ये बात उस समय की है जब मैं २२ साल का था, और गाजियाबाद के होटल मे काम करता था, सेलà¥à¤¸ टीम का सदसà¥à¤¯ होने के कारण मà¥à¤à¥‡ देशी और विदेशी लोग को देहली, आगरा और अनà¥à¤¯ जगह घà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ का खूब मौक मिलता था, जिस कारण मैं अपनी घà¥à¤®à¤•ड़ी की इचà¥à¤›à¤¾ à¤à¥€ पूरी कर लेता था, मेरे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के होने की वजह से हमारे होटल के डिरेकà¥à¤Ÿà¤° ने à¤à¤• दिन मà¥à¤à¥‡ बà¥à¤²à¤¾ के कहा की उनकी वाइफ के रिशà¥à¤¤à¥‡à¤¦à¤¾à¤° विदेश से आ रहे है चार धाम की यातà¥à¤°à¤¾ के लिà¤, तो तà¥à¤® ऋषिकेश जा कर गढ़वाल मंडल के गेसà¥à¤Ÿ हाउस की बà¥à¤•िंग करवा दो, (आप लोगो को बता दूठकी गढ़वाल मंडल के होटल चार धाम मे à¤à¥€Â है जो सीजन मे हमेशा बà¥à¤• रहते है और उनकी बà¥à¤•िंग ऋषिकेश ऑफिस से आप करवा सकते है)
जून का महीना था और मैं दोपहर की बस पकड़ कर ऋषिकेश पहà¥à¤š गया, सीधे गढ़वाल माडल के ऑफिस मे जा के पता चला की की à¤à¤ˆ हमे तो चारो धामों मे जा कर ही बà¥à¤•िंग करवानी पड़ेगी कियà¥à¤•ी उनके पास अà¤à¥€ जानकारी नहीं है की कहाठरूम खाली है. अब घà¥à¤®à¤•ड़ी का कीड़ा जाग उठा की जब à¤à¤—वान खà¥à¤¦ दरà¥à¤¶à¤¨ देने की लिठबà¥à¤²à¤¾ रहे है तो तू कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ चिंता करता है, सीधे डिरेकà¥à¤Ÿà¤° साहब को फ़ोन मिलाया की सर यहाठसे बà¥à¤•िंग बंद है चारो धामों मे जा कर ही बà¥à¤•िंग करवानी पड़ेगी आप का कà¥à¤¯à¤¾ आदेश है, उनका जवाब वो ही था जो मैंने सोचा था. डिरेकà¥à¤Ÿà¤° जी का à¤à¤• बंगला मसूरी मे à¤à¥€ है जो ऋषिकेश से १ या १.३० घंटे दूर है, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ कहा की वह किसी को पैसो के साथ ऋषिकेश à¤à¥‡à¤œÂ रहे है, तà¥à¤® पैसे लेके आगे की यातà¥à¤°à¤¾ पे चले जाना. अब पूरी फà¥à¤°à¥à¤¸à¤¤ थी तो लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ à¤à¥à¤²à¤¾ और ऋषिकेश के नजारों के दरà¥à¤¶à¤¨ किये और जानकारी इकà¥à¤•ठा करी की आगे की यातà¥à¤°à¤¾ कैसे की जाये.
जानकारी मिली की पहले यमनोतà¥à¤°à¥€ जाओ फिर गंगोतà¥à¤°à¥€ फिर बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ और केदारनाथ. शà¥à¤¯à¤¾à¤® को वो सजà¥à¤œà¤¨ à¤à¥€ आ गठजो मसूरी से पैसे लाये थे, अचà¥à¤›à¤¾ ये बता दूठकी उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड मे बसे तडके निकाल पड़ती है कियॠकी रूट लमà¥à¤¬à¤¾ होता है, पता चला की सà¥à¤¬à¤¹ ३.३० बजे की बस है यमनोतà¥à¤°à¥€ की, और अà¤à¥€ टिकिट खिड़की बंद हो गयी है और सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ ३.०० बजे खà¥à¤²à¥‡à¤—ी, अब रात काटने के लिठà¤à¤• होटल मे १५० रूपà¤Â मे कमरा लिया और सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ २.३० बजे सो कर उठा, फटाफट मà¥à¤¹ हाथ धो कर सीधे बस अडà¥à¤¡à¥‡ पंहà¥à¤šà¤¾, यातà¥à¤°à¤¾ का समय होने के कारण बहà¥à¤¤ à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी पता चला की यमनोतà¥à¤°à¥€ की बस पूरी फà¥à¤² है पैर रखने की à¤à¥€ जगह नहीं है, तो सोच मे पड़ गया की कà¥à¤¯à¤¾ करू अगर ये बस छूट गयी तो फिर टाइम से यमनोतà¥à¤°à¥€ नहीं पहà¥à¤š पाउà¤à¤—ा (आप को ये बताना जरूरी है की मैं गढ़वाल से तो हूठपर पौड़ी गढ़वाल से, और मà¥à¤à¥‡ टिहरी और चमोली गढ़वाल के बारे मे कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं पता नहीं है.)
अà¤à¥€ सोच ही रहा था की आवाज़ आई कà¥à¤¯à¤¾ तà¥à¤® à¤à¥€ यमनोतà¥à¤°à¥€ जा रहे है, देखा तो २४-२५ साल का नौजवान था, मेरे बोलने से पहले ही वो बोला की मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ यमनोतà¥à¤°à¥€ जाना है, बातो का सिलसिला बढ़ा तो पता चला की वो à¤à¤¯à¤°à¤«à¥‹à¤°à¥à¤¸Â में काम करता है और बंगाल से है (नाम मà¥à¤à¥‡ अà¤à¥€ याद नहीं है) अब à¤à¤• से दो दिमाग हो गठतो पता चला की गंगोतà¥à¤°à¥€ वाली बस पकड़ ले और बडकोट उतर जाये, तो जी चढ़ गठगंगोतà¥à¤°à¥€ की बस मे.. अब ये à¤à¥€ याद नहीं है की कितना टाइम लगा था, सारे रासà¥à¤¤à¥‡ हम दोनों à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ के बारे मे जानकारी लेते रहे.
बडकोट आने पर उतर गठऔर à¤à¤• दà¥à¤•ानदार से यमनोतà¥à¤°à¥€ की जानकारी हासिल करी की कैसे पंहà¥à¤šà¤¾ जाये, उनके आदेश अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤• जीप मे बैठगठजो हमें फूलचटà¥à¤Ÿà¥€ पे उतार गया |
फूलचटà¥à¤Ÿà¥€ से हनà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤šà¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ और फिर यमनोतà¥à¤°à¥€ की चढाई शरू कर दी, हम दोनों ने पैदल है चढाई करने का फैसला किया था, हाठà¤à¤• बात और याद आई की चढाई के समय à¤à¤• बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤— जो दरà¥à¤¶à¤¨ कर के नीचे पैदल आ रहे थे, वो चकà¥à¤•र आने के कारण गिर पड़े, हमने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पानी पिलाया और जो उनके साथ थे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बताया की वो लोग राजेसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ के है और चार धाम यातà¥à¤°à¤¾ पे आये है, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ हम वहां बैठा कर आगे चल पड़े यमनोतà¥à¤°à¥€ सामीप आती जा रही थी और थकान के कारण हमारा बà¥à¤°à¤¾ हाल हो रहा था, मगर à¤à¤• बात दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ जब पहले दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤ यमनोतà¥à¤°à¥€Â के तो सारी थकान उतर गयी.
यमनोतà¥à¤°à¥€ पहà¥à¤š कर हम सीधे गढ़वाल मंडल के रेसà¥à¤Ÿ हाउस मे पहà¥à¤šà¥‡, रेसà¥à¤Ÿ हाउस के केयरटेकर बहà¥à¤¤ सजà¥à¤œà¤¨ निकले उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चाय, पानी की खातिरदारी के बाद हमारी बà¥à¤•िंग के बारे मे पà¥à¤›à¤¾, मैंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ४ कमरे और १० डोमेटà¥à¤°à¥€ की बà¥à¤•िंग करने को कहा और अपने लिठआज रात रà¥à¤•ने के इंतजाम के लिठकहा, उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें कहा की अà¤à¥€ आरती होने वाली है तà¥à¤® लोग पहले नहा लो दरà¥à¤¶à¤¨ करके आ जाना तब तक वो खाने का इंतजाम करते है. नहा के हम सीधे दरà¥à¤¶à¤¨ करने पहà¥à¤šà¥‡, आज मेरा जनà¥à¤®à¤¦à¤¿à¤¨ à¤à¥€ था, माठयमनोतà¥à¤°à¥€ की चरणों के आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ के साथ अपने और अपने परिवार की कामना की.
अब जरा माठयमनोतà¥à¤°à¥€ की जानकारी à¤à¥€ हो जाये .
यमà¥à¤¨à¤¾ नदी की तीरà¥à¤¥à¤¸à¥â€à¤¥à¤²à¥€ यमनोतà¥à¤°à¥€ हिमालय की खूबसूरत वादियों में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यमà¥à¤¨à¤¾ नदी का उदà¥à¤—म कालिंद नामक परà¥à¤µà¤¤ से हà¥à¤† है। हिमालय में पशà¥à¤šà¤¿à¤® गढ़वाल के बरà¥à¤« से ढà¤à¤•े शà¥à¤°à¤‚ग बंदरपà¥à¤šà¥â€à¤› जो कि जमीन से 20,731 फà¥à¤Ÿ ऊà¤à¤šà¤¾ है, के उतà¥â€à¤¤à¤°-पशà¥à¤šà¤¿à¤® में कालिंद परà¥à¤µà¤¤ है। इसी परà¥à¤µà¤¤ से यमà¥à¤¨à¤¾ नदी का उदà¥à¤—म हà¥à¤† है। कालिंद परà¥à¤µà¤¤ से नदी का उदà¥à¤—म होने की वजह से ही लोग इसे कालिंदी à¤à¥€ कहते हैं।
यहाठचावल की छोटी छोटी पोटली को गरम पानी के कà¥à¤£à¥à¤¡ में पकाया जाता है और पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के तौर à¤à¥‹à¤— लगाया जाता है, देखा देखि हमने à¤à¥€ अपनी पोटली गरम करनी शरू कर à¤à¥‹à¤— लगाया. वापस रेसà¥à¤Ÿ हाउस आ कर डिनर का आनंद लिया, और लमà¥à¤¬à¥€ तन कर सो गà¤, सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ ५.०० बजे आंख खà¥à¤²à¥€, बाहर का नजारा देख कर जो अनà¥à¤à¥‚ति हà¥à¤ˆ दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ बयां करना मà¥à¤¶à¥à¤•िल है.
होटल के केयरटेकर से विदा ले कर हम अपने अगले पड़ाव की ओर चल दिया जो था उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी….
हिमालय की सà¥à¤°à¤®à¥à¤¯ घाटी में उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी समà¥à¤¦à¥à¤° तल से à¤à¤• हजार छह सौ इकà¥à¤•ीस फà¥à¤Ÿ की ऊंचाई पर गंगोतà¥à¤°à¥€ मारà¥à¤— पर गंगा-à¤à¤¾à¤—ीरथी के दाà¤à¤‚ तट पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है तथा पूरà¥à¤µ और दकà¥à¤·à¤¿à¤£ की ओर नदी से घिरा है। इसके उतà¥à¤¤à¤° में असà¥à¤¸à¥€ गंगा और पशà¥à¤šà¤¿à¤® में वरणा नदी है। वरणा और असà¥à¤¸à¥€ के मधà¥à¤¯ का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° ‘वाराणसी’ के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। इसे ‘पंचकाशी’ à¤à¥€ कहा जाता है। यह वरà¥à¤£à¤¾à¤µà¤°à¥à¤¤ परà¥à¤µà¤¤ की घाटी में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है तथा इसके पूरà¥à¤µ में केदारघाट और दकà¥à¤·à¤¿à¤£ में मणिकरà¥à¤£à¤¿à¤•ा घाट हैं।
पौराणिक कथाओं के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी में ही राजा à¤à¤¾à¤—ीरथ ने तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी और उनकी तपसà¥à¤¯à¤¾ से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वरदान दिया था कि à¤à¤—वान शिव धरती पर आ रही गंगा को धारण कर लेंगे। तबसे यह नगरी विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ की नगरी कही जाने लगी और कालांतर में इसे उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी कहा जाने लगा।
उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी पहà¥à¤š कर सबसे पहला काम होटल खोजने का किया और हम दोनों ने अपनी आज की और आने वाले गà¥à¤°à¥à¤ª की बà¥à¤•िंग à¤à¥€ करवाई, होटल वाले से पूछने पे पता चल की गंगोतà¥à¤°à¥€ जाने के लिया बस सà¥à¤¬à¤¹à¥‡ ५ बजे के है आप लोग आज शà¥à¤¯à¤¾à¤® को ही टिकिट ले लेना, बात जचीं तो शà¥à¤¯à¤¾à¤® को ही टिकिट ले ली. शà¥à¤¯à¤¾à¤® को विशà¥à¤µà¤¨à¤¾à¤¥ तथा कालà¤à¥ˆà¤°à¤µ, परशà¥à¤°à¤¾à¤®, दतà¥à¤¤à¤¾à¤¤à¥à¤°à¥‡à¤¯ और à¤à¤—वती दà¥à¤°à¥à¤—ा के पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ मंदिरों के दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ कर लिà¤.
अब बढतें है गंगोतà¥à¤°à¥€ की ओर |