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नज़ारे भितरकनिका के : मैनग्रोव के जंगल, नौका विहार और पक्षियों की दुनिया !

इस यात्रा विवरण की पिछली कड़ी में आपको मैं ले गया था भुवनेश्वर से भितरकनिका के मैनग्रोव जंगलों के प्रवेश द्वार यानि गुप्ती चेक पोस्ट (Gupti Check Post) तक। करीब 650 वर्ग किमी में फैले इन मैनग्रोव वनों का निर्माण ब्राहाम्णी, वैतरणी और धर्मा नदियों की लाई और जमा की गई जलोढ़ मिट्टी के बनने से हुआ है। ये पूरा इलाका समुद को जल्दी से छू लेने की कोशिश में बँटी नदियों की पतली पतली धाराओं और उनके बीच बने छोटे द्वीपों से अटा पड़ा है।

मैनग्रोव जंगलों के बीच से इस डेल्टाई क्षेत्र से गुजरना मेरे लिए कोई पहला अनुभव नहीं था। इससे पहले मैं अंडमान के बाराटाँग की यात्रा में इन जंगलों को करीब से देख चुका था। उस यात्रा और इस सफ़र में फर्क सिर्फ इतना था कि वहाँ हम विशाल बंगाल की खाड़ी में एक बेहद पतली मोटर चालित नाव पर सवारी कर रहे थे जिस पर ली गई एक अंगड़ाई ही नाव को डगमगाने के लिए पर्याप्त थी और यहाँ उससे कहीं छोटी जलराशि के मध्य हम ठाठ से अपनी मोटरबोट में चहलकदमी कर सकते थे। एक बात और थी कि इन जंगलों में मैनग्रोवों के सिवा किस किस की झलक और देखने को मिलेगी इसका अंदाजा यात्रा शुरु करने के वक़्त तो नहीं था।

करीब सवा चार बजे हमारी लकड़ी की मोटरबोट अपने गन्तव्य डाँगमाल (Dangmal) की ओर चल पड़ी थी। सूरज अभी भी मद्धम नहीं पड़ा था पर अक्टूबर के महिने में उसकी तपिश इतनी भी नहीं थी कि हमें उस नौका की छत पर जाने से रोक सके। कुछ ही दूर बढ़ने के बाद हमें तट के किनारे छोटे छोटे गाँव दिखने शुरु हुए। अगल बगल दिखते इन छोटे मोटे गाँवों में असीम शांति छाई थी। पानी में हिलोले लेती नौका के आलावा जलराशि में भी कोई हलचल नहीं थी।

मछुआरों का एक गाँव

पर जैसे जैसे हम आगे बढ़ते गए धीरे धीरे गाँवों की झलक मिलनी बंद हो गई और रह गए सिर्फ जंगल..

मैनग्रोव के जंगल..जड़ों पर गौर कीजिए..

अंडमान में जब हैवलॉक के डॉल्फिन रिसार्ट में रहने का अवसर मिला था तो वहीं पहली बार पेड़ों को उर्ध्वाकार यानि सीधी ऊँचाई में बढ़ते ना देखकर समानांतर बढ़ते देखा था। कुछ ही देर में वही नज़ारा भितरकनिका में भी देखने को मिल गया। अंतर बस इतना था कि ये पेड़ अंडमान की अपेक्षा अधिक घने थे। नदी की बहती धारा पर वृक्ष की ये झुकती शाखाएँ उसके सौंदर्य से इस कदर मंत्रमुग्ध लग रहीं थीं मानो कह रही हों..छू लेने दे नाज़ुक होठों को कुछ और नहीं हैं जाम हैं ये…

नदी के जल को छू लेने की होड़...

पेड़ की हर ऊँची शाख पर पक्षी यूँ बैठे थे मानों बाहरी आंगुतकों से जंगलवासियों को सचेत कर रहे हों। जंगलों के बीच ऐसी यात्रा करने में आपके पास अगर अच्छी जूम लेंस का कैमरा और उससे बेहतर SLR ना हो तो पक्षियों को पहचानने और कैमरे में क़ैद करना मुश्किल होता है क्यूँकि पास जाते वक़्त हलका सा खटका हुआ तो चिड़िया फुर्र।

भितरकनिका के सिपाही

क्या इस चित्र को देख कर भारत का आर्थिक सामाजिक परिदृश्य नहीं कौंध जाता यानि ऊपर ऊपर हरियाली और पर पेड़ के इस ऊपरी हिस्से को अपने हृदय से सींचती उसके नीचे की शाखाएँ सूखी।

ये कैसी विषमता ?

और जब ये शाखाएँ ही दम तोड़ दें तब....

तब तो पंक्षियों को यही संदेश देना होगा 'चल उड़ जा पंक्षी कि अब तो देश हुआ बेगाना...'

शिथिल होता सूरज...

पाँच बजने को थे पर हमें भितरकनिका के नमकीन पानी में रहने वाले मगरमच्छों (Salt Water Crocodiles) के दर्शन नहीं हुए थे। यहाँ के वन विभाग के अनुमान के हिसाब से भितरकनिका में करीब 1500 मगरमच्छ निवास करते हैं और उनमें से कुछ की लंबाई 20 फुट तक होती है यानि विश्व के सबसे लंबे मगरमच्छों का दर्शन करना हो तो आप भितरकनिका के चक्कर लगा सकते हैं। हमारी आँखे पानी में इधर उधर भटक ही रही थीं कि दूर पानी की ऊपरी सतह आँखे बाहर निकाले एक छोटा सा घड़ियाल दिखाई पड़ा। उसके कुछ देर बाद तो दूर से ही ये मगरमच्छ महाशय क्रीक की दलदली भूमि पर आराम करते दिखे।

उस शाम के अलसाये हमसफ़र...

फिर दिखी भागते कूदते हिरणों की टोली। हिरणों की मनोभावनाओं को समझना टेढ़ी खीर है। पहले तो अपनी अपनी भोली भाली आँखों से आपको एक टक ताकेंगे। इस मनोहारी छवियों को क़ैद करने के लिए जैसे ही आपके हाथ हरक़त में आऐ नहीं कि अचानक ऐसी कुलांचे भरेंगे जैसे कि उस निर्जन इलाके में हमसे बड़ा उनका दुश्मन कोई और है ही नहीं..

डाँगमाल पहुँचने के पहले ही हमें देखनी थी भितरकनिका के बीच बसी पक्षियों की दुनिया। क़ायदे से हमें यहाँ चार बजे तक पहुँच जाना था। पर केन्द्रापाड़ा से देर से सफ़र शुरु करने की वज़ह से हम यहाँ पहुँचे सवा पाँच पर। भितरकनिका की पक्षियों की इस दुनिया को यहाँ बागा गाहन (Baga Gahan) या हेरोनरी(Heronry) कहा जाता है।

बागा गाहन


यहाँ पाए जाने वाले पक्षी मूलतः बगुला प्रजाति के हैं जिन्हें Asian Open Bill Stork के नाम से भी जाना जा सकता है।। जून से नवंबर के बीच विश्व की ग्यारह बगुला प्रजातियों के पक्षी 50000 तक की तादाद में यहाँ आकर घोसला बनाते हैं और नवंबर दिसंबर तक अपने छोटे छोटे बच्चों जिनकी तादाद भी लगभग 35000 होती है लेकर उड़ चलते हैं। हमारी नौका जब सवा पाँच बजे पक्षियों के इस मोहल्ले पर रुकी तो पक्षियों का कर्णभेदी कलरव दूर से ही सुनाई दे रहा था।

वॉच टॉवर की ओर जाती पगडंडी

अँधेरा तेजी से फैल रहा था इसलिए नौका से उतरकर जंगल की पगडंडियों पर हम तेज़ कदमों से लगभग भागते हुए वाच टॉवर की ओर बढ़ गए। जंगल के बीचो बीच बने इस वॉच टॉवर की ऊँचाई 25-30 मीटर तक की जरूर रही होगी क्यूँकि ऊपर पहुँचते पहुँचते हम सब का दम निकल चुका था। पर वॉच टावर के ऊपर चढ़कर जैसे ही मैंने चारों ओर नज़रें घुमाई मैं एकदम से अचंभित रह गया।

दूर दूर तक उँचे पेड़ों का घना जाल सा था। और उन पेड़ों के ऊपर थे हजारों हजार की संख्या में बगुले सरीखे काले सफेद रंग के पक्षी। जिंदगी में पक्षियों के इतने बड़े कुनबे को एक साथ देखना मेरे लिए अविस्मरणीय अनुभव था। ढलती रौशनी में इस दृश्य को सही तरीके से क़ैद करने के लिए बढ़िया जूम वाले क़ैमरे की जरूरत थी जो हमारे पास नहीं था। फिर भी कई तसवीरें ली गई और उनमें से एक ये रही…

हर शाख पे 'बगुला' बैठा है


वन विभाग के कर्मचारियों का कहना था कि साल में जंगल के जिस इलाके में ये बगुले हजारों की संख्या में अपना आसन जमाते हैं उस साल इनके मल अवशेषों से उतने जंगल सूख जाते हैं और ये क्रमबद्ध प्रक्रिया चलती रहती है।

साँझ ढल रही थी सो हमें ना चाहते हुए भी बाघा गाहन से विदा लेनी पड़ी। आधे घंटे बाद शाम छः बजे हम डाँगमाल के वन विभाग के गेस्ट हाउस में पहुँचे। आगे क्या हुआ ये जानने के लिए इंतज़ार कीजिए इस श्रृंखला की अगली पोस्ट का ।

नज़ारे भितरकनिका के : मैनग्रोव के जंगल, नौका विहार और पक्षियों की दुनिया ! was last modified: July 22nd, 2024 by Manish Kumar
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