पिछà¥à¤²à¥€ पोसà¥à¤Ÿ में आप लोगों ने पढा कि हम लोग à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग यातà¥à¤°à¤¾ के लिये इनà¥à¤¦à¥Œà¤° से पà¥à¤£à¥‡ पहà¥à¤‚चे, वहां रातà¥à¤°à¥€ विशà¥à¤°à¤¾à¤® करके अगले दिन पà¥à¤£à¥‡ के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ दगड़à¥à¤¶à¥‡à¤ गणपती मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ किये तथा नाशà¥à¤¤à¤¾ करके अपने होटल पहà¥à¤‚च गये…….अब आगे……
आज हमें महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° परिवहन की बस से लगà¤à¤— चार घंटे का सफ़र तय करके पà¥à¤£à¥‡ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर जाना था। अब हमें जलà¥à¤¦à¥€ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर की बस बस पकड़नी थी अत: अपना सामान पेक करके करीब गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बजे होटल चेक आउट करके ओटो लेकर शिवाजी नगर बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª की ओर बढ चले।
पà¥à¤£à¥‡ के होटल में चेक आउट के दौरान
होटल के रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर
पà¥à¤£à¥‡ का मारà¥à¤•ेट बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ लग रहा था लेकिन समय के अà¤à¤¾à¤µ के कारण कà¥à¤› विशेष खरीदारी नहीं कर पाà¤à¥¤ बातों बातों में ओटो वाले ने बताया की पà¥à¤£à¥‡ से और कà¥à¤› खरीदो या न खरीदो लेकिन यहां का लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£ चिवड़ा जरूर लेकर जाना, बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है. à¤à¤• बार खाओगे तो खाते रह जाओगे। खैर..
कà¥à¤› आधे घंटे में आटो वाले ने हमें शिवाजी नगर बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª पर छोड़ दिया, बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª पर पता चला की à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर की बस बारह बजे आà¤à¤—ी। कà¥à¤› देर बाद पता चला की बारह वाली बस फ़ेल हो गई है और अब अगली बस à¤à¤• बजे आà¤à¤—ी, यह सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही हम सब निराश हो गठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚की पà¥à¤£à¥‡ का बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª इतना अचà¥à¤›à¤¾ नहीं था की वहां à¤à¤• डेढ घंटा बैठा जा सके लेकिन कà¥à¤¯à¤¾ किया जाà¤, जाना तो था ही वैसे à¤à¥€ हमें à¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर में रात रà¥à¤•ना था अत: समय की कोई समसà¥à¤¯à¤¾ नहीं थी, बस का इनà¥à¤¤à¥›à¤¾à¤° कर रहे थे की तà¤à¥€ मà¥à¤à¥‡ आटो वाले की चिवड़े वाली बात याद आ गई, मैनें सोचा की बंदा इतनी तारिफ़ कर रहा था तो ले ही लेते हैं।
पà¥à¤£à¥‡ बस अडà¥à¤¡à¥‡ पर इनà¥à¤¤à¥›à¤¾à¤° के पल ….
थोड़ी देर ढà¥à¤‚ढने पर ही बस सà¥à¤Ÿà¥‡à¤‚ड के पास ही à¤à¤• दà¥à¤•ान पर लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£ चिवड़ा मिल गया तो मैनें आधा किलो का à¤à¤• पेकेट ले लिया, बाद में घर लौटने के बाद जब वो चिवड़ा खाया तो वो वाकई लाज़वाब निकला…मैने सोचा काश दो तीन किलो ले आता…….खैर रात गई बात गई।
ठीक à¤à¤• बजे बस आ गई। हमें सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• सीटें à¤à¥€ मिल गई और करीब दस मिनट के बाद ही बस हमारी बस पà¥à¤£à¥‡ से निकल पड़ी। लगातार चलते रहने के बावजà¥à¤¦ à¤à¥€ बस को पà¥à¤£à¥‡ शहर से बाहर निकलने में करीब पौन घंटा लग गया, इसी से मैनें पà¥à¤£à¥‡ की विशालता का अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ लगा लिया था।
पà¥à¤£à¥‡ शहर से निकलते ही मौसम à¤à¤•दम सà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ हो गया था, आसमान काले काले मेघों से ढंक गया था और कà¥à¤› ही देर में हलà¥à¤•ी हलà¥à¤•ी बारीश शà¥à¤°à¥ हो गई थी, सावन का महीना था और बादलों को परमीट मिला हà¥à¤† था कà¤à¥€ à¤à¥€ कहीं à¤à¥€ बरसनॆ का, फिर à¤à¤²à¤¾ वो कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मानने वाले थे। जैसे ही मैंने बस से बाहर à¤à¤¾à¤‚का मेरी आà¤à¤–ें खà¥à¤²à¥€ की खà¥à¤²à¥€ रह गईं। आà¤à¤–ों के समकà¥à¤· हरियाली से लदी छोटी छोटी पहाड़ीयां अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ लग रहीं थीं।
पà¥à¤£à¥‡ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर के रासà¥à¤¤à¥‡ पर
पà¥à¤£à¥‡ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर के रासà¥à¤¤à¥‡ पर
हलà¥à¤•ी मीठी ठंड ने मेरे शरीर में सिहरन पैदा कर दी और मेरा मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ से à¤à¤° गया। चारों ओर à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता था, मानो पà¥à¤°à¤•ृति ने अपने खजाने को बिखेर दिया हो, चारों ओर मखमल-सी बिछी घास, बड़े और ऊà¤à¤šà¥‡-ऊà¤à¤šà¥‡ वृकà¥à¤· à¤à¤¸à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होते थे मानो सशसà¥à¤¤à¥à¤° सैनिक उस रमà¥à¤¯ वाटिका के पहरेदार हैं। पहाड़ीयों से à¤à¤°à¤¤à¥‡ सà¥à¤‚दर à¤à¤°à¤¨à¥‡ वो à¤à¥€ à¤à¤• दो नहीं कई कई, जहाठà¤à¥€ नज़र दौड़ाओ वहीं सौंदरà¥à¤¯ का खजाना दिखाई देता था। इस सà¥à¤‚दर दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ को देखकर अनायास ही मà¥à¤à¥‡ बचपन में पढी सà¥à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾ नंदन पंत की à¤à¤• सà¥à¤‚दर कविता “परà¥à¤µà¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में पावस” याद आ गई जिसकी दो पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ यहां लिखने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा हà¥à¤‚ :
पावस ऋतॠथी, परà¥à¤µà¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶,
पल-पल परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ पà¥à¤°à¤•ृति-वेश।
हरियाली की चादर ओढे धरती इतने सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कर रही थी जिनका वरà¥à¤£à¤¨ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में करना संà¤à¤µ नहीं है, यदि आप सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯-बोध के धनी हैं और सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ आपकी आà¤à¤–ों में बसी है तो मà¥à¤à¥‡ और वरà¥à¤£à¤¨ करने की आवशà¥à¤¯à¤•ता ही नहीं है। कà¤à¥€ आसमान साफ़ हो जाता तो कà¤à¥€ बादल छा जाते, सचमà¥à¤š पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿ पल पल अपना वेश बदल रही थी।
रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤¸à¥‡ कई सारे à¤à¤°à¤¨à¥‡ मिले…
नैसरà¥à¤—िक खà¥à¤¬à¤¸à¥‚रती
आधे रासà¥à¤¤à¥‡ की सड़क अचà¥à¤›à¥€ है और आधे रासà¥à¤¤à¥‡ की कामचलाउ। अचà¥à¤›à¥€à¤µà¤¾à¤²à¥€ सड़क पर यातायात की अधिकता के कारण और कामचलाउ सड़क पर ‘कामचलाउपन’ के कारण वाहन की गति अपने आप ही सीमित और नियनà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¤ रही। सिंगल लेन होने के कारण सामने से और पीछे से आ रहे वाहनों को रासà¥à¤¤à¤¾ देने के कारण, चालक को वाहन की गति अनचाहे ही धीमी करनी पड़ रही थी।
वैसे तो कहा जाता है की पà¥à¤£à¥‡ से à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर पहà¥à¤‚चने में चार घंटे लगते हैं लेकिन सच यह है की बस से पांच घंटे से कम नहीं लगते हैं। पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿ की असीम सà¥à¤‚दरता को निहारते हà¥à¤ हम लोग करीब छ: बजे à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर पहà¥à¤‚चे। मन में इतनी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ थी, जिसका बयान करना मà¥à¤¶à¥à¤•िल है, मà¥à¤à¥‡ तो विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ ही नहीं हो रहा था की हम अनà¥à¤¤à¤¤: वहां पहà¥à¤‚च ही गये जहां जाने की मन में वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से तमनà¥à¤¨à¤¾ थी।
बस ने हमें मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पहà¥à¤à¤š मारà¥à¤— के लगà¤à¤— पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤à¤¿à¤• छोर पर पहà¥à¤à¤šà¤¾ दिया था। मà¥à¤¶à¥à¤•िल से सौ-डेढ सौ मीटर की दूरी पर मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ शà¥à¤°à¥ हो जाती हैं। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पहाड़ी की तलहटी में है सो जाते समय आपको सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ उतरनी पड़ती हैं और आते समय चà¥à¤¨à¥€ पड़ती है। सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ लगà¤à¤— २५० हैं। सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बहà¥à¤¤ ही आरामदायक हैं – खूब चौड़ी और दो सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बीच सामानà¥à¤¯ से à¤à¥€ कम अनà¥à¤¤à¤°à¤µà¤¾à¤²à¥€à¥¤ मंदिर पहà¥à¤‚चने का उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ इतना हावी था की इन सीढियों की थकान हमें पता ही नहीं चल रही थी। सीढियॉं आपको मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पीछेवाले हिसà¥â€à¤¸à¥‡ में पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¤à¥€ हैं। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥, मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के लिठघूम कर जाना पडता है।
बस से जैसे ही उतरे घने कोहरे तथा बारीश ने हमारा सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया, चà¥à¤‚कि हम छाते, रैन कोट वगैरह घर से लेकर नहीं आये थे अत: à¤à¥€à¤—ते हà¥à¤ सीढियां उतरने को मज़बà¥à¤° थे, खैर बारिश जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ तेज नहीं थी अत: जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ परेशानी नहीं हà¥à¤ˆ, लेकिन कोहरा इतना घना था की थोड़ी सी दà¥à¤°à¥€ से à¤à¥€ हम à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ को देख नहीं पा रहे थे, à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था की चारों ओर घà¥à¤ªà¥à¤ª अंधेरा छाया हà¥à¤† है। सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ परेशानी फोटो खिंचने में आ रही थी, कोहरे की वजह से फोटो लेना मà¥à¤¶à¥à¤•िल हो गया था। ये कोहरा तथा बारिश अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ नौ बजे तक यथावत रहे, यानी हमने अपने पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ के दौरान à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर में धूप या साफ़ आसमान तो दà¥à¤° की बात है, उजाला à¤à¥€ नहीं देखा, सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों से बात करने पर मालà¥à¤® हà¥à¤† की à¤à¤¸à¤¾ मौसम यहां लगातार à¤à¤• महीने से बना हà¥à¤† है, यानी à¤à¤• महीने से धूप के दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं हà¥à¤ थे।
कोहरे में डूबे à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶
शिवम…
चà¥à¤‚की हम लोग कà¤à¥€ पहाड़ों पर नहीं गये हैं अत: à¤à¤¸à¤¾ दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯ मैने अपने जीवन में पहली बार देखा था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार, बहà¥à¤¤ ही अदà¥à¤à¥‚त, कà¤à¥€ ना à¤à¥à¤²à¤¾à¤¯à¥‡ जाने वाला दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯…… धà¥à¤‚ध की वजह से हमें सामने की बस तीन चार सीढियां ही दिखाई देती थीं….हम à¤à¥€ बस अपने बैग उठाठआगे की ओर चले जा रहे थे।
कà¥à¤› देर इसी तरह चलते रहे और अचानक सामने मंदिर आ गया जिसे देखकर à¤à¤¸à¤¾ लगा कि हमें अपनी मनà¥à¥›à¤¿à¤² मिल गई, लेकिन अà¤à¥€ इस वकà¥à¤¤ हमें ठहरने के लिये à¤à¤• अदद कमरे की जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ आवशà¥à¤¯à¤•ता थी। चà¥à¤‚कि हमें पहले से पता था की à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर में रात रà¥à¤•ना सबसे बड़ी समसà¥à¤¯à¤¾ है, यहां रà¥à¤•ने की किसी तरह की कोई वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं है, न कोई होटल न धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾, बस कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¥à¤¨à¥€à¤¯ लोग अपने घरों में यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के ठहरने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करते हैं जो की बहà¥à¤¤ ही निमà¥à¤¨ सà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ होती है।
लेकिन हम लोग इस मामले में थोड़े जिदà¥à¤¦à¥€ टाईप के हैं, यदि जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¥€à¤‚ग दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये जा रहे हैं तो उस जगह पर कम से कम à¤à¤• रात तो रà¥à¤•ना ही है, कैसे à¤à¥€, किसी à¤à¥€ हालत में…वो à¤à¥€ मंदिर के à¤à¤•दम करीब। वैसे तो हर तीरà¥à¤¥ पर हम à¤à¤• या दो दिन रà¥à¤•ने की कोशीश करते हैं, लेकिन जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के मामले में à¤à¤•दम ढीठहैं।
à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर मंदिर कोहरे की चपेट में
विशाल राठोड़ की पोसà¥à¤Ÿ से सधनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ लिया गया मंदिर का चितà¥à¤°
विशाल राठोड़ की पोसà¥à¤Ÿ से सधनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ लिया गया मंदिर का चितà¥à¤° - मंदिर सà¤à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹
कविता तथा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को मंदिर की दिवार के पास सामान के साथ खड़ा करके मैं चल दिया कमरा ढà¥à¤‚ढने, à¤à¤• दो जगह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों से पà¥à¤›à¤¾ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ अपने कमरे दिखाये…..बदबà¥à¤¦à¤¾à¤° सीलनà¤à¤°à¥‡ कबà¥à¤¤à¤° खाने की शकà¥à¤² लिये ये कमरे देखकर मैं उपर से निचे तक हिल गया। पलंग, पंखा तो à¤à¥‚ल ही जाओ बाबà¥à¤œà¥€, शौचालय तक नहीं थे उन कमरों में ………..चारà¥à¤œ २५० रà¥à¤ªà¤¯à¤¾, खाने की थाली à¥à¥¦ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡, टायलेट के लिये डिबà¥à¤¬à¤¾ लेकर बाहर जाना होगा, नहाने के लिये घर के बाहर टाट के परà¥à¤¦à¥‹à¤‚ से बनी à¤à¤• छोटी सी खोली। लगातार बारीश, और कंपा देने वाली ठंड में नहाने के लिये गरम पानी की कोई वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं। मैं हताश हो गया ये सब माहौल देखकर, परिवार साथ था, शाम का वकà¥à¤¤ था, रात ठहरना आवशà¥à¤¯à¤• था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि शाम छ: बजे पà¥à¤£à¥‡ के लिये अनà¥à¤¤à¤¿à¤® बस थी जो निकल चà¥à¤•ी थी, और वैसे à¤à¥€ साधन मिल à¤à¥€ जाता तो कà¥à¤¯à¤¾, अà¤à¥€ तो दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¥€ नहीं किये थे।
à¤à¤• कमरा देखा, दà¥à¤¸à¤°à¤¾ देखा, तीसरा देखा…….सà¤à¥€ दà¥à¤° वही कहानी, बारीश में à¤à¥€à¤—े बचà¥à¤šà¥‡ इंतज़ार कर रहे थे और इधर मà¥à¤à¥‡ कोई सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• कमरा नहीं मिल रहा था। मà¥à¤à¥‡ परेशान होता देख à¤à¤• दà¥à¤•ान वाले ने कहा à¤à¤¾à¤ˆ साहब मंदिर के ठीक पिछे à¤à¤• गेसà¥à¤Ÿ हाउस है “शिव शकà¥à¤¤à¤¿” वहां आपको कà¥à¤› सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤“ं वाला कमरा मिल सकता है, मैं तà¥à¤°à¤‚त उसकी बताई दिशा में बढ चला और कà¥à¤› कदम चलते ही मà¥à¤à¥‡ वो गेसà¥à¤Ÿ हाउस मिल गया। दो मनà¥à¥›à¤¿à¤²à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ सा à¤à¤µà¤¨ था यह गेसà¥à¤Ÿ हाउस जो की बहà¥à¤¤ ही बेतरतीब तरिके से बना हà¥à¤† था। उपरी मनà¥à¥›à¤¿à¤² पर आठदस कमरे बने थे तथा निचे केयर टेकर का घर और à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ था। कमरे का चारà¥à¤œ २५० रà¥. और खाने की थाली à¥à¥¦ रà¥. जिसमें तीन रोटी कामà¥à¤ªà¥à¤²à¤¿à¤®à¥‡à¤‚टà¥à¤°à¥€ तथा उसके बाद पà¥à¤°à¤¤à¤¿ रोटी दस रà¥.अलग से।
à¤à¤• लाईन में सराय वाली सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ˆà¤² में कà¥à¤› कमरे बने थे, हालात यहां à¤à¥€ कà¥à¤› जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अचà¥à¤›à¥‡ नहीं थे लेकिन हां कमरे में लाईट के लिये à¤à¤• लटà¥à¤Ÿà¥‚ लटक रहा था, दो लोहे के पलंग लगे थे बिसà¥à¤¤à¤° सहीत, जहां ये आठदस कमरे खतम होते थे वहां à¤à¤• शौचालय बना था….कौमन, लकड़ी के दरवाजे वाला जिसमें अंदर की ओर à¤à¤• सांकल लगी थी और कोने में à¤à¤• पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• का डà¥à¤°à¤® रखा था पानी के लिये…. बस यही à¤à¤• सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ थी इस गेसà¥à¤Ÿ हाउस में जो इसे दà¥à¤¸à¤°à¥‹à¤‚ से अलग तथा विशेष बनाती थी। छत पतरे (टीन) की चदà¥à¤¦à¤°à¥‹à¤‚ की थी।
मैने आनन फ़ानन में इस गेसà¥à¤Ÿ हाउस की केयर टेकर जो की à¤à¤• सतà¥à¤¤à¤° साल की महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¨ बà¥à¤¢à¤¿à¤¯à¤¾ थी, को तीन सौ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पकड़ाठऔर सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ कमरा मिलने की पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ में बौराया सा, बौखलाया सा à¤à¤¾à¤—ा मंदिर की ओर अपने परिवार को लेने…. सामान तथा बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को लेकर जब मैं उस कमरे में पहà¥à¤‚चा तो कमरा देख कर दोनों बचà¥à¤šà¥‡ मासà¥à¤®à¤¿à¤¯à¤¤ से बोले ..पापा आपको यही कमरा मिला था रहने के लिये … मैनें à¤à¥€ उसी मासà¥à¤®à¤¿à¤¯à¤¤ से जवाब दिया, हां बेटा यही कमरा यहां का बेसà¥à¤Ÿ है….सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ है….
थके हà¥à¤, à¤à¥€à¤—े हà¥à¤ हम सब, कमरे में सामान रखते ही बिसà¥à¤¤à¤° पर गिर पड़े। कà¥à¤› देर आराम करने के बाद मंदिर में दरà¥à¤¶à¤¨ आरती आदि का पता किया, शाम साढे सात बजे शयन आरती होनी थी जिसका अब समय हो चला था, अत: हमने सोचा की आरती में शामिल होने तथा पà¥à¤°à¤¥à¤® दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये ये समय सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ उपयà¥à¤•à¥à¤¤ है अत: हम लोग मà¥à¤‚ह हाथ धोकर कपड़े बदलकर मंदिर की ओर चल दिये, गेसà¥à¤Ÿ हाउस मंदिर से इतना करीब था की गेसà¥à¤Ÿ हाउस की सीढियां खतम होते ही मंदिर का परिसर पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहो जाता था।
मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया, कà¥à¤› देर मंदिर के सà¤à¤¾à¤—à¥à¤°à¤¹ का अवलोकन करने के बाद गरà¥à¤à¤—à¥à¤°à¤¹ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करके अपने ईषà¥à¤Ÿà¤¦à¥‡à¤µ के दरà¥à¤¶à¤¨ किये….और इस तरह à¤à¤• और जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ संपनà¥à¤¨ हà¥à¤ और अब आज हम अपने दसवें जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ कर चà¥à¤•े थे।
अपने तय समय पर आरती पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहà¥à¤ˆ, हम सब à¤à¥€ बड़े मनोयोग से आरती में शामिल हà¥à¤ और आरती के बाद पà¥à¤¨: पवितà¥à¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ किये। चà¥à¤‚कि अगसà¥à¤¤ का महीना था, वैसे ही शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं की à¤à¥€à¥œ कम थी और फिर जो लोग पà¥à¤£à¥‡ से बस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये आते हैं वे आमतौर पर शाम छ: बजे तक लौट जाते हैं अत: à¤à¥€à¥œ कम होने की वजह से दरà¥à¤¶à¤¨ बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥‡ से हो गठथे।
à¤à¤• और बात है, यहां à¤à¥€ अनà¥à¤¯ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों की तरà¥à¥› पर कà¥à¤·à¤°à¤£ से बचाव के लिये जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग पर पà¥à¤°à¥‡ समय à¤à¤• चांदी का कवच (आवरण) चढा कर रखा जाता है, जिससे जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं हो पाते हैं। हमने गरà¥à¤à¤—à¥à¤°à¤¹ में पूजा करवा रहे à¤à¤• पंडित जी से आवरण के हटाने के समय के बारे में पà¥à¤›à¤¾ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ बताया की यह आवरण सà¥à¤¬à¤¹ सिरà¥à¥ž आधे घंटे के लिये ५ से ५.३० बजे तक खà¥à¤²à¤¤à¤¾ है, उस समय दरà¥à¤¶à¤¨ किये जा सकते हैं, और हमने यह निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ किया की सà¥à¤¬à¤¹ ५ बजे आकर जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के दरà¥à¤¶à¤¨ करेंगे। अब हमने सà¥à¤¬à¤¹ के अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिये मंदिर के पंडित जी से बात की, हमें अà¤à¥€à¤·à¥‡à¤• के लिये à¤à¥€ सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे का ही समय मिला, यह सà¥à¤¨à¤•र हमारी खà¥à¤¶à¥€ का ठिकाना नहीं रहा, यानी हम बिना आवरण के जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग पर अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• कर पायेंगे…यहां रà¥à¤¦à¥à¤° अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• का चारà¥à¤œ ५५० रà¥. है।
हर जगह और हर समय कोहरा ही कोहरा
सà¥à¤¬à¤¹ के अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• के लिये समय वगैरह तय करके अब हम वापस अपने गेसà¥à¤Ÿ हाउस के उस सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ कमरे में आ गà¤à¥¤ सà¥à¤¬à¤¹ के नाशà¥à¤¤à¥‡ के बाद अब तक कà¥à¤› खाया नहीं था अत: कà¥à¤› ही देर में हम गेसà¥à¤Ÿ हाउस के निचे सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ में पहà¥à¤‚च गये, खाना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अचà¥à¤›à¤¾ नहीं था लेकिन à¤à¥à¤– की वजह से वह खाना à¤à¥€ बहà¥à¤¤ टेसà¥à¤Ÿà¥€ लग रहा था, दà¥à¤¸à¤°à¥€ बात यह थी की खाना à¤à¤•दम गरà¥à¤®à¤¾ गरम सरà¥à¤µ किया जा रहा था, बाहर के à¤à¤•दम ठंडे वातावरण में यह गरà¥à¤® खाना सनà¥à¤œà¥€à¤µà¤¨à¥€ का काम कर रहा था।
खाना खाने के बाद गेसà¥à¤Ÿ हाउस वाली अमà¥à¤®à¤¾à¤‚ से हमने निवेदन किया की हमें सà¥à¤¬à¤¹ दो बालà¥à¤Ÿà¥€ गरà¥à¤® पानी दे दिजिà¤à¤—ा, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ हमारे इस निवेदन को सीरे से खारिज़ कर दिया, हमने फ़िर कहा हमारे साथ छोटे छोटे बचà¥à¤šà¥‡à¤‚ हैं, आप चाहे तो दस बीस की जगह हमसे à¤à¤• बालà¥à¤Ÿà¥€ का ५० रà¥. ले लेना, लेकिन वो नहीं मानी, उनकी दलील यह थी की कई दिनों से सà¥à¤–ी लकड़ी देखने को नहीं मिली है, और गैस की यहां बहà¥à¤¤ किलà¥à¤²à¤¤ है…..खैर निराश होकर हम अपने कमरे में आकर सो गà¤, यह सोच कर की जो à¤à¥€ होगा सà¥à¤¬à¤¹ देखा जाà¤à¤—ा।
खा पीकर हम कमरे में आकर, कà¥à¤› उस गेसà¥à¤Ÿ हाउस के और कà¥à¤› अपने साथ लाठकंबलों को ओढकर चार बजे का अलारà¥à¤® लगा कर सो गà¤à¥¤ मà¥à¤à¥‡ नींद नहीं आ रही थी अत: मैंने टाइम पास करने कॆ लिये खिड़की से बाहर à¤à¤¾à¤‚का, बाहर à¤à¥€ पà¥à¤°à¥€ तरह अनà¥à¤§à¤•ार फ़ैला हà¥à¤† था और दà¥à¤° दà¥à¤° तक रोशनी का कोइ नाम निशान नहीं था। रात à¤à¤° बारिश होती रही…. बारीश की बà¥à¤‚दें टीन की छत पर गिर कर शोर कर रहीं थीं, कà¥à¤› तो बाहर पसरा अंधकार, कà¥à¤› बारिश की अवाज़ें और नई तथा सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ जगह। हममें से कोई à¤à¥€ रात को ठीक से सो नहीं पाया। हमने रात में ही निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया था की बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को सà¥à¤¬à¤¹ जलà¥à¤¦à¥€ नहीं उठाà¤à¤‚गे हम दोनों ही अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करके आ जाà¤à¤‚गे और बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को लौटते समय दरà¥à¤¶à¤¨ करवा देंगे।
सà¥à¤¬à¤¹ ४.३० बजे अलारà¥à¤® ने अपना करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ निà¤à¤¾à¤¯à¤¾, और हम दोनों à¤à¥€ जैसे उसके बजने का ही इनà¥à¤¤à¥›à¤¾à¤° कर रहे थे। हम दोनों जागते ही à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ का चेहरा देखने लगे….कà¥à¤¯à¤¾ होगा? कैसे होगा? बाहर रात à¤à¤° से बारिश हो रही है और अà¤à¥€ à¤à¥€ बारिश अनवरत जारी है, पà¥à¤°à¥‡ माहौल में ठंडक फ़ैली हà¥à¤ˆ है, सनà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤¾ तथा अंधकार पसरा हà¥à¤† है, गरà¥à¤® पानी की कोई वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं है, नहाà¤à¤‚गे कैसे? और à¤à¤¸à¥‡ कई पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ हम दोनों के दिमाग में चल रहे थे।
मेरा मन थोड़ा डांवाडोल हो रहा था, लेकिन कविता ने माहौल की नज़ाकत को समà¤à¤¾ और मà¥à¤à¥‡ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ की हम इतनी दूर सावन के महीने में यहां कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ आये हैं? वो à¤à¥€ इतनी मà¥à¤¶à¥à¤•िलों को à¤à¥‡à¤²à¤¤à¥‡ हà¥à¤, तो फ़िर ठंड और ठंडे पानी से कà¥à¤¯à¤¾ डरना, और रोज़ तो इस तरह की परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¥€à¤¯à¤¾à¤‚ नहीं बनतीं, थोड़ी सी तकलिफ़ के कारण कà¥à¤¯à¤¾ अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• नहीं करेंगे? बस मेरे लिये इतना परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ था, और हम दोनों à¤à¤• à¤à¤Ÿà¤•े में बिसà¥à¤¤à¤° से उठखड़े हà¥à¤à¥¤
और फिर आगे का हाल तो कà¥à¤¯à¤¾ बताउं…हम लोग आवशà¥à¤¯à¤• सामान लेकर किसी योदà¥à¤§à¤¾ के समान निचे आ गये, निचे बाथरà¥à¤® के नाम पर à¤à¤• कमरा था जिसमें दरवाज़ा नहीं था और हां लाईट à¤à¥€ नहीं, अंधेरे के कारण कà¥à¤› दिख नहीं रहा था और बारिश लगातार हो रही थी, मग नहीं दिखाई दिया तो बरसते पानी में बालà¥à¤Ÿà¥€ उठाई और ओम नम: शिवाय के घोष के साथ बरà¥à¥ž जैसे ठंडे पानी की बालà¥à¤Ÿà¥€ को अपने शरीर पर उंढेल लिया……….और इस तरह हमारा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ हो गया, कमरे में जाकर तैयार होकर कमरे की कà¥à¤‚डी लगाकर हम मंदिर की ओर à¤à¤¾à¤—े।
मंदिर में पंडित जी हमारा इनà¥à¤¤à¥›à¤¾à¤° कर रहे थे, आज हमने à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर जी के बिना कवच के दरà¥à¤¶à¤¨ किà¤, सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ किया, पà¥à¤œà¤¨ अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• किया। अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• कà¥à¤› आधा घंटा चला, और फ़िर हम कमरे में आ गठ, बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को जगाया, तैयार किया और सामान वगैरह पैक करके कमरा खाली करके मंदिर पहà¥à¤‚च गà¤à¥¤ अà¤à¥€ à¤à¥€ बारीश हो रही थी और कोहरा छाया हà¥à¤† था। बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨ करवाà¤, हमने à¤à¥€ किये, मंदिर के फोटो खिंचे, जो की कोहरे की वजह से बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¥€ सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ नहीं आ रहे थे।
कोहरा, मंदिर और हम
मंदिर
न मैं दिखाई दे रहा हà¥à¤‚ न मंदिर…फ़िर à¤à¥€ देख लिजिये.
और अब हम पà¥à¤¨: बारिश में à¤à¥€à¤—ते हà¥à¤, कोहरे से à¤à¤¿à¥œà¤¤à¥‡ हà¥à¤ बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª की ओर बढ चले, रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• नाशà¥à¤¤à¥‡ की दà¥à¤•ान से नाशà¥à¤¤à¤¾ किया और कà¥à¤› ही कदमों का सफ़र तय करके बस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤ª पर पहà¥à¤‚च गà¤, जहां पर पà¥à¤£à¥‡ की बस खड़ी थी, इस बस से हमें मंचर तक जाना था मंचर से हमें नाशिक के लिये बस पकड़नी थी…..अपने अगले पड़ाव यानी तà¥à¤°à¥à¤¯à¤‚बकेशà¥à¤µà¤° के लिये।
अपने ईषà¥à¤Ÿà¤¦à¥‡à¤µ के दरà¥à¤¶à¤¨ की तृपà¥à¤¤à¤¿ इस यातà¥à¤°à¤¾ की हमारी सबसे बड़ी और à¤à¤• मातà¥à¤° उपलबà¥à¤§à¤¿ रही। बिना माà¤à¤—ी सलाह यह है कि यदी आप में शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और à¤à¤•à¥à¤¤à¥€ की थोड़ी सी à¤à¥€ कमी है तो यहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ से पहले लौटने की चिनà¥à¤¤à¤¾ और वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ अवशà¥à¤¯ कर लें, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚की यह शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ का परिकà¥à¤·à¤¾ केंदà¥à¤° है…..à¤à¤—à¥à¥›à¤¾à¤® सेंटर।
लौटते समय à¤à¥€ कोहरा
अलवीदा à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर ..
मंचर तक इसी बस में जाना है….
अगली तथा अनà¥à¤¤à¤¿à¤® पोसà¥à¤Ÿ में मेरे साथ तà¥à¤°à¥à¤¯à¤‚बकेशà¥à¤µà¤° तथा शिरà¥à¤¡à¥€ चलने के लिये तैयार रहीयेगा….अगले संडे….तब तक के लिये हैपà¥à¤ªà¥€ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी………
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कà¥à¤› जानकारी à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर के बारे में, आवशà¥à¤¯à¤• समà¤à¥‡à¤‚ हो तो पढ लीजियेगा:
à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर मंदिर महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° के à¤à¥‹à¤°à¤—िरि गांव जो की खेड़ तालà¥à¤•ा से 50 कि.मि. उतà¥à¤¤à¤°-पशà¥à¤šà¤¿à¤® तथा पà¥à¤£à¥‡ से 110 कि.मी. में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यह पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ घाट के सहà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¥à¤°à¤¿ परà¥à¤µà¤¤ पर 3,250 फीट की ऊंचाई पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यहीं से à¤à¥€à¤®à¤¾ नदी à¤à¥€ निकलती है जो की दकà¥à¤·à¤¿à¤£ पशà¥à¤šà¤¿à¤® दिशा में बहती हà¥à¤ˆ आंधà¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के रायचूर जिले में कृषà¥à¤£à¤¾ नदी से जा मिलती है। यहां à¤à¤—वान शिव के à¤à¤¾à¤°à¤¤ में पाठजाने वाले बारह जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों में से à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग है।
आप यहां सड़क और रेल मारà¥à¤— के जरिठआसानी से पहà¥à¤‚च सकते हैं। पà¥à¤£à¥‡ के शिवाजीनगर बस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤• से à¤à¤®à¤†à¤°à¤Ÿà¥€à¤¸à¥€ की सरकारी बसें रोजाना सà¥à¤¬à¤¹ 5 बजे से शाम 4 बजे तक पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤ƒ हर घणà¥à¤Ÿà¥‡ में à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर के लिठमिलती हैं जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पकड़कर आप आसानी से à¤à¥€à¤®à¤¶à¤‚कर मंदिर तक पहà¥à¤‚च सकते हैं किनà¥à¤¤à¥ लौटते समय अनà¥à¤¤à¤¿à¤® बस (à¤à¥€à¤®à¤¾ शंकर से) शाम 6 बजे है। शिवाजी नगर बस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤• के पास से ही पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤µà¥‡à¤Ÿ टैकà¥à¤¸à¤¿à¤¯à¤¾à¤ à¤à¥€ मिलती हैं लेकिन उनकी नियमितता निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ नहीं है। महाशिवरातà¥à¤°à¤¿ या पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• माह में आने वाली शिवरातà¥à¤°à¤¿ को यहां पहà¥à¤‚चने के लिठविशेष बसों का पà¥à¤°à¤¬à¤¨à¥à¤§ à¤à¥€ किया जाता है। ।
à¤à¥€à¤®à¤¾à¤¶à¤‚कर मंदिर नागर शैली की वासà¥à¤¤à¥à¤•ला में बना à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ और नई संरचनाओं का समà¥à¤®à¤¿à¤¶à¥à¤°à¤£ है। इस मंदिर से पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ विशà¥à¤µà¤•रà¥à¤®à¤¾ वासà¥à¤¤à¥à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ªà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की कौशल शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ ता का पता चलता है। इस सà¥à¤‚दर मंदिर का शिखर नाना फड़नवीस दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ 18वीं सदी में बनाया गया था। कहा जाता है कि महान मराठा शासक शिवाजी ने इस मंदिर की पूजा के लिठकई तरह की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° काफी पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण à¤à¤µà¥à¤¯ और लमà¥à¤¬à¤¾-चौड़ा नहीं है और न ही मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का मणà¥à¤¡à¤ªà¥¤ सब कà¥à¤› मà¤à¥Œà¤²à¥‡ आकार का।
गरà¥à¤à¤—ृह में जन सामानà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ वरà¥à¤œà¤¿à¤¤ है। सनातनधरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के तमाम तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ की तरह यहाठà¤à¥€ शिव लिंग के चितà¥à¤° लेना निषेधित है। गरà¥à¤à¤—ृह के बाहर, à¤à¤• दरà¥à¤ªà¤£ लगाकर à¤à¤¸à¥€ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की गई है कि मणà¥à¤¡à¤ª में खड़े रहकर आप शिवलिंग के दरà¥à¤¶à¤¨ कर सकें। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का रख-रखाव और साफ-सफाई ठीक-ठाक है।