Site icon Ghumakkar – Inspiring travel experiences.

सफ़र सिक्किम का भाग 4 : वो तेज़ हवा, बेहोशी और गुरुडांगमार झील…

जिंदगी में कितनी ही बार ऐसा होता है कि जो सामने स्पष्ट दिखता है उसका असली रंग पास जा के पता चलता है। अब इतनी बढ़िया धूप, स्वच्छ नीले आकाश को देख किसका मन बाहर विचरण करने को नहीं करता ! सो निकल पड़े हम सब गाड़ी के बाहर…..

In the midst of fierce wind

पर ये क्या बाहर प्रकृति का एक सेनापति तांडव मचा रहा था, सबके कदम बाहर पड़ते ही लड़खड़ा गये, बच्चे रोने लगे, कैमरे को गले में लटकाकर मैं दस्ताने और मफलर लाने दौड़ा । जी हाँ, ये कहर वो मदमस्त हवा बरसा रही थी जिसकी तीव्रता को 16000 फीट की ठंड, पैनी धार प्रदान कर रही थी । हवा का ये घमंड जायज भी था। दूर दूर तक उस पठारी समतल मैदान पर उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं था, फिर वो अपने इस खुले साम्राज्य में भला क्यूँ ना इतराये । खैर जल्दी-जल्दी हम सब ने कुछ तसवीरें खिंचवायीं ।

Swarg ke beechon beech...

अब इन तसवीरों की कृत्रिम मुस्कुराहट पर कतई ना जाइयेगा, वो सिर्फ हम ही जान सकते हैं कि उस वक्त क्या बीत रही थी। इसके बाद नीचे उतरने की जुर्रत किसी ने नहीं की और हम गुरूडांगमार पहुँच कर ही अपनी सीट से खिसके।

धार्मिक रूप से ये झील बौद्ध और सिख अनुयायियों के लिए बेहद मायने रखती है । कहते हैं कि गुरूनानक के चरण कमल इस झील पर पड़े थे जब वो तिब्बत की यात्रा पर थे । ये भी कहा जाता है कि उनके जल स्पर्श की वजह से झील का वो हिस्सा जाड़े में भी नहीं जमता ।

गनीमत थी कि 17300 फीट की ऊँचाई पर हवा तेज नहीं थी । झील तक पहुँच तो गये थे पर इतनी चढ़ाई बहुतों के सर में दर्द पैदा करने के लिये काफी थी। मन ही मन इस बात का उत्साह भी था कि आखिर सकुशल इस ऊँचाई पर पहुँच ही गये।

Gurudongmar Lake @17300 ft

झील का दृश्य बेहद मनमोहक था। दूर दूर तक फैला नीला जल और पार्श्व में बर्फ से लदी हुई श्वेत चोटियाँ गाहे-बगाहे आते जाते बादलों के झुंड से गुफ्तगू करती दिखाई पड़ रहीं थीं । दूर कोने में झील का एक हिस्सा जमा दिख रहा था । हम लोगों को वो नजदीक से देखने की इच्छा हुई, तो चल पड़े नीचे की ओर ।

Gurudongmar's frozen water


बर्फ की परत वहाँ ज्यादा मोटी नहीं थी। हमने देखा कि एक ओर की बर्फ तो पिघल कर टूटती जा रही है! पर हमारे मित्र को उस पर खड़े हो कर तसवीर खिंचवानी थी । हमने कहा भइया आप ही जाइये तसवीर हम खींच देते हैं । झील के दूसरी ओर सुनहरे पत्थरों के पीछे गहरे नीले आकाश उफ्फ क्या नज़ारा था वो भी!

Barf darki nahin ki seedhe jayenge andar par sawal to photu ka hai:)


दरअसल चारों ओर की खूबसूरती ऐसी थी कि मैंने इस बात को नज़रअंदाज़ कर दिया कि मैं 17000 फीट से अधिक की ऊँचाई पर हूँ। झील के बगल की पहाड़ी पर चढ़ने का दिल हो आया तो वहां दौड़कर जा पहुँचे।

pahadi ke paar ye sansar khatm hota aapko nahin jaan padta?

खैर वापसी की यात्रा लंबी थी इसलिये झील के किनारे दो घंटे बिताने के बाद हम वापस चल पड़े । अब नीचे उतरे थे तो ऊपर भी चढ़ना था पर इस बार ऊपर की ओर रखा हर कदम ज्यादा ही भारी महसूस हो रहा था । सीढ़ी चढ़ तो गये पर तुरंत फिर गाड़ी तक जाने की हिम्मत नहीं हुई ।

कुछ देर विश्राम के बाद सुस्त कदमों से गाड़ी तक पहुँचे तो अचानक याद आया कि एक दवा खानी तो भूल ही गये हैं। अचानक ही पानी के घूँट के साथ हाथ और पैर और फिर शरीर की ताकत जाती सी लगी । कुछ ही पलों में मैं सीट पर औंधे मुँह लेटा था । शरीर में आक्सीजन की कमी कब हो जाए इसका जरा भी पूर्वाभास नहीं होता । खैर मेरी बेहोशी की ये अवस्था सिर्फ 2 मिनटों तक रही और फिर सब सामान्य हो गया ।

वापसी में हमें चोपटा घाटी होते हुये लाचुंग तक जाना था । इस यात्रा की सबसे बेहतरीन तसवीरें मेरी समझ से मैंने लाचुंग की उस निराली सुबह की थीं । आखिर क्या खास था उस सुबह में ! उसकी बात करेंगे अगले हिस्से में…..

चलते चलते नंदन ,विभा और घुमक्कड़ की टीम का शुक्रगुज़ार हूँ कि इस मंच पर साक्षात्कार की शक्ल में कुछ गुफ़्तगू करने का मौका दिया।

सफ़र सिक्किम का भाग 4 : वो तेज़ हवा, बेहोशी और गुरुडांगमार झील… was last modified: February 23rd, 2024 by Manish Kumar
Exit mobile version