6 अकà¥à¤Ÿà¥‚बर 2011, आज हमें खाती से वापस चल देना था। जो कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® दिलà¥à¤²à¥€ से चलते समय बनाया था, हम ठीक उसी के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° चल रहे थे। आज हमें खाती में ही होना चाहिये था और हम खाती में थे। यहां से वापस जाने के लिये परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त रासà¥à¤¤à¤¾ तो धाकà¥à¤¡à¥€, लोहारखेत से होकर जाता है। à¤à¤• रासà¥à¤¤à¤¾ पिणà¥à¤¡à¤° नदी के साथ साथ à¤à¥€ जाता है। नदी के साथ साथ चलते जाओ, कम से कम सौ किलोमीटर चलने के बाद हम गढवाल की सीमा पर बसे गà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¦à¤® कसà¥à¤¬à¥‡ में पहà¥à¤‚च जायेंगे। à¤à¤• तीसरा रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ है जो सूपी होकर जाता है। सूपी से सौंग जाना पडेगा, जहां से बागेशà¥à¤µà¤° की गाडियां मिल जाती हैं।
नवमà¥à¤¬à¤° की खूबसूरती
पीछे वाला बंगाली है और आगे उसका गाइड देवा। देवा हमारे à¤à¥€ बहà¥à¤¤ काम आया। लेकिन देवा का इरादा परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त रासà¥à¤¤à¥‡ धाकà¥à¤¡à¥€ से जाने का था |
परसों जब हम पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ जा रहे थे, तà¤à¥€ से मौसम खराब होने लगा था, आज à¤à¥€ मौसम ठीक नहीं हà¥à¤† है।
मà¥à¤à¥‡ पहले से ही सूपी वाले रासà¥à¤¤à¥‡ की जानकारी थी। असल में यातà¥à¤°à¤¾ पर निकलने से पहले मैंने इस इलाके का गूगल अरà¥à¤¥ की सहायता से गहन अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ किया था। पता चला कि सरयू नदी और पिणà¥à¤¡à¤° नदी के बीच में à¤à¤• काफी ऊंची परà¥à¤µà¤¤à¤®à¤¾à¤²à¤¾ निकलकर चली जाती है। यह सरयू अयोधà¥à¤¯à¤¾ वाली सरयू नहीं है। सौंग सरयू नदी के किनारे बसा है जबकि खाती पिणà¥à¤¡à¤° किनारे। सौंग से जब खाती जायेंगे तो हर हाल में इस परà¥à¤µà¤¤à¤®à¤¾à¤²à¤¾ को पार करना ही पडेगा। धाकà¥à¤¡à¥€ में इसकी ऊंचाई सबसे कम है तो परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त रासà¥à¤¤à¤¾ धाकà¥à¤¡à¥€ से ही बन गया है। साथ ही यह à¤à¥€ देखा कि सौंग से आगे सरयू किनारे à¤à¤• गांव और है- सूपी। सूपी और खाती बिलà¥à¤•à¥à¤² पास-पास ही हैं। फरक इस बात से पड जाता है कि दोनों के बीच में दस हजार फीट ऊंची वही परà¥à¤µà¤¤à¤®à¤¾à¤²à¤¾ है। यही से मैंने अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ लगा लिया था कि खाती से सूपी जाने के लिये जरूर कोई ना कोई पगडणà¥à¤¡à¥€ तो होगी ही। और इसी आधार पर तय à¤à¥€ कर लिया था कि खाती से धाकà¥à¤¡à¥€-लोहारखेत जाने की बजाय सूपी से निकलेंगे।
खाती से सूपी के रासà¥à¤¤à¥‡ पर
पिछले चार दिनों से मैं इसी खाती-सूपी वाले रासà¥à¤¤à¥‡ की जानकारी जà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‡ में लगा था और अपेकà¥à¤·à¤¾ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सफलता à¤à¥€ मिल रही थी। सफलता मिल रही हो तो इंसान आगे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ना बढे। सà¥à¤¬à¤¹ खा-पीकर हमने à¤à¥€ सूपी वाला रासà¥à¤¤à¤¾ पकड लिया। हालांकि मैं और अतà¥à¤² तो à¤à¤• ही पलडे के बाट थे, जबकि हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® का à¤à¥à¤•ाव दूसरे पलडे यानी बंगाली की ओर था। बंगाली à¤à¤• गाइड देवा के साथ था। देवा ने इस सूपी वाले रासà¥à¤¤à¥‡ से जाने से मना कर दिया। देवा की मनाही और हमारे जबरदसà¥à¤¤ समरà¥à¤¥à¤¨ के कारण हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® बीच में फंस गया कि जाट के साथ चले या बंगाली के। आखिरकार बंगाली à¤à¥€ हमारी ओर ही आ गया जब उसने कहा कि इस बार कà¥à¤› नया हो जाये। धाकà¥à¤¡à¥€ वाले पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ के मà¥à¤•ाबले सूपी वाला रासà¥à¤¤à¤¾ नया ही कहा जायेगा। देवा को मानना पडा।
खाती से सूपी। हालांकि आधा रासà¥à¤¤à¤¾ चढाई à¤à¤°à¤¾ है लेकिन जंगल की खूबसूरती से होकर जाता है।
अब यह बताने की तो जरà¥à¤°à¤¤ ही नहीं है कि खाती से निकलते ही सीधी चढाई शà¥à¤°à¥‚ हो गई। चोटी तक कंकà¥à¤°à¥€à¤Ÿ की पकà¥à¤•ी बढिया पगडणà¥à¤¡à¥€ बनी हà¥à¤ˆ है। पूरा रासà¥à¤¤à¤¾ जंगल से होकर है। चोटी पर à¤à¤• छोटा सा मनà¥à¤¦à¤¿à¤° बना हà¥à¤† है। अब सामने बहà¥à¤¤ दूर नीचे सरयू नदी दिख रही थी और पीछे पिणà¥à¤¡à¤° नदी। वही नजारा था जो चार दिन पहले हमने धाकà¥à¤¡à¥€ में देखा था। अब देवा हमारे काम आया। देवा ना होता तो हम इसी कंकà¥à¤°à¥€à¤Ÿ की पगडणà¥à¤¡à¥€ से उतरते जाते जोकि काफी टाइम बाद हमें सूपी पहà¥à¤‚चाती। यहां देवा ने à¤à¤• शॉरà¥à¤Ÿà¤•ट बताया जिससे हम बडी जलà¥à¤¦à¥€ नीचे उतरकर सूपी जा पहà¥à¤‚चे।
खाती से सूपी टॉप तक कंकà¥à¤°à¥€à¤Ÿ की पतली पगडणà¥à¤¡à¥€ है, इसलिये रासà¥à¤¤à¤¾ नहीं à¤à¤Ÿà¤• सकते।
सूपी टॉप से नीचे उतरना à¤à¥€ कम रोमांचक नहीं है। यह नीचे उतरते समय पीछे मà¥à¤¡à¤•र खींचा गया फोटो है।
खाती से सूपी टॉप तक कंकà¥à¤°à¥€à¤Ÿ की पतली पगडणà¥à¤¡à¥€ है, इसलिये रासà¥à¤¤à¤¾ नहीं à¤à¤Ÿà¤• सकते। हालांकि पहाडों पर पगडणà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ ही खà¥à¤¦ शॉरà¥à¤Ÿà¤•ट होती हैं और अगर पगडणà¥à¤¡à¥€ का à¤à¥€ शॉरà¥à¤Ÿà¤•ट बनाया जाये तो सोचो कि कैसा रासà¥à¤¤à¤¾ होगा। कà¤à¥€ कà¤à¥€ तो लगता कि अगर जरा सा पैर फिसल गया तो हजारों फीट तक बेधडक गिरते चले जायेंगे, ऊपर से आने वालों को कहीं कपाल मिलेगा, तो कहीं लीवर। मैं तो सोच रहा हूं कि जो कोई इस रासà¥à¤¤à¥‡ से ऊपर जाते हैं, उन पर कà¥à¤¯à¤¾ बीतती होगी।
यहां पहà¥à¤‚चकर लगने लगता है कि सूपी टॉप नजदीक ही है, इसके बाद सूपी गांव तक नीचे ही उतरना है।
सूपी गांव सरयू नदी की घाटी में बसा है। यहां से सरयू बडी खूबसूरत दिखती है। हालांकि इस फोटू में नहीं दिखाई दे रही है।
सूपी गांव
सूपी पहà¥à¤‚चे। यहां से तीन किलोमीटर आगे à¤à¤• गांव और है, नाम धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से उतर गया है, वहां तक जीपें आती हैं। जब उतरते उतरते सडक पर पहà¥à¤‚च गये, तब धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आया कि हां इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में गाडियां à¤à¥€ चलती हैं। फिर तो à¤à¤• जीप पकडकर सौंग, à¤à¤°à¤¾à¤¡à¥€ और बागेशà¥à¤µà¤° तक पहà¥à¤‚चना बडा आसान काम था। à¤à¤• बात और रह गई कि à¤à¤°à¤¾à¤¡à¥€ में जब हम जीपों की अदला बदली कर रहे थे, तो à¤à¤• जीप में चार सवारियों की सीटें खाली थी और हम थे à¤à¥€ चार। अतà¥à¤² को सबसे आगे की सीट मिल गई, मà¥à¤à¥‡ सबसे पीछे की। हालांकि मैं जीप में पीछे वाली सीटों पर बैठना पसनà¥à¤¦ नहीं करता लेकिन फिर à¤à¥€ बैठगया। हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® और उसका पॉरà¥à¤Ÿà¤° पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª à¤à¥€ बैठसकते थे लेकिन हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® यही पर घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी का à¤à¤• जरूरी सबक à¤à¥‚ल गया। बोला कि जब मैं पूरे पैसे दूंगा तो अपनी पसनà¥à¤¦ की सीट पर बैठकर जाऊंगा ना कि पीछे वाली पर। और हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® को यही पर अलविदा कहकर हम चल पडे।
अगर कहीं हिमालय में रासà¥à¤¤à¤¾ गांवों से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ है तो à¤à¤¸à¥€ पगडणà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ मिलती ही रहती हैं |
दाहिने वाला गाइड देवा और बायें उसका à¤à¥€ गाइड जाटराम। बागेशà¥à¤µà¤° जाने के लिये जीप के इंतजार में।
बागेशà¥à¤µà¤° पहà¥à¤‚चे। आज दशहरा था। बागेशà¥à¤µà¤° के बागनाथ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में मेला लगा था। हमें आज पांच दिन हो गये थे नहाये हà¥à¤à¥¤ चेहरे धूल और मैल से बिगड गये थे। हम मेले में नहीं गये। अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ की à¤à¤• जीप खडी थी, जा बैठे। जीप में बैठने वाली हम पहली सवारी थे तो पकà¥à¤•ा था कि तब तक शायद हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® à¤à¥€ आ जाये। और जीप à¤à¤°à¤¨à¥‡ तक वो आ à¤à¥€ गया। फिर से तीनों साथ हो गये।
नौ बजे के करीब अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ पहà¥à¤‚चे। अलà¥à¤®à¥‹à¤¡à¤¾ का दशहरा à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। पूरा शहर जगा हà¥à¤† था। à¤à¤• कमरा लेकर उसमें सामान पटककर, खाना खाकर मैं और अतà¥à¤² मेला देखने सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¡à¤¿à¤¯à¤® चले गये जबकि हलà¥à¤¦à¥€ नहीं गया। थोडी देर मेले का आननà¥à¤¦ लिया और वापस आ गये।
ऊपरी सरयू घाटी
सूपी में चावल के खेत की मेंड पर बैठा अतà¥à¤²
आज हमारी पिणà¥à¤¡à¤¾à¤°à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ का कथित रूप से समापन हो गया। छह दिन में यातà¥à¤°à¤¾ पूरी हो गई। अगले दिन हलà¥à¤¦à¥€à¤°à¤¾à¤® वापस हलà¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤¨à¥€ चला गया। हालांकि हमने दो दिन और लगाये इधर-उधर घूमने में।