एक दो बार अजमेर और पुष्कर की यात्रा का अवसर मुझे पहले भी प्राप्त हुआ था, पर कभी भी मेले के दौरान नहीं जा पाया I हर बार स्थानीय लोगों से मेले के दौरान पुष्कर की महिमा के लम्बे लम्बे चर्चे सुने, खाली सूना मेला प्रांगण देखा और चला आया I हर वर्ष यह मेला अक्टूबर से नवम्बर के माह में आयोजित होता है और इस साल इसका आयोजन 28 अक्टूबर से 4 नवम्बर के बीच किया गया I इस बार फुर्सत के वक़्त जब मेले का कार्यक्रम देखा ,तो सोचा शायद ऐसा मौका फिर मिले न मिले, और मैं पुष्कर की यात्रा पे निकल पड़ा I
राजस्थान सड़क परिवहन के मामले में हाल में काफी विकसित हुआ है, चार चार लेन के राजमार्ग से ज़्यादातर महत्वपूर्ण शहरों को जोड़ा गया है और उनपर लगातार चलने वाली वॉल्वो बसे पर्यटकों के लिए आने-जाने का बड़ा सुगम साधन बन गयी हैं, वर्ना ट्रेन के रिज़र्वेशन या प्लेन के किराए घटने के इंतज़ार में कई सारी यात्राएं तो लैपटॉप/मोबाइल में ही दम तोड़ देती हैं पर मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ I इत्तेफाक से लखनऊ से अजमेर के लिए सीधी वॉल्वो बस सेवा है, जिसका मैंने तत्काल लाभ उठाया I अभी ये बता दूं की चूकि, पुष्कर अजमेर जिले में आता है और वहां से महज़ 14 किमी की दूरी पर है इसलिए पुष्कर जाने के सीधे रास्ते न खोजें, ट्रेन /बस और अब विमान सेवा (अजमेर का किशनगढ़ एयरपोर्ट प्रारम्भ हो गया है ) सब अजमेर होकर ही मिलेंगे ! अजमेर से पुष्कर जाने हेतु टैक्सी , टैम्पो और बस लगातार उपलब्ध रहते हैं, चूंकि हमारी बस जिस स्टैंड पर समाप्त हुई वहीँ से पुष्कर की सीधी बस मिल रही थी तो हम मात्र 11 रु के टिकट पर पुष्कर बड़े ही आराम से पहुँच गए I
पुष्कर चूंकि देश विदेश के बड़े सारे सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है , अतः यहाँ छोटा शहर होने के बावजूद हर तरह के होटल / हॉस्टल उपलब्ध हैं I मेले के समय होटल में जगह मिलना थोडा मुश्किल होता है इसीलिए एक दो दिन पहले से बुकिंग करने में ही समझदारी है I पुष्कर जाकर आपको एहसास होगा की ये बड़ा छोटा सा शहर है , सारे शहर का केंद्र पुष्कर सरोवर है, जो आयत के आकार का है और इसके चारों तरफ बने घाटों और मंदिरों में ही पुष्कर की आत्मा बसती है I विश्व प्रसिद्ध ब्रह्मा मंदिर भी सरोवर के तट पर ही है, घाटों को जोड़ने वाले इन रास्तों पर श्रद्धालु परिक्रमा भी करते हैं I परिक्रमा के इस रास्ते पर कई सारे मंदिर, सराय, धर्मशालाएं, साज सज्जा के सामनो की दुकानें, खाने पीने की दुकाने, कैफेस आदि खुल गए हैं जो मिलकर इसे एक बेहतरीन वाकिंग मार्केट की शक्ल देते हैं, इस वाकिंग मार्केट को ‘स्पिरिचुअल वाकवे’ (आध्यात्मिक परिक्रमा मार्ग ) का नाम दिया गया हैI
पुष्कर मेले में भारत के कोने कोने से ही नहीं , विश्व के 40 से ज्यादा देशों के लोग आते हैं और मेले की धूमधाम का आनंद उठाते हैं I मेला ग्राउंड्स में होने वाले मुख्य कार्यक्रमों में तरह तरह के स्थानीय लोकगीत और लोकनृत्य तथा तरह तरह की प्रतियोगिताएं जैसे पुरुषों की मूछों की प्रतियोगिता, महिलाओं की मटका दौड़, ऊटों की दौड़ और सुन्दरता की प्रतियोगिता , कबड्डी , वालीबाल , क्रिकेट और महिलाओं हेतु म्यूजिकल चेयर का आयोजन किया जाता है ! इसके अतिरिक्त गायन और प्रस्तुति के लिए ‘वाइस ऑफ़ पुष्कर’ के कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है I बड़े बड़े कलाकारों, गायकों, वादकों की प्रस्तुतियां भी होती हैं I
मेले के दौरान पुष्कर के मंदिरों और घाटों को विशेष रूप से सजाया जाता है और पूजा अर्चना भी की जाती है, मेले का समापन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होने वाली विशेष पूजा अर्चना से होता है I अपने तीन दिन के कार्यक्रम के दौरान हमें ऊटों की प्रतियोगिता, कबड्डी, वालीबाल की प्रतियोगिताएं देखने का अवसर मिला, स्थानीय लोगों और पर्यटकों के उत्साह के कारण इन प्रत्योगिताओं में रोमांच देखने लायक होता है I पर्यटकों को लुभाने के लिए फिल्म ‘लगान’ सरीखा क्रिकेट मैच जिसमे विदेशी और भारतीय खिलाड़ियों की टीमें खेलती है और महिलाओं का म्यूजिकल चेयर जिसमे देशी और विदेशी दोनों ही प्रतिभाग करते हैं भी आयोजित किया जाता है और कहने की ज़रूरत नहीं पूरे मेले में सर्वाधिक रोमांच इन्ही प्रतियोगिताओं में होता है I म्यूजिकल चेयर के दौरान तो रोमांच इतना चरम पर था की अंतिम दो प्रतिभागी जिनमे एक स्थानीय और एक विदेशी महिला थी, निर्णायक गण अंतिम विजेता का फैसला ही न कर सके और दोनों दलों के अपार जन समर्थन के चलते दोनों ही प्रतिभागियों को संयुक्त विजेता घोषित करना पड़ा I
हम भारतीय मेले में घूमे और पेटपूजा का ख्याल न आये ऐसा तो हो नहीं सकता, पुष्कर में भी जगह जगह राजस्थानी और यहाँ का स्थानीय भोजन आपकी भूख मिटाने हेतु उपस्थित है I स्पिरिचुअल वाकवे में स्थित तमाम बेहतरीन खाने पीने की दुकानों में पुष्कर की मशहूर रबड़ी और गुलकंद युक्त मक्खनिया लस्सी का आनंद कोई कैसे भूल सकता है, इसके अलावा मीठे में मालपुआ और नमकीन में कढ़ी कचौरी और जोधपुर के मशहूर मिर्ची के पकौड़े भी बेहतरीन रहे, राजस्थान का मशहूर दाल बाटी चूरमा तो यहाँ उपलब्ध है ही इसके अलावा विश्व के तमाम देशों की व्यंजन तरह तरह के विदेशी भोजन के कैफेस में आराम से उपलब्ध है I
पुष्कर का मेला चकाचौंध भरा एक आयोजन मात्र नहीं हैं, यहाँ खेलों, झूलों और तमाम बड़े कलाकारों की प्रस्तुतियों के बीच, ग्रामीण कलाकार के इकतारे की मीठी धुन बरबस ही आपका ध्यान खींच लेती है, लोकगीत और लोकनृत्यों की अद्भुत स्वरलहरियों से मन भर भी जाए तो पुष्कर सरोवर घाट की संध्या आरती को देखना बड़ा सुकून देता है और आरती के उपरान्त पूरी शाम घाट पर गुंजायमान रहने वाली ‘राम राम सा’ की धुन तो हमेशा के लिए ह्रदय में बस जाती है I मेले में उमड़े देश विदेश के अपार जनसमूह को देखके अक्सर यह विचार मन में आया कि रेगिस्तान में बसे इस छोटे से कसबे के मेले और साधारण मिटटी से जुड़े इन किसानो के जीवन में क्या ऐसा है जो दुनिया के बड़े बड़े देशों के सैलानी इन्हें देखने यहाँ आते हैं, फिर मन ही मन लगा की शायद ये मेला इनके बीच के तमाम परदों को एकदम से हटा देता है, जिसके बाद रह जाता है मात्र एक इंसान जो अपने ही समान दूसरे इंसान से सीधे मिलता है और संवाद करता है I