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गायकवाडों का शहर वड़ोदरा (Vadodara: The city of Gaikwads)

हमने मिल कर एक प्रणाली बनाई है की किसी अवसर जैसे जन्मदिवस, सालगिरह पर हम कहीं घुमने जाते हैं | इसी क्रम में अपने विवाह की वर्षगाँठ के अवसर पर हमने वड़ोदरा घुमने की योजना बनाई | वड़ोदरा अहमदाबाद से 60 किमी दूरी और ट्रेन से ढाई घंटे पर स्थित है | मुंबई की ओर जाने वाली सभी ट्रेन यहाँ से होती हुई ही जाती है | फिर क्या था एक दिन पहले ही सिटींग आरक्षण कराया और शनिवार की सुबह गुजरात एक्सप्रेस को पकड़ने हम अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पहुँच गये | बाइक को 12 घंटे के लिए वहीँ पार्क किया और चल पड़े प्लेटफार्म की ओर | अक्सर हम लोग ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ते भागते पहुंचते थे और देरी के लिए एक दुसरे के कार्यकलापों पर खुशनुमा आक्षेप करते थे परन्तु आज हम नियत समय से 15 मिनट पहले ही प्रस्तुत थे |

प्लेटफ़ोर्म पर काफी लोग अपने लाव-लश्कर के साथ मौजूद थे पर ट्रेन नदारद थी | यह ट्रेन यही से स्टार्ट होती है इसलिए अब तक इसे प्लेटफार्म पर आ जाना चाहिए था | कुछ सज्जनों से पूछने पर पता चला की ट्रेन एक घंटा लेट है फिर क्या था पत्नी जी ने कहा कोई नही यही कहीं आसन लगाते हैं| ऐसे समय में सीट मिलना तो असंभव था सो हमने न्यूज़ पेपर बिछाया और एक चाय की चुस्की ली | ट्रेन आई और हम बैठ लिए अपने स्थान पर | एक वृद्ध दंपत्ति एक दुसरे का हाथ पकडे चढ़े | देखकर लगा की प्रेम की अभिव्यक्ति के कई आयाम और मायने होते हैं | ट्रेन अपनी गति से आगे बढती रही बीच बीच में आस पास के खेतों में उगे फसलों पर हम बात चीत कर रहे थे | तीन घंटे में हम वड़ोदरा पहुंच गये | स्टेशन से बाहर निकलकर हमने ठेले पर समोसे खाए और चल पड़े सैयाजी राव बाग़ की तरफ |

पार्क के अन्दर का रास्ता

पार्क के अन्दर ही एक म्यूजियम है जिसमे फोटोचित्रण प्रतिबंधित है इस म्यूजियम में गायकवाड राजाओं के जीवन से जुडी कुछ महत्वपूर्ण वस्तुओं का संकलन है | चार मराठों सिंधिया, होलकर, भोसले और गायकवाड में गायकवाडों के अंतर्गत बड़ोदा स्टेट था | म्यूजियम से निकल कर हम पार्क में आये | पार्क में टॉय ट्रेन की व्यवस्था है परन्तु ट्रेन कम से कम 50 लोगों के होने पर ही चलाई जाती है | पार्क में इतने लोग तो थे परन्तु सब यही सुनकर टिकट नहीं ले रहे थे और सबकी स्थिति मेरे ही सामान थी | मैंने एक दो लोग से बात करके उन्हें जोड़ने की कोशिश की परन्तु 50 तक पहुंचना कठिन था | पार्क बड़ा होने के नाते सब आगे निकल जाते थे | थोड़ी देर के प्रयत्नों के बाद हम भी आगे की ओर बढ़े |

सेल्फी

पार्क के अन्दर चिड़िया घर है जिसमे कई सुन्दर चिड़ियाँ है | इनको देखने के साथ साथ इनकी उत्पत्ति और मूल स्थान के बारे में भी जानकारी वहीँ पर दी गई है जिसको पढना और ज्ञानवर्धक था |

सोता हुआ पक्षी

मछली की ताक में

चूँकि पक्षी पिंजरे में थे सो इनका चित्रण उतना अच्छा नही आ पाया | इनमे से सबसे शानदार पक्षी मुझे किंग पक्षी लगा | इसके हाव भाव पूर्ण रूप से एक राजा/सम्राट की शोभा दे रहे थे |

किंग पक्षी

लगभग 40 मिनट के बाद हम और आगे बढे हमने सफ़ेद मोर भी देखा और रंग बिरंगे राष्ट्रीय पक्षी मोर को नृत्य की अवस्था में देखा | हम लोग काफी उत्साहित हो उठे |

नाचता हुआ मोर

सैयाजी बाग़ में और ढेर सारे पक्षी मिले जो आनंदित करने वाले थे | हमने शेर चीता और बंदरों को तो इधर उधर घुमाते देखकर लुत्फ़ उठाया | यात्रा का अगला पड़ाव था लक्ष्मी विलास पैलेस | हम वहां से एक ऑटो द्वारा 6 किमी दूर लक्ष्मी विलास महल पहुंचे | लक्ष्मी विलास पैलेस में 170 रूपये प्रति व्यक्ति का टिकट लिया जिसके अंतर्गत अनिवार्य ऑडियो टूर गाइड भी आता था |

लक्ष्मी विलास पैलेस

लक्ष्मी विलास पैलेस भारत का सबसे बड़ा आवासीय महल है | पैलेस की लम्बाई इतनी ज्यादा है की काफी पीछे जाने पर भी फुल व्यू नही आ पाया | इसमे वर्तमान समय में भी गायकवाड के वंशज रहते हैं इसलिए पैलेस का आधा भाग ही पर्यटकों के लिए उपलब्ध है | कहा जाता है की पैलेस के किचन से बैठक तक ले जाते जाते चाय ठंडी हो जाया करती थी | पैलेस के अन्दर फोटोग्राफी निषेध थी जिसके कारण छाया चित्रण न हो पाया | गायकवाड़ का नाम पड़ने के पीछे भी एक कहानी है जिसके अनुसार एक बार इस वंश के राजा ने एक गाय की रक्षा के लिए उसे अपने किवाड़ से बाँध दिया तभी से ये गायकवाड़ के नाम से प्रसिद्द हो गये |

बायीं से दाई ओर ध्यान से देखें

पैलेस के बायीं से दायीं ओर ध्यान से देखें आप पाएंगे की पैलेस चार भागों में बंटा हुआ है | ज्यादा ध्यान से देखने पर यह चार अलग अलग महलों का अद्भुत संगम की तरह दिखाई देगा | यह अंतर महल के आर्किटेक्चर में परिलक्षित होता है | सबसे बाएं एक बड़े गुम्बद के चारों किनारे पर छोटे गुबंद और खिडकियों की बनावट में मुस्लिम स्थापत्य कला आसानी से देखी जा सकती है | थोडा दायें आने पर ऊपर की ओर निकली मीनार ब्रिटिश/इसाई कला का उदहारण प्रस्तुत करता है | महल के बीच में मंदिर की भाँती एक बड़े गुम्बद के रूप में हिन्दू स्थापत्य कला उकेरी गई है | इसके दायीं ओर गुरूद्वारे का आर्किटेक्चर देखने को मिलता है | यह महल अनेकता में एकता को स्थापित करता है और हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई की एकता में संवृद्धि का बेहतरीन नमूना प्रस्तुत करता है |

इतनी स्थापत्य विविधता होने पर भी महल में गजब की सिमेट्री देखने को मिलती है और यही तो इस महल की एक बहुत बड़ी खासियत है | महल के अन्दर के रखे आयुध गृह, रंग हाल आदि अनोखे और दर्शनीय हैं | लगभग दो घंटे की सैर के बाद हम वापस वड़ोदरा स्टेशन आ गये | हमारी मुंबई से आने वाली कर्णावती एक्सप्रेस समय से आई और हम ढाई घंटे की सोते हुए वापस अपने अहमदाबाद आ गये |

गायकवाडों का शहर वड़ोदरा (Vadodara: The city of Gaikwads) was last modified: January 26th, 2022 by Shivam Singh
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