मधà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के शहरों में à¤à¤• शहर है इंदौर. चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¿à¤• फैलता हà¥à¤† यह शहर मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ राजà¥à¤¯ की वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤• राजधानी मानी जाती है. मà¥à¤‚बई से किसी à¤à¥€ मामले में कम नहीं. मà¥à¤‚बई की समà¥à¤¦à¥à¤° से निकटता को यदि छोड़ दिया जाय, तो à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› à¤à¥€ नहीं जो इंदौर में नहीं. दो जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚गों के नजदीक और नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ नदी के तट पर बसा यह à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ शहर है, जो मधà¥à¤¯ काल में होलकर मराठाओं की राजधानी रह चà¥à¤•ा है. हर पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ शहर की तरह इस शहर को à¤à¥€ दो à¤à¤¾à¤—ों में पारिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ किया जा सकता है- नया इंदौर और पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ इंदौर. जहाठà¤à¤• तरफ नया इंदौर आधà¥à¤¨à¤¿à¤• यà¥à¤— की रंगीनियों से जगमगाता है, वहीठदूसरी तरफ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ इंदौर अतीत की यादें समेटता हà¥à¤† आधà¥à¤¨à¤¿à¤• जीवन जी रहा है. इस शहर की शामें बड़ी सà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥€ होती हैं. लोग-बाग दिन-à¤à¤° के अपने-अपने कामों से निपट कर शाम होते ही आनंद की चाह लिठशहर को गà¥à¤²à¤œà¤¼à¤¾à¤° कर देते हैं. à¤à¤¸à¥‡ में बहà¥à¤¤ सारे लोग चल पड़ते हैं पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ इंदौर के ओर, जहाठकी तंग गलियों में शाम होते ही खाने का à¤à¤• निराला संसार बस जाता है. ६ मई २०१६ को मैं इंदौर शहर में था और à¤à¤¸à¥‡ ही à¤à¤• शाम ढल चà¥à¤•ी थी. खजराना सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गणेश मंदिर में पूजन के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ मेरे बड़े à¤à¤¾à¤ˆ के परिवार के सà¤à¥€ सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का मन पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ इंदौर की इनà¥à¤¹à¥€ गलियों का लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ उठाने का हà¥à¤†. मेरी तो जैसे की मौज हो गयी. संधà¥à¤¯à¤¾ के धà¥à¤‚धà¥à¤²à¤•े से लिपटे हà¥à¤ इंदौर के à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• राजवाड़े के बगल से होकर हमलोग सराफा की उन गलियों में पहà¥à¤‚चे. वहां की दà¥à¤•ानें बंद तो हो चà¥à¤•ी थीं, पर गलियाठबड़े-बड़े बिजली के बलà¥à¤¬à¥‹à¤‚ की रोशनी से जगमगा रही थीं. खाने की दà¥à¤•ानें सज चà¥à¤•ी थीं और मानों समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ इंदौर के लोग उन गलियों में लगे बेहतरीन खाने का मजा लेने उमड़ पड़े थे.
सरà¥à¤°à¤¾à¤«à¤¼à¤¾ की गलियों में लोगों की à¤à¥€à¤¡à¤¼
उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ लोगों के साथ हम à¤à¥€ कूद पड़े. कहाठसे शà¥à¤°à¥‚ करें यही सबसे बड़ी मà¥à¤¸à¥€à¤¬à¤¤ थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि दूर-दूर तक खाने का खज़ाना फैला हà¥à¤† था. इतनी दà¥à¤•ानें थीं कि सौ की गिनती कम पड़ने लगे. सोचा कि कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न मिठाइयों से शà¥à¤°à¥‚ किया जय. मिठाइयों का नाम लेते ही, “केसरिया रबड़ी†की दà¥à¤•ान पर नज़र पड़ी. खालिस दूध को पूरी तरह घोंट कर, केसर और चीनी मिला कर बनी ये रबड़ी ४०० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ किलो के दर से मिल रही थी. बस à¤à¤• पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ खाने से तबियत हरी हो गयी और सब तरफ मिठाइयाठ–ही-मिठाइयाठनज़र आने लगीं. कहीं कलाकंद की बहार थी, तो कहीं गाज़र के हलवे और फिर कहीं रस मलाई, कहीं हापूस आम से बना आम-पाक तो और कहीं शà¥à¤°à¥€à¤–ंड मिल रहे थे. कलाकंद तो इसी इलाके की देन है.
केसरिया रबड़ी
पर वहीठनज़दीक में नज़र पड़ी, “रबड़ी के मालपà¥à¤â€ पर. शà¥à¤¦à¥à¤§ घी में बने हà¥à¤ और चीनी की चाशनी में तैरते हà¥à¤ वे मालपà¥à¤ सà¤à¥€ को ललचा रहे थे. सà¥à¤¨à¤¾ था की मालपà¥à¤† तो बंगाल का पकवान है, फिर मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में कैसे? खैर, खाने वालों को अब इन सब बातों से कà¥à¤¯à¤¾ मतलब. तैरते हà¥à¤ रस-à¤à¤°à¥‡ मालपà¥à¤“ं ने तो मà¥à¤à¥‡ बचपन की होली की याद दिला दिया. सच में इन पारंपरिक मिठाइयों का सà¥à¤µà¤¾à¤¦ निराला है.
रस से à¤à¤°à¥‡ मालपà¥à¤
पारंपरिक मिठाइयों की बात करें, तो उन गलियों में जलेबी-इमरती के साथ-साथ सबका पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¾, राज-दà¥à¤²à¤¾à¤°à¤¾ “गà¥à¤²à¤¾à¤¬-जामà¥à¤¨â€ à¤à¥€ मिल रहा था. गरम-गरम और नरम-नरम गà¥à¤²à¤¾à¤¬-जामà¥à¤¨ के सà¥à¤µà¤¾à¤¦ के दीवानों की संखà¥à¤¯à¤¾ तो लाखों में होगी, और जैसे कि मैं. अब यह तो नहीं पता कि इस पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€-सी मिठाई में गà¥à¤²à¤¾à¤¬ कहाठहै और जामà¥à¤¨ कहाà¤. पर इस मिठाई में जो खासियत है, वो औरों में कहाà¤? जहाठकलाकंद, केसरिया रबड़ी, गाज़र के हलवे, मालपà¥à¤ ३५०-४०० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ किलो के à¤à¤¾à¤µ से थे, वहीठगà¥à¤²à¤¾à¤¬-जामà¥à¤¨ २५० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ किलो और मिठास à¤à¤¸à¥€ की खाने वाला उà¤à¤—लियों से चासनी तक चाट जाये.
गरम-गरम गà¥à¤²à¤¾à¤¬-जामà¥à¤¨
हलवों में गाज़र का हलवा आजकल सà¤à¥€ बाजारों में छा गया है. इसलिठउसके बारे में कà¥à¤¯à¤¾ लिखूं? पर बात तो “मूंग के हलवों†में है. इसकी नजाकत के कà¥à¤¯à¤¾ कहने हैं? सà¤à¥€ से यह हलवा सही से बनता à¤à¥€ नहीं है. कà¤à¥€ तो मूंग की दाल को à¤à¥‚नना कठिन हो जाता है, तो कà¤à¥€ ये पतला तो कà¤à¥€ गाढ़ा हो जाता है. पर इंदौर की गलियों में अà¤à¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ हाथों से बना यह हलवा ठीक वैसे ही था जैसे कि किसी पारंपरिक हवेली में बना हो. शà¥à¤¦à¥à¤§ घी से तरबतर इस हलवे की मिठास à¤à¤¸à¥€ कि हौले से दिल में समां जाये.
मूंग का हलवा
वैसे तो मिठाइयों की शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ में कà¥à¤²à¥à¤«à¥€-फलूदा, आइसकà¥à¤°à¥€à¤® इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ à¤à¥€ आतीं हैं, पर कहाठतक इनकी बात करूà¤. वहां तो गलियों के खाने के खोमचों-ठेलों और दà¥à¤•ानों से à¤à¤°à¤¾ à¤à¤• छोटा-शहर ही बसा हà¥à¤† था. अब नमकीन सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤Ÿ-फ़ूड को ही लें. दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ डोसा की दूकान à¤à¥€ वहां थी. यदि आप à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ ढंग से बनी चाइनीज़ खाना पसंद करते हों, तो उसकी दà¥à¤•ान à¤à¥€ वहां थी. कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ नहीं था-कई पà¥à¤°à¤•ार के दोसे-बड़े, फिर मंचूरियन, नूडलà¥à¤¸, फà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤¡ राइस इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿. यह दो पà¥à¤°à¤•ार की वà¥à¤¯à¤‚जन-शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ à¤à¤¸à¥€ है, जो हाल के दशक में पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ में फैल गयीं है. बनाने की सहजता, थोड़ी ससà¥à¤¤à¥€ और खाने वालों में विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ का अहसास दिलाने वाली ये दोनों वà¥à¤¯à¤‚जन-शà¥à¤°à¥‡à¤£à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ लोगों में बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं.
à¤à¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‡ का कीस
लोगों का आना-जान बढ़ता ही जा रहा था. तरह-तरह के वà¥à¤¯à¤‚जनों की सà¥à¤—ंध उन तंग गलियों में à¤à¤•-दूसरे से मिल कर à¤à¤• मसà¥à¤¤ वातावरण बना रही थी. जिधर देखो लोग-बाग खाने की ही बात कर रहे थे और अपने-अपने पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ को हाथों में पकड़ कर खाने का सà¥à¤µà¤¾à¤¦ चख रहे थे. वह à¤à¤• निराला दृशà¥à¤¯ था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वहाठकोई दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤² नहीं था, पर सà¤à¥€ उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ लोग खाने-पीने की à¤à¤• अदृशà¥à¤¯ धागे से जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ हà¥à¤ थे. उस वक़à¥à¤¤ हमारी नज़र मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के वà¥à¤¯à¤‚जनों को तलाशकर रही थी. तà¤à¥€ मैंने à¤à¤• दà¥à¤•ान देखा जहाठमिल रही थी “à¤à¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‡ की कीसâ€. à¤à¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‡ को कदà¥à¤¦à¥à¤•श करके, उसके पेसà¥à¤Ÿ को घी में पका कर बनाया गया यह नमकीन वà¥à¤¯à¤‚जन खाने में लाजवाब लगता है. बेचनेवाला दà¥à¤•ानदार मगर बड़ा सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ निकला. काफ़ी मिनà¥à¤¨à¤¤à¥‡à¤‚ करने के बाद उसने बताया कि यह वà¥à¤¯à¤‚जन बनता कैसे है. वो à¤à¥€ तब, जब मेरे बगल में खड़ी à¤à¤• à¤à¤¦à¥à¤° महिला à¤à¥€ मेरे आगà¥à¤°à¤¹ के साथ जà¥à¤¡à¤¼ गयीं.
गराडू
à¤à¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥‡ की कीस का मैं अà¤à¥€ सà¥à¤µà¤¾à¤¦ ही ले रहा था कि मेरी नज़र à¤à¤• और वà¥à¤¯à¤‚जन पद पड़ी, जिसका नाम “गराडू†था. गराडू à¤à¤• पà¥à¤°à¤•ार का सà¥à¤µà¥€à¤Ÿ पोटैटो (कंद) है, जिसे काट कर उबाल लिया जाता है. उबले हà¥à¤ गराडू को घी में तल कर दूकान में रखा रहता है. जैसे ही किसी ने आदेश दिया, उसे फिर से तल कर, मसाला लगा कर पेश किया जाता है. शकरकंद तो थोड़ी मीठी होती है, पर गराडू थोडा नमकीन और अंत में à¤à¤• मिठास लिठहà¥à¤ था.
दही-à¤à¤²à¥à¤²à¥‡
तà¤à¥€ कहीं से “दही-à¤à¤²à¥à¤²à¥‡â€ की सà¥à¤—ंध हवा में तैरती हà¥à¤ˆ आ गयी और मैं दही-à¤à¤²à¥à¤²à¥‡ का सà¥à¤µà¤¾à¤¦ चखने को आतà¥à¤° हो उठा. सà¥à¤—ंध के सहारे चलते-चलते मैं पहà¥à¤‚चा “जोशी दही-बड़ा हाउसâ€. यहाठके दही-बड़े इंदौर में सबसे पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं. सà¥à¤¨à¤¾ है कि इस दूकान के मालिक दही-बड़ों को हथेली पर ले कर हवा में उछाल देते थे और दही-बड़ों के नीचे आने पर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ फिर से पकड़ कर खरीदार को देते थे. और इस पूरी पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में दही-बड़ा का à¤à¤• à¤à¥€ à¤à¤¾à¤— या मसाले का à¤à¤• à¤à¥€ अंश जमीन पर नहीं गिरता था. उसी दूकान के à¤à¤• दीवाल पर फà¥à¤°à¥‡à¤® से टंगे “द टाइमà¥à¤¸ ऑफ़ इंडिया†के १८ जून १९९९ को छपे लेख में यही लिखा हà¥à¤† था. परनà¥à¤¤à¥ उस दिन उस दूकान पर उनका लड़का बैठा था, जिसने दही-बड़े उछालने और पकड़ने की कला में अà¤à¥€ पारंगत नहीं हà¥à¤† था. वहां के दही-बड़े का साइज़ बहà¥à¤¤ बड़ा था और खासियत उनके दही में à¤à¥€ थी, जो खालिस मलाई-यà¥à¤•à¥à¤¤ दूध से बनी थी. लोग-बाग़ बड़े चाव से दही-बड़े खरीद कर खा रहे थे. उनकी दूकान में उनके नाम के अनà¥à¤°à¥‚प ही à¤à¥€à¤¡à¤¼ à¤à¥€ थी. दही-बड़ा à¤à¤¸à¤¾ कि मà¥à¤¹à¤ में जाते ही घà¥à¤² जाà¤.
साबूदाना की खिचड़ी
दही-बड़ा खाते-खाते मैं अनà¥à¤¯ लोगों के चेहरों का मà¥à¤†à¤‡à¤¨à¤¾ à¤à¥€ करे जा रहा था. कितने संतोष से वे सब दही-बड़ों पर चटकारे ले रहे थे. वाकई पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ लज़ीज़ खानों का जवाब नहीं. परनà¥à¤¤à¥ जैसा कि मैंने पहले लिखा था इंदौर शहर अपने-आप में à¤à¤• छोटा मà¥à¤‚बई की खासियत लिठहà¥à¤ है. उसकी छाप इन गलियों में à¤à¥€ दिखती थी. पाव-à¤à¤¾à¤œà¥€, दाबेली, बड़ा-पाव, सैंडविच, हॉट-डॉग इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ की à¤à¥€ कई दà¥à¤•ानें थीं. तरह-तरह के सैंडविच, जैसे, पनीर-मसाला, चीज़-चटनी सैंडविच इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ वहां बन रहे थे. बेकरी के आइटमों के बात की जाये तो उन गलियों में कà¥à¤°à¥€à¤®-रोल, पेसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€, पिज़à¥à¤œà¤¼à¤¾ और बरà¥à¤—र इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ à¤à¥€ दिखे. अब आप खà¥à¤¦ देख लीजिये कि होलकर के जमाने के पारंपरिक खानों के साथ साथ समय ने कितना कà¥à¤› बदल दिया था. उसी गली में कई गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ वà¥à¤¯à¤‚जन à¤à¥€ मिल रहे थे, जैसे कि बेसन-दही से बने खमण और दही की मथ कर बना छाछ. २० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की खमण और १० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ की छाछ खाईये और पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हो जाइà¤. यदि और पेट à¤à¤°à¤¨à¤¾ चाहते हैं तो उस गली में साबू-दाने की खिचड़ी à¤à¥€ मिलेगी २० रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ की दर से. साबू-दाने की खिचड़ी कई लोग बहà¥à¤¤ पसंद करते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह हलकी और सà¥à¤ªà¤¾à¤šà¥à¤¯ है, गरिषà¥à¤ पकवानों से बिलकà¥à¤² अलग.
फà¥à¤°à¥‚ट सलाद
यदि आपकी जिहà¥à¤µà¤¾ में चटकीले खाने की खà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¶ हो उठे, तो वहां इनà¥à¤¦à¥‹à¤°à¥€ पोहे, समोसा, कचोरियाà¤, चाट और पानी-पूरी का à¤à¥€ à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤° था. पानी-पूरी तो à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ वà¥à¤¯à¤‚जन है, जिसके पूरी में à¤à¤°à¤¨à¥‡-वाले मसाले को बदल-बदल कर पानी-पूरी के कई फà¥à¤²à¥‡à¤µà¤° तैयार किये जा रहे थे. गरम-गरम समोसा-कचोरी तो हमेशा-से लोगों का दिल जीतते आयीं हैं. और तरह-तरह से बनने वाले चाट का तो कहना ही कà¥à¤¯à¤¾. à¤à¤• ही जगह पर खाने की इतने विविध पà¥à¤°à¤•ार देख कर पूरा मन इतराने लगा. कà¥à¤¯à¤¾ खाà¤à¤‚ और कà¥à¤¯à¤¾ न खाà¤à¤‚? गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€, मधà¥à¤¯ परदेशी, महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¨, चाइनीज़, दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ खाने के बारे में तो मैंने बहà¥à¤¤ लिखा. पर यदि कोई मà¥à¤à¤¸à¥‡ पूछे कि फल खाने वालों का कà¥à¤¯à¤¾ होगा? तो मैं उनसे यही कहूà¤à¤—ा कि à¤à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ यह गली बड़ी मसà¥à¤¤ है. यहाठ“फà¥à¤°à¥‚ट-सलाद†के à¤à¥€ कई ठेले थे. सेव, केले, अमरà¥à¤¦, अनानास, चीकू, संतरे, तरबूज से बना सलाद मैंने à¤à¥€ चखा. वाकई ताजे फलों से बना था.
सरà¥à¤°à¤¾à¤«à¤¼à¤¾ की गलियों में खाने आ आनंद
फरसन, आलू-चिपà¥à¤¸, मिकà¥à¤¸à¤šà¤° इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ की à¤à¥€ दà¥à¤•ानें वहां मौजूद थीं. à¤à¤• और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वà¥à¤¯à¤‚जन है, “चना-जोर-गरमâ€. जिसने à¤à¥€ इसका खसà¥à¤¤à¤¾ सà¥à¤µà¤¾à¤¦ चख रखा हो, वे इस नाचीज़ से दिखने वाले आइटम की विशेषता से वाकिफ होंगे. आम-तौर पर चना-जोर-गरम बनानेवाला उसमें नीमà¥à¤¬à¥‚ का रस मिलाता है ताकि खटास के साथ सà¥à¤µà¤¾à¤¦ बढ़े. यहाठइंदौर में मैंने देखा कि खटास बढ़ाने के लिठउसके साथ कचà¥à¤šà¥‡ आम के कतरे डाले जा रहे थे. सचà¥à¤š में मà¥à¤¹à¤ में पानी आ गया. पर अब तक इतना कà¥à¤› खा चà¥à¤•ा था कि अब और कà¥à¤› खाना असंà¤à¤µ था. इसीलिठललचाई नज़र से चना-जोर-गरम को देखते हà¥à¤ मैं आगे बढ़ गया.
चना-जोर-गरम
पूरी गली लोगों के à¤à¥€à¤¡à¤¼ से à¤à¤°à¥€ थी. सबका à¤à¤• ही मकसद था. कई पà¥à¤°à¤•ार के वà¥à¤¯à¤‚जनों को चखना. à¤à¤¸à¤¾ लगता था मानों सà¤à¥€ खाने के शौकीन à¤à¤• ही सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर आ पहà¥à¤‚चे हों. पर खाने के बाद कà¥à¤› पीने की à¤à¥€ तलब होती है. अब पेय पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ की बात करें, तो उस गली में कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ नहीं था. आप कई फà¥à¤²à¥‡à¤µà¤° में बनी मीठी लसà¥à¤¸à¥€ पी सकते थे. बादाम इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ डाला हà¥à¤† शिकंजी पी सकते थे. साधारण नीमà¥à¤¬à¥‚-पानी à¤à¥€ वहां था और छाछ के बारे में तो मैं पहले à¤à¥€ लिख चà¥à¤•ा हूà¤. यदि निकोटिन की कमी महसूस हो तो वहां कोलà¥à¤¡-काफी, गरà¥à¤®-काफी और चाय का à¤à¥€ इनà¥à¤¤à¥‡à¤œà¤¾à¤® था. मिनरल वाटर तो बहà¥à¤¤à¤¾à¤¯à¤¤ से उपलबà¥à¤§ थे. पर जिस पेय-पदारà¥à¤¥ ने आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ किया, उसका नाम था “कोकोनट कà¥à¤°à¤¶â€. नारियल के दूध में कई फà¥à¤²à¥‡à¤µà¤° डाल कर और बरà¥à¤« के टà¥à¤•ड़े मिला कर कà¥à¤°à¤¶ किये यह पेय पदारà¥à¤¥ बेमिसाल था.
कोकोनट कà¥à¤°à¤¶
à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ में खान-पान के बाद पान खिलाने की à¤à¥€ परंपरा रही है. पानों में लखनवी, बनारसी, मगही, बंगाली पान इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤ हैं. पर चाà¤à¤¦à¥€ के वरक लगे “इनà¥à¤¦à¥‹à¤°à¥€ पान†à¤à¥€ किसी से कम नहीं. इस निराली गली में आईये, पारंपरिक और आधà¥à¤¨à¤¿à¤• दोनों पà¥à¤°à¤•ार के सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤Ÿ-फ़ूड का आनंद लीजिये और फिर à¤à¤• इनà¥à¤¦à¥‹à¤°à¥€ मीठा पान. आपकी शाम à¤à¤¸à¥€ कटेगी, जैसी पहले कà¤à¥€ नहीं कटी हो. à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि मानों इंदौर को “सà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤Ÿ-फ़ूड कैपिटल ऑफ़ इंडिया†का दरà¥à¤œà¤¾ मिलना चाहिà¤.
इनà¥à¤¦à¥‹à¤°à¥€ पान
इन गलियों में कार चलाना और पारà¥à¤•िंग करना à¤à¤• समसà¥à¤¯à¤¾ हो सकती है. परनà¥à¤¤à¥ खाने के शौकीनों के लिठतो à¤à¤¸à¥€ कोई कठिनाईयां अपारगमà¥à¤¯ तो नहीं होतीं हैं. बस पारà¥à¤•िंग मिलते ही, पैदल ही चल पडतें हैं चमकदार बतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से जगमगाती आनंददायक और मनà¤à¤¾à¤µà¤¨ गलियों की तरफ. इसीलिठयदि आप इंदौर आयें और कम-से-कम à¤à¤• शाम का समय आपके पास हो, तो à¤à¤• बार जरà¥à¤° खाने-के-खजाने से à¤à¤°à¥€ इन गलियों का लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ जरà¥à¤° उठाइà¤.