लेकिन इस वर्ष एक चमत्कारी घटना घटित हुयी और जून के अंतिम सप्ताह में अचानक पूरे सात दिनों का आराम मिल गया अर्थात सभी मीटिंग्स और ऑफिस वर्क से छुट्टी। दफ्तर में ही एक सहकर्मी ने जब कहीं बाहर घूमने का विचार प्रकट किया तो हमने भी उसे पूरी गंभीरता से लिया और बातों ही बातों में श्री बदरीनाथ जी के दर्शन का कार्यक्रम बना लिया गया जो की दिल्ली से लगभग सवा पांच सौ किलोमीटर दूर है। इस विषय में मैंने अपने घर में जब बात की तो किसी को भी कोई आपत्ति नहीं हुयी और सभी अगले एक हफ्ते तक पर्यटन के मूड में आ गए।
यहाँ पर इस गाड़ी का उल्लेख इसलिए कर रहा हूँ क्यूंकि जैसा की मुझे बताया गया था की पहाड़ी यात्रा पर जाने के लिए अच्छे और बड़े वाहन ज्यादा लाभकारी रहते है ताकि खराब रास्तों पर भी बिना किसी परेशानी के आप की यात्रा सुचारु रूप से चलती रहे। हालाँकि पुरे रास्ते पर मोटर साइकिल से लेकर मारुती 800 तक सभी प्रकार के वाहन हमे दिखाई दिए और हमारी सोच काफी हद तक बदल गयी। दोपहर के दो बजते-बजते हम लोग ऋषिकेश से आगे निकल चुके थे, किन्तु हरिद्वार में बड़ा भयंकर जाम मिला जिसमे हमारा काफी समय नष्ट हुआ, हालाँकि इसके लिए हम पहले से ही तैयार थे क्यूंकि पिछले दिनों की ख़बरों से हमे ज्ञात हो चूका था की पर्यटकों की अधिकता के कारण हरिद्वार से ऋषिकेश की तरफ जाने वाले मार्ग पर ट्रैफिक व्यवस्था पूर्णतः ठप्प हो चुकी है। और वैसे भी हमारे ड्राइवर साब ने एक घंटा तो परमिट लेने में ही लगा दिया था, बता दूँ की बद्रीनाथ धाम जाने के लिए पहले यात्रियों का पंजीकरण होता है जिसके लिए सारी कार्यवाही हमारे ड्राइवर साब ने हरिद्वार में ही की और सरपट गाडी राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर दौड़ा दी।
उनकी धर्मपत्नी ने बताया की पहाड़ों पर यात्रा करते हुए उन्हें भी उल्टियों की समस्या से दो चार होना पड़ता है जिससे बचने के लिए वो अक्सर एक टेबलेट ले लेती है जो यहाँ पर आसानी से मिल जाती है, उसे खाने के बाद जी मिचलाना बंद हो जाता है और यात्रा आराम से पूरी हो जाती है। अपने जैसे ही केस से रूबरू होने के बाद अब बहनाश्री को थोड़ी हिम्मत मिली और हमारे रिसोर्ट के रिसेप्शन से संपर्क करने पर पता चला की उनके पास एक फर्स्ट ऐड बॉक्स है जिसमे वो इस प्रकार की सारी दवाइयां रखते हैं क्यूंकि हर दूसरा यात्री उनसे इस समस्या की ही दवा मांगता है। माहौल थोड़ा सकारात्मक प्रतीत हो रहा था और हमने अपनी यात्रा को कंटिन्यू करने के लिए सोचा, जिसके लिए बहनाश्री की सहमति आसानी से प्राप्त हो गयी, इस शर्त के साथ की यदि दवा ने काम नहीं किया तो हम आधे रस्ते से ही वापिस हो जायेंगे। इस तरह हमारा आज का दिन और हमारी यात्रा के दो दिन पुरे हुए और दिनांक छब्बीस जून को हमने कीर्तिनगर से श्री बद्रीधाम तक की यात्रा करने का निर्णय लिया। इस यात्रावृतांत को अपने अविस्मरणीय अनुभव सहित आपके साथ अगले भाग में साँझा करूँगा, तब तक के लिए जय श्री बद्रीविशाल।