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रणकपुर से कुम्भलगढ़ की डायनामिक यात्रा – Ranakpur to Kumbhalgarh, a dynamic journey

हुआ कुछ यूँ की एक घरेलु सप्ताहांत की उम्मीद थी परन्तु किसी ने सच ही कहा है की यात्रा कभी भी हो सकती है सो ऑफिस में शुक्रवार को मुझे एक नेक ख्याल आया | पत्नी जी दिल्ली से अहमदाबाद अकेले आ रही थी उनकी ट्रेन रविवार की सुबह चलकर रात में अहमदाबाद पहुचने वाली थी | मैंने सोचा क्यूँ न चलकर आगवानी की जाये अर्थात कुछ स्टेशन पहले ही उनको एक सरप्राइज दिया जाये और साथ में आगे की यात्रा पूरी हो | खयाल तो नेक था परन्तु आगे गूगल पर उंगलियाँ घूमी और रास्ते के स्टेशन के आस पास की देखने योग्य स्थानों की खोज शुरू हुई | एक घंटे के अन्दर एक उत्तम प्लान सामने था | प्लान कुछ यूँ था की रविवार की सुबह में एक बजे साबरमती स्टेशन से रणकपुर एक्सप्रेस ली जाये जो सुबह में फालना स्टेशन पहुंचाती है और वहां से मात्र चालीस किलोमीटर की दूरी और एक पुराना रणकपुर जैन मंदिर है | मैंने तय किया दिन भर मंदिर प्रांगन में बिताया जाये और काफी दिन से लंबित सलमान रुश्दी की मिडनाईट चिल्ड्रेन का लुत्फ़ लिया जाये और शाम में पांच बजे फालना स्टेशन से पत्नी जी के साथ हो लिया जाये | योजना के मुताबिक ट्रेन की टिकट ले ली गई (आश्चर्यजनक रूप से वे खाली भी थी) |

दिन : शनिवार, दिनांक : 04 September, 2015
शाम में आठ बजे स्वनिर्मित भोजन (जो हमेशा की तरह दाल चावल ही था) का आनंद उठाने के बाद मैं नौ बजे आश्रम रोड पर अमृता प्रीतम और इमरोज़ के प्रेम जीवन पर आधारित एक नाट्य मंचन के बाद मैं लगभग 11 बजे खाली हुआ | सड़क पर काफी चहल पहल देखकर याद आया की आज जन्माष्टमी है (अकेले रहने वाले के लिए त्यौहार का मतलब केवल और केवल एक छुट्टी ही होती है) | छोटे छोटे बच्चे कृष्ण की वेश भूषा में आ जा रहे थे | बच्चे तो स्वभाव से ही उत्साहित थे पर उनके माता पिता ज्यादा उत्साहित दिख रहे थे | मैंने एक जगह खड़े होकर बाल कृष्णो के अनगिनत रूपों का अवलोकन किया या सच कहें तो उनके मम्मी की मेहनत का जायजा लिया | चूँकि एक बजे की ट्रेन मुझे इसके लिए समय देती थी सो समय काफी था और घर पर जाया जा सकता था परन्तु जाने की इच्छा न थी | कुछ देर इधर उधर करने के बाद मैं सीधा साबरमती स्टेशन पंहुचा | स्टेशन पर गिने चुने प्राणी थे | आधा रेलवे के कर्मचारी और आधा रणकपुर एक्सप्रेस के यात्री |

साबरमती : एक ऐतिहासिक स्टेशन

स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर दो पर मैं रणकपुर एक्सप्रेस का इंतज़ार कर रहा था जो समय से आधा घंट ही लेट थी (थैंक गॉड) | मेरे साथ कुल 10 सहयात्री रहे होंगे जिसमे से एक 4-5 स्टूडेंट्स का ग्रुप था | मैं अकेला बैठ सोच ही रहा था की किसी से कुछ वार्ता वगैरह शुरू की जाये तो समय पास हो पर सामने के जीआरपी रूम के खुले दरवाजे से एक पुलिस वाले द्वारा एक पतले दुबले युवक को पीटने की झलक मिली | अब किसी को ट्रेन की फ़िक्र नहीं रही और सभी लोग भिन्न भिन्न एंगल बनाकर दृश्य को देखने की कोशिश करने लगे | जैसा की मुझे आशा थी स्टूडेंट्स का ग्रुप सुपर एक्टिव हो गया और बाकी यात्रीयों में भी पुलिस की भर्त्सना होने लगी | फिर अचानक एक स्टूडेंट मोबाइल निकाल के वीडियो बनाने लगा और सभी तय कर रहे थे की इसे फेसबुक और watsapp पर पुलिस की घिनौनी करतूत के रूप में वायरल कर दिया जाएगा | सारा माजरा चल ही रहा था की उधर से एक व्यक्ति प्लेटफार्म दो पर आता हुआ दिखाई दिया | उसके आते ही दो चार लोगो ने थोड़े थोड़े समय अंतर पर अलग अलग प्रश्न पूछे पर सबका मतलब था की विस्तार पूर्वक जानना चाहते थे की “आखिर माजरा क्या है ?” सभी उस अनजान व्यक्ति की तरफ इस तरह देख रहे थे मानो वो भारत की एक और स्वतंत्रता का पैगाम लाया हो | व्यक्ति ने एक ही पंक्ति में उत्तर देते हुए कहा जैसे कुछ हुआ ही न हो “अरे किसी को छेड़ रहा था तो पुलिस ने पकड़ा है |” भीड़ को उत्तर मिल गया था और सबके स्वर तुरंत बदल गये | किसी ने कहा “इसी लायक है” कोई बोला “अगर पुलिस नहीं होता तो क्या होता |” एक महाशय जो पहले पुलिस की काफी मिटटी पलीद कर चुके थे बोले की “पुलिस कभी कभी ठीक काम करती है” | मैंने सोचा इतनी रात में इसे छेड़ने के लिए कौन मिल गया तो उत्तर भी स्वयं मिला की जन्माष्टमी है और लोग सड़क पर टहल रहे हैं | इसी बीच ट्रेन आ गई और मैं अपने मिडिल बर्थ पर जाकर सो गया | मिडिल बर्थ लोगों ज्यादा पसंद नहीं आती पर मुझे यह प्रिय है क्योकि इससे आ लेटे हुए बाहर देख सकते हैं और हवा का आनंद भी ले सकते हैं | दृश्य और अच्छा हो जाता है जब बाहर चादनी रात हो और खिड़की के बाहर का चाँद अपने साथ ही चलता हो |

सुबह छ बजे के आस पास मैं फालना स्टेशन पहुंचा और स्टेशन के बाहर आते ही रणकपुर की ओर जाने वाली राजस्थान परिवहन निगम की बस की विंडो सीट पर बैठ गया | थोड़े ही देर में बस चल दी और आधे घंटे के अन्दर मैं रणकपुर जैन मंदिर के ठीक सामने था | मंदिर में अन्दर जाते ही भोजनशाला की व्यवस्था थी जिसने मंदिर से मेरे मिलन समय को और बढ़ा दिया | मात्र तीस रूपये में अनलिमिटेड ब्रेकफास्ट का भोग लगाया जा सकता था | मैंने लंच की तरह ब्रेकफास्ट किया और तृप्त मन (और तृप्त धन) से मंदिर की ओर बढ़ा |

मंदिर का रास्ता

मंदिर का प्रथम दृश्य

मंदिर के बारे में सूचना

मंदिर के अन्दर मोबाइल और कैमरा वर्जित थे इसलिए अन्दर की कोई पिक्चर उपलब्ध नही है | मैं अपने वर्णन से कोशिश करूँगा की एक रफ़ आईडिया दिया जा सके | यह मंदिर चौमासा मंदिर है | चौमासा से तात्पर्य है की चारों ओर से प्रवेश द्वार का होना | मंदिर के चारों प्रवेश पर हाथी की प्रतिमा है और अन्दर जाने पर मध्य में जैन भगवन की मूर्ति है | मध्य मूर्ति के चारों ओर अन्य जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ हैं तथा मंदिर के चारों किनारे ढेर सरे विभिन्न जैन गुरुओं एवं मतावलम्बियों की छोटी छोटी मूर्तियाँ हैं |

मंदिर के बाहर सेल्फी का असफल प्रयास

इस मंदिर में चारों ओर पिलर है | पूछने पर पता चला की कुल 1444 पिलर हैं | मंदिर के ऊपर जाने का रास्ता आम व्यक्तियों के लिए नहीं है उस पर केवल पूजार्थ पंडित जैसे लोगों का अधिकार है |

मंदिर के बाहर पुष्प बेचती महिला

मंदिर के पीछे का दृश्य

मंदिर का साइड व्यू

पास में ही सूर्य मंदिर

सूर्य मंदिर से अरावली की पहाड़ियों का दृश्य

रणकपुर मंदिर का सम्पूर्ण निरिक्षण और अवलोकन सुबह नौ बजे तक पूरा हो गया | अब एक ऐसे जगह की तलाश करनी थी जहाँ पर बैठकर किताब पढ़ा जा सके | दोपहर के भोजन की चिंता नहीं थी क्यूंकि भोजनशाला में लंच का प्रोग्राम भी था जिसके बारे में मैंने पहले ही पता कर लिया था | एक सिक्यूरिटी गार्ड से बात करने पर पता चला की पास में कुम्भलगढ़ का किला भी है | मेरे मोबाइल का 2G इन्टरनेट अपने पहले की स्पीड से भी कम स्पीड से काम कर रहा था | अभी नौ बजे थे और मेरे पास शाम 5 बजे तक का समय था | अचानक मुझे ये समय ज्यादा लगने लगा और कुम्भलगढ़ जाने के लिए मन मचलने लगा | आस पास जो भी मिला मैंने कुम्भलगढ़ की जानकारी एकत्र की और लगभग सभी ने बोला 5 बजे तक आ भी सकते हो पर अपना देख लो भाई | खैर एक बार फिर मिडनाईट चिल्ड्रेन का भाग्य नही खुला और मैं सायरा जाने वाली बस पकड़ने के लिए मंदिर के बाहर गेट पर खड़ा था | 10 मिनट में बस आ गई और किसी तरह मुझे बैठने की जगह भी मिल गई |

बस से बाहर का दृश्य

सच बताओं तो मुझे अरावली की पहाड़ियों से इतनी उम्मीद नहीं थी लेकिन रास्ते में काफी ग्रीनरी थी | मैं खिड़की से बाहर ही देखे जा रहा था | घुमावदार रास्तों से होती हुई बस आगे बढती जा रही थी बीच बीच में गोंव के कुछ घर दिख जाते थे जहाँ एक दो लोग उतरते थे और एक दो लोग चढ़ते थे | राजस्थानी संस्कृति की झलक पूरी बस में दिखाई दे रही थी | कुछ पुरुष तरह तरह की मैली कुचली पगड़ी लगाये बैठे थे तो औरतों ने ढेर सारे गहने पहन रखे थे | शायद सस्कृति गांवों में ही बची है शहर तो स्मार्ट हो गये है | परन्तु इस सस्कृति सरंक्षण की भारी कीमत गाँव वालों द्वारा ही चुकीई जाती है | अब ये सस्कृति सरंक्षण जान भूझकर किया जा रहा है या स्मार्ट सिटी और भारत निर्माण के अपने कार्य में पीछे छूट जा रहा है; ये तो विशेषग्य ही बता सकते हैं |

सड़क के किनारे के कुछ घर

रास्ते के खेत

सायरा से बस बदलकर कुम्भलगढ़ के लिए प्राइवेट बस मिली | जिला उदयपुर की सीमा के अन्दर दौड़ती हुई बस और ऊंचाई पर चढ़ रही थी | बस पर्याप्त भरी थी; एक स्टॉप पर बस में दो लड़कियां चढ़ी | लड़कियों ने राजस्थानी संस्कृति के अनुसार गहने पहन रखे थे और देखने से 19-20 साल की थी | चेहरे पर धुल का पाउडर लगा था पर उम्र का तेज हावी था | दोनों बस के गेट के पास रखे टायर पर बैठ गई | थोड़ी ही देर में मेरे दिमाग में बाल विवाह और सर्व शिक्षा अभियान की कई तस्वीरें घूम गई | मैंने बगल के सहयात्री से बाल विवाह के मुद्दे पर दुःख व्यक्त करते हुए कहा की खेलने की उम्र में शादियाँ हो जा रही है उसने बोला गरीबी कुछ भी करा सकती है | इतनी कम उम्र में गृहस्थी के उलझनों से झूझना कितना मुश्किल होता होगा | इन्ही विचारों में उलझा कुम्भलगढ़ किला पंहुचा | समय 11:30 हो चुके थे | मुझे रास्ते पर छोड़ बस आगे निकल गई | पूछने पर पता चला वहां से कुम्भलगढ़ का द्वार 3km था मैंने पैदल जाने का ही निश्चय किया क्यूंकि 3km के 200 मुझे मंजूर नहीं थे और रास्ता भी चल के जाने लायक था (ये मुझे ये बाद में पता चला) |

किले का रास्ता

रास्ते में मुझे एक तलवार जैसे फल वाला पेड़ मिला | मैंने कूद कर उसे पकड़ने की कोशिश की पर बार बार थोड़ी थोड़ी दूरी से चूक गया | कुछ आगे जाने पर किले की दीवारें दिखने लगी और चलने का जोश बढ़ता गया |

दूर किले की दीवारे

ज्यादातर लोग अपनी रिज़र्व गाडी से ही आ जा रहे थे | मेरे जैसे एक्के दुक्के लोग की ग्यारह नंबर की गाडी अर्थात पद चाल कर रहे थे | रास्ते से किले का मुख्य भाग (सबसे उच्चतम भाग) का लिया गया चित्र को ध्यान से देख लीजिये आगे मैंने ऊपर के मुख्य भाग से नीचे के इस रास्ते का पिक्चर प्रस्तुत किया है |

रास्ते से किले का मुख्य भाग का लिया गया चित्र

थोड़ी समय की यात्रा के बाद किले का मुख्य द्वार आ गया |

किले का मुख्य द्वार

किले से अरावली का दृश्य

किले से दिखने वाले कुछ घर

वैसे तो मैं कोई भी किला बिना गाइड के नहीं घूमता हूँ पर इस किले में गाइड उपलब्ध नहीं थे इसलिए मैंने अपने पुराने ज्ञान के आधार पर ही किले दर्शन के लिए अन्दर प्रस्थान किया | स्टीप चढ़ाई होने के कारण लोग हांफ रहे थे और बच्चे थे की दौड़े चलते चले जा रहे थे |

चढ़ाई करते लोग

चढ़ाई के रस्ते में किनारे फूल लगाये गये थे | फूल तो काफी लगाये गये होंगे पर ASI के कुछ फूल अभी भी वहां थे | ये बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे |

रस्ते में फूल

किले से नीचे का व्यू

किले में कुछ ख़ास देखने लायक नही था | सबसे अच्छा था अरावली का व्यू जो मानसून के कारन अपने शबाब पर था | हर किले की तरह यहाँ भी एकतरफा प्रेम में पागल भारतियों ने जगह जगह पर अपने प्यार के किस्से को शब्द दिया हुआ था | पता नहीं लोगों को अपने दिल की भड़ास निकालने के लिए कोई और जगह क्यूँ नही मिलती | सब तो ठीक था कुछ लोग किले की तारीफ तो कर ही रहे थे साथ ही साथ पान मसाला की पीक से दीवालों को मजबूती के साथ साथ न्य रंग दे रहे थे | इन सबसे निकलते हुए मैं किले के एक कमरे की खिड़की के पास बैठा जहाँ से बहुत ही सुन्दर और शीतल हवा आ रही थी नीचे का दृश्य भी दर्शनीय था | मुझे एहसास हुआ कुछ चंद जगहों में से एक शांति की जगह यही है | मैं कुछ देर वही बैठा | अकेले चलने में सबसे बड़ी दिक्कत होती है अपनी pic लेने की | किले के साथ सेल्फी भी अच्छी नही लगती | मैंने मौका देखकर एक मोहतरमा से फोटो लेने के लिए बोला तो उन्होंने 5 सेकंड की वीडियो बना दी; जिसका एहसास मुझे थैंक यु कहने के बाद हुआ | खैर फिर किसी से कहने की हिम्मत नहीं हुई सो उसी वीडियो का स्नैपशॉट यहाँ है |

वीडियो का स्नैपशॉट

यात्रा अंत की ओर बढती है किले के सबसे ऊपर पहुचकर मैंने उसी रस्ते की फोटो ली जहाँ से चलकर मैं आया था और जिसका जिक्र मैंने ऊपर किया है |

किले के ऊपर से नीचे रस्ते का चित्र

समय देखने पर पता चला एक बज चुके हैं अब मुझे लौटने की हड़बड़ी हुई और मैं जल्दी जल्दी उसी रास्ते वापस आने लगा | मोबाइल नेटवर्क अभी भी काम नहीं कर रहा था की ट्रेन की कर्रेंट स्टेटस का पता लगाया जा सके | लौटते हुए मैंने एक गाइड को दूर स्थित एक गेट की तरफ इशारा कहते सुना की वह एक फेक गेट है और आक्रमणकारियों को भरमाने के लिए बनाया गया था |

लौटते हुए एक चित्र

अब मेरे दिमाग में एक ही बात दौड़ रही थी की पांच बजे तक वापस फालना स्टेशन पहुचना है और अगर नहीं पंहुच पाया तो ट्रेन छूट जाएगी और सरप्राइज देने के चक्कर में लेने के देने पड़ जायेंगे | मैं जल्दी जल्दी किले से बाहर आया और बस स्टॉप की ओर उसी रस्ते से चल पड़ा | अब फोटो लेने की कोई सुध रही नहीं | दिमाग बस समय दूरी चाल के समीकरण सोल्व कर रहा था | रास्ता काफी लम्बा लग रहा था जाती सभी गाडियों से लिफ्ट मांगी पर किसी ने दी नहीं| या तो सब फुल थी या तो उसमे प्रेमी प्रेमिका थे जिन्हें किसी तीसरे जीव का होना कतई मंजूर नही होना चाहिए | लौटते वक़्त वही पेड़ मिला जिसके फल पकड़ने के लिए मैं कई बार उछला था | पेड़ ने लैंडमार्क का काम किया और मुझे थोडा सुकून मिला | मुझे एक सूखा हुआ वाटरशेड मिला | ऐसा लगा की कभी यहाँ पानी रहा होगा और ये भी सोचा की आज जहाँ पानी है कल वहां भी ऐसा ही होगा |

वाटर शेड का चित्र

बस स्टॉप पर इंतज़ार करते हुए आधे घंटे बाद बस मिली | धड़कन अपने फुल स्पीड से धड़क रही थी | बार बार लग रहा था की पत्नी जी से क्या कहेंगे की सरप्राइज देने पांच स्टेशन पहले आने वाले थे और हुआ कुछ यूँ की उन्हें रिसीव करने अपने स्टेशन पर भी नहीं पहुँच पाए | मुझे ये तो समझ में आ गया की आज तो उन्हें सरप्राइज होना निश्चित है चाहे फालना स्टेशन पर या फिर साबरमती स्टेशन पर | सायरा की बस में बैठे मुझे ऐसे ख्याल आये हो न हो ये जगह सायरा बानो के नाम पर रखी गई हो | 4 बजे शायरा पहुंचे हो नेटवर्क आ गया था और 2G स्पीड से हमने चेक किया तो ट्रेन केवल 15 मिनट ही लेट थी | न्यूटन का चौथा नियम “जब आप टाइम पर तो ट्रेन लेट और जब आप लेट तो ट्रेन टाइम पर होती है” यहाँ पर भी लागू हो गया | इस सिधांत की सत्यता इस बात पर है की इन दोनों केसेस को छोड़कर सिध्धांत की वैधता को ध्यान में ही रखा जाता है | सायरा पहुँच कर मैंने फालना की रोडवेज की बस पकड़ी | बस कहीं भी कड़ी होती तो मैं उचककर देखने लगता की आखिर क्या हुआ | अपनी झुझलाहट बगल वाले से जाहिर करता तो उसे लगता होगा की ये तो नार्मल है | आखिर में मैं पांच बजकर 35 मिनट पर फालना स्टेशन पहुंचा तो यह अनाउंसमेंट हो रही थी की अहमदाबाद को जाने वाली बनारस अहमदाबाद ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर एक पर थोड़ी ही देर में आ रही है | यह सुनके दुबारा वो शांति मिली जो किले की खिड़की पर मिली थी | हवा नहीं चल रही थी फिर भी मैंने अपने अन्दर शीतल हवा महसूस की |

रणकपुर से कुम्भलगढ़ की डायनामिक यात्रा – Ranakpur to Kumbhalgarh, a dynamic journey was last modified: March 3rd, 2022 by Shivam Singh
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