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मुन्नार की खूबसूरत वादियाँ

काफी दिनों से मै अपनी यात्राओं की पोटली खोलना चाह रहा था और आज जाकर समय मिला | अपने दिल्ली में पढ़ाई के दौरान पूरा उत्तर भारत और ट्रेनिंग एवं नौकरी में दक्षिण भारत घूम चूका हूँ और अभी पश्चिम भारत में अन्वेषण कर रहा हूँ | मेरी यह यात्रा नवम्बर 2010 माह में कोयम्बटूर में ट्रेनिंग के दौरान दक्षिण भारत के हनीमून स्पॉट “मुन्नार” की है |

हम चार दोस्त गौरव सचान, सौरभ पौल, सौरभ सिंह(चैम्प) और मै सभी ट्रेनिंग के बिजी क्लासेस से परेशान हो गये थे और सबको इंतज़ार था वीकेंड के आने का | शुक्रवार को रात १२ बजे अचानक पौल सबको अपने रूम में बुलाता है और चलो चलो जल्दी तैयार हो जाओ सब लोग बस सारी प्लानिंग हो चुकी है | हम सबने एक साथ पूछा अरे जाना कहाँ है उसने आधे घंटे में बस है छूट गई तो प्रॉब्लम हो जाएगी | सचान हमेशा एडवेंचर के मूड में रहता है उसने तुरंत हाँ कर दी और पैकिंग करने चला गया | मै और चैम्प अभी ढेर सारे प्रश्नों के साथ खड़े थे और शायद सोच रहे थी की कौन सा पूछे | इससे पहले हम कुछ बोलते पौल ने कहा ऐसे ही चलोगे क्या तुम दोनों ? चलो बढ़िया है मेरा सामान पैक कराओ |

हम जानते थे की अब मुश्किल है पौल को मनाना | मैंने कहा ठीक है कमीने अगर कोई दिक्कत हुई तो तू ही पिटेगा | चैम्प पढाकू था और हमेशा उसके पढ़ने के प्लान बने रहते हैं | उसको समझाना मुश्किल था किसी तरह दोस्त का वास्ता देकर समझाया हमने | आधे घंटे के अंदर अपना अपना बैग लेकर हम बस स्टेशन पर थे | किसी से कुछ खाया भी नही था | बस स्टेशन पर मुश्किल से चार-पांच बसें ही थी | हमने पूछ ताछ पर पता किया तो मुन्नार की बस सुबह पांच बजे की है | हमने जैसे ही सुना और पीछे तो देखा पौल भाग रहा था हम तीनों मिलकर दौड़ा लिए और वहीँ गिरा कर मारा उसको | सचान ने कुछ उपाधियों से नवाजा उसको | आखिरकार हमने निर्णय लिया की वहीँ इंतज़ार किया किया जाए | वहीँ ठेले पर हमने एग-डोसा खाकर रात गुजारी और सुबह ही नित्य कर्म से निवृत होकर अपनी मुन्नार की बस में जाकर बैठ गए |

सुबह एक अजीब सी उमंग और ऊर्जा के साथ हम सभी यात्रा के लिए तैयार थे | पौल ने ढेर सारी खाने की चीजे खरीद कर बैग में रख ली | बस पांच बजे की बजाय छ बजे वहाँ से चली और एक दूसरे की खिचाई करते हुए हम यात्रा के मजे ले रहे थे | बस अत्यंत धीमी गति से चलती हुई आठ घंटे में मुन्नार पहुँची |

प्रकृति की मोहकता में सभी पीड़ा लुप्त हो जाती है

मुन्नार के पहले ही दृश्य ने हम सबको मोहित कर लिया |

चाय के बागानों के बीच से रास्ता

मुन्नार नीलगिरी की गोद में बसा प्यारा हिल स्टेशन है | नीले पहाड़ों से घिरे इस रमणीय स्थल में चाय की वादियाँ लुभावनी और आन्दित कर देने वाली थी |

हरी भरी वादियाँ

शाम के समय हमने एक होटल बुक किया और वहीँ पर रुके | रात को हम सभी एक अनजानी गली की तरफ निकल पड़े और ये पौल का ही प्लान था की हमें एक्सप्लोर करना चाहिए | जब लौटने की बारी आई तो किसी को आईडिया नही था की किधर जाना है | हम सभी परेशान हो उठे सबका मन कर रहा था की पौल की कुटाई की जाये | काफी परेशान होने के बाद हम होटल का नाम पूछते पूछते होटल पहुचें |

सुबह उठकर हमने गाडी बुक की और निकल पड़े वादियों की सैर में | चाय के बागान और दूर तक फैले नीले पहाड़ों की श्रृखला ने पलकें झपकाने तक भी समय नही दिया |

टाटा के चाय बागान

चाय की ताज़ी पट्टियां

पहाड़ों के बीच से निकली यह टहनी के नीचे सीधा हजारों फीट की खाई है |

मनोरम सौंदर्य

देखकर लगता है कैसे बनाया है कुदरत ने इतना सुन्दर इन्हें |

नीले फोलों वाला वृक्ष

पूरे रास्ते में बस यही पेड़ था जिस पर मधुमक्खियों ने अपना घर बना रखा था |

मधुमक्खियों के छत्ते

शांत जलाशय के किनारे बैठ सब कुछ भूल जाता है मानव | लगता है प्रकृति कह रही है वापस आओ रहो मेरी गोद में, कहाँ तुम व्यर्थ की उलझनों में जीवन व्यतीत कर रहे हो |

किनारे बैठ कर बंसी बजाते हैं

शांत स्थिर जल

झील की सुंदरता को बढ़ाती वृक्षावली

धीरे धीरे डूबने लगा सूरज घाटियों में और पल पल नए मनोरम दृश्यों की बाढ़ सी आ गई |

कहीं दूर जब दिन ढल जाये

यात्रा अपनी समाप्ति की ओर बढती है | शाम को हमने खरीददारी की, ढेर सारे चोकलेट खरीदे और डिनर करके रवानगी की तैयारी हुई | हमारी यात्रा मौज मस्ती भरी रही हमने खूब मौज मस्ती की और उसी रात की बस पकड़कर वापस कोइमबतुर आ गए | इस यात्रा को २ साल हो गए लेकिन आज याद करने बैठा तो सब कुछ आखों के सामने से तैर गया | फिलहाल अभी चैम्प IIM B और पौल IIT R से MBA और सचान IBM में और मै जॉब कर रहे हैं |

मुन्नार की खूबसूरत वादियाँ was last modified: July 21st, 2025 by Shivam Singh
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