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यादें पचमढ़ी की भाग 4: धूपगढ़ -ढलता सूरज आती शाम !

डचेस फॉल की रोमांचकारी यात्रा और पचमढ़ी झील में थोड़ा वक़्त बिता कर हम सब तुरंत जिप्सी में सवार हो कर चल पड़े धूपगढ़ की ओर जो कि पचमढ़ी से करीब 10-12 किमी दूरी पर है ।

धूपगढ़ पचमढ़ी की नहीं वरन पूरे मध्य प्रदेश की सबसे ऊँची पहाड़ी है । समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 1359 मीटर है। धूपगढ़ तक जाने के लिये अंतिम 3 किमी का रास्ता काफी घुमावदार है और पहली बार मंजिल तक पहुँचने के पहले ही सिर भारी होने लगा । पर जिप्सी के बाहर निकलते ही चारो ओर की छटा देख कर मन प्रसन्न हो उठा । वहाँ पहुँचने तक सूर्यास्त होने में सिर्फ 15 मिनट ही रह गए थे । इसलिये वहाँ की चोटी पर ना चढ़ के हम सूर्यास्त बिन्दु की ओर चल पड़े ।

धूपगढ़ चूंकि यहाँ का सबसे ऊँचा शिखर है इसलिए यहाँ से सूर्य पहाड़ों के पीछे जा नहीं छुपता । वो तो बादलों के बीच में ही धीरे धीरे मलिन होता अपना अस्तित्व खो बैठता है और अचानक से आ जाती है एक हसीन शाम । कैसे घटता है ये मंजर वो इन छवियों के माध्यम से खुद ही देख लीजिए।



शाम के साथ एक सफेद धुंध भी पर्वतों के चारों ओर फैल गई थी । मानो ये अहसास दिलाना चाहती हो कि सूर्य को हटाकर उसके पूरे साम्राज्य की मिल्कियत अब इसी के कब्जे में है। धुंध की चादर के बीच खड़े इस हरे भरे पेड़ को देख कर मन मुग्ध हो रहा था।

शाम का अँधेरा ठंडक के साथ तेजी से बढ़ने लगा तो हमें धूपगढ़ से लौटना ही पड़ा। धूपगढ़ की ये शाम बहुत कुछ पंडित विनोद शर्मा की इन पंक्तियों की याद दिला रही थी

बुझ गई तपते हुए दिन की अगन
साँझ ने चुपचाप ही पी ली जलन
रात झुक आई पहन उजला वसन
प्राण ! तुम क्यूँ मौन हो कुछ गुनगुनाओ
चांदनी के फूल तुम मुस्कराओ…..

डूबते सूरज की लाली और धूपगढ़ में बिताई उस हसीन शाम की मधुर स्मृतियाँ लिये जब हम होटल पहुँचे तो देखा कि होटल में काफी चहल – पहल है। पता चला कि अहमदाबाद से स्कूली बच्चों की एक बड़ी टोली आई है जो होटल के गलियारों में धमाचौकड़ी मचा रही थी।

सुबह उन सबको एक साथ तैयार होता और कतार लगा कर नाश्ता करना देखना सुखद अनुभव था। वैसे भी जहाँ ढेर सारे बच्चे हों वहाँ आस पास का वातावरण सरस हो ही जाता है। आज का पहला मुकाम बी फॉल था । बी फॉल पचमढ़ी से मात्र 2 किमी दूरी पर है । डचेस फॉल की तरह यहाँ जाने के लिए नीचे की ओर उतरना तो पड़ता है पर पहले तो जंगल के बीच से होते हुए समतल रास्तों पर और …

…फिर ठीक झरने तक जाती हुई सीढ़ियों से। डचेश फॉल में तो नीचे उतरना इतना जोखिम भरा था कि बीच में रुक कर चित्र लेने की हिम्मत ही नहीं होती थी। पर यहाँ गिरने फिसलने का डर नहीं था इसलिए अपने कैमरे का सही सदुपयोग कर पाए । तो सबसे पहले देखिये उस जगह से नीचे गिरते झरने का दृश्य जहाँ से नीचे जाने के लिए सीढ़ियाँ शुरु होती हैं ।

भले ही यहाँ सीढ़ियाँ थीं पर जंगलों की विकरालता वैसी ही थी । पर इसका फायदा ये था की बाहर खिली कड़ी धूप भी हमें छूने से कतरा रही थी ।

सीढ़ियाँ उतरते उतरते घने जंगल के बीच पानी की एक लकीर दिखने लगी । हम बी फाल के बिलकुल करीब आ चुके थे । बी फाल या जमुना प्रपात निश्चय ही पचमढ़ी का सबसे खूबसूरत प्रपात है । पचमढ़ी का मुख्य जल स्रोत भी यही है । करीब १५० फीट की ऊँचाई से गिरती धाराओं को देखना और ठीक उनके नीचे जाकर उनकी शीतल तड़तड़ाहट को शरीर पर महसूस करना एक रोमांचक अनुभव था।

बी फॉल से हम लोग रीछगढ़ गए जो एक प्राकृतिक गुफा है । पचमढ़ी प्रवास का हमारा ये आखिरी पड़ाव था ।

अगली सुबह हम वापस नागपुर की राह पर थे । सौंसर से कुछ दूर आगे ही सड़्क के किनारे एक संतरे का बाग दिखा । हम जैसों के लिए तो ये अजूबे की बात थी । तो सारे लोग बाग में पेड़ों का निरीक्षण करने उतर लिये। बागान का मालिक बड़ा भला आदमी निकला । घूम घूम कर उसने ना केवल हमें अपना बाग दिखाया बलकि रसदार संतरे भी खिलाये। अब आपको वो संतरे खिला तो सकता नहीं तो तसवीर से ही काम चलाइए ।

अन्य पर्यटन स्थलों की अपेक्षा पचमढ़ी भीड़ भाड़ से अपने आप को दूर रखकर अपनी नैसर्गिक सुंदरता बनाये हुए है । अगर आपको सतपुड़ा के जंगलों को करीब से महसूस करना है। अगर आप प्रकृति के अज्ञात रहस्यों को खोजने के लिये चार पहियों की गाड़ी की बजाए अपने चरणों को ज्यादा सक्षम मानते हों, तो पचमढ़ी आप ले लिये एक आदर्श जगह है।

यादें पचमढ़ी की भाग 4: धूपगढ़ -ढलता सूरज आती शाम ! was last modified: October 3rd, 2023 by Manish Kumar
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