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भाग1 – नॉएडा से ऋषिकेश।

ऐसे ही फिर से बैठे-बिठाए एक और यात्रा का जन्म हुआ। इस बार हम तुंगनाथ की और निकल पड़े। जब भी ऑफिस मे काम कम हो या जरूरत से ज्यादा हो पता नहीं तभी घुमक्कड़ी का कीड़ा कहाँ से काट लेता था। बात नवम्बर 2010 की है इस बार किसी के पास भी वर्क लोड नहीं था। वर्क लोड होता तब भी हम लोग एडजस्ट कर लेते क्यूँकि कंपनी ने “वर्क फ्रॉम होम” की सुविधा भी दी हुई थी। यही सॊच कर हम चार लोगों ने वीकेंड ट्रिप को अंजाम देने की ठान ली। हम चारों एक ही ऑफिस मे काम करते थे और काम-काज की वजह से रोज़ ही एक दूसरे के सम्पर्क मे बने रहते थे। ऊपर से हम लोग एक ही टीम मे थे तो हम लोगों के आपसी संबंध भी अच्छे थे।

इस ट्रिप मे दो लोग वो थे जिन्होंने हमारी 2011 की लद्दाख यात्रा मे भी जाना था पर आखरी समय मे धोखा दे दिया था। मैं तो ये मानता हूँ की इनकी किस्मत मे लद्दाख देखना नहीं लिखा था। चलो छोड़ो।

इन दो धोकेबाजो का नाम गौरव और हुज़ेफा है। ये दोनों हमारी कंपनी की इंदौर वाली शाखा मे काम करते थे। बाकि के दो लोग मैं और राहुल नॉएडा वाली शाखा मे थे। प्लान के मुताबिक इंदौर निवासियों को 19-नवम्बर-2010 को नॉएडा पहुँचना था। हमारी शिफ्ट शाम के 05:30 बजे से सुबह के 02:30 बजे खत्म होती थी। ये दोनों 18 तारीख गुरुवार की रात की ट्रेन पकड़ कर 19 तारीख शुक्रवार सुबह दिल्ली पहुँच चुके थे। जैसी की मैंने बताया था की कंपनी मे “वर्क फ्रॉम होम” की सुविधा थी तो इन लोगों ने एक भी छुट्टी नहीं ली थी। ट्रेन से ही datacard के माध्यम से ऑफिस का काम भी कर डाला और सकुशल दिल्ली भी पहुँच गए।

हमारा प्लान 19 से 21 नवम्बर तक वापस आने का था। आज तारीख शुक्रवार 19-नवम्बर-2010 थी। हम लोग आज भी ऑफिस नहीं जाने वाले थे। दिन के 2 बजे हम चारों राहुल की लाल रंग की huyandai i10 AT(Automatic Transmission) मे तुंगनाथ की और निकल पड़े। सबके पास दो जोड़ी कपड़े, एक जैकेट और मैंने तो एक पतला सा कंबल भी रख लिया था। नॉएडा मे तो ठण्ड नहीं थी पर नवंबर के महीने मे तो पहाड़ो मे कड़ाके की ठण्ड पड़ जाती है। यही सॊच कर मैंने कंबल रख लिया था ना जाने किसको ज़रूरत पड़ जाए।

राहुल ने गाड़ी दौड़ा दी। हम लोग नॉएडा – इन्द्रापुरम – मोहन नगर – राजनगर एक्सटेंशन होते हुए मेरठ हाईवे पर जा पहुँचे। इस समय सड़क पर ट्रैफिक था। दोपहर 2-3 बजे स्कूल के बच्चों की छुट्टी होती है इस वजह से हर जगह पर स्कूल बस, ऑटो, रिक्शा, सड़क पार करते स्कूल के बच्चे जाम का कारण बन रहे थे। हमे भी कोई जल्दी नहीं थी। वर्ष 2010 मे मेरठ और मुज़फ्फरनगर बाईपास का कार्य पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ था इस वजह से भी हमारी गती धीमी हो जाती थी। ऊपर से उत्तरप्रदेश या कह लो उल्टाप्रदेश, यहाँ पर कोई भी अपनी मर्ज़ी से रॉंग साइड ही ड्राइव करने लगते है। ऐसे महान आत्माओं से भी बच कर चलना पड़ता है। मेरठ बाईपास से पहले राहुल से गाड़ी रोक दी। उसने बोला कुछ चिप्स, बिस्कुट, पानी ले लेते हैं। तभी उसे सड़क पार बियर शॉप नज़र आई और उसका मन मचल गया। बियर खरीदी और उसने ड्राईवर सीट छोड़ दी। अब गाड़ी हुज़ेफा चलाने लगा। हुज़ेफा का ड्रिंक्स लेने का मूड नहीं था। अच्छा ही हुआ। बाकि हम तीनों टेंशन फ्री होकर एन्जॉय करने लगे। हम मेरठ बाईपास पर थे शाम के 5 बज चुके थे। सबने अपने लैपटॉप ऑन किये और datacard के माध्यम से ऑफिस नेटवर्क पर कनेक्ट हो गए। मुज़फ्फरनगर बाईपास पर दौड़ते हुए हम लोग चीतल (Cheetal) पर रुक नहीं पाए वो हमारी दाएँ ओर था और आगे से U-Turn मार कर वापस जाने के मूड मे हम लोग नहीं थे। हुज़ेफा गाड़ी ताबड़-तोड़ चला रहा था। करीब रात 8 बजे हम लोग हरीद्वार पहुँच गए थे।

हरीद्वार मे लगी शिव मूर्ती।

शिव भक्त गौरव। ;-)

बिना समय नष्ट किये हम लोग यहाँ से आगे निकल लिए। क्यूँकि सबके अंदर तो तलब लगी हुई थी। और वैसे भी हम किसी तीर्थ यात्रा का सोच कर नहीं आये थे इसीलिए जल्दी ही रायवाला की ओर चल दिए। रायवाला पहुँच कर चैन की साँस ली क्योंकि अभी हमारी वाली दुकान खुली हुई थी। दुकान के आगे ही गाड़ी पार्क कर दी। ब्लेंडर प्राइड (Blender Pride) का खंबा खरीद लिया गया और उसके साथ जम कर भोजन भी किया। भाई लोगों सुबह के नाश्ते के बाद अब जाकर खाने का मौका मिला था। यही से गाड़ी का पेट्रोल टैंक भी फुल करवा लिया था।

अब हम आगे ऋषिकेश के लिए निकल पड़े। 15-20 मिनट बाद हम ऋषिकेश की चेक पोस्ट पर जा पहुँचे। यहाँ पर गाड़ियों की कतार लगी हुई थी। रात को इस चेक पोस्ट से गाड़ी आगे नहीं जाने देते। सिर्फ लोकल गाड़ी ही आगे जाती हैं या फिर किसी के पास लिखित रूप से प्रमाण पत्र हो तो सिर्फ वो ही जा सकता है। हम लोग भी कतार मे गाड़ी लगा कर अगली सुबह 04:30 बजे का इंतज़ार करने लगे।

हुज़ेफा लाल पारी के बाहर इंतज़ार करता हुआ।

भाग1 – नॉएडा से ऋषिकेश। was last modified: May 25th, 2022 by Anoop Gusain
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