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घुमक्कड़ी – कुछ खट्टी – कुछ मीठी ( इस बार विदेशों से)

दोस्तो आशा है आपने मेरी पिछली यादें पढ़ी होंगी कि किस तरह घुमक्कड़ी न केवल हमारा मनोरंजन करती है बल्कि हमारा ज्ञान वर्धन भी करती है, हमें सहिष्णु बनाती है, बहादुर बनाती है और हमारे भविष्य का निर्धारण भी करती है.  हिमालय में घुमक्कड़डी के अलावा मैने लगभग 25 विदेशी देश व उनके 100 शहर देखे है… और यहां की खट्टी मीठी यादें भी कुछ कम नही…..

तो इस बार की खट्टी-मीठी यादें विदेशों से !!! आशा है आप इस कड़ी को भी उतना ही पसन्द करेंगे जैसे पिछली कड़ियों को किया

1983 – मेरी पहली विदेश-यात्रा… वो भी ऐसी जगह जिसका नाम मेरे आस-पास किसी ने नहीं सुना था— अनतानानारीवो…चौंक गये न नाम सुन कर  ?? ये है मैडागास्कर की राजधानी… मैडागास्कर मारिशस और साउथ अफ्रीका के बीच एक बड़ा सा द्वीप है हिन्दमहासागर में । तो हमें दिल्ली से बंबई ..वहां से मारिशस और फिर वहां से मैडागास्कर जाना था। मारिशस में हमें 3 दिन रुकना था, अगली उड़ान पकड़ने के लिए । हमारे (मैं, श्रीमतिजी और 1 वर्ष का शान्तनु) लिए होटल कांटिनैन्टल  जो क्यूरपिप नामक स्थान पर था, में रहने का इन्तजाम किया गया था।

City of curepipe – Mauritus

क्यूरपिप एक बहुत ही सुरम्य स्थल है व बहुत सी बालीवुड फिल्मों की शूटिंग यहां होती रहती है ।  होटल से पहाड़ियां व समुद्र का नजारा देखने वाला था । खैर शाम हम खाना खाने उनके रेस्त्रां में पंहुचे । बैरे को बड़ी मुश्किल से समझाया कि हमें शाकाहारी खाना चाहिये। अधिकतर लोग No meat कहने पर मांस नही पर मछली व अंडा समझते हैं.  वो भाई भी मछली की तरकारी ले आया…फिर उसे बोला कि भाई मछली भी नहीं केवल सब्जियां ।  वो कुछ देर बाद चावल, उबले हुए मटर और ब्रैड दे गया । जैसे ही मैने चावल में मटर मिला कर खाना शुरु किया उसमें से तेज़ मच्छी की महक आई… जो नहीं खाते उन्हे ज्यादा आती है। मैने खाना छोड़ दिया और श्रीमति ने खुद  व बच्चे को ब्रैड-मक्खन  दे दिया । मुझसे कुछ भी खाया नहीं गया क्योंकि हर चीज़ से मच्छी की smell आने लगी ।

मैं कभी कभार दोस्तों के साथ बीयर पी लेता था…… तो खाने के बदले मैने बीयर मंगवाई और मूंगफली व काजू के साथ बीयर पी कर पेट भरा  और सो गये… चिन्ता करते हुए कि 3 दिन यहां भूखे कैसे रहेंगे। श्रीमति तो अंडा खा लेती थी सो अगले दिन का ब्रेकफास्ट उनका ठीक हो गया और बच्चे को भी  वही खाने को दे दिया.. रह गया मैं जो एक कप चाय पीकर दुखी  मन से बालकोनी में घूमने लगा ।

थोड़ी देर बाद नीचे देखा तो एक आदमी भारतीय स्टाइल में साइकल के पीछे एक पीपा बांध कर खड़ा था..पीपे में आलू की सब्जी थी जो वो 4 रोटियों के साथ पैक करके लोगो को दे रहा था ।  मेरी तो बांछे खिल गई.. पर सोचा नीचे कैसे जाउं वहां पहुचने का रास्ता कहां से होगा…. भाषा कैसे बोलूंगा और होटल वाले तो बाहर का खाना अंदर नहीं लाने देंगे इत्यादि-2 । वैसे भी उससे रोटियां लेने वाले मजदूर तबके के लग रहे थे तो काफी सोच-विचार में पड़ गया कि क्या करुं… भूखा मरूं या रोटी लेकर आऊं।

बाहर एक भारतीय सा लगने वाला आदमी सफाई कर रहा था उसे बुलाया और आलू वाले को दिखा कर पूछा – ये क्या बेच रहा है… उसने आधी क्रियोल आधी अंग्रेजी में बताया कि  वो आलू और ब्रैड है ।  अचानक वो हिंदी में बोला – आपको खाना है क्या.. मैने उसे खुश होकर गले लगा लिया और बोला भाई कल से कुछ नहीं खाया अगर ला दो तो आपकी मेहरबानी । वो एक क्रीयोल था जिसके पुरखे कई सौ वर्ष पहले यहां आये थे… उसकी हिंदी कुछ बिहारीयों जैसी थी पर आसानी से समझ नहीं आती थी। वो भाई पैसे लेकर बाहर गया और सर्विस गेट से बाहर जाकर 5 मिनट में गर्मा-गरम आलू की सब्जी और पतली-पतली 4 रोटियां ले आया.. कीमत सिर्फ 15 रुं ।  फिर तो मैने उसे कहा भाई रोज़ मुझे ये ला देना मैं आपको लाने के अलग से पैसे दे दूंगा… और 3 दिन आराम से निकल गये ।

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अगले दिन मुझे राजधानी Port Louis जाना था, मैडागास्कर का वीज़ा लेने… टैक्सी में हम 25-30 मिनट में वहां पंहुचे और हम बिल्डिंग में वीसा लेने गये.. जाने से पहले मैने अपने पासपोर्ट जेब से निकाले और भवन में दाखिल हुए… तकरीबन आधे घंटे बाद जब  बाहर आये तो एक क्रियोल हमारे पास आया और किसी अंजानी भाषा में कुछ बोलने लगा..मैने उसे बताया कि भाई मुझे सिर्फ अंग्रेजी आती है.. वो अब  अंग्रेजी में बोलने लगा –

Have you lost your money ?
I said – No i havent..

He said – No you check again you have lost your money !

मेरी आखों के सामने दिल्ली – मुम्बई के ठग घूमने लगे जो ऐसे ही बेवकूफ बना कर लोगो के पैसों पर हाथ साफ करते हैं. मैने तीखी आवाज़ में कहा – Dont you think You can befool me… why are you harassing me ? should I call the police ?

He said – no brother I am not harassing you.. you just check your money again if you have lost it

मैने धीरे से अपनी जेब में हाथ डालकर अपने एकमात्र 300 डालर जो उन दिनों रिजर्व बैंक की विशेष अनुमति से मिलते थे, को देखा.. तो वो वहां नहीं थे… मेरे तो होश उड़ गये इस परदेस में छोटे बच्चे के साथ बिना पैसों के क्या होगा…

उस भाई ने मुझे पूछा – Tell me did you loose your money ?

I said – Yes I had 300 dollars in my pocket but they are lost
He said – What was the denomination of 300 dollars ?
I told – they were 3 notes of 100 dollar each.

उस भाई ने अपनी जेब से 300  डालर निकाले और मुझे दिये और बताया कि जब मैं पासपोर्ट निकाल रहा था, तो साथ ही वो नोट निकल कर नीचे गिर गये… वो अपने आफिस जा रहा था पर रुक कर उसने वो नोट उठाए आधा घंटा हमारा इंतजार करता रहा..

मुझे इतनी शर्म आई कि मैं उसे चोर समझ रहा था और वो मेरे लिए इतनी तकलीफ उठा कर मेरे पैसे लौटा रहा था… धन्यवाद बड़ा छोटा शब्द था मैने उसे पंजाबी स्टाईल में जफ्फी डाली फिर माफी मांगी और धन्यवाद दिया…  वो मुस्कुराया और सामने खड़ी अपनी शानदार Mercedes Benz में बैठ कर हाथ हिलाता चला गया…

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मैडागास्कर में नन्हा शान्तनु

मैडागास्कर हवाई अड्डे से सड़ी हुई टूटी फूटी रेनाल्ट टैक्सी में शहर को जा रहे थे.  न मैं मैड़ागास्कर के बारे में कुछ जानता था न मेरे आस पास कोई  और… तब गूगल तो था नहीं कि फट से किसी भी जगह के बारे में पता कर लो… तब तो कमप्यूटर तक नहीं थे.. सब दोस्त मजाक उड़ा रहे थे कि यार लंदन जाओ… पैरिस जाओ.. दुबइ जाओ.. ये कहां जा रहे हो जिसका नाम ही किसी ने नही सुना..

टैक्सी वाले ने टूटी-फूटी अंग्रेजी में पूछा – किस देश से आये हो
मैने बताया – ईंडिया से… क्या तुमने नाम सुना है भारत का
टैक्सी वाला – Yes India.. Indira Gandhi Sanjay Gandhi Mahatama Gandhi.  I am sad that Indira Gandhi’s son died in accident.

मुझे जोर का झटका जोर से लगा… भारत में किसी ने मैडागास्कर का नाम नहीं सुना..  और ये टैक्सी वाला वहां की पूरी राजनीति जानता है | पहली बार मुझे भारत पर गर्व हुआ… कि मेरा देश इतना महान है कि इस गुमनाम से टापू के लोग भी उसके बारे में  जानते हैं |

मेरा भारत महान !!!!!!!!!

और हम होटल पंहुच गये… यहां इस देश में मुझे बड़ा लम्बा समय गुजारना था

मैडागास्कर में नन्हा शान्तनु व नन्ही कनुप्रिया

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बदतमीजी एक विश्वव्यापी बुराई है… पर कुछ देशों का राष्ट्रीय चरित्र ही बदतमीज़ी होता है… ऐसा ही एक देश है कुवैत… जहां मुझे असहिष्णुता, बदतमीजी व घमंड के साक्षात दर्शन हुए। कम से कम 2 घटनाएं तो ऐसी थी जो आज तक मन को बेचैन करती है ।

विमान जब कुवैत उतरा तो हमें 1 घंटे के अंदर भारत जाने वाला विमान पकड़ना था तो विमान रुकते ही अपना सामान पकड़ा और नीचे उतरने के लिए बेताब हो गये.  हमारे आगे एक कुवैती महिला 2 बच्चों के साथ खड़ी थी.. उसके आगे के लोग सब उतर गये पर वो एक दूसरी  अरबी औरत से खड़ी गप्पें मार रही थी। उसके पीछे लम्बी कतार इंतजार कर रही थी पर वो आराम से कोई कहानी सुनाती हुई खड़ी थी ।

अंत में मैने उकता कर उसे कहा – Hello  excuse me.. will you move forward and let us go.
वो गुस्से में मुझे घूर कर बोली – क्या तकलीफ है तुम्हे
मैने कहा – हमे दूसरा जहाज पकड़ना है और आप यहां इतमिनान से गप्पें मार रही है हमें रास्ता दिजीए और जाने दीजिये
वो बड़ी बदतमीजी से बोली – तूने मुझे हैलो क्यो कहा … मैं क्या तेरी नौकर हूं..  ये मेरा देश है.. मैं जो मरजी करूं तू कौन है मुझे रोकने वाला… वापस बोंम्बे जाओ अपने देश में  ..

और वो जोर -2 से चीखने लगी… विमान परिचारिका भागी हुई आई और पूछा – क्या प्राब्लम है.. मैने उसे सारी बात बताई.. पर उसने उस बदतमीज़ औरत को कुछ नहीं कहा और हमें सीटों के बीच से दूसरी कतार से बाहर जाने का रास्ता बताया…हम चुपचाप बाहर निकले और अपमानित से होते हुए नीचे जाकर बस में बैठ गये जो टरमिनल तक ले जाने वाली थी.

बस जब पूरी भर गयी और चलने लगी तो एक कुवैती पुलिस वाला उसमें चढ़ा और बस को चलने का ईशारा दिया.  वो पुलिस वाला बंद बस में सिगरेट के सुट्टे लगा रहा था । आजकल हर विमान में व हवाई अड्डे पर सिगरेट पीना मना है….और बंद बस में तो सिगरट पीना मना भी है और बदतमीजी भी.  उस की सिगरेट का धुआं आस-पास खड़ी सवारियों को परेशान कर रहा था.. खास तौर पर महिलाओं को.  पर वो बदतमीज़  आराम से धुआ उड़ाता हुआ किसी से फोन पर बातें  कर रहा था.

एक फिलीपीनी महिला ने उसे सिगरेट बंद करने को कहा पर उसने परवाह नहीं की… फिर एक व्यक्ति नें , जो शायद दक्षिण भारतीय था, उसे जोर से कहा – सर सिगरेट बंद कर दो.. बस में छोटे बच्चे व महिलाएं हैं जो परेशान हो रही हैं. यहां बस में सिगरेट पीना मना है और तुम पुलिस वाले होकर कानून तोड़ रहे हो ।

उसने फोन बंद किया और उस आदमी पर फट पड़ा – डायलाग वही थे this is my country.. go back to Bombay etc etc.

टर्मिनल आ गया और बस रुकते ही पुलिस वाले ने उस व्यक्ति को पकड़ कर कहा – अपना पासपोर्ट और वीसा दिखाओ… वो भी अकड़ गया कुछ देर में और पुलिस वाले आये और उस शरीफ आदमी को पकड़ कर पता नहीं कहां ले गये । पता नहीं. उसे जेल में डाला या पैसे छीन लिये… या धमका कर छोड़ दिया..काफी लोग इस विषय पर बात कर रहे थे और सब एकमत थे कि कुवैती बड़े घमंडी व बदतमीज है और भारतीयों व पाकिस्तानियों को गुलाम से अधिक नहीं समझते….. मैने कसम खाई कि चाहे मुफ्त में टिकट मिले इस देश में कभी पैर नहीं रखूंगा

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त्रिपोली में हमारे घर के पास

एक बदतमीजी त्रिपोली में भी हुई पर उसकी याद हमेशा चेहरे पर हंसी ले आती थी… हम  अपने  एक भारतीय मित्र के साथ कहीं जा रहे थे… जिस रास्ते पर हम चल रहे थे उस पर दांयी ओर सब्जी मंडी थी  और बांयी ओर बड़ा सा मैदान.  हमारे आगे एक बाबा आदम के जमाने का टैम्पो चल रहा था जिस पर उपर तक तरबूज़ भरे हुए थे.. कुछ आगे जाकर वो टैम्पो धीरे हुआ और उसने बांये मुड़ने का इंडिकेटर दिया.. हमारे मित्र ने गाड़ी उस टैम्पू के दांये से निकाली और अचानक वो टैम्पू दांये मुड़ गया और हमारी गाड़ी को घसीट मार कर रुक गया… मित्र बड़े गुस्से बाहर निकले.. और टैम्पू से निकले एक बुजुर्ग ड्राइवर जो कम से कम 70 साल के थे.. चश्मा मोटे -2 लैंसों का जो एक धागे से कानो पर लपेटा हुआ था… और दोनो में घमासान वाक-युद्ध शुरु.. ये अरबी भाषा में था जो बाद में मित्र ने सुनाया –

मित्र – अस्सलाम आलेकुम बड़े मिंया.. क्या हाल हैं उंटो के, भेड़ों के , परिवार के व तुम्हारे
बुढ़ऊ – वालेकुम  सब खुदा के शुक्र से ठीक है… तुम्हारे जानवर, परिवार व तुम कैसे हो

मित्र – खुदा का शुक्र है (वहां ये डायलाग बोलने आवश्यक हैं.. अन्यथा बदतमीज़ी समझी जाती है )
मित्र – मिंया तुम्हारी गाड़ी तो पहले ही खटारा है.. मेरी भी बना दी… इंडिकेटर दिया बाएं का और अचानक मुड़ गये दायीं और.. ये तो सरासर तुम्हारी गलती है.. अब मेरी गाड़ी ठीक करने के पैसे दो ।
बुढ़ऊ – तू कहां का है .. पाकिस्तानी या भारतीय
मित्र – बड़े मियां मै तो भारत से हूं  (लीबीया में 90 प्रतिशत भारतीय इंजीनीयर या डाक्टर थे…मित्र भी एक बड़ी कंपनी में विद्युत -अभियंता थे)
बुढ़ऊ – तुम लोग कैसे इंजिनीयर व डाक्टर बन जाते हो और यहां आ जाते हो… अक्ल नाम की चीज़ तो तुम में होती नहीं.
मित्र – बड़े मियां गलती तो तुम्हारी है.. चाहे किसी से पूछ लो
बुढ़ऊ – कब से रह रहे हो यहां
मित्र – 10 साल से
बुढ़ऊ – तो बताओ सब्जी मंडी किधर है
मित्र – दांये हाथ पर
बुढ़ऊ – मेरी टैम्पो पर तरबूज़ लदे हैं.. अब बताओ तरबूज़ कहां जाते हैं???सोचो.. सोचो.. हां.. तरबूज जाते हैं सब्जी मंडी… तो मुझे किधर मुढ़ना चाहिये…. दांयी तरफ.
मित्र – पर मिंया इंडिकेटर तो तुमने बांयी ओर का दिया मैं क्या करता
बुढ़ऊ – तभी मैं कहता हूं तुम लोगों में खुदा अक्ल नाम की चीज नही डालता… अरे तू छोटी सी बत्ती को देख रहा है और इतने बड़े -2 तरबूज़ तुझे नजर नही आते ??? तरबूज़ को देखो.. वो मंडी जायेगा.. बत्ती नहीं जायेगी मंडी में  समझ में आया… नकली इंजीनीयर ??

मित्र ने उस से और बहस ना कर के चुपचाप गाड़ी में आये.. और कुछ आगे जाकर हमें पूरी बातचीत बताई.. हंसते -2 हम सब बेहाल… उस मित्र को हम आज भी नकली इंजीनीयर के नाम से पुकारते हैं.

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ये बात उन दिनों की है जब मैं पैरिस में रहा करता था.  1990 में मेरा मित्र लक्षमण अपने परिवार के साथ मेरे पास आया… हम लोग खूब घूमे और मजे किये, फिर कुछ दूर जाने का प्रोग्राम बनाया.  एक मित्र भगत सिंह पैरिस से 600 कि.मी. दूर Strassbourg में रहते थे, व कई दिनों से अपने यहां बुला रहे थे… निर्णय लिया कि उनके पास चलते हैं व जर्मनी भी देख लेंगे….

पैरिस में बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते हुए

उन दिनों GPS का आविष्कार तो हुआ नहीं था, कि पता डाला और पंहुच गये… नक्शे मंहगे कि हर शहर का खरीदना नामुमकिन, सड़्के बहुत बढ़िया, व Sign board perfect तो Strassbourg तक पंहुचने में कोई दिक्कत नहीं हुई। भगत सिंह ने पहले ही बता दिया था कि हाईवे के पहले Exit से बाहर निकलते ही जो पेट्रोल-पम्प आये वहां रुक कर उसे फोन कर दें… फोन करने के बाद भगत 10 मि, में वहां पंहुच गया, व हम उसकी गाड़ी के पीछे चलते हुए  उसके घर पंहुच गये ।

भगत सिह वहां एक रेस्त्रां चलाता था जिसका नाम बड़ा अजीब था – Klein Hof …. रेस्त्रां खूब चलता था व पिज्जे के लिये बहुत मशहूर था…. भगत भाई ने पंजाबी स्टाइल में बड़ी आवभगत की और तरह-2 के परौठे खिला कर सबको खुश कर दिया…क्योंकि वो खुद एक बहुत जबरदस्त कुक था| अगले दिन के लिये भगत सिंह ने प्रोग्राम बनाया कि Frankfurt चलेंगे और वहां उसके  एक मित्र के घर रह कर अगले दिन वापिस आ जायेंगे… और  अगले दिन हम निकल पड़े.. भगत अपनी ऩई BMW में व हम उसके पीछे अपनी बूढ़ी Renault -5 में.  भगत को पहले ही कह दिया कि भइया धीरे चलना ताकि हम पीछे न रह जायें….वो भाई 160 की रफ्तार में गाड़ी भगाता रहा (शायद ये उसके लिए धीरे होगा)… और हम हांफती रेनों-5 में उसके पीछे-2.

भगत सिंह 22 वर्ष फ्रांस में रहने के बाद भी, गाड़ी होशियारपुर स्टाइल में ही चलाता था… फ्रैंकफुर्त पंहुच कर उसने सीधे हाथ का  इंडिकेटर दिया, और इसी बीच हमारे बीच एक और गाड़ी आ गयी.  जैसे ही हमें सीधे हाथ पर बाहर जाती सड़क मिली, हमने अपनी गाड़ी हाइवे से बाहर निकाल दी… ये सोचकर कि भगत ने कुछ देर पहले इंडिकेटर दिया था….बस यहीं हम पंजाबी ड्राइवरी को समझने में भूल कर गये….भगत सीधा निकल चुका था और हम फ्रैंकफुर्त शहर में प्रवेश कर गये.

हमें न तो ये पता था कि भगत के मित्र का नाम क्या है और न ये कि उसका पता क्या है…. अगर तब तक mobile phones का आविष्कार हो जाता तो हम यूं न गुमते.  खैर हम कुछ दूर चलने के बाद सड़क के किनारे खड़े हो गये और ये सोचकर कि भगत हमें पीछे न देखकर शायद  यहां पंहुच जाये और हमें मिल जाये…पर भगत सिंह को न आना था न आया.

मेरी पत्नी व बच्ची भगत के परिवार के साथ उसकी गाड़ी में थे, और मैं लक्षमण के परिवार व अपने लड़के के साथ अपनी गाड़ी में….मैंने पास के PCO से भगत के रेस्त्रां फोन किया, जो उसके मैनेजर ने उठाया, हमने उसे बताया कि हम भगत से अलग हो गये है.  मैनेजर को भगत के दोस्त का नाम तो पता था, पर वो कहां रहता था, ये नहीं…. उसे हमने बताया कि हम फलां जगह पर खड़े हैं, अगर भगत का फोन आये तो उसे बता देना | पर भगत के दिमाग में ये नहीं आया, कि वो अपने रेस्त्रां फोन कर लेता.  लगभग 2 घंटे इंतजार करने के बाद हमने निर्णय लिया कि वापिस चलते हैं… यहां अंजान जगह क्या करेंगे… घूमने फिरने के लिये मूढ़ खराब हो चुका था, सो गाड़ी वापिस Strassbourg  की ओर चला दी.

Strassbourg  पंहुचे तो हाथों के तोते उड़ गये… हमें तो उसके रेस्त्रां का पता ही मालूम नहीं था.  पैरिस से चलते हुए उसका पता लिखा था जो श्रीमति के पास था, जो हमसे बिछुड़ गयी थी… खैर Strassbourg  की गलियों में उसके रेस्त्रां को ढूंढने लगे।  एक दो से पूछा भी कि भाई klein Hof नामक होटल कहां है.. पर किसी को मालूम नहीं…

वैसे भी फ्रैंच लोग उच्चारण को बहुत महत्व देते हैं…. अगर एक ही शब्द किसी और उच्चारण में बोला जाये तो उसका मतलब ही बदल जाता है… मुझे लग रहा था कि हम उसके होटल का नाम ठीक से बोल नहीं पा रहे. Strassbourg  में घुमते -2 हमें 3-4 घंटे हो चुके थे व हम बुरी तरह दुखी, भूखे और प्यासे थे.  दिमाग में आ ही नहीं रहा था कि हम क्यों नहीं पंहुच पा रहे…

एक खुली सी जगह पर गाड़ी रोकी…बच्चों को कुछ खाने पीने को ला कर दिया, और एक भले से लगने वाले फ्रैंच को अपनी थोड़ी बहुत फ्रैंच बोल कर व्यथा सुनाइ… उसने कहा कि इस नाम का रेस्त्रां Strassbourg  में नहीं है…बिचारे ने कई जगह फोन भी किया पर कुछ पता नहीं चला..अचानक लक्षमण को एक 1000 डालर का आईडिया आया…उसने कहा कि सुबह उसने विडीयो कैमरे से भगत के होटल के बाहर फिल्म बनाई थी…शायद उसे देख कर ये भाई कुछ बता सके… हमने उसे विडीयो कैमरे के छोटे से मानिटर में झांकने को कहा और उसे वो फिल्म दिखाई…

उसने कहा… अब मैं जान गया हूं कि ये कहां है… मै अपनी गाड़ी लेकर आता हूं और आप मेरे पीछे चलो….  वो भाई अपने 10 काम छोड़ कर अपनी गाड़ी में हमे ले चला… असल में भगत का रेस्त्रां मुख्य Strassbourg  शहर में नही बल्कि Strassbourg  से बाहर एक कस्बे में था…. हम उसे Strassbourg  में ढूंढ रहे थे वैसे ही जैसे कोई कनाट पलेस में, नोयडा के किसी होटल को ढूंढ रहा हो…. वो भाई तकरीबन 15 किमी गाड़ी चला कर हमें KLEIN HOF के बाहर छोड़ कर चला गया… एक फरिश्ते की तरह….

बाद में बेरा पाट्या कि कलाइन हाँफ… यानी छोटा-आंगन एक जर्मन शब्द है… फ्रैंच शब्द है ही नहीं……

कुछ देर बाद भगत भाई भी खींसे निपोरता हुआ आया… और हमें कहने लगा यार तुम जरा से इंडिकेटर के चक्कर में रास्ता भटक गये…. वो तो गलती से मेरा हाथ लग गया और इंडिकेटर चल गया… हमें तो अभी 20 किमी और सीधा जाना था…  धन हो सरदार भगत सिंह जी…. ते  धन तुहाडी माया.

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हम भारतीय लोग, प्राचीन समय में ही काफी तकनीकी लोग रहे  हैं ।  चाहे वो आर्यभट्ट की  अंतरिक्ष संबंधी खोजें हों या, गणित के पेचीदा समीकरण, पाई की संख्या, गोरों से बहुत पहले हम खोज चुके थे और, चिकित्सा तथा धातु विज्ञान में तो हम तब माहिर थे, जब य़ूरोपियन आग जलाना सीख रहे थे.  मशहूर वैज्ञानिक आंइसटीन तो हम से  इतना प्रभावित था कि उसने कह डाला  – We owe to the Indians for they taught us to count without which no scientific discovery was ever possible”. Indians discovered calculations in decimals and fractions, pi value, square and cube roots while their contemporaries were struggling to write 83(LXXXIII is roman notation for 83!).

सदियों की गुलामी ने हमारी खोजों पर तो विराम लगा दिया पर हमारे दिमाग से तकनीकी कीड़ा नहीं निकाल पायी…अब हम बेशक नयी खोजें नही कर पा रहे, पर विदेशियों की खोजों की मां-बहन एक करने के लिये हमारा एक अनपढ़् हिन्दुस्तानी ही काफी है।  हमारी सबसे बड़ी व अद्वितीय खोज है – जुगाड़ – ।  जुगाड़ एक ऐसा शब्द है, जिसका संसार की किसी भाषा में कोई अनुवाद नहीं…. पर हम भारतीय बड़े तगड़े जुगाड़ू हैं, ऐसे ऐसे जुगाड़ लगाते हैं कि कोई सोच भी नही सकता ।  और हरियाणा पंजाब में तो कुएं से पानी खीचने वाले डीजल पम्प से बाकायदा एक वाहन बना दिया गया है जिसका नाम ही जुगाड़ है..फसल के दिनों में पानी खींचो और आगे पीछे सवारियां ढोवो।  अब कूलर का आविष्कार करने वाले ने कभी नहीं सोचा होगा कि एक कूलर से 2 कमरे कैसे ठंडे होंगे…पर हमारे जुगाड़ू भाई ने एक पुरानी पैंट कूलर के आगे बांधी, एक पैर एक कमरे में और दूसरा पैर दूसरे कमरे और दोने कमरे ठंडी हवा से भरपूर।  अंग्रेज अगर हमारी जुगाड़ू वैज्ञानिक बुद्धि देखे तो शर्म से डूब मरें.

कूलर के आगे पुरानी पैंट बांध कर हवा को 2 कमरों में भेजने का अविष्कार

(Photo courtesy Facebook – Photographer – Unknown)

और अपने पैरिस के  प्रवास में मैने भारतीय वैज्ञानिक जुगाड़ता के जीते जागते प्रमाण देखे ।

उदाहरण के तौर पर, हमारे एक सिख युवक नें पैसे कमाने का क्या अनोखा  अंदाज अपनाया.  पैरिस में बड़े स्टोरों में सामान उठाने के लिये पहियों वाली बड़ी टोकरी या रेहड़ी जिसे Caddy कहते है, लोग लेते है। कैडी लेने के लिये आप 10 फ्रैंक का एक सिक्का उसमें डालें तो उसका ताला खुल जाता है… लोग सामान लेते हैं व कैडी भर कर सामान अपनी कार में रख लेते हैं, और कैडी को वापिस उसके अड्डे पर रखते हैं जहां ताला लगाते ही आपके 10 फ्रैक कैडी से बाहर आ जाते हैं.  ये सिस्टम इस लिये है कि लोग कैडी को इधर-उधर न छोड़े । कुछ वृद्ध महिलायें, जो आस-पास ही रहती हैं, कैडी को सामान समेत घर ले जाती है ताकि भारी सामान उठाना न पड़े । सामान घर ले गयीं और कैडी बाहर छोड़ दी ।  अब हमारे हिन्दी भाई, शाम को वहां घूम कर ऐसी कैडी ढूंढते है और उसे वापिस लाकर स्टोर में ताला लगा कर 10 फ्रैंक निकाल लेते हैं, यानी जरा सी मेहनत और 70 रूपये मिल गये । ये गैर-कानूनी भी नहीं. बल्कि स्टोर वाले भी खुश, और सरदार भी खुश….  भारतीयों व पाकिस्तानियों ने अपने इलाके बांटे हैं और हर आदमी रोज 400-500 रू कमा लेता है ।

एक पाकिस्तानी सिंधी भाई ने तो टेलीफोन कार्ड की ऐसी प्रोग्रामिंग की, कि उसमें पैसे खत्म ही नहीं होते थे और वो अपने जानकारों को घटी दरों पर भारत -पाकिस्तान फोन करवा कर, विदेशी तकनोलोजी को अंगूठा दिखाते रहते थे ।

यूरोप में तब टैक्सी-फोन चलते थे। 10 का सिक्का डालिये बात कीजिये और जितने पैसे बचे वो फोन से वापिस आ जायेंगे.  हालैंड में अपने एक पंजाबी मित्र के घर ठहरा…तो भाई 9 बजे नौकरी से वापिस आया और 10 मिनट बैठ कर कहता है मै जरा दारू पानी का इंतजाम कर के आता हूं… मैने साथ चलने की जिद की तो ना-नुकर करते हुए चल दिया, पर मै चेप होकर उसके साथ गाड़ी में बैठ ही गया। वो भाई सीधा रेलवे स्टेशन पंहुचा, टैक्सी-फोन केबिन में घुसा और 2 उंगलियों से वो नली जिसमें से बचे हुए पैसे वापिस आते थे…एक छोटा रुमाल बाहर खींचा… साथ ही काफी सारे सिक्के छन छन करते हुए बाहर आ गये… ऐसा उसने बाकी पांचो फोन पर किया और इतने पैसे कमा लिये जो उसकी एक बोतल के लिये काफी थे।  वो भाई जहां से बचे पैसे निकलते है, वहां छोटा रुमाल फंसा देता था… गोरे आते थे फोन किया, कुछ सेकंड देखा बचे पैसे नहीं निकले तो चल दिये… शाम को वो जाकर फंसी हुई रेजगारी निकाल कर अपने दारू पानी का जुगाड़ कर लेता था…..ग्राहम बैल्ल ने टैलीफोन का आविष्कार करते हुए सोचा भी नहीं होगा कि आने वाले समय में भारतीय जुगाड़ू वैज्ञानिक उसके उपकरण से पैसे कमाएंगे और खून पसीने की कमायी दारू जैसी चीज पर  बेकार नहीं करेंगे ।  मैने उस भारतीय जुगाड़ू वैज्ञानिक को सादर प्रणाम किया और साथ ही भारत माता को नमन किया कि उसके सपूत कितने प्रतिभाशाली हैं।

मान गये हमारे टैक्निकल दिमाग को ???  एक और उदाहरण पेश है |

Eiffel Tower in Paris

http://en.wikipedia.org/wiki/File:Eiffel-tower-picture.jpg )

पैरिस में लघुशंका के लिये, एफिल टावर व अन्य टूरिस्ट स्थानों पर खूबसूरत छोटे-2 प्रसाधन बने हैं. 10 फ्रैंक का  सिक्का डालिये और दरवाजा खुल जायेगा… हल्का संगीत शुरू हो जायेगा… परफ्यूम की फुहार चलेगी और आपका काम ख़तम , जो भारत में सामान्यता उस दीवार पर, जहां लिखा हो ” यहां …. करना मना है”, काफी बेशर्मी से, तथा बिना दुर्घटना के हो जाता है… ऐसी सामान्य घटना को यादगार बना देता है…आप ऐफिल टावर ही नही याद रखते बल्कि प्रसाधन को भी याद रखते हैं।

कूछ लोग भारत से आये व्यापार मेले में हिस्सा लेने, सब के सब अमीर या सरकारी अफसर । मैं उन्हे दर्शनीय स्थलों पर ले गया और एफिल टावर के पास सबको प्रसाधन की ज़रुरत पड़ी | । मैने उन्हे बताया कि 10 फ्रैंक खरचो इस काम के या बाहर करोगे तो 500 फ्रैंक जुरमाना लगेगा । वो सब चीखे क्या ???? सु सु करने के 70 रुपये ??? हम लोग चाहे कितने भी अमीर हो जायें… पर सड़क पर पड़ा 100 का नोट उठाने भाग पड़ते है और सु सु पर हम 70 रुं. खरचे.. ये हमारी संस्कृति के विरुद्ध है… पर यहां तो मजबूरी थी अतः मै उन्हे लघुशंका मशीन के पास ले गया व तरीका बताया …उनमें से जो इंजीनीयर भाई थे, ने सब ध्यान से सुना और 10 का सिक्का डाल कर दरवाजा खोल दिया। निपटने के दौरान ही उन्होने सब सिस्टम समझा और फिर दरवाजे में टांग अड़ा कर खड़े हो गये और बाकियों को आमंत्रित किया, सब बारी-2 से करते रहे… दरवाजा बेचारा बार -2 बंद होने की कोशिश करता और उनकी टांग में लगता, और मशीन इसे कोई खराबी समझ कर दरवाजे को वापिस खोल देती। दरवाजा खुलता बंद होता रहा, परफ्यूम की फुहार निकलती रही…सब निपटते रहे, फ्रैच लोग हैरान हो कर देखते रहे.. और  अंततः सब खुश,…  भाई लोग भी हल्के हो गये, मशीन भी खुश हो गयी कि उसे दरवाजा बंद करने का मौका मिल गया।  हालांकि इंजिनीयर महोदय अधिक खुश नही थे बोले – मियां थोड़ा प्रैशर कम होता तो 10 फ्रैंक डाले बिना ही, दरवाजा खोलने को कोई न कोई जुगाड़ बना ही लेता ।

बेचारी मशीन को क्या पता था… एक दिन आर्य-भट्ट के वंशज यहां आयेंगे और उसकी प्रोग्रामिंग को फेल कर देंगे ।

सब मेरे पीछे दोहराओ… मेरा जुगाड़ू भारत महान!!!!!!

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एक जरुरी सूचना सब घुमक्कड़ों के लिए –

प्रिय घुमक्कड़ो… किसी न किसी यात्रा में हमारे साथ कुछ न कुछ ऐसा अवश्य घटित होता है जो विज्ञान की कसौटी पर खरा नहीं
उतरता, जिसे हम चमत्कार की संज्ञा दे सकते हैं… अगर आपके साथ कोई ऐसी घटना घटी हो जो आश्चर्य चकित करने वाली हो जिसे आप चमत्कार, या ईश्वरीय कृपा या केवल एक अजीब संयोग कह सकते है… तो कृप्या उसका विवरण हिन्दी या English में एक संदर्भित चित्र के साथ मुझे भेज दें, क्योकि मैं घुमक्कड़ी खट्टी मीठी का एक अंक केवल ऐसी चमत्कारिक घटनाओं के बारे में लिखने जा रहा हूं और आप का अगर कोई ऐसा अनुभव है तो वो मेरे उस अंक को चार चांद लगा देगा..आपकी भेजी हुई घटना को मैं बाकायदा आपको नाम सहित धन्यवाद देते हुए वर्णन करुंगा…

 

Dear Ghumakkar friends,

I am planning to post a part of this series based upon miracles in Ghumakkari.  If you have seen any miracle during your yatra, any incident which is beyond the explanation of science or logics and which can be termed as a miracle or a strange coincidence or simply a god’s intervention, then please mail them to me so that I can include that incident in my series, (by giving due credit to you).

 

मेरा E-mail पता है — bhutnath@gmail.com

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तो दोस्तो इस बार इतना ही… कुछ और कलम-बद्ध किया तो फिर आपके साथ बाटूंगा… शुभ-कामनाएं | ये कड़ी कैसी लगी, अवश्य बताइयेगा…ताकि अगली कड़ी और अच्छी लिख सकूं ।

नमस्कार

घुमक्कड़ी – कुछ खट्टी – कुछ मीठी ( इस बार विदेशों से) was last modified: August 22nd, 2024 by SilentSoul
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