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केदारनाथ यात्रा 2014 – नॉएडा से गुप्तकाशी – भाग 1

ऐसे ही ऑफिस मे बैठे हुए पता नहीं गूगल पर एकाएक मैंने केदारनाथ सर्च मार डाला। गूगल पर 2013 में हुई तबाही की तस्वीरों और खबरों को फिर से देखने और पढ़ने लगा। 10-15 मिनट के बाद मैंने गूगल बंद कर दिया और ऑफिस के सहकर्मियों के साथ सुट्टा ब्रेक पर चल दिया।

उस दिन रात को डिनर करने के बाद फिर से मुझे केदारनाथ का ख्याल आने लगा। ख्याल को दरकिनार कर मैंने  SAB चैनल लगाया और लापतागंज और FIR देखने के बाद सो गया। अगले दिन ऑफिस से फिर से गूगल पर केदारनाथ यात्रा के लिये रास्ते और मौसम कि जानकरी ढूंढनें मे लग गया। अभी तक मेरे मन मे एक बार भी केदारनाथ जाने का ख़याल नहीं आया था। पर फिर भी मैं जानकारी लेने मे जुट गया था। 2-3 दिन तक यही चलता रहा। एक दिन मैं रात को ऑफिस से घर पहुँचा और अपनी पत्नी को कह दिया कि मैं केदारनाथ जा रहा हूँ अगले हफ़्ते। उसने मेरी बात को जानभूझ कर अनसुना करते हुए कहा कि जल्दी से हाथ-मुह धो लो मैँ ख़ाना लगा रही हूँ। पापा से केदारनाथ जाने के लिये इज़ाज़त लेने कि मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रहा  था। गुजरे साल 2013 जून मे हुई तबाही के एक हफ़्ते पहले ही मेरे मम्मी-पापा और कुछ रिस्तेदार मौत के मुह से बचकर सुरक्षित घर पहुँचे थे। मैं सोच रहा था कि जैसे ही पापा को बोलूँगा तो पता नही क्या सुनने को मिलेगा। मार पड़ने की भी पूरी-पूरी संभावना थी। अभी मैंने कुछ नहीं बोला क्यूँकि अभी तो बस मैँ जानकारी ही इक्कठी कर रहा था। अभी तो दिल से भी आवाज़ नहीं आई थी की जाना भी है की नहीं।

अगले दिन ऑफिस पहुँच कर मैंने फिर से गूगल किया और केदारनाथ जानें के लिये रजिस्ट्रेशन कहाँ-कहाँ हो सकता है ढूंढने लगा। मुझे 01352559898 नंबर मिला और मैंने कॉल दी। एक सज्जन ने कॉल उठाया और मेरा नाम और मोबाइल नंबर नोट किया। मैंने उनसे रजिस्ट्रेशन के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अगर आप दिल्ली से आ रहे हो तो हरिद्धार रेलवे स्टेशन या फिर ऋषिकेश बस अड्डे पर अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। फिर से उन्होंने मेरा नाम और नंबर सुनिश्चित किया और धन्यवाद करते हुए हमारी वार्ता समाप्त हुई। अब जाकर मेरी केदारनाथ जाने कि ईच्छा ने सांस लेन शुरु कर दिया। रात को ऑफिस से घर पहुँचा और अपनी पत्नी को बोल दिया कि मैंने रजिस्ट्रेशन के बारे मे पता कर लिया है। इस बार उसने पलट कर कुछ इस तरह जवाब दिया “पागल हो क्या, दिमाग तो ठीक है। ” मैंने उसको आराम से समझाते हुए कहा “अरे इस बार तो प्रशाशन ने रजिस्ट्रेशन शुरु कर दिया है और यात्रियों की सुरक्षा का पूरा इंतजाम किया है। ” अब ये तो पक्का था कि अब वो पापा को मेरी इस योजना के बारे मे ज़रूर बताएगी और मेरा काम बन जायेगा और गाली खाने से भी बच जाऊँगा। बाकी जो होगा वो बाद मे देख लेंगे।

2-3 दिन गुजर गए मैं इस इंतज़ार मे था कब पापा मुझसे इस सिलसिले मे बात करेँगे। मैं ये भी सोच रहा था कि पता नहीं पापा के कान तक बात पहुँची भी है कि नहीं। अगले दिन पापा ने कहा कि उनको CP जाना है और मैं उनको नॉएडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन तक छोड़ दूँ। रास्ते मे उनके एक मित्र भी गाड़ी मे बैठ गए। इन लोगों की वार्तालाब शुरु हो गई। इसी बीच मेरे पापा बोल पडे कि ये केदारनाथ जाने कि कह रह है। इसका एक रात श्रीनगर मे रुकने का इंतज़ाम करवा दो। पापा के मित्र की जानपहचान थीं उन्होंने कहा श्रीनगर रुकेगा तो कॉल कर देना मैँ इंतजाम हो जायेगा। उन्होंने कहा कितने लोग हैं मैंने बोल दिया अभी तो हम तीन लोग ही हैं। उन्होंने कहा गाड़ी कौन चलाएगा, मैंने कहा सबको आती है प्लेन्स मे बाक़ी लोग चला लेँगे और पहाड़ मे मैँ ड्राइव कर लूँगा। वे बोले ठीक है पर संभल कर जाना।

पापा को मेरे जाने से कोई संकोच नहीं था। बस अब तो जाना पक्का हो गया था। केदारनाथ का बुलावा आ गया था।

अगले दिन ऑफिस पहुँच कर मैंने मई 5 और 6 तारीख की छुट्टी डाल डी। मैनेजर ने 5 मिनट मे ही छुट्टी का सत्यापन भी कर डाला। ऑफिस के सहकर्मियों ने पूछा, भाई कहाँ चल दिया छुट्टी लेकर। मैंने कहा यार केदारनाथ जा रहा हूँ। एक बोला कि मैं भी चलूँगा क्युँकि कामवाली मई 1 को आजायेगी और मेरी बेटी को भी संभाल लेगी वारना बीवी को अकेले दिक्क़त हो जयेगी। मैंने कहा अपने हिसाब से देख ले अगर चलेगा तो मेरा साथ भी हो जायेगा।

हमारा व्हाट्सऐप पर पुराने दोस्तो क एक ग्रुप है वहाँ पर मैंने बता दिए वारना लोग बाद मे बोलतें हैँ कि हमेँ नहीं बताया और अकेले ही चला गया। ग्रुप से एक और सज्जन तैयार हो गये। हम पुरानी कंपनी मे साथ काम कर चुके थे और ये मेरे मैनेजर हुआ करते थे। सही मिज़ाज़ के आदमी हैं साथ चलेँगे तो मजा आएगा। अभी फिलहाल हम तीन लोग थे।

मैंने एक बार फिर से 01352559898 नंबर पर कॉल किया और रजिस्ट्रेशन काउंटर सुबह कितने बजे खुलता है ये जानकारी ली। मुझे बताया गया की सुबह 10 से शाम तक खुलता है। अब एक दिक्कत थी कि मेरी योजना के हिसाब से मैं शुक्रवार मई 2 को ऑफिस के बाद निकलने वाला था और ऋषिकेश मई 3 को सुबह-सुबह पहुँचने वाला था कि जैसे ही ऋषिकेश के बैरियर खुलते और मैं आगे निकल पड़ता। पर इतनी सुबह तो रजिस्ट्रेशन काउंटर तो नहीं  खुलेगा और बेवजह ही 4-5 घंटे वयर्थ हो जाएंगे। मुझे हलचल सी हो रही थी क्यूँकि 4-5 घंटे मे तो मैं ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग पहुँच सकता था। दिमाग मे एक बात आई कि मैं तो दिल्ली से जा रहा हूँ इसीलिए रजिस्ट्रेशन हरिद्धार और ऋषिकेश मे करवा सकता हूँ। पर जो लोग उत्तराखण्ड मे रह्ते हैं वो भी तो कहीं न कहीं रजिस्ट्रेशन करवाएँगे। मैंने फिर से 01352559898 नंबर पर कॉल लगा डाला। पता चला कि रजिस्ट्रेशन आगे भी हो जायेगा पर किस किस जगह होगा इसकी जानकारी उस व्यक्ति को नहीं थी। अब उलझन और बढ़ गई थी। तभी एक दोस्त का ख्याल आया। हम TechM मे साथ मे काम किया करते थे। ये उत्तराखण्ड मे रुद्रप्रयाग का ही रहने वाला है। मैंने इसको कॉल किया इसने बताया कि इसके एक दोस्त रुद्रप्रयाग जल विभाग मे काम करता है उससे जानकारी मिल जाएगी। उसके दोस्त ने बताया कि रजिस्ट्रेशन गुप्तकाशी के टूरिस्ट इंफॉर्मेशन सेंटर मे हो रहे है और सोनप्रयाग मे भी हो रहे है। जिस वज़ह से मै परेशान था उसका हल मिल गया था।

शुक्रवार मई 2 तारीख को जाना तय हुआ। मैंने अपनी बीवी को बोल दिया था कि अलमारी से एक जैकेट, एक हाल्फ स्वेटर, रेनकोट निकाल कर रख देना।  बाकी सामान मैं अपनी ज़रुरत के हिसाब से खुद ही रख लूँगा। हम तीन हो लोग थे और अच्छा भी था क्यूँकि किसी को अगर सोने का मन करे तो पीछे वाली सीट पर आराम से लमलेटे सकता था। जाने से दो दिन पहले हमारे एक मित्र को पीठ पर चोट लग गई। उन्होंने मुझे कहा कि अगर गुंजाइश होगी तो ज़रूर चलूँगा। मैंने मना कर दिया कि ऐसी हालत मे जाना ठीक नहीं होगा क्यूँकि वहाँ जाकर तबीयत और ज्यादा बिगड़ सकती थी। मैंने सोचा चलो कोई बात नहीं हम दो लोग ही चल पडेंगे। लेकिन जाने से एक दिन पहले ऑफिस के सहकर्मी ने बताया कि maid मई 6 तारीख को ही ज्वाइन कर पायेगी। मैंने कहा भाई कोई बात नहीं निराश मत हो, लगता है आभी तुम लोगोँ को बुलावा नही आया है।

अब मुझे अकेले ही  निकलना था और मुझे कोई संकोच भी नहीं था क्यूँकि यात्रा का प्लॉन मैंने अकेले ही जाने का बनाया था। तो शुक्रवार मई 2 तारीख को मेरी योजना यह थी कि ऑफिस से शाम को काम निपटा कर पहले घर जाऊँगा फिर डिनर करके अाराम से निकलूँगा। लेकिन अक्सर होता उल्टा ही है। शाम को ही 2-3 ज़रूरी काम आ गए जिनको मैँ टाल नहीं सकता था क्यूँकि मैंने मई 5 और 6 तारीख की छुट्टी ली हुई थी। काम खत्म करते मुझे ऑफिस मे ही रात के 09:30 हो गए थे। वैसे दिक्कत की कोई बात नहीं थी क्यूँकि प्लान  कहीँ रुकने का नहीं था। देर  से निकलने पर अगली सुबह ऋषिकेश पर लगा हुआ बैरियर खुला  मिलने वाला था। घर पहुँचा तो मेरे बैग मैडम ने पहले  पैक किये हुए थे। मैंने जूते उतार कर बैग मे डाल दिये और चप्पल पहन ली। डिनर किया, कुछ देर सुस्ताया और 00:00 hrs पर घर से केदारनाथ यात्रा निकल पड़ा। देखा जाये तो निकलने की तारीख मई 3 हो गई थी। घरवालोने ने आराम से जाने की नसीयत दी। कहा की तीनों लोग बदल-बदल कर गाड़ी चलाना और बीच-बीच मे आराम भी करना।

अब उन को लोगों क्या कहता कि अकेले ही जा रहा हूँ। ऐसा बताते ही दरवाजे से अंदर खींच लेते। मैंने समय-समय पर कॉल करने की, गाड़ी आराम से चलने का आस्वासन दिया और “जय भोलेनाथ की” बोल कर पहला गियर डाल दिया। नोएडा सैक्टर-62 पार करने बाद मैं इन्द्रापुरम सी.आर.पी.एफ होते हुए मोहन नगर – राजनगर एक्सटेंशन होते हुए हाईवे पर जुड़ गया। पहला पंप दिखा और मैंने गाडी मे डीज़ल टॉप-उप करवा लिया। उत्तरप्रदेश मे तेल थोड़ा महँगा है पर 2500/- मे टॉप-उप हो गया था। एक बात बताना भूल गया कि मेरे पास 5000/- थे जो कि अब तेल भरवाने के बाद 2500/- रह गए थे।

बस मेरा एक ही मंत्र था कि गाडी 80 से ऊपर नहीं चलानी और मैने किया भी ऎसा। एक बात आप लोगों को बता दूँ कि जहाँ तक मुज़्ज़फर नगर का टोल रोड है वहॉँ तक तो मैंने बड़े ही आराम से गड़ी चलाई। लेकिन उसके बाद तो मानो रोड हि खत्म थी और हर 2-3 मीटर पर बड़े-बड़े गड्ढे थे। रात को ज्यादातर ट्रक ही चल रहे थे और एक तरफ़ का रोड पूरा ख़राब था इसीलिए आने-जाने वाला ट्रैफिक एक ही रोड पर चल रह था। ट्रक तो आराम से गड्ढे से बचा कर निकल रहे थे पर रात के वक़्त मेरी गाड़ी कई बार इन गड्ढो क शिकार बानी। रुड़की पहुँच कर राहत मिली। नॉनस्टॉप चलते हुए मैंने मई 3 सुबह के 06:30 बजे ऋषिकेश पार करने के बाद देवप्रयाग कि ओर गाड़ी दौडा दी। करीब एक-डेढ़ घंटे बाद मैंने देवप्रयाग मे गाड़ी रोकी। देवप्रयाग बाज़ार के पास बने सुलभ शौचालय मे जाकर नित्यकर्म निपटाए और उसके बाद एक चाय और फैन खाया। एक पानी की बोतल रखी और श्रीनगर कि ओर निकल पड़ा। यात्रा रूट मे कुछ खास भीङ नहीं दिख रही थी। कई बार तो ऐसा लग रहा था कि कई किलोमीटर से मैँ अकेले ही चल रहा हूँ।

श्रीनगर कुछ देर मे आने ही वाला था अब जाकर कुछ ट्रैफिक नज़र आने लगा था। महिंद्रा बोलेरो, टाटा सूमो, लोगों की पर्सनल गाड़ियाँ सटासट दौड़ रही थी। किसी पर बीजेपी तो किसी गाडी पर आप(आम आदमी पार्टी) के। तभी एक पुलिस वाले ने हाथ दिया, मैंने सोचा हो सकता है दिल्ली कि गाडी और अकेला सवार है कहीं ये सोचकर रोक रहा हो। मैंने गाड़ी रोकी, एक पुलिस कर्मी मेरी तरफ़ आया और दूसरा गाड़ी के आगे खड़ा हो गया। मुझे डरने की कोई लोड नहीं थी गाड़ी के कागज़ पूरे थे।

पुलिस वाला – कहाँ जा रहे हो ?
मैं – केदारनाथ।

पुलिस वाला – अकेले ?
मैं – हाँ।

पुलिस वाला – बड़ी हिम्मत है।
मैं – बस जि मूड़ कर गया।

दूसरा पुलिस वाला – क्या आप मुझे श्रीनगर तक छोड़ दोगे ?
मैं – मोस्ट वेलकम। आजाओ।

आगे बातचीत होती रही। इस पुलिस वाले की बीवी भी उत्तराखंड पुलिस मे थी। लेकिन उसकी ड्यूटी किसी और डिस्ट्रिक्ट मे थीं। उसने बताया तो मैंने कहा मै भी वहीँ से हुँ। पर अब गॉव मे कोई नहीं रहता साल मे 1-2 बार ही आना-जाना होता है। बात घुमाते हुए मैंने पुछा खूब चुनाव प्रचार चल रहा है। तब उसने बताया कि उत्तराखण्ड मे मई 7 को लोकसभा चुनाव हैं।

पुलिस वाले को श्रीनगर मे उतारने के बाद मैं आगे निकल गया। अब मुझे 2013 मे हुई आपदा के अवशेष नज़र आने लग गए। पिछले साल टीवी चैनल्स पर हमने कुछ नहीं देखा था। मीडिया ने वही कुछ दिखाया जहाँ तक वो लोग पहुँच पाए होंगे। श्रीनगर – रुद्रप्रयाग – तिलवाड़ा – अगस्तमुनि मे तबाही का मंज़र बोलता है। ये सब देख कर मेरा दिल रो उठा। मैं बार-बार यही सोच रहा था कि ऊपर से कैसा जलजला आया होगा कि इस तरह की तबही हो गई।

माफ़ कीजियेगा अकेला होने की वज़ह से मैं फ़ोटो नहीं खींच पाया। अब मेरी मंज़िल यानि कि मेरा पहला पड़ाव गुप्तकाशी आने ही वाला था तो मैंने जल्दीबाज़ी ना दिखाते हुए एक सुट्टा ब्रेक ले लिया।

भीरी मे कुछ देर विश्राम करते हुए

यहाँ पर 10 मिनट रुकने के बाद मैं मई 3 दोपहर 12:20 बजे गुप्तकाशी बस स्टैण्ड पहुँच गया। बड़ा ही सुकून मिला। वहां तैनात एक पुलिस वाले से पता चला कि यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन “गुप्तकाशी टूरिस्ट इनफार्मेशन सेंटर” मे हो रहा है। मैंने गाड़ी रजिस्ट्रेशन काउंटर की ओर दौड़ा दी।

गुप्तकाशी टूरिस्ट इनफार्मेशन सेंटर

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रजिस्ट्रेशन की लाइन। हैरान न होना।

लाइन बहुत ही छोटी थी। मुश्किल से 20 लोग रहे होंगे। ज्यादातर लोकल लोग थे जो 6 महीने का परमिट ले रहे थे यात्रा सीज़न मे काम-काज करने के वास्ते।

लो जी हो गया अपना रजिस्ट्रेशन।

यात्रिओं के लिए रजिस्ट्रेशन सिर्फ 3 दिन के लिए ही मान्य है। मैं 3 से 5 तारीख तक किसी भी दिन चढ़ाई कर सकता था। अगर तारीख 6 हो जाती तो रजिस्ट्रेशन दुबारा से करवाना पड़ता।

रजिस्ट्रेशन करवाने बाद मैं वापस गुप्तकाशी मार्किट गया और भोजन किया। कुछ देर सुट्टा एन्जॉय करने के बाद देखा की अचानक मौसम बदल गया है। देखते-देखते बारिश शुरू हो गई। बारिश रुकने के बाद मैंने आगे निकलने का सोचा लेकिन तभी पुलिस चेकपोस्ट से जनहित मे सूचना जारी हुई कि मौसम ख़राब होने की वजह से आज यात्री गुप्तकाशी से आगे नहीं जा सकते। कुछ देर के बाद मैं स्वयँ पुलिस चेकपोस्ट पर गया और गढ़वाली भाषा मे वहाँ तैनात पुलिस कर्मी से पुछा। उसने बताया कि आगे सोनप्रयाग तो जा सकते हो पर अगर यहाँ से यात्री सोनप्रयाग तक जाने के लिए छोड़ दिए तो सोनप्रयाग मे रात को रुकने के लिए प्रयाप्त होटल्स और इंतज़ाम नहीं हैं। गुप्तकाशी मे बहुत लॉज और होटल हैं आज रात यहीं रुक जाओ। मुझे उसकी बात समझ आई और मैंने पुलिस पोस्ट के सामने बने लॉज “नील कमल” मे 200/- का एक रूम ले लिया। रूम साफ़-सुथरा, बड़ा और साथ मे अटैच टॉलेट/बाथरूम था। ओपन टेरेस   भी था।

टेरेस से लिया साइन बोर्ड का फ़ोटो।

मेरे पास अब काफी टाइम था पर करने को कुछ भी नहीं था। मैंने पुलिस पोस्ट के बगल मे ही गाड़ी खड़ी कर दी थी। पुलिस वाले ने कहा रात को तो कोई दिक्कत नहीं है पर सुबह जल्दी हटा देना। मैंने गाड़ी की डिक्की से सारा सामन निकला और रूम मे रख दिया। फिर फ्रेश होकर रूम लॉक करके बाहर निकल गया। मैं मई 2 तारीख से अभी तक सोया नहीं था। इसी वजह से थोड़ी हरारत सी महसूस हो रही थी और शरीर भी थोड़ा गर्म लग रहा था। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा था ऐसा तो हर बार ही होता है। तो मुझे ज्यादा परवाह नहीं हुई। मैं दो घंटे तक पैदल ही सैर करता रहा और सुट्टा भी चलता रहा। बारिश के बाद मौसम मस्त ठंडा हो गया था। मैं सोच रहा था कि कल तक तो मैं दिल्ली की जलाने वाली गर्मी मे था और यहाँ का मौसम तो कसम से जान लेवा हो चला था। एक बार तो मन हुआ कि जैकेट पहन लूँ पर आलस कर गया कि अब रूम पर सोने के लिए ही जाऊँगा। करीब दो घंटे तक घूमने के बाद मैंने एक थाली का आर्डर दिया जिसमे दो सब्ज़ी, एक दाल, चार रोटी, सलाद और अचार था। ये सब मात्र 60/- मे। जो लोग उत्तराखण्ड गए होंगे उनको तो पता ही होगा कि भोजन सादा और सस्ता मिलता है। बिलकुल घर जैसा पका हुआ। वैसे मैं अचार का शौकीन नहीं हूँ पर थकान होने की वज़ह से चटपटा खाने मे मज़ा आ गया। खाना खत्म करने के बाद मैंने सुबह 5 बजे का अलार्म लगाया और रात को 10 बजे तक सो गया।

केदारनाथ यात्रा 2014 – नॉएडा से गुप्तकाशी – भाग 1 was last modified: August 17th, 2025 by Anoop Gusain
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