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गणेशोत्सव का उत्साह और माँ गंगा का पावन स्नान … हरिद्वार।

बीते कई दिनों से मन में हरिद्वार जाने की इच्छा माँ गंगा की लहरो की तरह प्रबल हुए जा रही थी, किन्तु वर्षा ऋतू और कावड़ यात्रा का जो विशाल योग बन चूका था उसके समक्ष हरिद्वार जाने की कल्पना करना अपने सामर्थ्य के अनुरूप नहीं लग रहा था। इधर हिंदी फिल्मो के हीरो का बच्ची सहित पाकिस्तान में अवैध रूप से घुसना और पकडे जाने के बावजूद सकुशल भारत लौट आना जैसी मनगढ़त कहानियों से भी दिमाग का दही हुए जा रहा था जिसने मुझे गंभीरता से यह सोचने पर विवश कर दिया की यदि दो पड़ौसी मुल्को में इतनी हमदर्दी होती है तो फिर सरबजीत जैसे नौजवान क्यों आजीवन अपने परिवार से मिल नहीं पाते। अभी ठीक से सोच भी नहीं पाया था की एकाएक प्याज के दाम आसमान पर पहुँच गए, प्रधानसेवक जी अमेरिका से लन्दन और रूस से चीन वाया इण्डिया होते हुए निकल गए, आम आदमी के भेष में जो नेता चुने गए वो स्त्री शक्ति का नारा देते हुए घरेलु हिंसा के दायरे में फंस गए, सल्लू की किस्मत (सजा) फिर से तारीखों के खेल में सुलझ गयी, शिक्षा मंत्री स्वयं की शिक्षा के फेर में उलझ गयी, अभी इतना ही बाकि नहीं है मित्रो यदि जाने-अनजाने मैंने कुछ गलत कह दिया हो तो समझना मेरे मुंह से जुबान फिसल गयी।

इतना सब कुछ देखने के बाद दिल्ली अब बेमानी से लग रही थी, सोचा क्यों न आगामी तीन दिनों की सरकारी छुट्टी, पच्चीस से लेकर सत्ताईस सितम्बर तक, हरिद्वार में जाकर बिताई जाये। ऑफ़ सीजन होगा इसलिए ज्यादा भीड़ भी नहीं होगी, किन्तु तभी ज्ञात हुआ की पच्चीस तारीख से ही पंचक प्रारम्भ हो रहे है जिस दौरान हिन्दू धर्म में अक्सर कोई भी शुभ कार्य व् यात्रा न करने की हिदायत दी जाती है। इसलिए आनन-फानन में यात्रा को दो दिनों के लिए तय किया गया जिसमे तेईस को निकलना और चौबीस को वापिस आने का प्रोग्राम फिक्स हो गया। और फिर हमें सिर्फ गंगा स्नान ही तो करना था, नीलकंठ महादेव के मंदिर और ऋषिकेश में हाजिरी तो गत वर्ष ही लगा आये थे, यदि आप चाहे तो घुमक्कड़ पर ही इसे पढ़ सकते है।

दफ्तर में अपनी टेबल पर बिखरी फाइलों को समेटने और अधिकारी जनो से दो दिन की छुट्टी, स्टेशन लीव परमिशन के साथ, सैंक्शन करवाने जैसे कार्य मैं एडवांस में ही कर चूका था, और पैकिंग की जिम्मेदारी इस बार माताजी और बहनजी ने उठा ली थी। उन्हें भी पता है पैकिंग करने में क्या जाता है, ट्रिप ऑर्गनाइज़र, ड्राइवर और कुली की मुख्य भूमिका तो इसे ही निभानी है पुरे सफर में।

दिनांक तेईस सितम्बर को अपनी विश्वसनीय वैगन-र का टैंक पेट्रोल से फ़ुल करवाने के बाद हम तीनो सवेरे आठ बजे अपने घर (दक्षिण दिल्ली) से निकल पड़े अपने गंत्वय की तरफ अर्थात हरिद्वार को। ट्रैफिक की कोई समस्या सामने नहीं आई और दिल्ली से एक सौ दस किलो मीटर दूर चीतल रेस्टोरेंट में जाकर हमने अपना पहला ब्रेक लिया जहाँ पकोड़े, सांभर बड़ा और लस्सी का नाश्ता करने के बाद अपनी यात्रा का अगला चरण प्रारम्भ किया।

Haridwar Bound


At cheetal grand

दोपहर के लगभग दो बजते-२ हम लोग हरिद्वार रेलवे स्टेशन पर अपनी प्रिय कार को पार्क कर चुके थे जिसका किराया तीस रूपए प्रति बारह घंटे के हिसाब से लिया जाता है। उसके बाद बीस रुपये प्रति सवारी की दर से एक रिक्शा लिया और उसे सीधे होटल ज्ञान ले चलने का निर्देश दिया। हालाँकि पुरे मार्ग में रिक्शा वाला काम दाम में अच्छा होटल दिला देने का वादा करता रहा किन्तु हम भी काम ढीट नहीं थे और उसे बातों में लगाकर होटल ज्ञान तक ले आये। अब बारी है होटल रिव्यु की तो मित्रो यदि आप एक से लेकर तीन की संख्या में हो और हजार-पंद्रह सौ की रेंज में गंगा फेसिंग रूम लेना चाहते हो तो इस होटल से बढ़कर दूसरा नहीं हो सकता। ऐसी, टीवी, डबल बेड, साफ सुथरा बाथरूम और लिफ्ट जैसी बेसिक सुविधाएँ इस होटल में हैं।

और सबसे सुन्दर बात वो यह है की निरंतर माँ गंगा के दर्शन भी आपको होते रहते हैं। आरती का मुख्या स्थल केवल एक मिनट की चहलकदमी पर है और इसके ठीक नीचे मशहूर चोटीवाला है न आपकी भूख मिटाने को। फ़ूड क्वालिटी के बारे में ज्यादा नहीं बता सकता क्यूंकि हम हमेशा नाश्ते से लेकर डिनर तक पुरोहित रेस्टोरेंट में ही करते हैं। भाई अपना-अपना टेस्ट है।

तीन बजते ही हम अपने रूम में प्रवेश कर चुके थे और सफर की थकान मिटने के लिए हमने तीन कप चाय का अपना पहला आर्डर मैनेजर साब को दिया। चाय आने तक मैं बाथरूम स्नान कर चूका था और घर से लाये गए नमकीन , बिस्कुट के साथ अब बारी थी शाम के नाश्ते की। चूँकि समय की कमी थी इसलिए माता मनसा देवी के मंदिर जाने के लिए मैं अकेले ही निकल पड़ा, आखिरकार लेडीज लोगो को स्थानीय बाजार से छोटी-मोटी शॉपिंग भी तो करनी थी और फिर उसके बाद माँ गंगा की शाम की आरती में भी हमें शामिल होना था। अकेले था इसलिए पैदल मार्ग को चुना और मात्र सवा घंटे में माता के मंदिर से वापिस हर की पौड़ी पहुँच गया और सबसे मजे की बात की मुझे अपने परिवार को ढूँढना भी नहीं पड़ा क्यूंकि वो मुझे वहीँ स्थानीय बाजार में एक दुकान में चूड़ियों का मोलभाव करते हुए मिल गए। शाम के साढ़े पांच से लेकर सवा छह बजे तक हमने होटल के कमरे में कमर सीधी करने का तय किया आख़िरकार दो सौ बीस किलो मीटर की ड्राइव और फिर माता के मंदिर की पैदल चढ़ाई करने के बाद अपनी बढ़ती उम्र का भी तकाजा होने लगता है।

अनायास ही मेरी नजर होटल की खिड़की से बाहर की तरफ गयी तो देखा की सभी लोग गंगा माता के मंदिर की तरफ बने घाट की सीढ़ियों पर पसर चुके थे, मतलब साफ़ है की माँ की आरती आरम्भ होने वाली है, हमने भी कमरा लॉक किये और सरपट दौड़े माता की आरती में शामिल होने को। ऑफ-सीजन होने के कारण किसी प्रकार की धक्का-मुक्की का सामना किये बगैर हमे मंदिर के पास ही आरती में शरीक होने का अवसर प्राप्त हुआ और जो दबंग पण्डे वगेरह अक्सर आपको आरती के समय दूर होने के लिए टोकते रहते थे आज वो स्वयं ही आरती की थाल हमारे हाथों में सौंप रहे थे माता की आरती उतारने को, हमें तो यकीं ही नहीं हो रहा था, खैर चलो छोडो। एक और महत्वपूर्ण बात यह थी की इस दरमियान ही मौसम भी करवट बदल चूका था और ग्रीष्म ऋतू अब शरद ऋतू का अहसास करवाने लगी थी, ऊपर से माँ गंगा की लहरों से उठती ठंडी हवाएं हमें बेबस किये जा रही थी वहीँ पर डेरा जमाये रखने को।

अपने मनपसंद रेस्टोरेंट पुरोहित में मसालेदार डिनर करने के बाद एक बार फिर से लेडीज पार्टी ने बाजार घूमने की गुजारिश की और हर की पौढ़ी से तकरीबन एक किलोमीटर तक हम बाजार में विचरण करते रहे। इन दिनों वहां गणेश उत्सव की बड़ी धूम देखने को मिली, हर कोई गणेश जी की प्रतिमा को अपने अलग-२ अंदाज में पुरे ढोल नगाड़े बजाते हुए विसर्जन की लिए गंगा माता की तरफ बढे चले आ रहे थे। और सबसे विशेष बात वो यह की लड़कियों का भी अपना अलग समूह था जो नाचते-गाते हुए अपनी अलग ही फांका-मस्ती में गणेश विसर्जन के लिए आ रहे थे किन्तु मजाल है जो किसी भी लड़की के साथ किसी भी प्रकार की कोई बदतमीजी हो, ऐसा तो सिर्फ अपनी मेट्रो सिटी में ही होता है जिसके लिए हमारा सर हमेशा शर्म से झुका रहेगा।

अच्छी तरह बाजार विचरण करने, गणेश विसर्जन की झांकियां देखने और भरपेट भोजन करने के बाद होटल में वापिस जाने का मन अब भी नहीं हो रहा था इसलिए सोचा क्यों न फिर से गंगा घाट पर चलकर ही बैठा जाये। दिन भर अपनी रोजमर्रा की लाइफ से दो चार होने के बाद रात के नौ बजते ही पलके भारी होने लगती है किन्तु यहाँ तो रात्रि के दस बज चुके थे और स्फूर्ति में कोई कमी नहीं थी। इतनी रात को भी श्रद्धालु ठन्डे जल में डुबकियां लगा रहे थे, चारो तरफ माँ गंगा की जय जयकार मची हुई थी और बची-खुची कसर गणेश उत्सव के उत्साह ने पूरी कर दी थी। गंगा जल से आचमन तो हम पहले ही कर चुके थे किन्तु स्नान करना अब भी बाकी था जिसके लिए गुरुवार का दिन एकादशी होने के कारण तय किया गया था। इसलिए अब हम अपने होटल की तरफ चल दिए सोने के लिए क्यूंकि कल सुबह जल्दी उठकर गंगा जी में डुबकी भी लगनी थी। पता है मित्रो हरिद्वार की एक ख़ास बात और है की अक्सर यहाँ आने वाले श्रद्धालु गंगा स्नान के साथ अपने पूर्वजों का भी ध्यान कर लेते हैं जो की अति महत्वपूर्ण होता है, आख़िरकार कुछ पुष्पों को एक पत्तल में पुरे श्रद्धा-भाव से अपने पितरों-पूर्वजों का ध्यान करते हुए यदि गंगा माँ में बहाने से उन्हें शांति मिलती है तो इससे बढ़कर हम लोगों को और क्या चाहिए। पितृ ऋण तो कभी चुकाए नहीं चुकता तो क्यों न हम उन्हें अपनी श्रद्धा ही अर्पित कर दें।

हालाँकि गणेश विसर्जन के दृश्य ह्रदय को प्रफुल्लित कर रहे थे किन्तु मन में एक विचार भी पैदा हो रहा था की क्या यह सभी प्रतिमाये पर्यावरण के अनुकूल होंगी, क्या इन सभी भक्तों ने गणेश प्रतिमा को खरीदते समय इस बात का ध्यान रखा होगा की मूर्ति निर्माण के लिए उपयोग की गयी सामग्री और रंग आदि कहीं हमारी नदियों को प्रदूषित तो नहीं करेंगे, और यदि इन प्रश्नो का उत्तर ‘न’ में हुआ तो एक बार फिर से हम एक बड़ी आपदा को निमंत्रण तो नहीं दे रहे क्यूंकि आजकल सस्ते मटेरियल मतलब प्लास्टर ऑफ़ पेरिस के द्वारा मूर्ति निर्माण किया जाता है जो की नदियों में बहाने के बाद भी कई वर्षो तक गलता नहीं है और साल दर साल मूर्ति विसर्जन तो हमारे भारत वर्ष में होता ही रहता है जिसका अत्यधिक बोझ हमारी नदियां नहीं उठा पाती और उसका परिणाम बाढ़ और भयंकर प्राकृतिक आपदाओं के रूप में हमें देखना पड़ता है। इसलिए मित्रों आप सभी से एक प्रार्थना है की यदि आप भी मूर्ति विसर्जन करते हैं तो कृपया केवल उन्ही मूर्तियों को घर लाये जो हमारे पर्यावरण के पूर्ण रूप से अनुकूल हो, मूल्य भले ही थोड़ा सा अधिक हो किन्तु हमारा यह छोटा सा योगदान आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवनदान के सामान होगा। और यकीन मानिये इसी में हम सब की भलाई है।

अपने तय दिन और समय के अनुसार गंगा स्नान और पूजा करने के बाद अब बारी थी सुबह के नाश्ते की, अतः हमने होटल का रूम सुबह नौ बजे तक छोड़ दिया और एक मिनट की चहलकदमी के बाद सीधे पहुँच गए होटल पुरोहित जहाँ प्याज, गोभी और आलू के परांठो के साथ आचार और चाय का सेवन किया गया और एक बार फिर से बाजार से कुछ छोटी-मोटी खरीददारी की गयी, क्या करें दिल है की मानता नहीं, यह कथन केवल महिलाओं पर लागू होता है। जब तक शॉपिंग चालू थी कुली साब (मैं) दोनों कंधो पर बैग लटकाये एक रिक्शा वाले को रोके खड़े थे ताकि वो हमें सामान सहित हरिद्वार रेलवे स्टेशन की पार्किंग तक छोड़ दे जहाँ हमारी प्रिय कार हमारा इन्तेजार कर रही थी। रिक्शा वाला बड़ा ही भला मानस प्रतीत होता था उसने मेरे हाथों से सारा सामान लेकर अपने छोटे से रिक्शा में करीने से सेट कर दिया और फिर हम तीनो को उस पर बैठाकर मात्र सात-आठ मिनट में हमें बताई गयी जगह पर छोड़ दिया। यहाँ से गाड़ी उठाने के बाद बिना किसी ब्रेक के हम लोग हरिद्वार-दिल्ली हाईवे पर सरपट चलते हुए (तीन घंटे) पहुंचे चीतल रेस्टोरेंट जहाँ दोपहर का खाना निबटाया गया, उसके बाद फिर अगले दो घंटे की ड्राइव के बाद मार्गे में ही जैन शिकंजी का स्वाद लिया गया जो प्यास बुझाने के लिए उपयुक्त लगी और अगले ढाई घंटे बाद हम लोग वापिस अपने घर पर पहुँच गए और साथ में था थोड़ा गंगा जल, थोड़ा शॉपिंग का माल, कुछ मनोरम स्मृतियाँ और ढेर सारा गणेश जी, माँ गंगा और माँ मनसा देवी का आशीर्वाद।

मित्रो वक़्त की कमी कहिये या फिर सिटी लाइफ की मजबूरी, अपने इस छोटे से यात्रा वृतांत में अधिक शब्दों का प्रयोग नहीं कर सका और चित्र आदि भी कम ही रखे हैं, किन्तु व्यस्तता की पटरी पर दौड़ती हुई जिंदगी की रेल में सफर करते हुए भी यदि थोड़ा सा वक़्त चुराने और घुमक्कड़ पर आप सब के साथ साँझा करने से ख़ुशी मिलती है तो और क्या चाहिए।

अपनी इस छोटी किन्तु अविस्मरणीय यात्रावृतांत को अब में यहीं समाप्त करता हूँ और आशा करता हूँ की गणेश जी, माँ गंगा और माँ मनसा देवी का आशीर्वाद आप सब पर भी बना रहे।

जय माता दी।

गणेशोत्सव का उत्साह और माँ गंगा का पावन स्नान … हरिद्वार। was last modified: March 7th, 2022 by Arun Singh
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