास आ गयी, मेरी तयà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ पूरी थी इसलिठबिना देर किये मै गाड़ी मे बैठगया। पहली बार इस गाड़ी से जा रहे थे और डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° à¤à¥€ नया था जिसका नाम लकी था, मैंने पहले उसको आइटीओ चलने के लिठकहा जहा से मनोज और मनमोहन को लेना था, उनको लेने दे बाद हमने à¤à¤‚डेवालान से à¤à¤—वानदास जी को लिया और डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को हरी à¤à¤‚डी दे दी कि अब वो गà¥à¤¡à¤—ाà¤à¤µ होते हà¥à¤ अलवर चले, गाड़ी का मà¥à¤¯à¥‚जिक सिसà¥à¤Ÿà¤® ख़राब था जो हमारे लिठबà¥à¤°à¥€ बात थी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि हम सà¤à¥€ गानों के शौक़ीन है, लेकिन अब कà¥à¤› हो नहीं सकता था इसलिठअपना धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ बातो पर केनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¤ किया। हमारे मनमोहन जी की आदत है कि गाड़ी मे कोई à¤à¥€ कमी होने पर वो उसके पैसे काटने का à¤à¤²à¤¾à¤¨ कर देते है, इस बार à¤à¥€ उसने à¤à¤• हजार रूपये काटने का à¤à¤²à¤¾à¤¨ कर दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि गाने की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नहीं थी, वैसे हम ये पैसे काटते नहीं है सिरà¥à¤« मजे लेने के लिठकरते है। जंगल से हमको सà¥à¤¬à¤¹ १० बजे तक फà¥à¤°à¥€ हो जाना था और फिर उसके बाद पूरा दिन था इसलिठदिन का सदà¥à¤ªà¤¯à¥‹à¤— करने के लिठहमने à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ à¤à¤• विशà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है और सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ à¤à¥à¤¤à¤¹à¤¾ जगहों मे से à¤à¤• है। à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ के नाम से ही à¤à¤• अजीब सा रोमांच पैदा हो गया था।
रासà¥à¤¤à¤¾ छोटा ही था और हम सब मसà¥à¤¤à¥€ करते हà¥à¤ जा रहे थे इसलिठडà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° à¤à¥€ हमारे साथ घà¥à¤²à¤®à¤¿à¤² गया, वैसे à¤à¥€ वो हमउमà¥à¤° ही था तो कोई समसà¥à¤¯à¤¾ नहीं थी। अलवर पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ से à¤à¤• घंटा पहले मनमोहन ने पेशाब जाने के लिठगाड़ी रà¥à¤•वाने को बोला लेकिन सब मसà¥à¤¤à¥€ मे थे इसलिठडà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° ने à¤à¥€ मजाक मे गाडी नहीं रोकी, उसने कà¥à¤› देर बाद फिर बोला लेकिन फिर à¤à¥€ गाडी नहीं रोकी, लगà¤à¤— दस मिनट बाद मनमोहन ने बà¥à¤°à¤¾ सा मà¥à¤¹ बनाया और बोला की “सॉरी, नियंतà¥à¤°à¤£ नहीं हà¥à¤†, गाडी गनà¥à¤¦à¥€ हो गयी”, इस बार सब हडबडा गया और तà¥à¤°à¤‚त डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° ने à¤à¥€ गाडी रोक दी, लेकिन à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› नहीं था, मनमोहन फिर बोला, “शराफत का जमाना नहीं है इसलिठये सब करना पड़ता है” फिर डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° की तरफ देखा और बोला, ” बेटा लकी तेरे दोसौ रूपये और कट गये। हम सब à¤à¥€ हस पड़े और फिर अलवर की तरफ चल दिà¤à¥¤
हम लगà¤à¤— साढ़े बारह बजे अलवर पहà¥à¤š गà¤à¥¤ किसीने à¤à¥€ à¤à¥‹à¤œà¤¨ नहीं किया था इसलिठसबसे पहले कोई ढाबा ढूà¤à¤¢à¤•र पेट à¤à¤° के खाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया फिर उसके बाद कोई होटल देखकर सोने का। हमें उमà¥à¤®à¥€à¤¦ नहीं थी कि वहा कोई ढाबा खà¥à¤²à¤¾ नहीं मिलेगा लेकिन काफी देर तक इधर उधर à¤à¤Ÿà¤•ने के बाद à¤à¥€ कà¥à¤› à¤à¥€ खाने को नहीं मिला, हम काफी दूर तक देख आये थे लेकिन सब कà¥à¤› बंद था, तà¤à¥€ à¤à¤• गाड़ी हमारे पास आई तो हमने उनसे अपनी समसà¥à¤¯à¤¾ बताई तो उसने हमें à¤à¤• जगह बताई जो वहा से पांच-छ किलोमीटर दूर थी, हम तà¥à¤°à¤‚त वहा पहà¥à¤šà¥‡ और पहà¥à¤šà¤¤à¥‡ ही खà¥à¤¶ à¤à¥€ हो गठकि ढाबा खà¥à¤²à¤¾ ही था और बंद करने की तैयारी चल रही थी, हमने जलà¥à¤¦à¥€ से ऑरà¥à¤¡à¤° दिया और बहà¥à¤¤ जलà¥à¤¦à¥€ ही खाना सामने आ à¤à¥€ गया, खाना सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤¸à¥à¤Ÿ था, हमने आराम से खाया, à¤à¥à¤—तान किया और वापिस होटल की तलाश मे आ गà¤, २ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ का समय हो गया था इसलिठअलवर बिलकà¥à¤² सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ था, हमने à¤à¤• दो होटल देखे लेकिन किराया जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ था, वैसे à¤à¥€ हमें दो-तीन घंटे ही सोना था इसलिठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पैसे हम नहीं देना चाहते थे, आखिर मे à¤à¤• छोटा सा होटल देखकर हमने वहा २ कमरे ले लिà¤, दोनों कमरे के सात सौ रूपये तय हà¥à¤ तो हमने पाà¤à¤š सौ रूपये अगà¥à¤°à¤¿à¤® दिठऔर जलà¥à¤¦à¥€ से अपना सामान कमरों मे रख दिया। कमरे इतने अचà¥à¤›à¥‡ नहीं थे और बाथरूम की दशा तो और à¤à¥€ ख़राब थी इसलिठतà¤à¥€ निशà¥à¤šà¤¯ किया की सà¥à¤¬à¤¹ उठकर सीधा सरिसà¥à¤•ा जायेगे बिना नहाये, बाद मे देखा जाà¤à¤—ा कि कà¥à¤¯à¤¾ करना है। सà¥à¤¬à¤¹ छ बजे का अलारà¥à¤® लगाकर हम सो गठताकि सात बजे तक हम सरिसà¥à¤•ा उदà¥à¤¯à¤¾à¤¨ के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर पहà¥à¤š कर समय से परमिट ले सके।
सà¥à¤¬à¤¹ हम समय पर उठगठऔर जलà¥à¤¦à¥€ से होटल वाले का हिसाब करके सरिसà¥à¤•ा के लिठनिकल पड़े। हम सात बजे से पहले ही वहा पहà¥à¤š गà¤, जब तक बà¥à¤•िंग खिड़की नहीं खà¥à¤²à¥€ थी, जैसे ही खिड़की खà¥à¤²à¥€ हमने अपनी जानकारी वहा दी, जिपà¥à¤¸à¥€ बà¥à¤•िंग के छबीस सौ रूपये हमें बताये गठजिनमे से सात सौ रूपये खिड़की पर ही ले लिठगठऔर बाकी हमें जिपà¥à¤¸à¥€ के देने डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को देने थे, हमने डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° लकी का नाम à¤à¥€ लिखवा लिया था ताकि वो à¤à¥€ जंगल का आनंद ले सके। हम अपने जिपà¥à¤¸à¥€ के डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° और गाइड से मिले और उनको पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने के लिठबोला कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि वहा की कैंटीन खà¥à¤² गयी थी इसलिठहमने सोचा कि चाय पी कर चला जाये। चाय पीकर हम जिपà¥à¤¸à¥€ मे बैठगà¤, डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° ने à¤à¥€ जीप आगे बढ़ा दी
इस टà¥à¤°à¤¿à¤ª मे शà¥à¤°à¥‚ से ही लग रहा था कि जंगल मे कà¥à¤› देखने को नहीं मिलेगा और वैसे à¤à¥€ हम जिम कॉरà¥à¤¬à¥‡à¤Ÿ कई बार जा चà¥à¤•े थे और ३-४ महीने पहले ही रनà¥à¤¥à¤®à¥à¤¬à¥‹à¤° à¤à¥€ गठथे तो उनकी तà¥à¤²à¤¨à¤¾ मे सरिसà¥à¤•ा बहà¥à¤¤ कम है लेकिन जंगल की वादियों मे घà¥à¤¸à¤¤à¥‡à¤¹à¥€ à¤à¤• ताजगी और रोमांच का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ हो जाता है निगाहे चोकनà¥à¤¨à¥€ हो जाती है और कान à¤à¥€ आस पास की आवाज सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के लिठबैचैन हो जाते है। जंगल मे पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही हिरन, सांà¤à¤°, नीलगाय, लंगूर आदि तो दिखने लगे थे लेकिन शेर को नामोनिशान नहीं था वैसे à¤à¥€ à¤à¤• समय था जब सरिसà¥à¤•ा मे शेर खतà¥à¤® हो गठथे लेकिन फिर रनà¥à¤¥à¤®à¥à¤¬à¥‹à¤° से ३ शेर लाये गठवैसे à¤à¥€ हमने जंगल मे देखा की अà¤à¥€ à¤à¥€ बहà¥à¤¤ सारे गाà¤à¤µ जंगल के अनà¥à¤¦à¤° बसे हà¥à¤ है, हर थोड़ी दूरी पर कोई न कोई गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ दिख ही जाता था तो à¤à¤¸à¥‡ मे किसी खतरनाक जानवर का दिखना मà¥à¤¶à¥à¤•िल ही था। गाइड ने बताया की इन सà¤à¥€ गाà¤à¤µ को जलà¥à¤¦à¥€ ही हटाया जाà¤à¤—ा। ये जरूरी à¤à¥€ है जो जगह जानवर के लिठउस पर इंसान का होना कà¤à¥€ à¤à¥€ जानवर को पसंद नहीं आता।
गाइड से पूछने पर पता चला की हाल फिलहाल तो शेर की कोई हलचल वहा नहीं दिखी है, अब हम इतनी बार जंगल जा चà¥à¤•े है कि à¤à¤• विशेषजà¥à¤ž की तरह ही गाइड और डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° से बात करते है। तà¤à¥€ हमारे डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° लकी ने १-२ बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ जीप से बाहर हिरनों की तरफ फ़ेंक दिठतो हमने तà¥à¤°à¤‚त उसको डांटा, वो बोला सर कोई गलत चीज़ नहीं फेंकी है, इससे कà¥à¤¯à¤¾ नà¥à¤•सान होगा। हमने बोला à¤à¤¾à¤ˆ वो पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक चीज़े खाते है उनको ये गनà¥à¤¦à¥€ आदत मत डालो, अगर बाद मे उनकी इचà¥à¤›à¤¾ फिर से ये खाने की हà¥à¤ˆ तो कहा से लायेगे, किसी हिरन की मादा ने फरमाइश कर दी कि वही वाले बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ चाहिठतो उस बेचारे हिरन की गृहसà¥à¤¥à¥€ ही टूट जायेगी। वैसे मजाक अपनी जगह है लेकिन जंगल मे इस तरह से कà¥à¤› à¤à¥€ फेंकना गलत ही है। जैसी की उमà¥à¤®à¥€à¤¦ थी कि कोई शेर नहीं दिखा इसलिठहमने डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को à¤à¥€ बोल दिया कि वो बाहर चल सकता है और वैसे à¤à¥€ समय हो ही गया था। इस समय हमारे मन मे à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ जाने की पà¥à¤°à¤¬à¤² इचà¥à¤›à¤¾ थी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि इतना कà¥à¤› सà¥à¤¨ रखा था इन किलो के बारे मे कि अब इनà¥à¤¤à¤œà¤¾à¤° नहीं हो रहा था। बाहर आते ही हमने जिपà¥à¤¸à¥€ डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° को बचे हà¥à¤ २० ० ० रूपये दिठऔर अपनी गाड़ी मे बैठगठऔर लकी को à¤à¥€ इशारा कर दिया कि जलà¥à¤¦à¥€ से à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ की तरफ चले।
à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ और सरिसà¥à¤•ा के बीच की दूरी लगà¤à¤— à¥à¥¦-८० किलोमीटर है, सरिसà¥à¤•ा से आगे थानागाजी, अजबगढ़ होते हà¥à¤ à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ जाया जा सकता है। अà¤à¥€ कà¥à¤› à¤à¥€ खाने की इचà¥à¤›à¤¾ नहीं थी इसलिठहमने पहले à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ जाने का ही निशà¥à¤šà¤¯ किया फिर वहा से वापिस आने के बाद ही खाने के बारे मे कà¥à¤› सोचेगे वैसे à¤à¥€ à¥à¥¦-८० किलोमीटर ही दूरी थी तो सोचा कि à¤à¤• सवा घंटा ही लगेगा पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ मे लेकिन थोड़ी देर मे ही अचà¥à¤›à¥€ सड़क का रासà¥à¤¤à¤¾ खतà¥à¤® हो गया और ख़राब रासà¥à¤¤à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ जो योजना थी उससे दà¥à¤—ना समय लगा पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ मे।
à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ के बारे मे कहा जाता है कि वहा की राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ रतà¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¤à¥€ बहà¥à¤¤ खूबसूरत थी और लोग उसके रूप के दीवाने थे, वही à¤à¤• साधू à¤à¥€ था जो रतà¥à¤¨à¤¾à¤µà¤¤à¥€ को बहà¥à¤¤ चाहता था, वो साधू काले जादू मे माहिर था। à¤à¤• बार राजकà¥à¤®à¤¾à¤° बाजार मे इतà¥à¤° खरीद रही थी तो उस साधू ने उस इतà¥à¤° पर मंतà¥à¤° पढ़ दिठजिससे कि वो इतà¥à¤° लगाते ही राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ उसकी दीवानी हो जाठलेकिन राजकà¥à¤®à¤¾à¤° इतà¥à¤° देखते ही उसकी चाल समठगयी और उसने वो इतà¥à¤° की शीशी à¤à¤• पतà¥à¤¥à¤° पर पटक दी, अब वो पतà¥à¤¥à¤° ही साधू का दीवाना हो गया और उसके पीछे पड़ गया और उसको कà¥à¤šà¤² दिया लेकिन मरते मरते उस साधू ने पूरे à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ को शà¥à¤°à¤¾à¤ª दे दिया कि वो सà¤à¥€ लोग à¤à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ ही मर जायेगे और उनकी आतà¥à¤®à¤¾à¤“ को मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ नहीं मिलेगी जलà¥à¤¦à¥€ ही उसका शà¥à¤°à¤¾à¤ª सच हो गया अजबगढ़ और à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ के बीच यà¥à¤¦à¥à¤§ जिसमे सà¤à¥€ लोग मारे गà¤, तब से अब तक यही कहा जाता है कि वो सà¤à¥€ आतà¥à¤®à¤¾à¤ आज à¤à¥€ उसी किले मे à¤à¤Ÿà¤•ती है और दिन छिपते ही उन आतà¥à¤®à¤¾à¤“ का किले पर कबà¥à¤œà¤¼à¤¾ हो जाता है, ये à¤à¥€ कहा जाता है कि आज à¤à¥€ वहा जिनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ का बाजार लगता है और रात मे तलवारों के टकराने, चीखने और चूडियो की खनखनाहट की आवाज आती है। अब ये किले आरà¥à¤•ियोंलाजिकल सरà¥à¤µà¥‡ आफ इंडिया के नियंतà¥à¤°à¤£ मे है और दिन छिपने के बाद यहाठरूकने की सखà¥à¤¤ मनाही है।
हम लगà¤à¤— १ बजे वहा पहà¥à¤šà¥‡, रासà¥à¤¤à¤¾ ख़राब होने की वजह से इतना समय लग गया था लेकिन मजाक मसà¥à¤¤à¥€ करते हà¥à¤ समय का पता ही नहीं लगा, तरह तरह के अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ हम रासà¥à¤¤à¥‡ मे लगा रहे थे जैसे हमने à¤à¤• बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— से रासà¥à¤¤à¤¾ पà¥à¤›à¤¾ तो उसने ठेठराजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ सà¥à¤Ÿà¤¾à¤‡à¤² मे रासà¥à¤¤à¤¾ तो बता दिया लेकिन फिर बोला कि मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ बैठा लो लेकिन जगह ही नहीं थी इसलिठबैठा नहीं सकते थे, थोडा आगे निकलते ही मनमोहन बोला ” सर जी अगर अà¤à¥€ आपके बीच मे वो ताऊ पà¥à¤°à¤•ट हो जाठऔर बोले लो मे तो अनà¥à¤¦à¤° आ गया तो कà¥à¤¯à¤¾ होगा।” किले मे पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ पर हमने गाड़ी अनà¥à¤¦à¤° ले जाने की कोशिश की तो वहा लोगो ने मना कर दिया कि गाड़ी बाहर पारà¥à¤•िंग मे ही खड़ी हो सकती है तो हमने उसको अनà¥à¤¦à¤° दिखाया की वहा पहले से २-३ गाड़िया खड़ी थी तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया कि वो à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी की टीम थी जो शूटिंग के लिठआई थी और उनके पास परमिशन थी फिर हमने बहस नहीं की गाड़ी से बाहर आ गà¤, पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के पास ही à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार का बोरà¥à¤¡ लगा था जिस पर साफ़ लिखा था की सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ के बाद वह रूकना वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। हमने अनà¥à¤¦à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया, वहा हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी का à¤à¤• मंदिर à¤à¥€ है जिसके बारे मे कहा जाता है कि उन आतà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‹ का रौब उस मंदिर के अनà¥à¤¦à¤° नहीं चलता, उस किले मे सबसे सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ जगह वही है। थोडा सा आगे चले तो वहा बहà¥à¤¤ सारे बचà¥à¤šà¥‡ आ गठजिनमे हर à¤à¤• के पास पानी था और वो हमसे जिद कर रहे थे की पानी पी लीजिये, हमें पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ तो लग रही थी लेकिन उस किले मे हम कà¥à¤› à¤à¥€ खाना पीना नहीं चाहते थे इसलिठसबको मना करते रहे लेकिन वो बचà¥à¤šà¥‡ à¤à¥€ पीछा छोड़ने को तैयार नहीं थे, बड़ी मà¥à¤¶à¥à¤•िल से उनसे पीछा छà¥à¤¡à¤¼à¤¾à¤•र हम आगे बढे, वहा सब जगह सिरà¥à¤« खंडहर ही खंडहर थे, वहा के बाजार, नरà¥à¤¤à¤•ियो की हवेली सà¤à¥€ के खंडहर थे लेकिन देखकर लग रहा था की अपने ज़माने मे वो बहà¥à¤¤ खूबसूरत रहे होगे। उस समय वहा पर सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थे जो शूटिंग देखने के लिठआये हà¥à¤ थे लेकिन परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• तो शायद १-२ ही थे। सच कहू तो मà¥à¤à¥‡ किले देखने का कà¤à¥€ शौक नहीं रहा सारे खंडहर à¤à¤• जैसे ही लगते है लेकिन अब निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ जी के पोसà¥à¤Ÿ पढ़कर थोड़ी रूचि जागने लगी है। दोपहर का समय होने की वजह से धà¥à¤ª बहà¥à¤¤ तेज लग रही थी इसलिठकिले मे ऊपर जाने का मेरा मन नहीं था। महल के गेट पर शूटिंग चल रही थी जिसको देखकर मà¥à¤à¥‡ थोडा ताजà¥à¤œà¥à¤¬ हà¥à¤† कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी सीरियल काफी पहले आता था और उसमे à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी बड़ी à¤à¥€ हो गयी थी लेकिन यहाठपर अà¤à¥€ à¤à¥€ वो ही पहले वाली à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी थी, बाद मे पता लगा कि वो शूटिंग à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी के लिठनहीं जी टीवी के सीरियल फियर फाइलà¥à¤¸ के लिठथी जो कि à¤à¥‚तो की सचà¥à¤šà¥€ घटनाओ पर है। à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी की शूटिंग के दौरान उन लोगो को à¤à¥€ à¤à¥€ à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ मे बहà¥à¤¤ कà¥à¤› रहसà¥à¤¯à¤®à¤¯ लगा था और उनके कैमरे à¤à¥€ ख़राब हो गठथे इसलिठबाद मे फियर फाइलà¥à¤¸ के लिठà¤à¥€ à¤à¤ªà¤¿à¤¸à¥‹à¤¡ तैयार किया जा रहा था। बाद मे मैंने à¤à¥€ ये à¤à¤ªà¤¿à¤¸à¥‹à¤¡ यूटà¥à¤¯à¥‚ब पर देखा। हमने थोड़ी सी शूटिंग देखी और फिर मे और मनमोहन बाहर घास पर छाव देखकर बैठगà¤, à¤à¤—वानदास जी और मनोज ऊपर चले गठजिससे की ऊपर से फोटो à¤à¥€ लिठजा सके। घास पर बैठकर बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ लग रहा था, वहा पर बहà¥à¤¤ सारे बनà¥à¤¦à¤° और लंगूर थे।
à¤à¤¾à¤à¤¸à¥€ की रानी शूटिंग फियर फाइलà¥à¤¸ के लिà¤
थोड़ी देर बाद à¤à¤—वानदास जी और मनोज à¤à¥€ आ गठतो हमने वापिस चलने का मन बनाया वैसे à¤à¥€ तेज à¤à¥‚ख à¤à¥€ लग रही थी, वही पर à¤à¤¦à¤¿à¤–ाई अ क पेड़ à¤à¥€ था जो पानी के à¤à¤• छोटे से कà¥à¤£à¥à¤¡ के पास था और वहा जंजीर लगायी हà¥à¤ˆ थी, उस पेड़ के पास जाना मना था, कहा à¤à¥€ जाता है की वहा पर साà¤à¤ª पेड़ से लिपटे रहते है। हमने à¤à¥€ कोशिश नहीं की आगे जाने की और वापिसी के लिठचल दिà¤à¥¤ वहा पर बहà¥à¤¤ से सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग थे तो हमने उनसे वहा की सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ जानने की कोशिश की लेकिन वो लोग इस बारे मे बात ही नहीं करना चाहते थे जबकि वो हमारी उमà¥à¤° के थे लेकिन उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बात करते हà¥à¤ à¤à¥€ डर लगता था। मनोज राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ ही है और राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ बोल à¤à¥€ लेता है तो उसने बोला कि मे कà¥à¤› पता करता हूठऔर वो à¤à¤• बड़ी बड़ी सफ़ेद मूछों वाले बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— (ताऊ) की तरफ बढ़ गया और हम आगे आकर ठीक नरà¥à¤¤à¤•ियो की हवेली के खंडहर के चबूतरे पर बैठगà¤à¥¤ थोड़ी देर बाद मनोज वापिस आया और बोला ” सर वो यही पास के ही रहने वाले है और कह रहे है की ये सच है और अà¤à¥€ à¤à¥€ रात को आतà¥à¤®à¤¾à¤ यहाठघूमती है, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कोई विशेष दिन à¤à¥€ महीने का बताया जिस दिन वहा बाजार लगता है।” लेकिन हम बोले की तà¥à¤® बात किस से कर रहे थे कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि हमें तो कोई दिख ही नहीं रहा था और तà¥à¤® अकेले अकेले ही बडबडा रहे थे। वो बोला ” कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ डरा रहे हो सर जी”
काफी देर à¤à¥€ हो चà¥à¤•ी थी इसलिठहम तेजी से बाहर की तरफ चल दिठअà¤à¥€ बाहर निकले नहीं थे कि हमें २ महिलाये दिखी जो मंदिर के सामने की तरफ à¤à¤• à¤à¥‹à¤ªà¤¡à¥€ सी मे बैठी थी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ और बोली की पानी पी लीजिये, हमारी हंसी छूट गयी कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि ये à¤à¥€ हमारे लिठà¤à¤• रहसà¥à¤¯ ही बन गया था की हर कोई पानी ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पूछ रहा है। जलà¥à¤¦à¥€ ही हम बाहर आ गठऔर गाडी मे बैठगà¤, वैसे à¤à¥€ वहा बाहर खाने पीने के लिठकà¥à¤› नहीं था इसलिठरासà¥à¤¤à¥‡ मे कही फल लेने का विचार किया और गाड़ी वापिसी के लिठघà¥à¤®à¤¾ ली। लगà¤à¤— साढ़े तीन बजे होगे और हम à¤à¥€ चाहते थे कि ६ बजे तक अलवर पहà¥à¤š जाठजिससे की समय से होटल मे कमरा लेकर, नहा धो कर रात के कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® की तैयà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ करे।
वापिस आते हà¥à¤ à¤à¤• बार विचार हà¥à¤† कि सिलिसिढ़ चला जाठलेकिन फिर विचार तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि à¤à¥€à¤² देखने का मन किसी का नहीं था इसलिठगाडी à¤à¤• बार उधर से निकाल जरूर ली कि कम से कम जगह देख ली जाठजिससे कि कà¤à¥€ à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ मे आये तो मन बनाया जा सकता है, रासà¥à¤¤à¥‡ मे नटनी का बाड़ा नाम की à¤à¤• जगह थी, कहा जाता है कि वो नटनी दो पहाड़ो के बीच रसà¥à¤¸à¥€ बाà¤à¤§ कर उस पर चलती थी और à¤à¤• दिन उस रसà¥à¤¸à¥€ से गिर कर ही उसकी मौत हो गयी, à¤à¤¸à¤¾ वो अपने बचà¥à¤šà¥‹ के लिठकरती थी इसलिठउसकी याद मे वहा à¤à¤• मंदिर à¤à¥€ बना दिया गया। लोग वहा रूकते है और मंदिर मे दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ करते है, हमने दरà¥à¤¶à¤¨ तो नहीं किये लेकिन थोड़ी देर वहा रà¥à¤•े और फिर वापिस चल दिà¤à¥¤ लगà¤à¤— साढ़े छ बजे हम अलवर पहà¥à¤š गठऔर सबसे पहले à¤à¤• होटल ढूà¤à¤¢à¤¾ जिससे की नहा धो कर थोडा सा आराम कर ले। होटल वाले ने कमरे मे à¤à¤• अतिरिकà¥à¤¤ बेड लगाने के वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कर दी थी और कमरा à¤à¥€ अचà¥à¤›à¤¾ था, साड़ी सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤ थी, टीवी, à¤à¤¸à¥€ आदि और किराया था १२०० रूपये। हम जलà¥à¤¦à¥€ से नहाये कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि कà¥à¤› खरीदारी à¤à¥€ करनी थी, मनमोहन ने तो जाने से मना कर दिया लेकिन हम तीनो बाजार की तरफ चले गà¤, वहा का कलाकंद बहà¥à¤¤ मशहूर है इसलिठवो ख़रीदा और कà¥à¤› सामान रात के लिठलिया और वापिस कमरे मे आ गà¤à¥¤ मनमोहन सो गया था इसलिठउसको उठाया और कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® की तैयारी शà¥à¤°à¥‚ करने को कहा। वैसे à¤à¥€ हमें सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ निकलना था ताकि मनोज और मनमोहन ऑफिस समय से पहà¥à¤š जाà¤à¥¤
सà¥à¤¬à¤¹ हम लगà¤à¤— छ साढ़े छ बजे वापिसी के लिठनिकले और साढ़े दस बजे उन दोनों को उनके ऑफिस उतार दिया, रासà¥à¤¤à¥‡ मे हम à¤à¤• जगह ही रà¥à¤•े जहा से हमारे डà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤µà¤° लकी ने पोसà¥à¤¤ ख़रीदा था। वैसे तो पोसà¥à¤¤ नशा करने के लिठहोता है लेकिन कà¥à¤› लोग काम के लिठà¤à¥€ इसका पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते है। सरकारी ठेका मिलता है इसको बेचने का और à¤à¤• निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ मातà¥à¤°à¤¾ तक इसको ख़रीदा जा सकता है। लकी ने à¤à¤• मजेदार घटना सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ वो बोला सर इसको खाने से à¤à¤• जूनून सवार हो जाता है और अगर किसी आदमी को कोई काम दे दो तो वो काम खतà¥à¤® होने तक नहीं रà¥à¤•ता, उसके गाà¤à¤µ मे उसके रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° की जमीन है जहा पर उनको पेड़ पौधों की कटाई छटाई करानी थी तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने किसी मजदूर को बोला जो पोसà¥à¤¤ खा कर काम मे लग गया और अगले दिन आकर बताया कि काम हो गया लेकिन काम जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय का था तो मालिक ने जाकर निरीकà¥à¤·à¤£ किया तो पता लगा की सिरà¥à¤« कटाई छटाई करनी थी लेकिन उसने छटाई तो की नहीं और जोश मे आकर सब कà¥à¤› काट दिया।
इस तरह à¤à¤• छोटी लेकिन मजेदार यातà¥à¤°à¤¾ खतà¥à¤® हà¥à¤ˆ à¤à¤¾à¤¨à¤—ढ़ के उस रहसà¥à¤¯à¤®à¤¯ ससà¥à¤ªà¥‡à¤‚स के साथ जो कब तक ससà¥à¤ªà¥‡à¤‚स रहेगा पता नहीं।
हमने फोटो तो बहà¥à¤¤ सारे खीचे थे लेकिन घर आने पर कैमरा १० मिनट के लिठमेरे à¤à¤¤à¥€à¤œà¥‡ के पास था, अब पता नहीं वो फोटो कैसे डिलीट हो गà¤à¥¤ उसने किये या इसमें à¤à¥€ कोई रहसà¥à¤¯ है। ऊपर के सà¤à¥€ फोटो गूगल बाबा की देन है।