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आगरा: ताज की तरफ वाया सिकंदरा (अकबर का मकबरा)

संगमरमर के एक ही टुकड़े पर की गयी अदभुत नक्काशी

यदि आप केवल एक तीर्थयात्री के तौर पर मथुरा-वृन्दावन की यात्रा पर जाते हैं तो बात अलग है, अन्यथा अगर आप हमारे जैसे यायावर पर्यटक हैं, जो अपने काम–धंधे या नौकरी में से कुछ समय निकाल कर कहीं घूमने के लिए निकलता है, तो उसका एकमात्र उद्देश्य रहता है, कि किस प्रकार. वो अपने समय का उचित प्रबंधन कर के, कम समय में ज्यादा से ज्यादा जगहों पर घूम सके! इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, हमने अपनी मथुरा-वृन्दावन वाली यात्रा में आगरा को भी सम्मलित कर लिया| क्यूंकि मथुरा और आगरा एक ही हाईवे पर हैं और मथुरा से आगरा की कुल दूरी भी लगभग 65 किमी की ही है, अतः व्यवहारिकता का तकाजा भी यही है, कि यदि आप मथुरा केवल धार्मिक उद्देश्य से ही नहीं जा रहे हों और आपका इरादा छुट्टीयों का अधिक से अधिक सदुपयोग करने का हो, तो आप इसी यात्रा में आगरा को भी जोड़ सकते हैं, जैसा की हमने किया |

मथुरा के अपने होटल से, अल-सुबह ही नहा-धोकर हम सबने होटल से बाहर आकर उसी दुकान से उन्ही कचोडीयो का रसावादन किया, कुछ मीठा खाने के शोकीनों ने उसी के बगल में ‘शंकर मिष्ठान’ वाले से मीठे पर हाथ आजमाया, जिनके स्वाद का अनुभव मैं अपनी पिछली पोस्ट ‘एक जिंदादिल शहर : मथुरा” में पहले ही कर चुका हूँ | आप जानते ही हैं कि, हम शहरी लोगों की एक और नियामत है चाय! और यदि वो ना मिले तो आप खुद को तो बेचैन पाएंगे ही, स्त्री वर्ग को अक्सर कहते हुए सुनेंगे कि, “सर में बहुत तेज दर्द है, कहीं ढंग की चाय ना मिलने की वजह से !” क्यूँकि, अक्सर ही, उन्हें अपने हाथ की बनी चाय के अलावा कहीं और की बनी चाय पसंद नही आती और यकीन मानिए यदि आपके साथ ऐसा हो तो समझ लीजिये कि खतरे की घंटी बज चुकीं है और अब आपके बनाये हुए सारे प्रोग्राम का कबाड़ा होने ही वाला है | आखिर सौ सुनार की एक लोहार की, तो ऐसे में अपने अनुभव से हमने उड़ती चिड़िया के पर गिनना सीख लिया है | सो हमने पहले से ही एक ऐसी चाय की दुकान का पता लगा लिया था जो अपने काम में सिद्ध-हस्त था |और फिर ‘प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नही’ को चरितार्थ करते हुए ‘अरोड़ा चाय वाले’ ने छोटे-छोटे कुल्हड़ में जो चाय पिलाई तो उसका स्वाद आज भी हमारी जीभ पर है |
बहरहाल, सुबह के इस नाश्ते से निपट कर हमने आगरा वाले हाईवे का रुख किया, राह में पड़ने वाले एक ओवरब्रिज से उस समय एक मालगाड़ी गुजर रही थी | कार के अंदर से ही हमने उसका फोटो लिया, क्यूंकि सड़क की भीड़-भाड़ ना तो आपको रुकने देती है और ना ही जेठ के महीने में गाड़ी के अंदर बैठे लोग आपको खिड़की का शीशा गिराने देते हैं |

मथुरा से बाहर निकलते समय समय पुल से गुजरते मालगाड़ी के डिब्बे



आगरा की तरफ जाने वाली हाईवे की सड़क ठीक-ठाक है | मथुरा से महज 11 किमी की दूरी पर इंडियन आयल की तेल रिफाईनरी है , जिसकी चिमनी से निकलती हुए आग की लपटें आपको आकर्षित करती हैं | मथुरा और आस-पास के क्षेत्रों को इसकी वजह से काफी रोज़गार के साधन उपलब्द हुए है, परंतु इस रिफाईनरी से निकलने वाले धुंए और विषाक्त गैसों की वजह से आगरा के ताजमहल की तबियत काफी नासाज़ हो गयी थी, जिसकी वजह से माननीय सुप्रीमकोर्ट को कुछ गाइड लाइन्स बनानी पड़ी मगर अब सब ठीक है, गाड़ी के अंदर से उतारी गई इसकी एक झलक |

चलती कार से तेल रिफाईनरी की चिमनी से निकलती आग और धुंए का लिया गया फोटो, खास आपके लिए

आगरा के रास्ते में एक टोल-टैक्स भी है जिस पर आपको फिर एक बार 85 रूपये की पर्ची कटवानी पडती है, अपने ही देश में. एक ही प्रान्त में, बिना सुविधाओं वाले रास्तों पर भी जब बार-बार टोल भरना पड़े तो चुभेगा ही | मगर जब ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरना, और हमारा कारवाँ रास्ते की इन छोटी-मोटी रुकावटों से पार पाते हुए अपनी मंजिल की ओर बड़ता जाता है |

सड़कों पर भीड़ बढ़ने लगी है | बाहर, दिन का तापमान बढ़ना शुरू हो चुका है, और अंदर गाड़ी का! परिवार के साथ जाने वालों में कार के स्टीरियो में चलने वाले गानों के चुनाव पर अक्सर बच्चों के साथ प्यार भरी नोक-झोंक होती रहती है, और हम लोग भी इस सनातन हिन्दुस्तानी परम्परा को निभाने में बिलकुल भी पीछे नही ! यहाँ बच्चे नये गाने सुनना चाहते हैं…yo yo Honey Singh!!!, वहीं हम लोग भूले-बिसरे पुराने फ़िल्मी गीत ! कोई पीछे हटने को तैयार नही … आखिर मांडवाली कर-कर के काम चलता है, यानी कभी एक ग्रुप की पसंद के तो कभी दूसरे के | आखिर आप आगरा में प्रवेश कर ही जाते हैं और जब आप भीड़-भाड़ वाले सिकन्दरा से गुजर रहे होते है, तो आपके बायीं और अकबर का मकबरा पड़ता है| अचानक ही हम सब चाहने लगते हैं कि ताजमहल देखने से पहले, क्यूँ ना इसे भी एक नजर भर देख लिया जाये | सिकन्दरा, ताजमहल से 16 किमी की दूरी पर, तथा आगरा शहर से 10 किमी की दूरी पर, शहर के बाहरी भाग मे पड़ता है | अपने मकबरे का निर्माण स्वयम अकबर ने ही अपने जीवन-काल में शुरू करवाया था, परंतु इसे पूरा, अकबर की मौत के बाद उसके पुत्र जहांगीर ने 1613 में करवाया | हमें बताया गया कि कभी इस मकबरे में प्रवेश के चार रास्ते थे, मगर अब केवल एक ही रास्ता दर्शकों के लिए खुला है | इस मकबरे को बाहर से देखते ही आप को ये मोहित कर लेता है जब आप पाते हैं कि इसकी दीवारों पर बहुत ही कलापूर्ण ढंग से, काफी सुंदर ज्यामिति पैटर्न पर सुंदर डिज़ाइन उकेरे गए हैं | इस मकबरे के सामने ही पार्किंग की जगह है और हैरानी की बात है कि मकबरे और उसके आस-पास की जगह साफ़ सुथरी भी है | अंदर प्रवेश करते ही आपको इसके दरो-दीवारों पर अकबर के सर्व-धर्म-समभाव की भावना के दर्शन भी हो जाते हैं, जब इसकी दीवारों पर आपको हिंदु, बोद्ध, जैन, ईसाई आदि धर्मों के प्रतीक संगमरमरों में उकेरे हुए दिख जाते हैं, हालाकिं इस मकबरे की मुख्य आकृति मुगल शैली की ही है |

6 प्रवेश द्वार का साइड फोटो

मकबरे के साइड विउ के साथ फोटो में रावी

मकबरे के अंदर वह स्थान जहाँ से बोली गई आपकी बात मकबरे के दुसरे हिस्सों तक पहुंच जाति है

मकबरे की दीवार में पत्थर में उकेरा गया इसाई धर्म का प्रतीक

मकबरे की दीवार पर उकेरा गया स्वास्तिक का चिन्ह

मकबरे का बाहरी दृश्य , फोटो में श्री प्रेम त्यागी

लाल रंग के सैंड-स्टोन पत्थर से बना ये मकबरा काफी भव्य और सुरुची पूर्ण है, जो ज्यामिति के truncated पिरामिड की आकृति में बना है, इसके चारों किनारों पर खड़ी मीनारें, बहुभुजी आकार की हैं जो आपको दूर से देखने भर से ही सुंदर दिखने लगती हैं, ये आपको उस दौर में प्रचलित भवन निर्माण कला के विकसित रूप का प्रमाण देती हैं | मुगल शैली के भवनों की खासियत ये होती है की इनमे आपको मुख्य भवन तक पहुंचने के लिए एक गलियारे, या उसे प्रवेश-द्वार भी कह सकते हैं, में से होकर गुजरना पड़ता है, इसके अलावा इसमें मुख्य भवन के आगे और पीछे की तरफ बगीचा तथा पानी की नहर जरूर दिख जाती है जो इस्लाम में ‘बहिश्त’ का प्रतीक होता है | (बहिश्त , muslim शिया समुदाय में जन्नत का बगीचा माना जाता है|)| इसके पीछे की तरफ में आपको हिरण भी दिखते है, जिनमे काला हिरण(black buck}, सलमान खान की वजह से सबके आकर्षण का केन्द्र है |इस मकबरे का मुख्य भवन एक चोकोर चबूतरे पर, वर्गाकार आकृति में बना है | पूरा मकबरा पांच तल का है, जिसके भीतरी तल पर स्वयम अकबर तथा उसकी अन्य दो बेटियां वा नाती दफन हैं | पूरे भवन में कब्रों, और दीवारों के अतिरिक्त इसकी छत पर की गयी नक्काशी भी अदभुत है | यहाँ-तहाँ सोने का तथा अन्य कीमती रत्नों और पत्थरों का भी इस्तेमाल हुआ है | अकबर की स्वयं की कब्र तो आलीशान है ही, उसकी बेटियों की कब्रों पर संगमरमर के पत्थर पर उकेरी गयी आयतें, और बेल-बूटियाँ कला का उत्कृष्ट नमूना है | पूरे मकबरे में कई जगहों पर छतरी का इस्तेमाल भी है, जो मुगल-कालीन इमारतों में कई जगहों पर दिखाई देती हैं, जिनमे से आगरा में फतेहपुर सीकरी का नाम विशेष तौर पर उल्लेखनीय है | इसमें कहीं कोई दो राय नही कि पूरा मकबरा अपने दोर की मुगलिया शानों-शौकत की गवाही हर कदम पर देता है |

संगमरमर के एक ही टुकड़े पर की गयी अदभुत नक्काशी

कब्र के पत्थर पर उकेरी गयी अरबी में लिखी आयतें

अपने और त्यागी जी के परिवार के साथ

मुगलों के बनवाए कुछ मकबरे तो वाकई इतने बुलंद और आलीशान हैं कि आपको उनकी मौत से भी रश्क हो जाता है | इस काल की जितनी भी मुख्य इमारतें हैं, उनमे कुछ ना कुछ ऐसा जरूर है, जिस से आप उनकी भवन-निर्माण कला के मुरीद हो जाएँ, इस मामले में ये मकबरा भी आपको एक ऐसा नायाब पल देता है, जब आप, (चित्र में लाल घेरे वाले) पत्थर पर खड़े होकर जो भी बोलते हैं, वो इस के हर हिस्से में सुनाई देता है यानी कि आज के दौर का Public Address System. और आप हैरान तो तब रह जाते हैं जब इस स्पॉट से दो फुट दायें–बाएं या आगे-पीछे होने पर. आपकी आवाज केवल आप तक ही रह जाती है |

सदियों से, जो मौत इतनी डरावनी और भयावह समझी जाती रही है कि कोई अपनी मरजी से उसके पास तक नही जाना चाहता, उसे याद तक नही करना चाहता, ऐसे में उसकी यादगार को कायम रखने के लिए इतने भव्य और आलीशान मकबरों का निर्माण, वाकई कमाल की बात है |

अकबर की बेटियों वा उसके नातियों की कब्रें

अकबर की कब्र का दृश्य

मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर इस मौके पर बेसाख्ता ही याद आकर लबों पर एक हल्की सी मुस्कान बिखेर देता है –

“ मत पूछ, के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे?, सोच के क्या रंग तेरा, मेरे आगे ! “

मिस्त्र के पिरामिड और ये मकबरे, ऐसा नही, कि मौत को कोई चुनोती देते हों या मौत पर इंसान की जीत का परचम फहराते हों, पर हाँ इतना जरूर है कि इन्हें देखने के बाद मौत इतनी भी बदसूरत नजर नही आती! बहरहाल सूरज अपना जलवा दिखाने को बेकरार हो रहा है, और घड़ी की सुईयां भी सरपट भाग रही हैं, ऐसे में हम फैसला करते हैं कि हमें अपनी ऊर्जा ताजमहल के लिए भी बचा कर रखनी है | अत:, हम जल्दी से अकबर के मकबरे को अपनी यादों में समेट, मुगलिया सल्तनत के एक बेताज बादशाह को उसकी फराखदिली और पंथ-निरपेक्षता के लिए उसे अपना आखिरी सलाम देते हुए, एक और मकबरे, ताजमहल को देखने आगरा की और कूच कर देते हैं…..

आगरा: ताज की तरफ वाया सिकंदरा (अकबर का मकबरा) was last modified: May 2nd, 2025 by Avtar Singh
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