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भाग8: रुम्त्से (Rumtse) – कोकसर – मणिकरण – सुंदरनगर – नॉएडा…………… 16/17/18-सितम्बर

इस यात्रा मे सबसे अच्छी नींद रुम्त्से मे आई थी। रात को सोने से पहले खूब मौज-मस्ती जो की थी। आज सुबह हम लोग 6 बजे उठे थे। चाय पीने के बाद और दुकानदार का हिसाब-किताब करके हम गाड़ी मे जा बैठे। तभी बगल वाली दुकान से एक आदमी भागते हुए आया। उसने कहा की अगर आप लोगों को आपत्ति न हो तो मुझे भी मोरे प्लेन्स (Moree Plains) तक ले चलो। हमे क्या आपत्ति होनी थी उल्टा गाड़ी के अंदर जितने ज्यादा लोग उतनी ज्यादा गर्मी। वो अपने सामान के साथ पिछली वाली सीट मे बैठ गया। हमने पुछा भाई मोरे प्लेन्स (more plains) जैसी जगह मे उतर कर क्या करोगे। वहां पर तो कुछ भी नहीं है। पता चला की वो एक गाइड है और कुछ फिरंगी लोगों को ट्रैकिंग पर ले जाने वाला है। ओह अब समझ मे आया की सामान मे लकड़ी के डंडे नहीं बल्कि ट्रेकिंग स्टिक्स है। चलो देर से आए पर दुरुस्त आए। गाइड को मोरे प्लेन्स पर उतार कर हम लोग “ताग्लंगला ला” की ओर बढ़ने लगे। आज “ताग्लंगला ला” पर हल्की बर्फ की चादर सी बिछ लगी थी। वहाँ पर बहुत तेज़ हवा चल रही थी। हरी बर्फ को देख कर इतना खुश और उत्साहित हो गया कि टी-शर्ट (T-Shirt) मे ही फोटो खिचाने लगा।

Hari in T-shirt.



यहाँ से आगे चल कर हमे पैंग पर रुकना था। ये वही मनहूस जगह है जहाँ पर हम लोग पूरी रात सो नहीं पाए थे। यहाँ पर रुकने का मन तो नहीं था पर राहुल का मोबाइल खो जाने की वजह से फिर इस जगह के दर्शन करने पड़े। हम लोग टेंट के अंदर गए और आंटी हमे देख कर मुस्करा उठी। उन्होंने मोबाइल संभाल के रखा हुआ था ये सोच कर की शायद अगर हम इसी रास्ते से वापस आए तो हमे मोबाइल मिल जाएगा। उनका ये स्वाभाव देख कर मन पिघल सा गया था। मोबाइल मिल जाने की वजह से राहुल बहुत खुश था। हम सब भी खुश थे क्यूँकि मोबाइल की वजह से हमे इसी रास्ते से वापस जाना पड़ रहा था अन्यथा हम तो कारगिल होते हुए जाने वाले थे। अगर मोबाइल नहीं मिलता तो बहुत निराशा होती। आंटी को दिल से धन्यवाद देकर हम आगे की ओर चल दिए।

आज हमारा कोई प्लान नहीं था कोशिश सिर्फ ये थी की जितना हो सके उतनी दूरी तेय करनी थी। अगर रोहतांग पार कर लेते तो मनाली मे रात बिताते पर ऐसा नहीं हुआ। आज मौसम बहुत छुपन-छुपाई खेल रहा था। कभी धुप, कभी कोहरा, कभी बारिश की बूँदे। ऐसा लग रहा था की हमे डराने की कोशिश हो रही हो। रास्ते के किनारे बर्फ भी जमी हुई थी। इस वक़्त गाड़ी मैं चला रहा था। इस बार कहीं न कहीं मेरे अंदर डर था। सड़क गीली थी इसलिए मैं गाड़ी धीरे चला रहा था। कोहरा बढ़ने लगा था और काले बादल मंडराने लगे थे। राहुल ने कहा की आगे पक्का बारिश हो रही होगी। ऐसा लग रहा था कि गाड़ी बादलों मे दौड़ रही है। एका-एक बादल गरजने लगे और साथ ही मेरे अंदर का डर भी बढ़ने लगा। देखते ही देखते जोरों से बर्फ़बारी होने लगी। हरी पागल सा हो गया था। मैंने गाड़ी की सारी लाइट जला दी और साथ मे पार्किंग इंडिकेटर भी चालू कर दिए। आज कई घंटो हो चले थे पर कुछ गिनी चुनी गाड़ियाँ ही नज़र आई थी। यही सोच कर बीच सड़क मे ही गाड़ी रोक दी क्यूँकि स्नो फॉल देख कर हरी बावला हो चला था। हरी साउथ का रहने वाला था पहली बार तो पहाड़ो मे आया था और ऊपर से स्नो फॉल का Live Telecast देख कर अपना नियंत्रण खो बैठा था।

बावला हरी।

इतना उत्साहित कि खुद ही अपने ऊपर बर्फ़ के टुकड़े डाल लिए।

एक फ़ोटो मेरा भी।

यहाँ से आगे निकलने के बाद हमे साफ़ मौसम के दर्शन नहीं हुए। कहीं पर धुंध तो कहीं पर बारिश। शाम के चार बजे तक हम केलोंग (Keylong) पहुँच गए थे। पर ये तेय हो गया था कि हम आज रोहतांग पार नहीं कर सकते थे। बारिश के कारण पहाड़ों से छोटे-मोटे पत्थर सरक कर सड़क पर आ गए थे। बड़ी ही सावधानी से चलना पड़ रहा था। तभी आगे ट्रैफिक जाम मिल गया। कुछ पैदल चालकों से पता चला की माल से लदी हुई जीप गड्डे मे फँस गयी है उसको निकालने का काम चल रहा है पर थोडा टाइम लगेगा। मैंने तुरंत गाड़ी का इंजन बंद कर दिया। क्यूँकि इस ट्रिप मे गाड़ी के साथ दो घटनाएँ हमारे साथ भी हो चुकी थी। एक बार अंकल का Dare Devil वाला स्टंट और दूसरी बार मेरे द्वारा Over Confident होकर गाड़ी का एक टायर रेत मे फँसा डालना और इसके ऊपर से अंकल की कोशिश करने के बाद चारों टायर का रेत मे धँस जाना। अंकल की इस कोशिश को अब आप सोने-पर-सुहागा कह लो या शेर-के-ऊपर-सवा-शेर। करीब आधे घंटे के बाद जाम खुल गया।

केलोंग से टांडी, सिस्सू होते हुए हम कोख्सर (Kokhsar) पहुँच गए। गाड़ी को एक टेंट के बाहर खड़ा करके हम लोग सबसे पहले फ्रेश हुए। इसी टेंट मे रात गुजारने के लिए चार बिस्तर ले लिए। रम (Rum) के साथ अंडा भुर्जी का आनंद लिया गया। टेंट के अंदर लगे dish tv पर एक पिक्चर देखी, अभी नाम याद नहीं आ रहा है। उसके बाद मटन और चांवल खा कर बिस्तर की और चल दिए। आदत के मज़बूर अंकल आज भी गाड़ी के अंदर ही सोए। सही माने तो इन बिस्तर से ज्यादा आराम देह तो गाड़ी की सीट ही हैं।

अगली सुबह हम लोग आराम से उठे। मैं राहुल और हरी चंद्रा नदी के पास फ्रेश होने चले गए। वहीँ पर दन्त-मंजन और हाथ-मुह भी धो डाले थे। पिछली रात का हिसाब रात मे ही कर डाला था। चाय-बिस्कुट खाकर हम यहाँ से निकल पड़े। अब हम रोहतांग की और चढ़ाई कर रहे थे। आज अच्छी धुप निकली हुई थी। सुबह के नज़ारे बहुत मनमोहक थे। ऐसे नज़रों का स्वाद बिना चखे आगे बढ़ने का मन नहीं किया और गाड़ी को एक बार फिर से रोक दिया।

रोहतांग पहुँचने से 2-3 km पहले।

Rejuvenated Rahul. Clouds in the backyard.

एक फोटो मेरा भी।

यहाँ से बिना रुके हम करीब 11 बजे मनाली पहुँच गए। मेन मार्किट मे ही भोजन कर लिया और फिर से हम चल दिए। आज हम मणिकरण जाने वाले थे। मणिकरण मे एक गुरुद्वारा है और उसी के पीछे एक शिव मंदिर भी है। मनाली से मणिकरण करीब 80 km की दूरी पर है। कुल्लू के पास सेब की मंडी दिखी गाड़ी रोक कर दो पेटी सेब खरीद लिए। एक पेटी लाल सेब और दूजी हरे वाले गोल्डन सेब। 30 – 40 रुपया प्रति किलो के हिसाब से सेब बिक रहा था। इसके विपरीत दिल्ली/नॉएडा मे तो आग लगी हुई थी, मेरा मतलब 80 – 110 रुपया प्रति किलो। कुल्लू से आगे भुन्टर के बाद हमने गाड़ी दाएँ और मणिकरण जाने वाले रास्ते की और मोड़ ली। यहाँ से सड़क की चौड़ाई थोड़ी कम हो गयी थी और थोडा टूटा-फूटा भी था। मणिकरण से 2-3 km पहले एक कसोल (kasol) नाम की जगह आती है यहाँ पर बहुत फिरंगी लोग रहने आते हैं या यूँ कहा जाये की छुटियाँ मानाने आते हैं। यह जगह मिनी इजराइल (mini israel) के नाम से भी मशहूर है। ये लोग यहाँ मौज-मस्ती करने आते है। मेरा कभी विचार बनेगा तो इस जगह 2-3 दिन ज़रूर ठहरूँगा। इस जगह को पार करने के बाद हम दोपहर के 2:30 बजे मणिकरण गुरूद्वारे पहुँच गए थे।

मेरे पास गुरूद्वारे का एक ही फोटो है, वो भी साइड से लिया हुआ है। सामने से लिया हुआ फोटो राहुल, हरी या मनोज के पास जरूर होगा पर उन लोगों से माँगने मे इस पोस्ट की छपाई मे विलम्ब न हो जाए इसलिए साइड से लिया हुआ फोटो ही लगा दिया है। इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ।

मणिकरण गुरुद्वारा।

यहाँ पर पारवती नदी बहती है और प्रकिर्तिक गर्म पानी के स्रोत है। इन्ही स्रोत के पानी को गुरूद्वारे के एक कुंड इक्कठा किया हुआ है। हम दर्शन करने से पहले गुरूद्वारे मे बने टॉयलेट मे फ्रेश हुए। इसके बाद गर्म पानी के कुंद मे जाकर नहाए। नाहने के बाद सारी थकान मिट गयी थी और हम फिर से बिलकुल hot & young फील कर रहे थे। :-)

मैं, राहुल और हरी गर्म पानी के कुंड मे।

इसके बाद हमने गुरूद्वारे मे दर्शन किए और वहीँ लंगर खाया। इसके बाद कुछ देर सेवा मे बर्तन धोए। सेवा देकर बहुत अच्छा लगा।

दुरुद्वारे से पीछे की तरफ बाज़ार से होते होए हम अब शिव मंदिर जा पहुँचे। गुरुद्वारा और मंदिर एक दूसरे से बिलकुल सटे हुए हैं। यहाँ पर अंदर से एक दरवाज़ा है जो की वहाँ के कर्मचारियों के लिए है। आम जनता के लिए नहीं। शिव मंदिर मे भी गर्म पानी एक छोटा सा कुंड है जिसमे दाल और चाँवल उबल रहे थे। हमारे वहां पर पहुँचते ही एक सरदार जी आए और रस्सी खींचने लगे। हमने देखा कि उस रस्सी से दो बर्तन लटके हुए थे, उन्होंने बर्तन के मुख से कपड़ा हटा कर देखा और चाँवल वाला भगोना लेकर चले गए और दाल वाला फिर से उबलने के लिए कुंड मे डाल गए। हमने सोचा सही है भाई गैस का तो खर्चा तो एकदम बच गया।

मंदिर के दीवार पर मणिकरण का महात्मय लिखा हुआ। सच कहूँ तो मैंने आज तक इसको पढ़ा नहीं है। आप लोगों की जानकारी के इस फोटो को लगा रहा हूँ।

मंदिर के दीवार पर शिव प्रतिमा। धुएँ से अंदाजा लगा लो कि कुंड का पानी कितना गर्म है।

कुंड मे खौलता हुआ पानी।

मंदिर के प्रांगन मे शिव जी के नन्दी बैल।

यहाँ से शाम के करीब 5 बजे हम चल दिए थे। हमारे प्लान के मुताबिक सब जगह के दर्शन हो गए थे, अब हमे सिर्फ घर वापस पहुंचना था। तेय हुआ की जब भूख लगेगी और नींद आने लगेगी तभी गाड़ी रोक लेंगे। रात के 8:30 बजे हम सुंदर नगर जा पहुँचे। यहाँ पर एक होटल मे दो रूम ले लिए। एक बोतल खुराक लेने के बाद डिनर किया और सो गए।

अगले दिन सुबह 8:00 बजे घर की तरफ दौड़ पड़े। शाम 7 बजे राहुल को घर छोड़ा और यहीं पर सबने अंकल का हिसाब-किताब भी दे दिया। वैसे तो अंकल के 2000/- प्रतिदिन के हिसाब से 20000 रुपया बनता था लेकिन अंकल ने गाड़ी की इंजन पैकिंग की मरम्मत के लिए 2000 रुपया एडवांस ले लिया था, वो कट कर उनको 18000 रुपया पकड़ा दिया। वो बहुत खुश हुए। अंकल ने आखिर मे कह डाला कि “आप लोगों की बदौलत मे भी लद्दाख देख आया हूँ। अन्यथा जिन्दगी मे कभी जाने का मौका नहीं मिलता”। राहुल को अलविदा कर दिया। हम सब लोग थोडा इमोशनल हो गए थे। 10 दिन एक साथ ऐसे सफ़र पर रहने से और एक दुसरे पर बिना संदेह भरोसा करने से दिल के तार जुड़ ही जाते हैं। यहाँ से अंकल ने मुझे घर छोड़ा। यहाँ से हरी और मनोज को वो दिल्ली एयरपोर्ट छोड़ने निकल पड़े। अगली सुबह हरी और मनोज का कॉल आया की वो सकुशल पहुँच गए थे।

तो इसी रही हमारी 10 दिन की लद्दाख यात्रा…..आशा तो है की अगली लद्दाख यात्रा मे इस सबसे हटकर असली लद्दाख देखूँगा…..देखते हैं कब मौका मिलता है।

भाग8: रुम्त्से (Rumtse) – कोकसर – मणिकरण – सुंदरनगर – नॉएडा…………… 16/17/18-सितम्बर was last modified: March 5th, 2025 by Anoop Gusain
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