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सतपुडा नैरो गेज- बालाघाट से जबलपुर

अभी तक आपने पढा होगा कि मैं सतपुडा इलाके में फैले नैरो गेज के जाल को देखने सबसे पहले छिंदवाडा पहुंचा। छिंदवाडा से नैरो गेज की गाडी में बैठकर शाम तक नैनपुर चला गया। अभी मेरे पास एक दिन और था। सोचा कि बालाघाट चला जाऊं, कल बालाघाट से जबलपुर खण्ड भी देख लेंगे। रात तीन बजे तक बालाघाट जा पहुंचे। यहां से पौने चार बजे एक डीएमयू (78810) चलती है गोंदिया के लिये। गोंदिया भी चले गये।
अब यहां से सफर शुरू होता है वापस जबलपुर का। गाडी नम्बर 78801 सुबह सवेरे सवा पांच बजे गोंदिया से चलकर पौने आठ बजे कटंगी पहुंचती है। यह बालाघाट होते हुए ही जाती है। अच्छा हां, यह रूट यानी गोंदिया से कटंगी तक बडी लाइन है। किसी जमाने में यहां भी नैरो गेज ही थी। लेकिन आमान परिवर्तन करके इसे बडी लाइन में बदल दिया गया है। कटंगी से आगे अभी ट्रेन नहीं जाती है।

यही गाडी 78802 नम्बर से आठ बजकर दस मिनट पर कटंगी से वापस चलती है और साढे नौ बजे बालाघाट पहुंचती है। मैंने कटंगी से ही जबलपुर तक का टिकट ले लिया था। बालाघाट से नैरो गेज की गाडी जबलपुर के लिये चलने को तैयार थी। गाडी नम्बर है 58867 और यह नौ पचास पर बालाघाट से चलती है और शाम को साढे छह बजे जबलपुर पहुंच जाती है। बालाघाट से जबलपुर की कुल दूरी 186 किलोमीटर है और यह गाडी इस दूरी को तय करने में आठ घण्टे पैंतालिस मिनट लगा देती है यानी 21 किलोमीटर प्रति घण्टे की स्पीड से।

तय समय पर गाडी बालाघाट से चल पडी। अपन ने तो उस डिब्बे की खिडकी पर कब्जा कर लिया जिसे महिला और विकलांग डिब्बा कहते हैं क्योंकि यह डिब्बा अपेक्षाकृत खाली था। जैसे-जैसे समय बीतता गया, गाडी में भीड भी बढती गई।

इस खण्ड में कुल 29 स्टेशन हैं-

बालाघाट जंक्शन, धापेवाडा, समनापुर, मगरदर्रा, टिटवा, चरेगांव, लामटा, नगरवाडा, चांगोटोला, गुडरू, पाद्रीगंज, नैनपुर जंक्शन, जेवनारा, पिण्डरई, तुईया पानी, पुतर्रा, निधानी, घंसोर, बिनेकी, शिकारा, देवरी, कालादेही, सुकरी मंगेला, बरगी, चारघाट- पिपरिया, जमतारा परसवारा, ग्वारीघाट, हाऊबाग- जबलपुर और जबलपुर जंक्शन। इनमें निधानी और बिनेकी तो क्रमशः 569.34 और 531.87 मीटर की ऊंचाई वाले हैं।

गर्रा स्टेशन बालाघाट-कटंगी बडी लाइन पर है।



कटंगी स्टेशन

इस स्टेशन पर अभी कोई गाडी नहीं रुकती है।

बालाघाट जंक्शन- जबलपुर जाने वाली नैरो गेज गाडी को हरा सिग्नल मिल चुका है।

लामटा

गुडरू स्टेशन

चांगोटोला स्टेशन

पाद्रीगंज

बारह बजे के आसपास का समय नैनपुर के लिये बडा खास होता है। यहां से चार दिशाओं में लाइनें जाती हैं- जबलपुर, मण्डला फोर्ट, बालाघाट और छिंदवाडा। इस समय यहां चारों तरफ से गाडियां आती हैं और थोडी देर बाद चारों दिशाओं में जाती हैं। इसलिये नैनपुर के चारों प्लेटफार्मों पर गाडियां खडी थी।

तुईया पानी

पुतर्रा

शिकारा स्टेशन

कालादेही हाल्ट

ग्वारीघाट- यहां नर्मदा स्नान के लिये उतरिये।

हाऊबाग- जबलपुर स्टेशन (यहां नैरो गेज की ट्रेनों का डिपो है। इससे अगला स्टेशन जबलपुर जंक्शन है।)

जबलपुर जंक्शन

इस यात्रा में ऐसा हुआ कि मैं प्राकृतिक दृश्यों की वीडियो बनाने में लगा रहा, फोटू भी खींचने हैं यह याद ही नहीं रहा। वीडियो से ही फोटो निकालकर नीचे वाले चित्र लिये गये हैं।

ट्रेन टू जबलपुर

सूर्योदय

गेज परिवर्तन का काम चल रहा है। जगह-जगह स्पीड प्रतिबन्ध लगा रखे हैं। इसका मतलब है कि यहां पर 15 किमी प्रति घण्टे की स्पीड से चलो।

सतपुडा एक्सप्रेस। यह ट्रेन जबलपुर से सुबह बालाघाट के लिये चलती है और इसमें साधारण डिब्बों के अलावा प्रथम श्रेणी के डिब्बे भी हैं। यहां प्रथम श्रेणी का मतलब 1AC नहीं है, बल्कि FC है, यानी नॉन एयरकण्डीशण्ड फर्स्ट क्लास।।

बडी लाइन बिछाने के लिये पुल बनाया जा रहा है।

कुछ स्टेशन साफ सुथरे भी हैं। अक्सर छोटे स्टेशन साफ सुथरे होते भी हैं।

यह हाऊबाग स्टेशन है। जबलपुर-बालाघाट पैसेंजर (58868) जा रही है।

रास्ते में एक नदी

इस खण्ड पर आमान परिवर्तन का काम शुरू हो चुका है। कई जगह नई बन रही बडी लाइन इस छोटी लाइन को काट भी रही है। उम्मीद है कि जल्दी ही इस लाइन को बन्द कर दिया जायेगा। अगर एक बार बन्द हो गई तो सदा के लिये बन्द हो जायेगी।

जबलपुर पहुंचकर वैसे तो दिल्ली आना औपचारिकता थी लेकिन इतना आसान भी नहीं था। बालाघाट-जबलपुर नैरो गेज पैसेंजर शाम साढे छह बजे जबलपुर पहुंचती है। इससे बीस मिनट पहले निजामुद्दीन जाने वाली महाकौशल एक्सप्रेस (12189) जबलपुर से रवाना हो जाती है। इसके बाद उस दिन दिल्ली के लिये कोई ट्रेन नहीं होती। तो फिर कैसे जाया जाये? एक तरीका तो यह है कि किसी भी ट्रेन से इटारसी जाया जाये, फिर वहां से दिल्ली। लेकिन इटारसी से आखिरी ट्रेन रात साढे ग्यारह बजे सचखण्ड एक्सप्रेस मिलती है। अगली दिक्कत कि मुझे अगले दिन दोपहर दो बजे से ड्यूटी भी करनी थी। इसलिये मुझे हर हाल में सचखण्ड एक्सप्रेस पकडनी ही पकडनी थी। जबलपुर से इटारसी ढाई सौ किलोमीटर है और किसी भी हालत में साढे ग्यारह बजे से पहले इटारसी पहुंचना सम्भव नहीं लग रहा था।

अब कुछ हटकर सोचा गया। कटनी के रास्ते बीना चलते हैं और जयपुर जाने वाली दयोदया एक्सप्रेस (12181) से जबलपुर से बीना तक का रिजर्वेशन भी करा लिया गया। बीना से नई दिल्ली तक का रिजर्वेशन कराया गया ट्रेन नं 12192 से, यह ट्रेन जबलपुर से इटारसी के रास्ते आती है और वहां से शाम पौने छह बजे चलती है। बीना से चलती है यह 2 बजकर 10 मिनट पर जबकि दयोदया का टाइम है बीना पहुंचने का ठीक 2 बजे का। यानी अगर दयोदया एक्सप्रेस बिल्कुल ठीक टाइम पर चलती रही तो इसके बीना पहुंचने के 10 मिनट बाद नई दिल्ली वाली ट्रेन रवाना हो जायेगी। यह रिस्क इसलिये लिया गया क्योंकि बीना से केवल 12192 में ही सीट कन्फर्म मिली। बाकी ट्रेनों जैसे सचखण्ड, मंगला लक्षद्वीप, केरला एक्सप्रेस आदि में भयंकर वेटिंग चल रही थी।

रात को ठीक दो बजे अलार्म बजा, मेरी आंख खुली और देखा कि ट्रेन किसी स्टेशन पर खडी है। मेरे पास गंवाने के लिये एक मिनट भी नहीं था, तुरन्त भागा, ट्रेन से उतरा और पता लगाने लगा कि नई दिल्ली वाली ट्रेन (12192) किस प्लेटफार्म पर खडी है। ट्रेन का तो पता नहीं चला लेकिन इतना मालूम पड गया कि यह बीना नहीं बल्कि सागर स्टेशन है। यानी दयोदया एक्सप्रेस एक घण्टे लेट चल रही है। अब तो हो हा ली दिल्ली तक की यात्रा सही सलामत। जब तक यह बीना पहुंचेगी, तब तक 12192 बीना से निकलकर उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश कर चुकी होगी।

खैर, तीन बजे बीना पहुंचे। बराबर वाले प्लेटफार्म पर ही सचखण्ड एक्सप्रेस खडी थी। खडी है तो ठीक है, नांदेड से आई है, अमृतसर जायेगी, ज्यादातर सरदार लोग सफर करते हैं इसमें और…। अरे यह तो नई दिल्ली से ही निकलकर जायेगी। मैं चाहकर भी इसमें नहीं बैठ सकता था क्योंकि मेरे पास दूसरी ट्रेन का टिकट था। लेकिन भला हो मेरे रेल प्रेम का कि मुझे ऐसे हालात में क्या करना चाहिये, इसकी जानकारी थी। मैं तुरन्त प्लेटफार्म नं एक की तरफ दौडा, स्टेशन मास्टर के ऑफिस में पहुंचा, उससे बताया कि देखो दयोदया एक्सप्रेस एक घण्टे लेट थी, उसकी वजह से मेरी नई दिल्ली वाली ट्रेन छूट गई है, अब मुझे सचखण्ड एक्सप्रेस से जाने की अनुमति दीजिये। स्टेशन मास्टर जी बोले कि सचखण्ड तो निकल गई। मैंने कहा कि नहीं, अभी नहीं निकली है। उसने सरकारी स्टाइल में दूसरे से पूछा कि सचखण्ड निकल गई या नहीं। दूसरे ने भी बोल दिया कि निकल गई। मैंने फिर से जोर देकर कहा कि कोई बात नहीं, आप परमिट कर दो। खैर, उसने बिना ट्रेन नंबर लिखे टिकट के पीछे लिख दिया कि ट्रेन लेट थी, वास्तविक ट्रेन निकल गई, इसलिये इसे मंजूरी दी जाती है। और फिर से प्लेटफार्म की तरफ दौड लगा दी। नसीब की बात कि सरकती हुई सचखण्ड एक्सप्रेस मिल गई।

हर सीट भरी थी और सब सोये पडे थे। झांसी जाकर भी सीट नहीं मिली, तब तक उजाला हो गया था। टीटी की सहायता से ग्वालियर में सीट मिल गई। फिर तो नई दिल्ली तक सोता हुआ ही आया और रात दो बजे से अब तक की गई भागमभाग की वजह से जो थकान हुई थी, वो भी उतर गई।

सतपुडा नैरो गेज- बालाघाट से जबलपुर was last modified: June 29th, 2024 by Neeraj Jat
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