(अभी तक आपने पढ़ा की कैसे हम रात को 10:30 बजे बालटाल पहुंचे और एक भंडारे में जाकर खाना खाने के बाद वहीँ रात 11:30 बजे तक सो गए. अब आगे…)
बालटाल से कुछ लोग सुबह चार बजे से ही यात्रा शुरू कर देते हैं और धीरे -२ समय बीतने के साथ इनकी संख्या बढ़ती जाती है। हम लोग भी सुबह पाँच बजेयात्रियों के जाने का शोर सुनकर सभी उठ गए. जिस भंडारे में हम ठहरे थे उसके पीछे की तरफ़ उनके अपने शौचालय व् स्नानघर बने हुए थे. भंडारे के सेवकपानी गर्म कर लोगो को दे रहे थे
हम लोग भी बारी बारी से गर्म पानी से नहाकर,चलने के लिए तैयार हो गए और एक एक कप गर्म चाय पीकर लगभग 6:15बजे यात्रा के लिए निकल दिए. दोमेल से थोड़ा सा पहले ही सुरक्षा जांच केंद्र है जहाँ यात्रियों के पंजीकरण चेक किये जाते हैं और बिना तय रूट और तिथि केकिसी को भी आगे नहीं जाने दिया जाता. हमने भी अपने -२ पंजीकरण चेक करवाये ।
थोड़ी ही देर में हम लोग दोमेल पहुँच गए और बर्फानी सेवा मंडल, कैथलवालों के भंडारे में चले गए और अपना सारा फालतू सामान वहां रख, एक -2 पिठू बैग साथ लेकर ट्रैकिंग के लिए तैयार हो गए. यहाँ हमने ब्रैड जैम का नाश्ता किया, एक एक कप गर्म चाय और पी और भोले नाथ का जयकारा लगाकर चढ़ाई शुरू कर दी।
बालटाल से दोमेल की दुरी दो किलोमीटर है और रास्ता लगभग पथरीला है और बहुत हलकी चढ़ाई है जो महसूस नहीं होती. दोमेल के बाद अगले 5 किलोमीटर बराड़ी टॉप तक एकदम खड़ी चढ़ाई है। हम लोग सामान्य गति से चल रहे थे लेकिन धीरे -धीरे राजू और उसके परिवार की गति कम होने लगी. शुशील उनके साथ ही चल रहा था और मैं उनसे काफी आगे निकल आया था. दोमेल से 1.5 किलोमीटर आगे रेल पथरी नामक जगह पर दो भंडारे हैं। मैं वहांरुक कर उनकी प्रतीक्षा करने लगा और बीस मिनट बाद बाद वो भी पहुँच गए। चढ़ाई चढ़ते हुए लम्बा विश्राम करने से शरीर शिथिल हो जाता है और मुझे इससे परेशानी होती है। यहाँ भी ऐसा ही हुआ और मुझे लगा की अगर ऐसा ही चलता रहा तो शायद शाम तक ही गुफा पर पहुँच पाउँगा। मैंने उनसे कहा मैं आगे जा रहा हूँ तुम थोड़ा आराम करने के बाद चल देना। अब मैं तुम्हे बरारी टॉप पर ही मिलूंगा और तुम्हारा 11 बजे तक इंतजार करूँगा। अगर आप इससे लेट पहुंचे तो समझ लेना कि मैं आगे चला गया हूँ। ऐसा कहकर मैंने दोबारा चढ़ाई शुरू कर दी।
हमारा आज का प्रोग्राम आज ही दर्शन कर रात को वापिस दोमेल लौटना था मतलब की आज कुल 26 किलोमीटर की यात्रा करनी थी। वैसे तो आना जाना 28किलोमीटर है लेकिन वापसी में दोमेल रुकने का प्रोग्राम होने से दुरी दो किलोमीटर कम गिन रहे थे। पिछली लगातार तीन यात्राओं में हम बालटाल सुबह पहुँचरहे थे और बालटाल से यात्रा लेट शुरू करने के कारण रात गुफा के पास टेन्टों में ही रुकते थे और अगले दिन वापसी करते थे। लेकिन इस बार रात को हीबालटाल पहुँच कर सुबह जल्दी यात्रा शुरू की थी और रात को वापसी की सोच रहे थे लेकिन मन में यह संशय भी था कि क्या हम ऐसा कर सकेंगे, कहीं शरीर रास्ते में ही जबाब न दे जाये । जिस तरह से हमारी धीमी शुरुआत हुई थी उससे आशंका और बढ़ रही थी। 2011 में केदारनाथ की 28 किलोमीटर की यात्रा (आना और जाना) एक दिन में पूरी की थी उसके बाद आजतक एक दिन में कभी इतनी यात्रा नहीं की थी।
रेल पथरी से बरारी टॉप की दुरी चार किलोमीटर है। बरारी टॉप से आगे चढ़ाई काफी कम है और तुलनात्मक रास्ता काफी आसान है। बरारी टॉप पर ही दो तीनलंगर हैं जहाँ मैंने अपने साथियों से मिलने को कहा था। रेल पथरी से बरारी टॉप तक एकदम खड़ी चढाई है और थोड़ी देर बाद ही साँस बुरी तरह फूलने लगती है जिस कारण बार बार रुक कर आराम करना पड़ता है। ऊपर से नीचे की ओर उतरने वाले लोग जोर जोर से जयकारे लगाते हैं लेकिन चढ़ने वालों का सिर्फ मुंह ही हिलता है, साँस फूली होने के कारण आवाज तो निकलती ही नहीं है। रास्ते में एक जगह तो इतनी खतरनाक है की घोड़े वाले भी सवारियों को उतार कर चलते हैं। दो जगह काफी दूर तक भूस्खलन प्रवण क्षेत्र है जहाँ से लोग काफी जल्दी से निकलते हैं। यहाँ छोटे-२ पत्थर हमेशा गिरते रहते हैं। यहाँ सुरक्षा बलों के जवान हमेशा लोगों को आगाह करते रहते हैं और इस क्षेत्र में रुकने या आराम करने के लिए मना करते हैं। रास्ते के दायीं तरफ गहरी घाटी है जिसमे नदी बहती है लेकिन इस बार अधिक बर्फ पड़ने के कारण नदी ऊपर से पूरी जमी हुई थी।
मेरे चलने की गति सामान्य थी और मैं बीच -२ में रुक-कर काफी फोटो भी खींच रहा था और जब अधिक थक जाता तो बैठ कर आराम करने की बजाय खड़े खड़े ही आराम कर लेता। इससे शरीर को आराम भी मिल जाता है और सुस्ती भी नहीं आती। ठीक 10:30 बजे मैं बरारी मार्ग पहुँच गया। यहाँ स्थानीय लोगो ने बहुत सी दुकाने लगाई होती हैं जहाँ चाय और खाने पीने का सामान मिल जाता है। सभी घोड़े वाले यहाँ अवशय रुकते हैं तथा यात्रियों के खर्चे पर खाते-पीते हैं और घोड़ों को भी अंतराल मिल जाता है। बरारी मार्ग से बरारी टॉप तक आधा किलोमीटर चढाई और है। बरारी टॉप पर दो भंडारे हैं जहाँ मैंने अपने साथियों से मिलने को कहा था। थोड़ी ही देर में मैं वहां पहुँच गया। भंडारे में नाश्ते में पूरी और कड़ी मिल रही थी। अब तक भूख भी जोरो की लग चुकी थी। मैंने दो पूरी और कड़ी ली और अंदर बैठ कर खाने लगा। खाना स्वादिष्ट था इसलिए एक पूरी फिर ले ली। खाना खाने के बाद चाय पी। खा पीकर आराम करने लगा और साथियों का इंतजार करता रहा। जब 11:30 हो गए तो मैं आगे के सफर के लिए फिर तैयार हो गया। मैंने साथियों को ग्यारह बजे तक इंतजार करने को कहा था और अब 30 मिनट ज्यादा हो गए थे।
बरारी टॉप से आगे रास्ता दो हिस्सों में बँट जाता है पहला रास्ता पुराने वाला है और संगम घाटी होकर जाता है। बरारी टॉप से संगम घाटी तक काफी उतराई है और फिर संगम घाटी से संगम पॉइंट तक खड़ी चढाई। संगम पॉइंट पर पंचतरणी से आने वाला मार्ग और बालटाल वाला रास्ता मिलते हैं इसीलिए इसे संगम पॉइंट कहते हैं । दूसरा रास्ता नया है, पहले के मुकाबले छोटा भी और यह संगम पॉइंट के सामने वाले पहाड़ पर है। इसे काली मार्ग बोलते हैं। इस रास्ते पर पहले सामान्य चढाई है और फिर लगातार उतराई है। इस मार्ग पर घोड़े – खच्चर मना है क्योंकि यह रास्ता काफी संकरा है और खतरनाक भी। पैदल यात्री ज्यादातर नए रास्ते को ही चुनते हैं।
मैं भी इसी नए रास्ते से होते हुए तेजी से चलता गया क्योंकि आगे अब लगभग ढ़लान ही थी।ढ़लान खत्म होते ही ग्लेशियर शुरू हो जाता है। यहाँ से गुफा की दुरी लगभग 2.5 किलोमीटर है और रास्ता समतल लेकिन बर्फ पर। यहाँ पहुंचते-पहुंचते एक बज चुका था। यहाँ से आधा किलोमीटर और चलने के बाद स्थानीय मार्किट शुरू हो जाती है जहाँ परशाद और पूजा का सारा सामान मिल जाता है। यहाँ करनाल वालों का एक लंगर भी है जो सूचना केन्द्र का काम भी करता है। थोड़ा और आगे चलने पर मार्किट ख़त्म हो जाती है और फिर से बर्फीला रास्ता शुरू । गुफा से आधा किलोमीटर पहले फिर से मार्किट शुरू हो जाती है और आखिर में प्रवेश द्वार तक मार्किट है। गुका के पास कई लंगर भी है। यहाँ सभी दुकाने और लंगर बर्फ पर ही हैं। प्रवेश द्वार से आगे कैमरा , मोबाइल आदि ले जाना मना है। यहाँ एक बार फिर आपके पंजीकरण चेक किये जाते हैं। प्रवेश द्वार के बाद ,गुफा तक जाने के लिए 200 के करीब सीढ़ियां हैं।
मैं रुक रुक कर रहा फोटो खिंचता हुआ चल रहा था क्योंकि मेरे पास समय था और मेरे सभी साथी मुझसे पीछे चल रहे थे। मैं बार बार पीछे देख रहा था कि शायद वो आते हुए दिख जाएँ। मैंने मार्किट शुरू होने वाले स्थान पर रुक कर उनका काफी देर इंतजार किया क्योंकि यहाँ से आगे कई लाइन बन जाती है और भीड़ होने के कारण मिलना मुश्किल था। जब मुझे वो दूर तक आते हुए दिखाई नहीं दिए तो मैं आगे की और चल पड़ा। गुफा के पास जो मार्किट है ,वहां एक दुकान से परशाद लिया और उसी दुकान पर सारा सामान ,मोबाइल ,कैमरा आदि रख कर उनसे रसीद ले ली और मैं तेजी से प्रवेश द्वार की तरफ चल पड़ा और थोड़ी ही देर में वहां जा पहुंचा।