Site icon Ghumakkar – Inspiring travel experiences.

महाकालेश्वर दर्शन व पुन: दर्शन (भाग 9)

अब तक… पूरा दिन उज्जैन के मंदिरों में दर्शनों के बाद हम लोग शाम को हरसिधी माता के मंदिर में आरती देखने चले गए। आरती  के बाद हम लोग टहलते हुए महाकाल के मंदिर की ओर चल दिए। रात  हो चुकी थी और मौसम भी काफी सुहावना हो गया था। दिन की गर्मी की तपिश अब बिलकुल भी नहीं थी।  एक छोटी सी दुकान पर चाय पीने  के बाद हम सीधा महाकाल के मंदिर में चले गए। यह भी एक अजब संयोग था की जिस महाकाल के  दर्शनों के लिए यह पूरा प्रोग्राम बना था, उनके दर्शन हमें सबसे बाद में होने जा रहे थे।

श्री महाकालेश्वर (coutsey Wikipedia)

मंदिर परिसर

मंदिर परिसर

सुबह हमने मंदिर में लम्बी -लम्बी लाइनें लगी हुई देखी थी इसलिए भारी भीड़ की आशंका के चलते, वीआईपी लाइन के टिकट ले लिए। एक टिकट का मूल्य सिर्फ 151 रूपये। अन्दर जाकर मालुम हुआ वीआईपी लाइन सामान्य से थोड़ी लम्बी है।थोडा समय पहले ही सायं की आरती ख़तम हुई थी। आरती के दौरान दर्शन बंद होने से बरामदे में काफी भीड़ जमा हो गयी थी,इसलिए पुजारी लोग फटाफट लोगों को मंदिर से बाहर कर रहे थे। लगभग 25-30 मिनट में हम मुख्य मंदिर में पहुँच गए और महाकाल के दर्शन किये ,लेकिन भीड़ ज्यादा होने के कारण हमें जल्दी से ही मंदिर से बाहर कर दिया गया।

एक तरफ जहाँ ओम्कारेश्वर में शिवलिंग का आकर बहुत छोटा है और सामान्यतया दिखता भी नहीं है। दूसरी तरफ महाकाल में शिवलिंग का आकर बहुत विशाल है आप उसे अपनी बाँहों में भर सकते हैं। दर्शनों के बाद लगभग एक घंटा हम मंदिर परिसर में ही रहे और वहां मौजूद कई अन्य मंदिरों के दर्शन करते रहे। मन खुश था कि आखिर आज महाकालेश्वर के दर्शन हो ही गए। लेकिन इतनी कम देर दर्शन हुए, इसलिए तसल्ली नहीं हो रही थी। इसलिए सुबह एक बार फिर से दर्शनों की ठान हम लोग मन्दिर परिसर से बाहर आ गए।

न जी भर के देखा, न कुछ बात की, बड़ी आरजू थी मुलाकात की।

मंदिर परिसर में तालाब के बीच फव्वारा

गर्भ गृह से बाहर

गर्भ गृह से बाहर सज्जा

रात के 9 बज चुके थे और मंदिर के बाहर काफी चहल पहल थी। हमने कमरे पर जाने से पहले खाना खाने की सोची। भूख भी लग रही थी लेकिन खाना खाने की इच्छा नहीं हो रही थी , दोपहर के खाने का स्वाद अभी तक मुहँ से गया नहीं था लेकिन हिम्मत करके एक दुसरे भोजनालय में गए और वहां खाना खाया। यहाँ दोपहर से तो अच्छा था लेकिन था। औसत स्तर का ही। न जाने क्यों, सब्जी और दाल में मसाला न के बराबर था और रोटियां भी पूरी सिकी हुई नहीं थी। या ये भी हो सकता है हमारी अपेक्षा कुछ ज्यादा थी। खैर, खाना खा कर कमरे पर गए और सुबह फिर से महाकालेश्वर के दर्शन करने की इच्छा लिए सो गए।

महाकालेश्वर मंदिर इतिहास
महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी महत्ता है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है, ऐसी मान्यता है। महाकवि कालिदास ने मेघदूत में उज्जयिनी की चर्चा करते हुए इस मंदिर की प्रशंसा की है।1235 ई. में इल्तुत्मिश के द्वारा इस प्राचीन मंदिर का विध्वंस किए जाने के बाद से यहां जो भी शासक रहे, उन्होंने इस मंदिर के जीर्णोद्धार और सौन्दर्यीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया, इसीलिए मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। प्रतिवर्ष और सिंहस्थ के पूर्व इस मंदिर को सुसज्जित किया जाता है।

महाकाल भगवान शिव का ही एक रूप हैं। जिन्हें पूरी दुनिया का राजा कहा जाता है। महाकाल को उज्जैन का अधिपति माना जाता है। ऐसे में यह बात भी कही जाती है कि उज्जैन में केवल एक ही राजा रह सकता है।इस वजह से किसी भी राज्य के मुख्य मंत्री या देश के प्रधानमंत्री उज्जैन आते तो जरूर है लेकिन यहां रात को ठहरते नहीं। माना जाता है कि अगर वो यहां ठहरने की कोशिश करते हैं तो कुछ ही दिनों में उनकी कुर्सी चली जाती है।

श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर

श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर

श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर

जब भी बाबा महाकाल की यात्रा निकाली जाती है तो पुलिस टुकड़ी उन्हें सलामी भी देती हैं। पूजन के बाद क्लेक्टर और पुजारी, पालकी को कंधे पर नगर भ्रमण कराते हैं। जैसे ही बाबा महाकाल की पालकी मंदिर परिसर के बाहर आती है, सशस्त्र गार्ड राजा महाकाल को सलामी देते हैं। सवारी के आगे पुलिस, घुड़सवार, सशस्त्र बल की टुकड़ी, सरकारी बैंड, स्काउट गाइड, सेवादल तथा भजन मंडलिया चलती हैं।

“शिव पुराण के अनुसार ज्योतिर्लिग भगवान महाकाल के संबंध में सूतजी द्वारा जो कहानी चर्चित है, उसके अनुसार अवंती नगरी में एक वेद कर्मरत ब्राह्मण हुआ करते थे। ब्राह्मण पार्थिव शिवलिंग निर्मित कर उनका प्रतिदिन पूजन किया करते थे। उन दिनों रत्नमाल पर्वत पर दूषण नामक राक्षस ने ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर समस्त तीर्थ स्थलों पर धार्मित कर्मो को बाधित करना आरंभ कर दिया था।

वह उज्जैन भी आया और सभी ब्राह्मणों को धम्र-कर्म छोड़ देने के लिए कहा। पर किसी ने उसकी आज्ञा नहीं मानी। इससे राक्षस वहां उत्पात मचाना शुरू कर दिया। लोग त्राहि-त्राहि करने लगे और अपने आराध्य देव भगवान शंकर की शरण में पहुंचे और वहां भगवान शंकर की पूजा करने लगे। जिस जगह पर वह ब्राह्मण पार्थिव शिव की अर्चना किया करते थे, वहां देखते ही देखते एक विशाल गड्ढा हो गया और भगवान शिव अपने विराट स्वरूप में प्रकट हुए। उन्होंने आकाशभेदी हुंकार भरी और कहा मैं दुष्टों का संहारक महाकाल हूं। और ऐसा कहकर उन्होंने दूषण व उसकी हिसंक सेना का भस्म कर दिया। भगवान शिव ने लोगों से वरदान मांगने को कहा तो लोगों ने उन्हें यहीं निवास करने की बात कही। भगवान शिव मान गए और भगवान महाकाल स्थिर रूप से वहीं विराजि हो गए और समूची उज्जैन नगरी शिवमय हो गई ”

यहां के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां एकमात्र ऐसा शिवलिंग है, जहां भस्म से आरती होती है। इस महाआरती को देखने और भगवान के शिव के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लम्बी-लम्बी कतारे लगा करती हैं।

आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम्
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तु ते ॥
आकाश में तारक लिंग है, पाताल में हाटकेश्वर लिंग है और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है।

नाभिदेशे महाकालोस्तन्नाम्ना तत्र वै हर: ।
जहाँ महाकाल स्थित है वही पृथ्वी का नाभि स्थान है । बताया जाता है, वही धरा का केन्द्र है ।

महाकवि कालिदास ने अपने रघुवंश और मेघदूत काव्य में महाकाल और उनके मन्दिर का आकर्षण और भव्य रुप प्रस्तुत करते हुए उनकी करते हुए उनकी सान्ध्य आरती उल्लेखनीय बताई। उस आरती की गरिमा को रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भी रेखांकित किया था।

महाकाल मन्दिरेर मध्ये…तखन, धीरमन्द्रे, सन्ध्यारति बाजे।

महाकवि कालिदास ने जिस भव्यता से महाकाल का प्रभामण्डल प्रस्तुत किया उससे समूचा परवर्ती बाड्मय इतना प्रभावित हुआ कि प्राय: समस्त महत्वपूर्ण साहित्यकारों ने जब भी उज्जैन या मालवा को केन्द्र में रखकर कुछ भी रचा तो महाकाल का ललित स्मरणअवश्य किया।जैन परम्परा में भी महाकाल का स्मरण विभिन्न सन्दर्भों में होता ही रहा है।

महाकालेश्वर मंदिर एक परकोटे के भीतर स्थित है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए एक सीढ़ीदार रास्ता है। इसके ठीक उपर एक दूसरा कक्ष है जिसमें ओंकारेश्वर शिवलिंग स्थापित है। महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटितीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी। इतिहास के प्रत्येक युग में-शुंग,कुशाण, सात वाहन, गुप्त, परिहार तथा अपेक्षाकृत आधुनिक मराठा काल में इस मंदिर का निरंतर जीर्णोध्दार होता रहा है। वर्तमान मंदिर का पुनर्निर्माण राणोजी सिंधिया के काल में मालवा के सूबेदार रामचंद्र बाबा शेणवी द्वारा कराया गया था। वर्तमान में भी जीर्णोध्दार एवं सुविधा विस्तार का कार्य होता रहा है। महाकालेश्वर की प्रतिमा दक्षिणमुखी है। तांत्रिक परम्परा में प्रसिध्द दक्षिण मुखी पूजा का महत्व बारह ज्योतिर्लिंगों में केवल महाकालेश्वर को ही प्राप्त है। ओंकारेश्वर में मंदिर की ऊपरी पीठ पर महाकाल मूर्ति कीतरह इस तरह मंदिर में भी ओंकारेश्वर शिव की प्रतिष्ठा है। तीसरे खण्ड में नागचंद्रेश्वर की प्रतिमा के दर्शन केवल नागपंचमी को होते है। विक्रमादित्य और भोज की महाकाल पूजा के लिए शासकीय सनदें महाकाल मंदिर को प्राप्त होती रही है।

सन 1968 के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था। इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया । लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा १९८० के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया है जिसके निर्देशन में यहाँ की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है। हाल ही में इसके शिखरों पर स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है। ”

मंदिर परिसर में अन्य मंदिर

मंदिर परिसर में

मंदिर परिसर में

मंदिर परिसर में

श्री महाकालेश्वर मंदिर के दैनिक पूजा अनुसूची

चैत्र से आश्विन तक

कार्तिक से फाल्गुन तक

भस्मार्ती

प्रात: 4 बजे श्रावण मास में प्रात: 3 बजे

महाशिवरात्रि को प्रात: 2-30 बजे।

दध्योदन

प्रात: 7 से 7-30 तक

प्रात: 7-30 से 8-15 तक

महाभोग

प्रात: 10 से 10-30 तक

प्रात: 10-30 से 11-00 तक

सांध्य

संध्या 5 से 5-30 तक

संध्या 5-30 से 6-00 तक

पुन: सांध्य

संध्या 7 से 7-30 तक

संध्या 7-30 से 8-00 तक

शयन

रात्रि 11:00 बजे

रात्रि 11:00 बजे

अगले दिन सुबह जल्दी से उठ ,नहा धोकर तैयार हुए और बिना कुछ खाए पिए महाकाल के दर्शन के लिए चल दिए। कल रात हो हम खाली हाथ ही दर्शन के चले गए थे लेकिन आज पूजा का पूरा सामान लेकर सामान्य लाइन से ही गए। भीड़ बिलकुल भी नहीं थी , लगता था सारा रश सुबह भष्म आरती के साथ ही निपट गया था। आराम से सिर्फ पांच मिनट में गर्भ गृह पहुँच गए , यहाँ भी रात की तरह धक्का मुक्की नहीं थी। बड़े आराम से दर्शन किये। फूलों का हार चडाते हुए मैंने शिवलिंग को बाँहों में कस कर भर लिया और कुछ देर के लिए सब कुछ भूल गया। तभी पुजारी ने कहा – अरे अब तो छोड़ दो , तुम अकेले नहीं हो , और लोगों ने भी महाकाल से मिलना है। दर्शन के बाद गर्भ गृह से बाहर आकर, द्वार के सामने ही नंदी की मूर्ति के पास बैठ गए। रात को यहाँ भी न रुकने दे रहे थे, न बैठने लेकिन अब भीड़ न होने के कारण कोई रोक टोक नहीं थी। पूरी यात्रा के सबसे सुखद क्षण यही थे। थोड़ी देर वहाँ और रुकने के बाद हम घूमते फिरते मन्दिर परिसर से बाहर आ गए।

मंदिर परिसर साइड से

नंदी महाराज

आज रंग पंचमी का दिन था और यहाँ काफी धूम धाम थी। जैसे हमारे उतर भारत में होली मनाई जाती है वैसे ही यहाँ रंग पंचमी। इसलिए ज्यादातर दुकाने बंद थी और जो खुली थी वो भी सिर्फ कुछ घंटो के लिए।आज नाश्ते में सांभर डोसा लिया। नाश्ते के बाद हम लोग जंतर मंतर / वेधशाला जाना चाहते थे। हमारी गाडी का समय दोपहर का था और उसमे अभी काफी समय था। आज रंग पंचमी होने के कारण ऑटो भी काफी कम थे। जो थे वो ज्यादा पैसे मांग रहे थे। आखिर कुछ मोलभाव के बाद एक ऑटोवाला हमें जंतर मंतर / वेधशाला होते हुए रेलवे स्टेशन जाने के लिए 150 रुपये में मान गया। हम ऑटो में सवार हो अपनी नयी मंजिल जंतर मंतर / वेधशाला की ओर चल दिए ।

महाकालेश्वर दर्शन व पुन: दर्शन (भाग 9) was last modified: June 15th, 2025 by Naresh Sehgal
Exit mobile version