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ढेला (कॉर्बेट) की मस्ती और रोमांच

अप्रैल का महिना शुरू हो गया था और कही घूमे हुए भी ५ महीने हो गए थे इसलिए सोचा कि कोई कार्यक्रम बनाया जाए और फिर अचानक ही शुक्रवार को निश्चय हुआ कि रामनगर चला जाए बाकी वही जाकर सोचा जाएगा कि कैसे २ दिन गुजारे जाए। हम चार लोग जाने के लिए तैयार थे जिनमे मै, भगवानदास जी, मनमोहन और उदय थे। उदय ने पिछली कंपनी मे हमारे साथ चार साल काम किया था लेकिन पहली बार ही हमारे साथ जा रहा था। कार्यक्रम अचानक ही बना था लेकिन जाने की तेयारी पूरी थी। चार लोगो के हिसाब से हमने इंडिका बुक कर दी थी जो कि हमारी गलती थी और रहने के लिए कुमाऊ विकास मंडल का गेस्ट हाउस जो कि ढेला मे है बुक कर दिया। ये गेस्ट हाउस नया ही बना था इसलिए सोचा कि नई जगह भी हो जायेगी। ढेला जाने के लिए रामनगर से पहले ही उलटे हाथ पर रास्ता कटता है, जहा से ये गेस्ट हाउस लगभग १५ किलोमीटर है। वैसे तो रामनगर जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के लिए प्रसिद्द है लेकिन इस बार अभी तक कुछ भी नहीं सोचा था कि जिम कॉर्बेट जायेगे ये नहीं।

शनिवार को सुबह ६ बजे निकलने का समय निश्चित हुआ और सबसे आखिरी मे मुझे लेना था जिसमे ७ बजने थे। रास्ते के लिए खरीदारी हमने शुक्रवार शाम को ही कर ली थी, इस बार गर्मी की वजह से ४ बीयर भी ले ली सोचा कि ये भी देख लेते है। घर पर भी शाम को ही पता लगा की अगले दिन सुबह हम जा रहे है तो किसी को आश्चर्य नहीं हुआ क्योकि हमारे कार्यक्रम ऐसे ही बनते है बस माताजी ने और पत्नी जी ने थोड़ा बहुत कहकर मन की भड़ास निकाल ली जो कि हमने बहुत ध्यान से सुनी क्योकि वापिस घर ही आना था और फिर प्यार से पत्नी जी को बैग पैक करने के लिए बोल दिया जो कि उन्होंने कर भी दिया।

गाड़ी सुबह सही समय ७ बजे मेरे पास थी और मै भी बिलकुल तैयार था। इस यात्रा मे सबसे बढ़िया बात हुई की प्रदीप जो इस बार हमारा ड्राईवर था हमारे साथ था। प्रदीप हमारी पुरानी कंपनी मे चार साल हमारे साथ ही था इसलिए उससे बहुत अच्छे सम्बन्ध है और वो भी हम सभी का बहुत सम्मान करता है इसलिए यात्रा का मजा शुरू मे ही दुगना हो गया। अपनी पसंद के गाने मैंने और मनमोहन ने पहले ही पेन ड्राइव मे लिए हुए थे जिससे कि रास्ते मे बोरियत न हो। उदय पहली बार हमारे साथ था लेकिन वो भी जानता था कि आनंद तो पूरा आना है यात्रा मे। रास्ते मे ज्यादा ट्रैफिक नहीं मिला और २ घंटे मे ही हम गजरौला पहुच गए जहा पर हमने चाय पीने के लिए गाड़ी रोकी और आधा घंटा चाय पीने मे लगाया, उसके बाद यात्रा फिर से प्रारंभ। अभी चले हुए आधा घंटा ही हुआ होगा कि मनमोहन ने बीयर निकालने के लिए बोल दिया जो कि हमने गाड़ी में बैठते ही चिलर बॉक्स में रख दी थी। हमने मना किया क्योकि अभी १० ही बजे थे लेकिन मनमोहन बोला कि लाये किसलिए है फिर गर्मी भी बहुत है बाहर, बात सही भी थी लेकिन फिर भी हमने मना कर दिया। मनमोहन ने १० – १५ मिनट इन्तजार किया लेकिन फिर अपनी बियर निकाल ली जो कि काफी ठंडी हो चुकी थी और १५ मिनट मे खत्म भी कर दी। उसके आधे घंटे बाद हमें भी लगा कि समय हो गया है तो हमने भी बाकी बियर निकाल ली जो कि इस वक़्त बहुत ज्यादा ठंडी थी। अब मजे लेने की बारी हमारी थी, मनमोहन ने हमारी तरफ देखा और बोला ये ठीक नहीं है अब रास्ते से एक और लो लेकिन हम भी मस्ती मे थी इसलिए मना कर दिया। प्रदीप ने भी गाड़ी चलाते हुए हमारी तरफ देखा लेकिन हम बोले बेटा तू तो भूल जा और आराम से गाड़ी चला।

वैसे तो पूरा रास्ता अच्छा है लेकिन काशीपुर के पास लगभग किलोमीटर का रास्ता काफी ख़राब था जिसमे थोड़ी सी दिक्कत हुई। रामनगर पहुचने से पहले हमने ध्यान रखा कही ढेला वाला रास्ता छूट न जाए लेकिन उसमे कोई दिक्कत नहीं हुई क्योकि बोर्ड लगा हुआ था। उस रास्ते पर शुरू के पाँच – छ किलोमीटर तो आबादी थी लेकिन उसके बाद का रास्ता सुनसान था जिसके दोनों तरफ जंगल था। ऐसे रास्ते पर पहुचते ही रोमांच अपने आप अन्दर आ जाता है लेकिन धूप इतनी तेज थी कि कोई जानवर दिखने का मतलब ही नहीं था। आगे जाकर हम बोर्ड देखकर और लोगो से पूछकर कर गेस्ट हाउस तक पहुच गए जो कि गाँव से होते हुए था और उसके आस पास कुछ और गेस्ट हाउस भी थे और बाकी तरफ खेत ही खेत थे। बिलकुल शांति थी वहा, पहुचते ही मन प्रसन्न हो गया। बचपन मे जब गाँव जाते थे तो ये नज़ारे देखने को मिलते थे। इतनी शांति थी वहा जो मन को अजीब सा सुकून दे रही थी। इतनी तेज धुप होने के बावजूद हवा की ठंडक शरीर को ताजगी दे रही थी। तेज हवा मे गेहू की बालिया जोर जोर से हिल रही थी और उसकी आवाज दिमाग को सुकून दे रही थी।

हमारा कमरा



2. हमारा दूसरा कमरा

3. कमरे के सामने लहलहाते हुए खेत

जैसे ही हमने गाडी खड़ी की एक लड़का दौड़कर हमारे पास आ गया। मैंने उससे बुकिंग के बारे मे पुछा क्योकि बुकिंग मेरे ही नाम से थी तो उसने पूछा सर आप दिल्ली से है ना और तुरंत ही कन्फर्म भी कर दिया। उसने तुरंत किसी दुसरे व्यक्ति को आवाज लगाई सामान उठाने के लिए और आगे आगे चल दिया हमारे कमरे दिखाने के लिए। इस समय वहा कोई भी नहीं था स्टाफ के सिवाय। हमने उससे पुछा तो उसने बताया कि थोड़ी देर पहले ही एक परिवार ने चेक आउट किया है बाकी आज सिर्फ हमारी ही बुकिंग है। अच्छा ही था हमें और भी आजादी मिल गयी। उसने हमें आमने सामने के दो कमरे दे दिए, कमरों के सामने ही लहलहाते हुए खेत थे जिनको देखकर मन प्रसन्न हो रहा था। कमरे अन्दर से भी अच्छे थे, उसमे छोटे से ड्राइंग रूम के साथ सारी सुविधाए थी। हम थके हुए थे इसलिए जाते ही बिस्तर पर गिर गए। थोड़ी देर बाद ही उनका मुख्य रसोइया हमारे पास आया, आते ही उसने भी हमें पहचान लिया क्योकि कई बार हम रामनगर वाले गेस्ट हाउस मे रुके थे तो उसकी नियुक्ति वहा पर थी अब उसका स्थनान्तरण कर दिया गया था। उसने पुछा सर क्या लेगे दोपहर के खाने मे तो हमने भी उसको कुछ हल्का ही बनाने के लिए बोल दिया। उसने बोला कि सर दाल, रोटी, सब्जी और चावल बना देता हूँ। इससे अच्छा हमारे लिए क्या हो सकता था कि बाहर रहकर घर जैसा खाना।

कमरे के सामने लहलहाते हुए खेत

कमरे के सामने लहलहाते हुए खेत

कमरे के पीछे का नजारा

खिड़की से नजारा

लगभग १ घंटे बाद ही खाना तैयार होने की सूचना आ गयी जिसके लिए हमें डाइनिंग रूम मे जाना था। वहा एक संयुक्त डाइनिंग रूम था और वही पर ही खाना और नाश्ता करना होता था, कमरों मे वो लोग नहीं देते थे। अच्छा ही था इससे सफाई भी रहती थी और किसी तरह की दिक्कत भी नहीं होती थी। हम जल्दी से डाइनिंग रूम मे पहुच गए, वो लोग भी हमारा ही इन्तजार कर रहे थे। गरमागरम खाना खा कर मजा आ गया। उसके बाद हम अपने कमरों मे वापिस आ गए, इस समय साढ़े तीन बज रहे थे इसलिए सभी ने कुछ देर सोने का निश्चय किया क्योकि धुप मे बाहर जाने से कोई फायदा नहीं था। जल्दी ही सभी बिस्तर पर गिर गए लेकिन अब मे क्या करू मुझे दिन मे नींद ही नहीं आती इसलिए कुछ देर तो मे लेटा रहा लेकिन उसके बाद बाहर आकर टहलने लगा, वहा घूमना वाकई मे बड़ा अच्छा लग रहा था। जैसे ही पाँच बजे मैंने सभी को उठा दिया और स्टाफ को चाय के लिए बोल दिया। उठकर सभी तैयार हुए और चाय पीने के बाद बाहर की ओर चल दिए। जाते हुए वहा के मुख्य रसोइया ने रात के खाने के लिए पूछा। दिन मे तो दाल रोटी हो गयी थी लेकिन रात को कुछ और चाहिए था। पहाड़ो पर जाने के बाद हम लोग सभी अपने से बड़े लोगो को दाजू कहते है, मनमोहन के अनुसार ये सम्मानीय शब्द है। रसोइया भी अब दाजू’बन चुका था। उसने बोला कि साहब दाल रोटी सब्जी का इंतजाम तो है बाकी कुछ और चाहिए तो आप बाहर जायेगे तो लेते आइयेगा हम पका देगे। अंधा क्या चाहे दो आँखे। हम पांचो मे सिर्फ मे ही शाकाहारी हूँ इसलिए बाकियों ने तो अपना मेन्यु निश्चित कर लिया।

ऐसे नजारों में एक फोटो अपना भी

गेस्ट हाउस का पीछे का गेट

गेस्ट हाउस से बाहर आकर हम सड़क पर आ गए तो सामने से आती हुई गाड़ी ने हमें सचेत किया कि आगे हाथियों का झुण्ड है, आराम से जाना। वाह, क्या बात है जंगल के बाहर ही हाथियों के दर्शन। हम थोड़ा ही आगे गए थे तो चार पाँच हाथी सड़क पर ही थे, हमने गाड़ी पीछे ही रोक दी, कुछ देर वो हाथी सड़क पर रहे और फिर वापिस जंगल मे चले गए। कुछ आगे निकले तो हिरन भी दिख गए। उसके बाद घुमते हुए हम रामनगर पहुच गए, वहा वैसे तो घूमने को कुछ है नहीं इसलिए ऐसे ही गाडी दौड़ाते रहे। रामनगर से रात के लिए सामान ख़रीदा और वापिस हो लिए। अँधेरा हो चुका था इसलिए जब हम ढेला पहुचे तो बिलकुल सुनसान हो चुका था। हमने कुछ देर गाड़ी रास्ते मे खड़ी कर दी कि हो सकता है कुछ दिख जाए क्योकि आवाजे तो आ रही थी। इस वक़्त वाकई मे लग रहा था कि जंगल के बीच मे है। गाड़ी से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं थी। कुछ देर वहा रहे फिर वापिस गेस्ट हाउस आ गए और सारा सामान दाजू को दे दिया की रात के खाने की तय्यारी करे लेकिन ये भी बोल दिया की खाना ग्यारह के बाद ही खायेगे। लगभग साढ़े ग्यारह बजे हम फ्री हुए तो कमरों से बाहर आ गए। वाह, मजा आ गया। बाहर आकर इतना अच्छा लगा कि ब्यान नहीं किया जा सकता। ठंडी ठंडी हवा बहुत अच्छी लग रही थी, हम डाइनिंग रूम मे पहुचे और खाना तैयार करने को बोलकर वापिस बाहर आ गए। सोचा कि एक गोल चक्कर गेस्ट हाउस का ही लगा ले। ऐसे पलो को शब्दों मे बयाँ करना बहुत मुश्किल होता है सिर्फ महसूस किया जा सकता है, हल्का हल्का सुरूर तो था ही। हमें घुमते हुए वहा के गार्ड ने बोला कि सर यहाँ से बाहर मत जाइएगा, इस चारदीवारी की अन्दर ही रहना और पीछे के रास्ते से तो बाहर निकलना ही मत। हमने पुछा कि यहाँ भी डर है क्या तो उसने बोला साहब जी एक शेर तो रोज ही पीछे वाले रास्ते से जाता था और हाथी तो कई बार इन खेतो मे घुस चुके है। जोश मे तो थे ही तभी सोच लिया कि खाना खाकर एक चक्कर तो लगायेगे बाहर का। हम जल्दी से डाइनिंग रूम मे पहुचे, खाना तैयार था, दाजू ने तुरंत लड़को को परोसने का आदेश कर दिया। खाना मजेदार था। खाना खाकर हम वापिस कमरों मे आ गए और दाजू को भी अन्दर आने के लिए बोला। अन्दर आने पर हमने पूछा कि बाहर कहा तक जाया जा सकता है। वो पक्ष मे नहीं थे लेकिन हमने भी बोला कि हम अन्दर जंगल मे नहीं जायेगे सिर्फ बाहर सड़क तक तो जा सकते है और वैसे भी गाड़ी से बाहर तो निकलना नहीं था। । तब जाकर वो तैयार हुआ।

बारह से ज्यादा का समय हो रहा था और हम बाहर गाड़ी मे बैठे थे। आधा घंटा हम सड़को पर गाड़ी दौड़ाते रहे। वहा पेड़ो के बीच कच्चा रास्ता था जो दिन मे शोर्टकट के रूप में प्रयोग होता था, उस रास्ते से जब निकले तो रोंगटे खड़े हो गए बिलकुल सुनसान, सड़क भी कच्ची, डर लग रहा था कि अगर गाड़ी फस गयी तो निकालनी मुश्किल हो जायेगी क्योकि छोटी गाड़ी थी, अँधेरे मे हिरनों के झुण्ड भी दिखे जिनकी सिर्फ आखे चमक रही थी। वो अभी तक के सबसे यादगार और रोमांचक क्षण थे, शायद ऐसा रोमांच कभी जंगल मे भी नहीं आया था। प्रदीप का मन तो वापिस आने के लिए कर ही नहीं रहा था। एक बजे हम वापिस आये तो थोड़ी देर कमरों के बाहर ही बैठ गए कि कल कहा जाए। जिम कॉर्बेट के बिजरानी गेट से तो प्रवेश मिल सकता था लेकिन जो जानवर अन्दर दिखते थे वो बाहर ही दिख गए थे फिर ऐसा रोमांच भी हो गया था। इसलिए चार हजार रूपये खर्च करना अक्लमंदी नहीं लगी। प्रदीप ने बोला कि सर कल मे आपको मरचुला लेकर चलूगा, आपको जगह पसंद आएगी। मरचुला के बारे मे हमने कभी सुना नहीं था लेकिन कही तो जाना था इसलिए वही सही। जगह पक्की हो गयी तो हम भी अपने कमरों मे आ गए सोने के लिए।

हम भी है

12. (प्रदीप) सर जी मरचुला ही चलेगे

11. रात के सन्नाटे मे वापिसी

अभी कल का दिन बाकी है इसलिए बाकी की कहानी अगले पोस्ट मे लिखना ही सही रहेगा।

ढेला (कॉर्बेट) की मस्ती और रोमांच was last modified: April 20th, 2025 by Saurabh Gupta
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