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ढेला (कॉर्बेट) से मरचुला की मस्ती का सफ़र (भाग – 2)

अब तक आप पढ़ ही चुके है कि पहला दिन हमने कैसे ढेला मे बिताया। रात को हम काफी विलम्ब से सोये थे इसलिए सुबह उठने की कोई जल्दी नहीं थी। सुबह हम आठ बजे के करीब सो कर उठे उस वक़्त तक बाहर धूप बहुत तेज हो चुकी थी इसलिए घूमने का समय तो खत्म हो चुका था। हमने दाजू (मुख्य बावर्ची ) को चाय के लिए बोल और नाश्ते मे आलू के परांठे बनाने के लिए बोल दिए। उस वक़्त गेस्ट हाउस मे क्योकि सिर्फ हम ही लोग थे इसलिए उन लोगो को भी हमारी मर्जी का बनाने मे कोई दिक्कत नहीं थी अन्यथा वो खाना अपनी मर्जी से ही बनाते थे। हम जल्दी जल्दी नहाने और तैयार होने मे लग गए। तैयार होकर हम सभी डाइनिंग हॉल मे पहुच गए, वो लोग भी हमारी ही प्रतीक्षा कर रहे थे, हमारे पहुचते ही उन्होंने गरम गरम परांठे दही, चाय और आचार के साथ परोस दिए जिनको खाकर एक बार फिर एहसास हुआ कि घर पर ही खा रहे है। कमरे हमने पहले ही बंद कर दिए थे इसलिए नाश्ता करके सीधे गाड़ी की तरफ बढ़ गए। आज मरचुला जाने का निश्चय हुआ था लेकिन उससे पहले सोचा की थोड़ा सा वही आसपास घूम ले इसलिए बाहर सड़क पर आकर रामनगर की तरफ न जाकर पहले कॉर्बेट के कालागढ़ वाले प्रवेश द्वार की और चल दिए लेकिन पहले चेकपोस्ट पर ही गार्ड ने बोल दिया की आपकी गाड़ी छोटी है इसलिए कच्चे रास्ते पर मत ले जाना अन्यथा गाड़ी फस जायेगी, छोटी गाड़ी की वजह से हम कच्चे रास्ते की तरफ नहीं जा पा रहे थे, बार बार यही लग रहा था कि छोटी गाड़ी लाकर गलती की है। उस वक़्त हमने रात वाली गलती नहीं की और गाड़ी पक्के रास्ते पर ही रखी और पाँच – छ किलोमीटर जाने के वापिसी कर ली, धुप तेज थी इसलिए कोई जानवर नहीं दिखा।

सुबह का खिड़की से नजारा



नाश्ते का इन्तजार

डाइनिंग हॉल के बाहर उदय

डाइनिंग हॉल का दूसरा हिस्सा

अब हमने सीधा मरचुला जाने के लिए प्रदीप को बोल दिया। सड़क खाली थी इसलिए उसने भी गाड़ी तेज दौड़ा दी। मरचुला, रामनगर से लगभग ३५ किलोमीटर आगे है और वहा जाने के लिए मोहान होते हुए जाना पड़ता है। मोहान मे भी कुमाऊ विकास मण्डल का गेस्ट हाउस है और रूकने के हिसाब से बेहतरीन जगह है और रात को वहा रूकने का अलग ही आनंद है। अभी हम दस किलोमीटर ही चले थे कि गाड़ी का एक टायर पंचर हो गया, प्रदीप ने जल्दी से उतारकर टायर बदला और बोला कि सर पंचर की दुकान आधा किलोमीटर पीछे ही है इसलिए जब तक आप लोग यही पेड़ के नीचे खड़े होकर गाँव का आनंद लो मे पंचर लगवा कर आता हूँ, हमने भी तुरंत उसको आज्ञा दे दी क्योकि आगे कही और पंचर हो गया तो फिर दिक्कत हो जायेगी। हम लोगो को पंद्रह मिनट इंतजार करना पड़ा। उसके वापिस आने पर हम जल्दी से बैठे और फिर आगे बढ़ गए। अभी हम रामनगर पहुचे ही थे कि फिर से टायर पंचर, अब हम प्रदीप के पीछे पड़ गए और मनमोहन ने भी पैसे काटने की घोषणा कर दी। वहा पर पास ही टायरो की दूकान थी तो प्रदीप ने अपना पुराना टायर देकर बदलवा भी लिया और पंचर भी लगवा लिया। लगभग आधा घंटा फिर से ख़राब हो गया। उसी समय एक मजेदार घटना हुई, उस दुकान के बराबर से ही एक बस एक घंटे पहले चोरी हो गयी थी जो कि मिल गयी थी, एक लड़का बस लेकर भाग गया था और अपने साथ एक कबाड़ी को भी लेकर बस मे आया था जिसने गाड़ी मे घुसते ही गाड़ी की सीटे खोलनी शुरू कर दी थी। सुनकर ताज्जुब भी हुआ और हसी भी आई की उन्होंने बस सीटे उखाड़ने के लिए चोरी की थी लेकिन बेचारे आधे घंटे मे ही पकडे गए, वो कबाड़ी तो कूद कर भाग गया लेकिन वो लड़का पकड़ा गया जिसकी फिर डंडो से जमकर पिटाई हुई। खैर भगवन का नाम लेकर हम फिर गाड़ी मे बैठे क्योकि बहुत देर हो गयी थी लेकिन उसके बाद मरचुला पहुचने मे कोई दिक्कत नहीं हुई। मरचुला पहुच कर प्रदीप ने गाड़ी सड़क से नीचे उतार दी, एक बार को तो हम डर गए और गाड़ी से उतर गए लेकिन वो बोला, आप बैठे रहिये कोई दिक्कत नहीं होगी। थोडा सा नीचे जाकर उसने गाड़ी एक तरफ लगा दी। हमने गाड़ी से उतरकर जगह देखी तो लगा की जगह बुरी तो नहीं है।

मर्चुला का नजारा

मर्चुला का नजारा

वहा पर पहाड़ो से बहते पानी की वजह से एक झील सी बनी हुई थी, गर्मी की वजह से पानी काफी कम था लेकिन पानी का बहाव काफी तेज थे वही पर पाँच – छ टेंट लगाकर कैम्पिंग की भी व्यवस्था थी, हमने उसके चार्जेज पूछे तो पता लगा की एक टेंट के पाँच हजार जो कि हमें ज्यादा लगे, उन लोगो ने फ्लड लाइट भी लगायी हुई थी जिससे कि रात मे जलाकर जानवरों को पानी पीते हुए भी देखा जा सके। प्रदीप बोला सर इस वक़्त तो पानी कम है लेकिन पानी मे लेटकर मजे किये जा सकते है। उस वक़्त वहा सिर्फ हम ही लोग थे लेकिन हमें तो इन सबका शौक ही नहीं था इसलिए हम तैयार नहीं थे लेकिन मनमोहन तो तुरंत ही कपडे उतारकर पानी में घुस गया। पानी मे घुसते ही वो चिल्लाया मजा आ गया आप लोग भी आ जाओ लेकिन मे बोला, भाई कपड़े हम लाये नहीं और यहा कपड़े उतारकर पानी मे कौन घुसेगा। वो बोला, यहा कौन देख रहा है आप आओ तो सही और कपड़ो का क्या है बाद मे फिर यही पहन लेना। पहले हमने पानी मे पैर रखा जो कि बहुत ठंडा था लेकिन पैर रखने से ही आनंद आ गया तो मे तैयार हो गया और फिर भगवानदास जी भी तैयार हो गए। हमने भी कपड़े उतारे और पानी मे घुस गए। वाह! सच मे मजा आ गया उसके बाद तो हम सभी वहा दो घंटे तक पानी के अन्दर ही पड़े रहे और उछल कूद मचाते रहे, सच कहे तो बचपन के दिन याद आ गए। यहाँ कोई रोकने वाला नहीं था लेकिन अफ़सोस यही था कि कुछ खाने पीने को नहीं था नहीं तो मजा दुगना हो जाता। उदय जो अभी तक झिझक रहा था अब वो भी खुल चुका था और मजे कर रहा था।

मनमोहन जी तो मस्त हो गए

पानी इतना साफ़ था की नीचे के पत्थर साफ़ चमक रहे थे। इतनी छोटी सी जगह पर इतना आनंद भी लिया जा सकता है, सोचा न था। धूप धीरे धीरे हलकी हो रही थी और पानी भी अब ज्यादा ठंडा लगने लगा था इसलिए सोचा कि अब यहा से चलना चाहिए। इसी बीच मनमोहन दो तीन बार पानी से निकला तो हर बार एक मच्छर उसको काटता था और वो चिल्लाता था और गालिया देता था। हम सब हँसते थे कि मच्छर को गोरी चमड़ी पसंद आ रही है लेकिन अब जैसे ही हम सभी पानी से बाहर निकले तो उस मच्छर ने मेरे पैर मे बहुत तेज काटा, अब चिल्लाने की बारी मेरी थी और हसने की मनमोहन की। खैर हमने जल्दी जल्दी कपड़े पहने और वहा से बाहर की और चल दिए।

पानी मे इतनी देर रहने के बाद अब काफी थकान महसूस हो रही थी इसलिए प्रदीप को भी बोला कि अब सीधे गेस्ट हाउस चले लेकिन उसने रास्ते मे गाड़ी एक लम्बे से ब्रिज के सामने रोक दी। जगह अच्छी थी लेकिन अब रुकने के मन ही नहीं था लेकिन फिर भी उतर गए की कुछ फोटो ही खीच ले। उतरने पर देखा कि वो केंद्रीय जल आयोग से सम्बंधित था। हम वहा पाँच दस मिनट ही रुके और फिर वापिस चल दिए। वापिस आते हुए हम मोहान से थोड़ा आगे ही निकले थे कि देखा वहा बहुत भीड़ थी, हम भी गाड़ी से बाहर आ गए तो पता चला कि हाथी का बच्चा झाड़ियो मे उलझ गया है, सड़क के एक तरफ जंगल ही था और उसमे थोड़ा सा अन्दर ही वो बच्चा फसा हुआ था और उसके पास हाथियों का पूरा झुण्ड था, उनको देखने के लिए ही वहा भीड़ जमा थी। लोग हाथियों को परेशान कर रहे थे और बार बार अन्दर जा रहे थे जो कि खतरनाक था अगर एक बार हाथी पीछे भाग लेते तो भगदड़ मच जाती। हाथियों ने बच्चे को झाड़ियो से छुड़ा लिया था लेकिन वो वही थे। हम लोगो ने वहा से निकलना ही सही समझा। रास्ते मे हमने रामनगर से जरूरी सामान ख़रीदा और वापिस गेस्ट हाउस की और चल दिए।

नाम भी ठीक से समझ नहीं आ रहा

जब उतर ही गए तो एक फोटो तो बनता है

अँधेरा हो चुका था इसलिए एक बार फिर हमने गाड़ी गेस्ट हाउस से पहले सड़क पर किनारे लगा दी कि शायद कोई जानवर दिख ही जाए। हिरनों का पूरा झुण्ड दिखाई भी दिया, उनकी आँखे दूर से ही चमक रही थी। कुछ देर हम रुके और फिर वापिस गेस्ट हाउस आ गए। प्रदीप ने गेस्ट हाउस मे पहुचते ही बोला कि सर कल रात वाली जगह ही चलेगे आज भी और वहा आधा घंटा रुकेगे लेकिन अभी कोई तैयार नहीं था। हमने दाजू को सामान दिया और ढेर सारा सलाद काटने के लिए बोला, खाना आज भी ग्यारह के बाद ही खाना था।

रात का नजारा लेकिन हिरन तो आये ही नहीं फोटो मे

खाना खाने के बाद हम वही गेस्ट हाउस मे ही टहलते रहे और गार्ड से वहा के किस्से भी सुनते रहे। वैसे एक परिवार ओर भी आज वहा रुका हुआ था लेकिन वो लोग अपने कमरों में ही थे। फसल पक चुकी थी इसलिए रात को लोग खेतो मे ही रहते थे और थोड़ी थोड़ी देर मे अजीब सी भाषा मे चिल्लाते थे वो इसलिए कि कोई जानवर खेत मे न घुस जाए। कई बार हाथी उनकी पूरी फसल चौपट कर देते थे। प्रदीप बार बार जंगल की और जाने को बोल रहा था लेकिन आज किसी का मन नहीं था इसलिए वो विचार त्याग दिया। रात को एक बजे के करीब हम सोने चले गए क्योकि सुबह उठकर दिल्ली के लिए निकलना था।

खुला आकाश और खुला मैदान ऐसे नज़ारे यहाँ कहा

अलविदा

सुबह आठ बजे ही सोकर उठे और जल्दी से नहा कर तैयार होने चले गए। आज नाश्ते मे पूरी सब्जी थी जो की स्वादिस्ट थी। नाश्ता करके हमने वहा का हिसाब किया और वापिस दिल्ली के लिए चल दिए।
इस तरह एक छोटी सी यादगार यात्रा समाप्त हुई खासकर रात के समय जंगल का सफ़र और दिन मे मरचुला की मस्ती यादगार थी। अभी हाल ही मे नवभारत टाइम्स मे भी मरचुला के बारे मे छपा था उसे पढ़कर ही अपनी ये यात्रा लिखने का मैंने मन बनाया।

ढेला (कॉर्बेट) से मरचुला की मस्ती का सफ़र (भाग – 2) was last modified: April 23rd, 2025 by Saurabh Gupta
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