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घुमक्कड़ साक्षात्कार – द्विभाषी घुमक्कड़ मुकेश के साथ

घुमक्कड़.कॉम के पाठकों को नव वर्ष की हार्दिक शुबकामनाएं| “Featured Authors” की श्रंखला में २०१२ जनवरी में एक ऐसा नाम जुड़ा है जो इस छोटे से ख़िताब को और ऊंचाईओ तक ले जाएगा| आप सभी लोगों से ये नाम छुपा नहीं है और संपादिका जी ने महीने के शुरू में ही इस बात की उदघोषणा कर दी थी पर अगर किसी कारण से आप नव वर्ष के उल्लास की उह-पोह आदि व्यस्ततता के कारण उनका संपादकीय लेख नहीं पढ़ पाय हैं तो थोड़ी भूमिका शायद इस लेख को रोचकीय बना दे|

सन २०१० के मध्य में इन्होने घुमक्कड़.कॉम पर धावा बोला और शुरुआत toranmal से की| २०१० में एक लेख इंग्लिश में लिखने के बाद इन्होने २०११ में कई और लेख अंग्रेजी लिखने के बाद , २०११ के उत्तर भाग में में हिंदी में कमान संभाली| घुमक्कड़ में ये पहले द्विभाषी लेखक बने| इनके हिंदी के प्रसंग और ज्यादा पोपुलर है और २०११ के वार्षिक सम्मान ” Ghumakkar of the year 2011″ में टॉप टेन में रहे| तो बिना और पहेली बुझाते है, लीजिए पेश है २०१२ के पहले “Featured Author”, सबके प्रिय श्री मुकेश भालसे|

सोमनाथ मन्दिर में


गत सप्ताह मुझे इनसे फोन पर साक्षात्कार लेने का मौक़ा लगा, प्रस्तुत है इनसे हुई बातचीत के मुख्या अंश|

घुमक्कङ मुकेश-

घुमक्कङ: मुकेश जी, अपने बारे में जो आपकी प्रोफ़ाइल में लिखा है उसके अलावा कुछ बताएं?
मुकेश: जैसा की मैंने अपनी प्रोफाइल में लिखा है, मैं शिक्षा तथा पेशे से एक मेकेनिकल इंजिनीयर हूँ, मूल रूप से मध्य प्रदेश के खरगोन जिले से सम्बन्ध रखता हूँ तथा इंदौर (मध्य प्रदेश) से लगे औद्योगिक क्षेत्र में स्थित एक स्टील प्रोसेसिंग प्लांट में मेनेजर (क्वालिटी एश्योरेंस) के पद पर कार्यरत हूँ तथा अपनी कंपनी का प्रबंधन प्रतिनिधि (मेनेजमेंट रिप्रेजेंटेटिव) हूँ. मेनुफेक्चरिंग यूनिट्स में गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली (Quality Management System) विकसित करने में मुझे महारत हासिल है तथा यही मेरे कार्य का हिस्सा भी है. मैं गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली का अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त लेखा परीक्षक (लीड ऑडिटर) भी हूँ. अपने कार्य क्षेत्र के नजदीक ही कंपनी के द्वारा प्रदान किये गए फ्लेट में अपने परिवार के साथ रहता हूँ.

मेरे परिवार में कविता (मेरी अर्धांगिनी), बेटी संस्कृति जो कक्षा आठ की विद्यार्थी है तथा बेटा वेदांत जिसे हम प्यार से शिवम् कहते है क्योंकि हम उसे भगवान शिव का वरदान मानते हैं, सीनियर मोंटेसरी का विद्यार्थी है. कविता जो की स्वयं भी घुमक्कड़ की बहुत बड़ी प्रशंसक तथा नियमित पाठक है और जल्दी ही अपनी पहली पोस्ट के साथ घुमक्कड़ की लेखक बनने जा रही है, वह एक गृहिणी है तथा परिवार की जिम्मेदारियों के निर्वाह में मेरा पूरा सहयोग करती है.
मैं एक निर्व्यसनी, शाकाहारी, सहृदय, परोपकारी, मिलनसार,खुशमिजाज, संयमी तथा भावुक व्यक्ति हूँ और यही गुण मेरे व्यक्तित्व के आधारस्तंभ हैं. ऐसा नहीं है की मेरे में बुराइयाँ नहीं हैं, मैं थोड़ा सा आलसी हूँ, कभी कभी तेज गुस्सा भी आ जाता है लेकिन ये दुर्गुण मिलकर भी मेरे व्यक्तित्व को कतई कमजोर नहीं बनाते हैं.

मैं अपने परिवार से बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ. अपने ऑफिस के सारे काम निबटाने के बाद मुझे जितना भी समय मिलता है मैं अपने परिवार के साथ बिताना पसंद करता हूँ, और शायद इसीलिए घुमक्कड़ी भी कभी अकेले नहीं करता हूँ, सही बताऊँ तो मेरी छोटी सी दुनिया मेरे परिवार तक ही सिमटी हुई है.

मेरी रुचियों (Hobbies) में पर्यटन (घुमक्कड़ी) निर्विवाद रूप से सर्वोपरि है उसके बाद संगीत तथा साहित्य. विभिन्न सामाजिक तथा तकनिकी विषयों पर व्याख्यान देना मेरी अन्य रुचियों में शामिल है.

घुमक्कङ: आप और आपके परिवारजन शिव जी के भक्त हैं। यह श्रद्धा आपके जीवन का हिस्सा कब से है?
मुकेश: आपने बिलकुल सही कहा नंदनजी, हम लोग भगवान शिव के अनन्य भक्त हैं. वैसे हम सभी धर्मों का आदर करते हैं तथा सभी हिन्दू देवी देवताओं का पूजन स्मरण करते हैं, लेकिन जहाँ भक्ति की बात आती है तो वो भोले बाबा से शुरू होकर उन्ही पर ख़त्म होती है. हमारे घर का माहौल पूरी तरह से शिवमय है, रोजाना भगवान् शिव को बिल्व पत्र चढ़ाये जाते हैं, म्यूजिक सिस्टम पर शिवाष्टकम, रुद्राष्टकम, शिवमहिम्नस्तोत्रम, शिव चालीसा, ॐ नमः शिवाय धुन, महामृत्युंजय मंत्र आदि की ध्वनि सुनाई देती हैं. सोमवार को सभी भगवान् शिव का व्रत रखते हैं, शिवरात्रि हमारे लिए सबसे बड़ा त्यौहार होता हैं, सावन के महीने में हर सोमवार को शिवालय में रुद्राभिषेक करते हैं. भगवान् शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों की यात्रा करना हमारा संकल्प है जिसका हम पूरी निष्ठा से निर्वाह कर रहे हैं.

जैसे की आपका प्रश्न है यह श्रद्धा हमारे जीवन का हिस्सा कब से है, तो यहाँ पर मैं एक बात खुले दिल से स्वीकार करना चाहूँगा की शादी से पहले मैंने शायद ही कभी किसी मंदिर में अगरबत्ती लगाईं हो, यानी मैं पूजा पाठ, ईश्वर भक्ति आदि में विश्वास नहीं करता था, लेकिन शादी के बाद, कविता की वजह से मैं अपने आप ही ईश्वर की और श्रद्धानवत होता चला गया. कविता बेसिकली एक बहुत धार्मिक विचारों वाली महिला है तथा उसने पुरे घर का माहौल भक्तिमय बना रखा है. हमारा पांच साल का बेटा वेदांत भी रोज़ सुबह सूर्य को अर्घ्य चढ़ाता है. अतः आज मैं जो भी थोड़ी बहुत भक्ति करता हूँ उसका श्रेय कविता को ही जाता है.
दूसरी बात यहाँ मैं बताना चाहूँगा की तिन वर्ष पहले हम अपनी ज्योतिर्लिंग यात्राओं के अंतर्गत सोमनाथ दर्शन के लिए गए, सोमनाथ मंदिर में प्रवेश करते ही मुझे कुछ अलग ही तरह की अनुभूति हुई. मंदिर के बाहर तथा अन्दर के वातावरण ने मेरे अंतर्मन पर कुछ ऐसा प्रभाव डाला की मेरी आत्मा तथा शरीर कुछ समय के लिए जैसे किसी अद्रश्य अध्यात्मिक शक्ति के वशीभूत हो गए. और जब आरती शुरू हुई तो मेरी आस्था अपने चरम पर पहुँच गई, मुझे ऐसा महसूस हुआ की इस दुनिया में भगवान् शिव के सिवा और कोई अध्यात्मिक शक्ति है ही नहीं. सोमनाथ मंदिर की दीवारों से टकराती समुद्र की लहरें ऐसा एहसास दे रही थी मानो समुद्र भगवान शिव का पद प्रक्षालन कर रहा हो. मंदिर के शिखर पर लहराती विशाल ध्वजा शिव की सत्ता का जयघोष कर करती हुई सी प्रतीत हो रही थी. बस उसी क्षण, उसी दिन से शिव के प्रति मन में अगाध श्रद्धा तथा आस्था ने घर कर लिया.

घुमक्कङ: धार्मिक स्थलों की यात्रा आपके वार्षिक नियम का भाग है। भारत में वैसे भी धार्मिक टूरिज़्म पूरे टूरिज़्म उद्योग का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए ऎसी कोई सुविधा है जो कि यात्रियों को मिलनी चाहियें धार्मिक स्थलों, रहने के स्थलों, तथा यातायात के साधनों में जिससे यात्रियों का अनुभव सुखद रहे?
मुकेश: जी नंदन बिलकुल सही है, अभी हमारा पूरा ध्यान हमारे द्वारा सूचीबद्ध किये गए धार्मिक स्थलों की यात्रायें पूरी करने पर केन्द्रित है, सारे मुख्य धर्मस्थल पुरे करने के बाद अन्य रमणीय स्थलों की सैर करने के बारे में सोचेंगे. यह भी सही है की भारत में धार्मिक पर्यटन, पर्यटन उद्योग का एक बहुत बड़ा हिस्सा है. भारत में भिन्न भिन्न धार्मिक स्थानों, मंदिर संस्थानों, ट्रस्टों के द्वारा प्रदान की जाने वाली सुविधाओं का स्तर भी अलग अलग है, कहीं रहने की सुविधा सर्वोत्तम है तो कहीं भोजन की, कहीं यातायात के साधन सुलभ हैं तो कहीं पण्डे पुजारियों का मधुर व्यव्हार दिल को छु लेता है, कहने का मतलब है की हर धर्मस्थल पर कुछ चीजें प्रभावित कर जाती हैं तो कुछ चीजों से मन दुखी हो जाता है. अतः इस प्रश्न का सटीक जवाब देना थोडा सा मुश्किल है. वैसे मेरे विचार से धार्मिक पर्यटन स्थलों को यात्रियों की सुविधा के लिए अधिक से अधिक मात्रा में धर्मशालाओं के निर्माण की और ध्यान देना चाहिए क्योंकि तीर्थ यात्री के लिए सबसे महत्वपूर्ण सुविधा यही होती है.

घुमक्कङ: घुमक्क्ङी के अलावा आप साहित्य तथा संगीत में भी रुचि रखते हैं। अपने पसदा लेखकों तथा संगीतकारों के विषय मेंबतायें। आप किस प्रकार की पुस्तकें पढना तथा संगीत सुनना पसंद करते हैं?
मुकेश: मेरे विचार से मनुष्य के पास आधारभूत सुख सुविधाओं के अलावा घुमक्कड़ी करने के लिए पर्याप्त समय तथा धन, मनोरंजन के लिए पसंदीदा संगीत तथा मन को प्रफुल्लित करने के लिए उम्दा साहित्य उपलब्ध हो तो शायद उसे जीवन में और किसी चीज की कोई आवश्यकता ही नहीं है. मुझे भी घुमक्कड़ी के बाद संगीत तथा साहित्य का बहुत शौक है. मैं हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं में कहानी, कविता, यात्रा वृत्तान्त तथा व्यंग्य पढना पसंद करता हूँ, मुझे प्रेमचंद साहित्य पढना सबसे अच्छा लगता है, तथा मुंशी प्रेमचंद ही मेरे पसंदीदा लेखक हैं, मैंने उनकी लगभग सभी कहानियां पढ़ी हैं तथा कुछ उपन्यास जैसे निर्मला, गोदान, गबन आदि पढ़े हैं. मुंशी प्रेमचंद की कुछ कहानियों ने मेरे जेहन में गहरी छाप छोड़ी है तथा उन कहानियों को मैंने कई कई बार पढ़ा है जैसे ईदगाह, कफ़न, बूढी काकी, पंच परमेश्वर, पूस की रात, नमक का दरोगा, बड़े घर की बेटी, अलग्योझा आदि आदि. मुंशी प्रेमचंद की कहानियों की विशेषता है की वे सिचुवेशन का ऐसा सटीक वर्णन करते हैं की आँखों के आगे अपने आप द्रश्य उपस्थित हो जाते हैं. “बूढी काकी” में पूड़ियों, कचौड़ियों तथा तरकारियों के स्वाद का ऐसा वर्णन किया गया गया है बस मुंह में पानी आ जाता है तथा इन व्यंजनों का रसास्वादन करने को मन मचलने लगता है. “कफ़न” में घीसू और माधव के निकम्मेपन तथा निर्लज्जता का वो ताना बाना बुना है की शर्म भी शरमा जाये. पूस की रात में कडाके की ठण्ड का वो वर्णन पढने को मिलता है की मई जून की गर्मी में भी ठण्ड लगने लगे. मुझे तो प्रेमचंद साहित्य के आगे मेक्सिम गोर्की तथा एंटोन चेखव भी फीके लगते हैं.

संगीत में मैं पुराने इंडियन फ़िल्मी मेलोडियस गाने सुनना पसंद करता हूँ. किशोर कुमार मेरे पसंदीदा गायक हैं, उनके लगभग सभी गीत मेरी जुबान पर होते हैं. अन्य गायकों में महेंद्र कपूर, डॉ. के. जे. येसुदास, लता मंगेशकर आदि के गीत सुनना पसंद करता हूँ. सूफी संगीत तथा ग़ज़लें सुनना भी मुझे पसंद है.

घुमक्कङ: परिवारिक ज़िम्मेदारियों और फ़ुल-टाइम जौब के चलते आप घुमक्क्ङी तथा अन्य रुचियों के लिये समय कैसे निकाल लेतेहैं?
मुकेश: जहाँ तक पारिवारिक जिम्मेदारियों तथा घुमक्कड़ी का सवाल है, तो मेरा सीधा सा जवाब है की मेरी हर घुमक्कड़ी के दौरान मेरा परिवार मेरे साथ होता है. कुछ कार्यालयीन यात्राओं को छोड़ दिया जाए तो मैंने कभी भी कोई भी यात्रा अकेले नहीं की है हम हर जगह साथ ही जाते हैं.
जॉब तथा घुमक्कड़ी के सम्बन्ध में एक सबसे बड़ा तथ्य है की मैं घुमक्कड़ी के अलावा किसी और कारण से कभी अपने जॉब से छुट्टी लेता ही नहीं हूँ अतः मेरे वरिष्ठ अधिकारी को मुझे छुट्टी देने में कभी कोई परेशानी नहीं होती है. वर्ष में हमें लगभग 50 सवैतनिक छुट्टियाँ मिलती हैं उसमें से 15 -20 छुट्टियाँ मैं घुमने के लिए ले लेता हूँ, तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है. और दूसरी बात यह है की मैं जिस कंपनी में कार्यरत हूँ वहां हमें पूरी तरह से घरेलु माहौल प्रदान किया जाता है, किसी प्रकार की भाग दौड़, मारामारी, टांग खिंचाई आदि नहीं हैं, हमें अपनी सुविधा से जीवन जीने जी स्वतंत्रता दी जाते है अतः हम अपने ढंग से अपना जीवन जीते हैं. मेरे जॉब में किसी तरह की स्ट्रेस शामिल नहीं है. हमारे टॉप मेनेजमेंट की और से भी हमें पूरा सहयोग मिलता है. और फिर एक महत्वपूर्ण बात यह है की जहाँ चाह होती है वहां राह अपने आप ही निकल जाती है, कोई भी व्यक्ति कितना भी व्यस्त क्यों न हो अपने जूनून को पूरा करने के लिए तो समय निकाल ही लेता है. हमारे कई घुमक्कड़ भाई ऐसे भी होंगे जिनके लिए समय निकलना इतना आसान नहीं होता होगा लेकिन फिर भी आखिर अपना शौक पूरा करने के लिए वे कैसे भी समय निकाल ही लेते हैं. अन्य रुचियाँ भी किसी तरह पूरी हो ही जाती हैं जैसे हर रात सोने से पहले कम से एक घंटा मोबाइल तथा हेड फ़ोन की सहायता से अपने मनपसंद गीत सुनता हूँ. साहित्य पढने के लिए आजकल थोडा कम ही समय मिल पाता है लेकिन फिर भी हर सफ़र से पहले रेलवे स्टेशन से पुस्तक खरीदना नहीं भूलता हूँ.

बच्चों के साथ

घुमक्कङ और मुकेश-

घुमक्कङ: आप सितम्बर २०१० में घुमक्कङ के सदस्य बने थे। आपका अब तक का घुमक्कङ के साथ सफ़र कैसा रहा?
मुकेश: हाँ मैं ऐसे ही अपने किसी अगले टूर के लिए गूगल खंगाल रहा था तब अचानक ही यह बेशकीमती खज़ाना मेरे हाथ लग गया और लगे हाथों मैंने इस पर अपनी उपस्थिति दर्ज करनी शुरू कर दी थी. घुमक्कड़ के बारे में मैं जितना कहुं उतना कम है. घुमक्कड़ी का शौक तो बचपन से ही था और घूमते भी थे, लेकिन कभी यह सोचा नहीं था की अपनी यात्राओं को इतने ख़ूबसूरत ढंग से प्रकाशित तथा संगृहीत करने का मौका मिलेगा, घुमक्कड़ ने मुझे वो मौका दिया है की मैं अपने यात्रा अनुभवों को हजारों लाखों लोगों तक पहुंचा सकुं और लोग उनसे प्रेरित होकर उन ख़ूबसूरत जगहों की यात्रायें करें. मैं चुंकि मुख्य रूप से धार्मिक यात्रायें ही करता हूँ, अतः मेरी तथा कविता की हमेशा यह इच्छा रहती है की हमसे प्रेरित होकर और लोग भी भगवान् के दर्शनों के लिए जाएँ, तथा हमारी यह इच्छा पूरी भी होती है. अपनी पोस्ट पर कमेंट्स के अलावा भी घुमक्कड़ की वजह से हमें संपूर्ण भारत वर्ष से कई लोगों से ई- मेल तथा फ़ोन काल्स आते हैं सम्बंधित जगह के विषय में जानकारी के लिए, और यह जानकारी देकर हमें बहुत आत्मिक शांति मिलती है की हम किसी न किसी रूप में किसी के काम आ रहे हैं तथा ईश्वर की सेवा कर रहे हैं. घुमक्कड़ के जरिये नंदन तथा विभा बहुत ही पुण्य का कार्य कर रहे हैं, मेरी और से उन्हें साधुवाद.

हमारे दिन की शुरुआत घुमक्कड़ के साथ ही होती है, घर पर भी कंप्यूटर स्टार्ट करने के बाद पहला काम होता है घुमक्कड़ खोलना तथा ऑफिस पहुंचकर वहां भी सबसे पहले घुमक्कड़ ही खोला जाता है. आजकल तो हम पति पत्नी के बिच अधिकतर संवाद का विषय भी घुमक्कड़ ही होता है. शाम को खाना खाने के बाद सभी साथ में बैठकर बड़े चाव से घुमक्कड़ पढ़ते हैं. कहने का मतलब है घुमक्कड़ हमारी रग रग में लहू बनकर दौड़ता है. यह हमारे परिवार का एक अभिन्न हिस्सा है. घुमक्कड़ पर मेरे पसंदीदा लेखक हैं – जाट देवता, महेश सेमवाल, मनीष कुमार, रितेश गुप्ता, अमित कुमार तथा साहिल सेठी.

घुमक्कड़ के दोनों सूत्रधार नंदन झा तथा विभा मल्होत्रा के प्रयास सराहनीय हैं, मेरा अनुभव आप दोनों के साथ शुरू से ही बड़ा सुकुनदायक रहा है. शुरू से आज तक दोनों की और से सहयोग में कभी कोई कमी नहीं आई है. पोस्ट तैयार करने से लेकर प्रकाशित करने तक दोनों हरसंभव मदद करते हैं तथा हर मेल का तुरंत तथा बड़ी तन्मयता से जवाब देकर हर गुत्थी को चुटकियों में सुलझाते हैं.

घुमक्कड़ के साथ मेरे अनुभवों की फेहरिस्त अभी समाप्त नहीं हुई है, एक और बड़ी दिलचस्प बात बताना चाहता हूँ की किस तरह घुमक्कड़ के द्वारा दिल से दिल मिलते हैं. जिस तरह जाट देवता को धर्मेन्द्र सांगवान मिले और एक अविस्मरनीय यात्रा की उसी तरह मुझे भी घुमक्कड़ डोट कॉम के माध्यम से एक बहुत ही अच्छा दोस्त मिला है. पिछले वर्ष मेरी ओम्कारेश्वर की पोस्ट पढने के बाद घुमक्कड़ के एक अन्य लेखक विशाल राठोड मेरे संपर्क में आये, पहले कमेंट्स, फिर ई मेल और अंततः फ़ोन के जरिये हमारे बिच संवाद होने लगा और आज हम बहुत अच्छे दोस्त हैं और इसी वर्ष मार्च में दोनों परिवार साथ में कर्नाटक की धार्मिक यात्रा पर जा रहे हैं, रिजर्वेशन हो चुके हैं. हम लगभग हर दुसरे दिन एक दुसरे से फ़ोन पर बात करते हैं. अब आप सोच सकते हैं मेरे जीवन में घुमक्कड़ की क्या एहमियत है.

घुमक्कङ: आपने अंग्रेज़ी में लिखना शुरू किया था। और आपके लेख पाठकों को बहुत पसंद आये। फिर आपने अचानक हिन्दी मेंलिख कर सबको चकित कर दिया। आपको हिन्दी में लेख लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
मुकेश: मैं अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों ही भाषाओँ में अपने विचार व्यक्त कर सकता हूँ. घुमक्कड़ पर मैंने शुरुआत अंग्रेजी से ही की थी क्योंकि यहाँ पर मैंने अंग्रेजी का ही बोलबाला देखा था, घुमक्कड़ पर हिंदी के लेख मेरे ख्याल से पांच प्रतिशत से ज्यादा नहीं होंगे, और हिंदी के लेखक भी गिने चुने ही हैं जैसे जाट देवता, मनीष कुमार, रितेश गुप्ता, नीरज जाट आदि. अतः मेरी इच्छा थी की घुमक्कड़ पर हिंदी के लेखों की भागीदारी बढे, क्योंकि मैं सोचता हूँ की घुमक्कड़ के पाठक वर्ग में भी अंग्रेजी के बजाय हिंदी को अच्छे से समझने वाले लोग पचास प्रतिशत से ज्यादा ही हैं.

जहाँ तक हिंदी में लिखने की प्रेरणा का सवाल है, एक हिंदी भाषी होने के नाते अंग्रेजी का ज्ञान होने के बावजूद मैं हिंदी में ही अपने आप को सहज महसूस करता हूँ, हिंदी भाषा मेरे दिल के करीब है तथा अपनी भावनाओं को हिंदी में ज्यादा अच्छे तरीके से व्यक्त कर पाता हूँ.

दूसरा एक सशक्त कारण है कविता का घुमक्कड़ तथा मेरी पोस्टों में रूचि लेना, कविता वैसे तो देवी अहिल्या विश्व विद्यालय इंदौर से हिंदी साहित्य में प्रथम श्रेणी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त हैं, लेकिन उन्हें अंग्रेजी भाषा समझने में थोड़ी कठिनाई होती है, और मैं चाहता था की वो मेरी पोस्ट घुमक्कड़ पर पढ़ कर अच्छे से समझ सके, अतः मैंने निर्णय लिया की मेरी धार्मिक यात्रा की पोस्ट मैं हिंदी में ही लिखूंगा. और मैं अपने मिशन में सफल हुआ, मेरे हिंदी में लिखना शुरू करने के बाद से ही कविता ने घुमक्कड़ में रूचि लेना शुरू किया और आज वो घुमक्कड़ की नियमित पाठक बन गई है और हिंदी घुमक्कड़ लेखक बनने की तैयारी में है.

घुमक्कङ: आप घुमक्कङ पर दोनों भाषाओं में लेख लिख चुके हैं। दोनो भाषाओं में लिखने में आपको क्या सुविधायें अथवा असुविधायेंहुईं और पाठकों की प्रतिक्रिया देख कर कैसा लगा?
मुकेश: अंग्रेजी में लिखना थोडा आसान होता है, क्योंकि डाइरेक्ट टाइप किया जा सकता है, लेकिन हिंदी में लिखने के लिए पहले पोस्ट को कागज पर लिखकर फिर किसी वेबसाईट की सहायता से ट्रांसलिटरेट करके वर्ड में पेस्ट करना होता है जो की थोडा मुश्किल होता है. घुमक्कड़ पर पाठकों का प्यार तथा प्रशंसा किसी भाषा का मोहताज नहीं हैं. भाषा के अंतर से पाठकों की प्रतिक्रिया पर कोई असर मैंने तो महसूस नहीं किया.

घुमक्कड़ पर कुछ लेखक अन्य लेखकों के लगातार उत्साहवर्धन तथा प्रशंसा के लिए अनवरत प्रतिक्रियाएं करते हैं| मैं उन लेखकों की तहेदिल से तारीफ़ करना चाहता हूँ जो लगातार अन्य लेखकों की पोस्ट पर प्रतिक्रिया करते है तथा उत्साहवर्धन करते हैं जैसे – जाट देवता संदीप पंवार, डी एल नारायण, महेश सेमवाल, साइलेंट सोल, विशाल राठोड, नीरज जाट, रितेश गुप्ता, वेद प्रकाश, नंदन, विभा कभी कभी राम ढल जी अशोक शर्मा जी आदि. (किसी कमेन्टर का नाम छुट गया हो तो माफ़ कर दीजियेगा)

हवन करते हुए

घुमक्कङ: जनवरी २०१२ के फ़ीचर्ड औथर बन कर आपको कैसा महसूस हो रहा है?
मुकेश: मैं जनुअरी २०१२ का फीचर्ड ऑथर बन कर बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ, मेरे लिए ख़ुशी की बात यह है की 2012 की फीचर्ड ऑथर की शुरुआत मुझसे ही हुई है यानि यह वर्ष मेरे लिए तथा मेरी घुमक्कड़ी के लिए शुभ साबित होगा . मैं कविता, संस्कृति तथा शिवम् सभी बहुत खुश हैं. एक बार फिर से घुमक्कड़ तथा नंदन एवं विभा का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ की उन्होंने मेरे हुनर की क़द्र की तथा मुझे इस लायक समझा और इस सम्मान से नवाज़ा. इस सम्मान के साथ ही मेरी घुमक्कड़ के प्रति जिम्मेदारियां बढ़ गईं है, तथा मैं आप सभी से यह वादा करता हूँ की आने वाले वर्ष में मैं आप लोगों के सामने और अच्छी गुणवत्ता वाले लेखों के साथ उपस्थित होऊंगा.

घुमक्कङ: आप अपने साथी घुमक्कङों और पाठकों को कुछ कहना चाहेंगें?
मुकेश: सबसे पहले तो मैं सभी पाठकों और साथी लेखकों को मेरे पुरे परिवार की और से नव वर्ष की हार्दिक बधाई देना चाहता हूँ तथा ईश्वर से कामना करता हूँ की आप सभी के लिए यह वर्ष सुखमय हो. आप सभी अपने dream Destinations की सैर करें.
आप सभी से मेरा अनुरोध है की आप पोस्ट पढ़ते हैं तो कुछ क्षणों का समय निकाल कर दो शब्दों की एक छोटी सी कमेन्ट कर दें, उससे लेखकों का उत्साहवर्धन होता है और वे अच्छा लिखने के लिए प्रेरित होते हैं. हर लेखक को पोस्ट प्रकाशित होने के बाद सबसे पहले किसी चीज का इंतज़ार होता है तो वो होता हैं आपकी कमेन्ट का.
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मुकेश जी, आपसे बात करे बहुत ही अच्छा लगा| आपके विचार बहुत प्रेरणादायक हैं। आशा है भविष्य में ऐसे कई मौके और लगेंगे| आपसे परस्पर जुड़े रहने और आपके और प्रेरणादायक लेख पढ़ते रहने की आशा के साथ, हार्दिक धन्यवाद हमसे बात करने के लिए |

घुमक्कड़ साक्षात्कार – द्विभाषी घुमक्कड़ मुकेश के साथ was last modified: June 15th, 2024 by Nandan Jha
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