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Trip to Chakrata/यादगार सफर चकराता का (दिल्ली से चकराता -1)

करीब एक साल हो चुका था हमारी नैनीताल यात्रा को और समय भी ठीक ही था। ओक्टूबर आते ही वैसे भी मौसम अच्छा हो जाता हैं, गर्मियों मैं इसलिए जाने का मन नहीं करता क्यूंकी सब जगह दुनिया भर की भीड़ हो जाती हैं और दाम 4 गुना तक बड़ जाते हैं। वैसे भी पिछ्ले साल नैनिताल से वापस आने के बाद ही हम सब दोस्तो ने अगली बार भी घूमने का प्रोग्राम सर्दियों मैं ही बनाया था.

उत्तराखंड की खूबसूरती इतनी बस गयी थी की इस बार भी तय किया की उत्तराखंड ही जाएंगे. पता नहीं ऐसा क्या हैं हिमालय की वादियों मैं की बस वहीं हर बार जाने का मन करता हैं। जून जुलाई के अंत मैं तय किया गया की ओक्टुबर में जाएंगे।
अब जगह तय करनी थी, और वो ही शायद सबसे मुश्किल काम था। क्यूंकी हम लोग काफी समय बाद कहीं घूमने जा रहे थे और जाते भी साल में एक बार ही थे, इसलिए चाहते थे की जगह शानदार हो और हमेशा के लिए यादगर भी। मैं खुद भी ऐसी जगह जाना चाहता था इसलिए शायद काफी खोजबीन करनी पड़ी। अब अपना एक उसूल है की जाओ तो शान से और आओ तो शान से, अब इसे घुमक्कड़ी कहलो या पर्यटन। लेकिन घर से निकलकर कंजूसी हमसे नहीं होती, और दोस्तों ने भी कह दिया था “भाई पैसे चाहे ज्यादा लग जाये, पर हमारी मौजमस्ती मैं कोई कमी न आये। आखिर रोज़ रोज़ थोड़े न घर से निकलते हैं”| हम दोस्तों मैं खास बात यह थी की हम लोग आस पास ही रहते है, लगभग 2-4 घर छोड़कर॥
इसलिए किसी को कहीं से उठाना तो था नहीं, और कहीं मिलना भी नहीं था। बस घर के बाहर एक मंदिर के पास ही सबको मिलना था, जो एक तरह से पार्किंग भी हैं॥

पिछली बार भी हम लोगों ने सोनू की गाड़ी ली थी और इस बार भी हम लोगों ने निश्चेय किया की उसी की गाड़ी मैं जाएँगे। अपनी गाड़ी मैं काफी फायदे हैं, हाँ थोड़ा सा महंगा जरूर पड़ता हैं लेकिन काफी सुखदाई साबित होता हैं। रास्ते के लिए जरूरी सामान और घूमने की जगह भी तय कर ली गयी थी, मैं एक एयर लाइन मैं कार्यरत हूँ और मेरा एक मित्र एक जानी मानी ट्रैवल कंपनी मैं काम करता हैं जिसके साथ भी काफी दिनो से घूमने का विचार बन रहा था, चकराता के बाद उसी के साथ भीमताल होकर आया था। जिसकी वजह से मुझे हिल स्टेश्न्स की थोड़ी बहुत जानकारी हो गयी हैं।
मेरे मित्रो ने भी यह काम मुझे ही दिया। रास्ते के लिए जरूरी समान से लेकर किस रास्ते से जाना हैं यह सब मुझे ही करना था।
मेरे सारे दोस्तों ने सब जो नाम सुन रखे थे वे सब किसी मशहूर जगहों के नाम थे जैसे नैनीताल, मससूरी, शिमला इत्यादि। मैंने भी घरवालों और कई लोगों से सिर्फ इन ही जगहों के नाम सुने थे। नैनीताल हम लोग जा चुके थे और ऐसी भीड़ भरी जगहों पर नहीं जाना चाहते थे और 10 दिन पहले ही घरवालो के साथ मसूरी का एक चक्कर मार कर आए थे। “मसूरी का चक्कर” इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकी यह दिल्ली के काफी नजदीक हैं और आसानी से पाहुचा जा सकता हैं, इसी वजह से मेरे घरवाले अब तक 3 बार हो कर आ चुके हैं। मुझे लगा इस बार किसी ऐसी जगह पर जाते हैं जहाँ सिर्फ सुकून हो और बस शांति ही शांति॥

जब घरवालो के साथ गया था तो केंपटी फॉल के पास एक बोर्ड पर चकराता लिखा देखा था, एक लोकल दुकान वाले से पूछा तो उसने सारा भूगोल और इतिहास बता दिया। तो काफी सोच विचार और इंटरनेट के सहायता से हमने चकराता ही चुना जो मेरे दोस्तों को भी पसंद आया॥

अब कुछ चकराता के बारे मैं : चकराता समुद्र ताल से करीब 7000 फीट के ऊंचाई पर स्तिथ हिल स्टेशन हैं जो हिमाचल और उत्तरांचल की सीमा पर पड़ता हैं।
देहारादून से इसकी दूरी करीब 90 किमी के आसपास हैं।
आप सहारनपुर से हर्बेर्ट्पुर और विकासनगर होते हुये या फिर देहारादून- मसूरी -केंपटी फाल होते हुये भी पहुँच सकते हैं।
एक रास्ता पोंटा साहिब से भी निकलता हैं। चूंकि हमें मसूरी होते हुये आना था इसलिए हमने हर्बेर्ट्पुर-विकासनगर जाना तय किया था॥

चकराता मैं देखने के लिए बहुत कुछ है जैसे टाईगर फॉल, कनासर, देव बन, लखमंडल इत्यादि

सब के समर्थन के बाद हम लोगों ने अपने कार्यक्रम पर मोहर लगा दी.!

बस इंतेजार करने लगे 12 अक्टूबर का।
निशिचित तारीख को हम लोगो का कारवां निकाल पड़ा अपनी मंजिल के तरफ॥!
अब 12 तारीख को सुबह से ही सब दोस्त लोग तयारियों मैं जुट गए, मेरी सुबह की शिफ्ट थी सो दोपहर करीब 3 बजे घर पहुंचा, देखा तो सोनू अभी तक नहीं आया था जबकि उसको पहले ही बोल दिया था की 2-3 बजे तक आ जाना॥
चलो जब तक सोनू आएगा तब तक अपनी पैकिंग ही कर लेते हैं। यह सोच कर सब को फोन कर शाम को 8 बजे तैयार रहने को बोल दिया।
दिल्ली से करीब हम लोगों ने 8 बजे प्रस्थान किया। दिल्ली के जाम से निपटकर अभी गाज़ियाबाद ही पहुचे थे की सब लोगों को भूख लग आई और सब ढूंढने लगे कोई खाने पीने की बड़िया सी जगह।

Group photo

हम सब लोग खाने और पीने के शौकीन थे इसलिए यह पहले ही तय कर लिया गया था की खाने पीने के टाइम कोई नहीं टोकेगा!
तो मुरादनगर मैं एक अच्छा सा ढाबा देखकर हम लोगों ने वही डेरा दाल दिया और जिसको जो खाना पीना था खा पीकर चल पड़े। खाते ही सब लोग लुड़क गए
बस इसके बाद तो सीधे मुजजफरनगर जाकर ही आँख खुली, घड़ी मैं समय देखा तो 2 बज रहे थे। क्यूंकी सोनू को गाड़ी रातभर चालानी थी तो उसको वहाँ चाय पीने के लिए गाड़ी रुकवाई और चाय वागेरह पीकर चल पड़े, इसके बाद हमने सीधा रुख किया सहारनपुर की तरफ जो की हमारी बहुत बड़ी गलती साबित हुई।!!
हुआ यूं की इस तरफ का रास्ता बड़ा ही बेकार था, पूरे 60 – 70 किमी तक ऊबड़ खाबड़ और खड्डो से भरा रास्ता था
खैर क्या कर सकते थे बस सब लोग मुझे कोसते हुये जा रहे थे। किसी तरह सहारनपुर पार हुआ।

सुबह करीब 7 बजे विकासनगर से पहले हरबर्टपुर मैं चाय नाश्ता करने के लिए गाड़ी फिर रोकी। चाय वागेरह पीकर हम लोग विकासनगर पहुंचे।! किसी से पता किया तो पता चला की अभी चकराता काफी दूर हैं। विकासनगर पार करते ही दूर से चकराता के पहाड़ियाँ नज़र आने लगी। हथिनीकुंड बैराज के बाद तो रोड और अच्छा हो गया था और रास्ते की सारी नींद उतार गयी। बस अब इंतज़ार करने लगे कब चकराता पहुंचे।

Tea


first glimpse of valley

Some greenery enroute


खैर, किसी तरह दोपहर 12 बजे हम लोग चकराता पहुंचे, वहाँ जाकर देखा तो सचमुच लगा किसे हिल स्टेशन पर हैं। यह जगह और भीड़ भाड़ वाले हिल स्टेशन से बिलकुल जुड़ा थी। पहली बार किसी ऐसे जगह हम लोगों का आना हुया था अब तक को बस हमने मसूरी जैसे जगह ही देखी थी, क्या हुआ अगर थोड़ी दूर थी तो?
बस हम लोगों ने होटल के लिए छानबीन शुरू की। पता चला की चकराता मैं सिर्फ 4 ही होटल हैं, जिसमे से दो तो चकराता से काफी दूर हैं।
जो दो होटल चकराता मैं थे वो थे “होटल हिमगिरि और होटल उत्तरायन” और यह दोनों होटल ही मार्केट के बीचों बीच थे। होटल हिमगिरि मैं जैसे ही घुसे वैसे ही “हाऊसफुल” का बोर्ड दिख गया। तभी के तभी हम लोग दोड़ पड़े “होटल उत्तरायन” की तरफ, होटल मैं रूम तो मिल गया वो भी सस्ता पर सब लोगों ने माना कर दिया जिसका कारण था उस होटल की लोकेशन, होटल काफी संकुलित जगह मैं था जिसके वजह से हम लोगों का वहाँ रहने का मन नहीं करा और वहाँ से निकाल गए काफी निराशा हुई। एक बार फिर मैं सब लोगों के निशानो पर था, कसम से अगर उस चारो मैं से किसी के पास बंदूक होती तो…… फिर किसी से पूछा के “होटल स्नो व्यू” कहाँ पड़ेगा तो हमे बताया गया की 1 किमी दूर कहीं पर हैं और दूसरा “होटल हिमालयन पैराडाइसे” करीब 7 किमी दूर हैं और वो तो चकराता के सीमा से ही बाहर हैं, अभी शायद एक और होटल बन गया हैं दोनों होटेलों के बीच में“होटल हिल नाइट्स”।

Approaching hotel

A valley view from hotel

Another view from hotel

काफी दूर जाने पर एक दाहिनी हाथ पर एक छोटा सा रास्ता दिखाये पड़ा जहां होटल स्नो व्यू का बोर्ड लगा हुया था। रोड़ से देखने पर वहाँ से कुछ नहीं दिखाई दे रहा था, फिर हिम्मत कर के गाड़ी उसी मोड पर घुसा दी।
होटल पहुँचते ही सब लोगों की थकान एक ही सेकंड मैं छू हो गयी। क्या करें नज़ारा ही इतना सुंदर था तीन तरफ पहाड़ी से घिरा हुआ एक होटल जहां नज़रें घुमाओं सिर्फ पहाड़ ही पहाड़।
तुरंत ही मैनेजर साहब को आवाज़ मारी, और कमरों के बारें मैं पूछा और उनके यह बोलते ही “मिल गाएगा” सांस मैं सांस आई। फिर उन्होने किसी लड़के को बुलाया और कमरा दिखने को बोला।
इस होटल मैं दो तरह के रूम थे, एक छोटा जिसमे सिर्फ एक डबल बेड हैं और दूसरा “सुइट” जिसमे दो कमरे और दो डबल बेड थे। स्थापन के हिसाब से यह छोटे कमरे काफी अच्छे थे। और बिलकुल कोनो पर बने हुये थे, और किराया भी काफी ठीक था। जबकि सुइट जैसे कमरो का दाम बिलकुल डबल था। छोटे कमरे के 700 रु और बड़े के 1400 रु।
हम लोगों ने एक बड़ा कमरा लिया क्यूंकी हम लोग भी ज्यादा थे। फिर अपना अपना समान रखकर हम लोग एक एक करके फ्रेश होने को गए। मेरा मन तो कमरे के अंदर लग ही नहीं रहा था।
पहले तो तसल्ली से एक कुर्सी पर बेठकर सिर्फ दूर तक जहां नज़रें देख सकती थी देखता रहा।
अब भूख भी काफी लग आई थी, सो पहले खाना ऑर्डर किया। यहाँ रहने की सिर्फ यही एक दिक्कत हैं की आप खाना खाने बाहर नहीं जा सकते और अगर जाना हो तो एक किमी वापस मार्केट जाओ।
फिर कुछ देर आराम करने के बाद सोचा थोड़ा कहीं बाहर घूम आयें तो पता चल की थोड़ी दूर लगभग 5 किमी पेदल की यात्रा के बाद एक बोहुत ही जबर्दस्त झरना हैं जिसका नाम हैं टाइगर फॉल।

Trekking towards chakrata fall

Enroute trekking


Taking some rest

Beautifull view

Trip to Chakrata/यादगार सफर चकराता का (दिल्ली से चकराता -1) was last modified: November 12th, 2024 by mejames4u
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