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घुमक्कड़ विशिष्ट लेखक साक्षात्कार – एक बातचीत प्रज्ञ और मृदु मनु के साथ

गूढ़ सांख्यिकी में मेरी रूचि कोई खास नहीं रही है, गणित भी जोड़ जाड कर हो गया इसलिए पूरे दावे से साथ तो नहीं पर मेरा अनुमान ये है की मनु प्रकाश त्यागी शायद सबसे युवा ‘विशिष्ट घुमक्कड़ लेखक’ हैं | इससे पहले की आप की चढ़ी त्योरिया और यौवन पकड़ें ,  उन्हें युवा कहने के पीछे का परदाफ़ाश हो जाना चाहिए| अभी तक के करीब करीब सभी  ‘विशिष्ट लेखक’ कई महीनों के दम-ख़म के बाद इस अभिज्ञान से सम्माने  गए हैं पर हमारे मृदु मनु ६ महीने के भीतर ही इस क्लब  में बाअदब बमुलायज़ा शामिल हो गए हैं |  वैसे मैं खुद भी मेम्बरशिप नहीं ले पाया हूँ इस विशिष्ट दल में तो दिल न हारें और बने रहें | घुमक्कड़ परिवार की सहूलियत के लिए उनकी पहली स्टोरी का लिंक   ये रहा | | 

६ महीने कोई बहुत बड़ा समय नहीं होता है और इस छोटे से अंतराल  में मृदु मनु ने लेखों की  झड़ी लगा दी | ४० से ऊपर लेख छापने के बाद मनु ने घुमक्कड़ परिवार में एक मुकाम हासिल किया जो काबिले तारीफ़ है |  हालांकि इन सभी यात्रा संस्मरणों से मनु ने संपादकीय गिरोह के मानस पटल पर घुस पैठ तो की पर शायद इतना अधिक नहीं था | शरुआत में मृदु रहने वाले मनु ने धीरे धीर टिप्पणियों के ज़रिये  से अपनी सूझ बूझ, सयंम और संतुलित  आचरण  से  सम्पदिकीय मंडल की “संभावित विशिस्ट लेखक सूची” में शामिल हुए और आंतरिक चर्चा का कारण बने | अब दिल्ली दूर नहीं और अपने मनीषी प्रतिक्रियाओं से 
उन्होंने खुद ही अपने चयन पर मोहर लगा दी | मेरे हिसाब से ये एक ऐसा चयन था जो बस सही समय की प्रतीक्षा में था और अगस्त २०१२, बहुत औगोस्त (August) था इस सही निर्णय को क्रियान्वित करने के लिए |  इतने विस्तृत परिप्रेक्ष्य के बाद , प्रस्तुत है मनु से घुमक्कड़ के साथ हुई लम्बी बात चीत के दो क्षण| 

2 वर्ष की आयु में पिता और बडे भाई बहन के साथ


घुमक्कड़ – मनु, बहुत बहुत बधाई ‘अगस्त २०१२ के विशिष्ट घुमक्कड़ लेखक ‘ के सम्मान के लिए |
मनु – धन्यवाद् नंदन जी | ये मेरे लिए गर्व की बात है की मुझे इतना प्यार और सम्मान मिला संपूर्ण घुमक्कड़ परिवार से | इस घोषणा के बाद मेरी फॅमिली में हर्ष का माहौल है और ऐसा लगता है जैसे मुझे कोई ओलिम्पिक पदक मिल गया हो | साधुवाद |

घुमक्कड़ – आपके जीवन में हर्ष और उल्लास जीवन में हमेशा बने रहे | घुमक्कड़ पर पहले लेख के पीछे की कहानी बताएं |
मनु – संदीप जाट देवता से फ़ोन पर संपर्क हुआ , फिर उनके घर गया , इस बीच ब्लॉगर पर कुछ कुछ लिखा और धीरे धीरे पकड़ते छोड़ते , मैने कर ही दिया | उसके बाद तो जैसे एक नशा सा हो गया | रोज़ पढना, कई कई पोस्ट्स पढ़ डालना एक ही बैठक में और दिन भर एक मदहोशी सी रहती थी | पहला लेख जब छपा तो अप्रत्याशित स्नेह मिला, समझ में कुछ ख़ास नहीं आया , बस एक जूनून सा सवार हुआ और पूरे मन से लिखना शुरू किया |

घुमक्कड़ – अपने लेखन प्रक्रिया के बारे में बताएं |
मनु – मैं मन से लिखता हूँ | मुझे हिंदी में टाइपिंग का ज्ञान है तो मेरी गति माशा अल्लाह ठीक ठाक ही है | जैसा मन में आता गया, लिखता गया और कोशिश ये रहती है की एक सत्र में एक लेख ख़तम कर दूं | एक बार जब मेरी लेखनी रुकी तो फिर में सामान्यतः फेर बदल नहीं करता | मेरी इस आदत के कारण कभी कभी कोई फोटो ऊपर हो जाता है, या कभी किसी विषय पर बहुत लिख देता हूँ, कभी कम ही लिख पाता हूँ | 

घुमक्कड़ -  “चार धाम हिन्दुस्तान के ,चार धाम उत्तरांचल,नौ देवियां ,नौ ज्योर्तिलिंग,15 शक्तिपीठ, 18 राज्य 4 यूनियन टेरिटरिज ,सैकडो शहर हिल स्टेशन अब तक घूम चुका हूं ।” आप तकरीबन सम्पूर्ण भारत घूम चुके हैं| कब से आपने घूमना शुरू किया? कुछ शुरू शुरू की यात्राओं के बारे में बताएं.

मनु —नंदन जी ,बचपन से ही मेरा घर में मन नही रमता था । दो तीन  बार पापा से डांट खाने के बाद हरिद्धार चला गया था जब मै सिर्फ 8 वी में पढता था वहां चंडी देवी के मंदिर पर जाकर पहाड के बिलकुल किनारे पर जाकर बैठ जाता था । पूरा दिन बैठने के बाद शाम को वापिस घर के लिये चल देता । सुबह आकर झाड़ झपट होती और फिर सब सामान्य । सबसे पहली पद यात्रा नीलकंठ महादेव की थी जब मै 9 वी कक्षा में था और अपनी मां के साथ गया था । मेरे पिता सरकारी अध्यापक थे तो वे हर साल छुटिटयो में अपना ग्रुप बनाकर घूमने जाते थे और वहां से मुझे पत्र लिखते थे कि अब मै कन्याकुमारी में हूं या किसी और जगह और वहां के बारे में ,वो पत्र मुझे रोमांचित करते थे । लेकिन तब तक ये यात्राऐं हरिद्धार , शुक्रताल तक सीमित थी | शादी से पहले मसूरी , देहरादून तक और शादी के बाद मेरी असली घुमक्कडी शुरू हुई । एक वाकये जो कि मै अपनी पोस्ट में लिखा है कि कैसे एक साथी की कमी ने लवी को मेरा साथी घुमक्कडी में बना दिया और उसके बाद से आप पढ ही रहे हैं लवी के साथ पहले मसूरी देहरादून ,उसके बाद उत्तरांचल के चार धाम बाइक पर , फिर बस से मथुरा , आगरा ,नैनीताल ,कौसानी , उसके बाद रेल से गंगासागर यात्रा फिर अपनी कार से एक लम्बी घुमक्कडी की यात्रा जिसमें राजस्थान ,गुजरात ,महाराष्ट्र ,दादरा व नगर हवेली , दमन आदि और रेल और कार से ही दक्षिण भारत एवं पूर्वोत्तर भारत के साथ कश्मीर और हिमाचल आदि की यात्राऐं की हैं

डाल्फिन टूर ,गोआ

मुन्नार , केरला


 
घुमक्कड़ –  अपने बारे में ऐसा कुछ बताएं जो किसी घुमक्कड़ को नहीं पता हो| अपने परिवार से भी परिचित करवाएं|
मनु - मै जो भी काम करता हूं बडी लगन से ,इतनी जितनी की कोई और शायद ही करे , मै स्कूल और कालेज में पढाई के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमो ,सुलेख  और अन्य प्रतियोगिताओ में बढचढकर भाग लेता था । मै बैडमिंटन , शतरंज और क्रिकेट खूब खेलता हूं अब भी चाहे साथ में छोटे बच्चे ही हों । संगीत मुझे प्रिय है और हजारेा गाने जिनमें कि ज्यादातर दर्द भरे और सूफी गाने और गजले हैं मेरे याद हैं  । मैने स्कूल कालेज और रामलीला के मंच तक में भाग लिया है ।
 
दसवीं के बाद मैने इंटर की पढाई प्राइवेट की क्योंकि मै  खुद कमाने लगा था जो आज तक जारी है । 
 

बेटी अनुष्का वशिष्ठ

शादी के बाद पिता ,बहन ,जीजाजी के साथ

16 साल की उम्र में मैने अपने बडे भाई के साथ मिलकर एक पब्लिक स्कूल खोला था जो मेरे भाई की 1999 में अचानक मृत्यू होने के कारण दो साल ही चल पाया । उसके बाद मैने कम्पयूटर हार्डवेयर का कोर्स किया और अपना कम्पयूटर सैंटर खोला । 22 साल की उम्र में जनवरी 2004 में लवी से प्रेम विवाह हुआ जिसे घरवालो की रजामंदी मिल गयी थी और दिसम्बर 2004 में  बेटी अनुष्का ने जन्म लिया । लवी कम्पयूटर सिखाती थी और मै उनका खरीदने बेचने और रिपेयर का काम करता था  । 2007 में मेरे पिता की मृत्यू के बाद मेरी नौकरी उनके स्थान पर मृतक आश्रित में लग गयी । अब मेरे परिवार में मेरी माताजी , मेरी एक बडी बहन समता त्यागी जो कि श्री राजकुमार त्यागी निवासी गढमुक्तेश्वर से ब्याही हैं , मेरी पत्नी लवी और बेटी अनुष्का हैं
 
घुमक्कड़ – धन्यवाद मनु | इश्वर करे आप और आपका परिवार स्वस्थ और खुश रहे, ऐसी मनोकामना है हमारी |  आप एक अध्यापक हैं, इतना घूमने के बावजूद भी आपने लिखना अभी हाल ही में शुरू किया है| इसका कोई ख़ास कारण? आपको लिखने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
मनु - सबसे पहली बात कि मै लिखना तो काफी समय से चाहता था पर इसमें रोडा थी बिजली  । हमारे यहां बिजली की समस्या के कारण डेस्कटाप पर काम करना संभव नही था इतने समय तक  । जब ज्यादा इच्छा प्रबल हो गयी तो लैपटाप लिया जिसने इस काम को सफल किया क्योंकि अब मै वक्त मिलते ही लिख सकता था ।
 
दूसरा अपने टूर प्लानिंग के बारे में नेट पर सर्च करते समय संदीप जाट  और मनीष जी के ब्लाग पढता था । संदीप से फोन पर बात की तो उसने मुझे समय भी दिया और ब्लाग बनाने के बारे में भी बताया । मै ब्लाग को सीख ही रहा था कि संदीप ने सलाह दी कि आप घुमक्कड पर लेख डाल दो । तब तक मै घुमक्कड को नही जानता था पर यहां का एक फंडा मुझे बडा पसंद आया कि आप लेख और फोटो भेज देा बाकी वो खुद कर लेंगे । इसी ने मुझे जल्दी जल्दी लिखने को प्रेरित किया । अब वो दिन याद आते हैं जब बस लिखना और फोटो डालकर सबमिट करना होता था कितनी जल्दी काम हो जाता था आजकल सारा काम खुद ही करना पडता है LOL

घुम्मकड़ – आप चाहें तो हमें अभी भी लेख और फोटोस ईमेल कर सकते हैं | हमारा ऑफर सभी लेखकों के लिए खुला है |  घूमने, और अब लिखने, के अलावा आप और कौन कौन से शौक रखते हैं?
मनु – घूमने और लिखने के अलावा मै पढना काफी पसंद करता हूं । फिल्में देखना भी काफी पसंद है और उसमें भावुक दृश्यो में रोना भी आ जाता है कभी कभी  । इसके अलावा बाइक हो या कोई भी गाडी ड्रा इविंग भी पसंद है और आजकल फोटोग्राफी में भी रूचि हो गयी है बस एक अदद कैमरे के लिये बजट तैयार होना बा की है और हां सीखना मुझे सबसे ज्यादा पसंद है मै सीखने के लिये हर वक्त तैयार रहता हूं । आप इतनी सारी पसंद सुनने के बाद शायद मुझे मल्टीटास्कर या बहुउददेशीय मान सकते हैं ।

भरत के रोल में मंच पर

1995 में मोक पार्लियामेन्ट में

घुमक्कड़ – आप ज़्यादातर अपने परिवार के साथ यात्रा करते हैं. सपरिवार यात्रा करने के फायदे बताएं| और परिवार के साथ यात्रा प्लान करते हुए किन-किन बातों का आप ध्यान रखते हैं वोह भी बताएं|
मनु – नंदन जी , परिवार के साथ यात्रा करने में जो आनंद है वो बहुत चीजो से बढकर है पर उसकी कुछ लिमिटेशन्स हैं । जैसे किसी भी जगह पर रूकने , खाने और घूमने से पहले ये जांच लेना कि क्या वो जगह पारिवारिक माहौल में है या नही , अगर जरा सा भी शक या वहम हो तो ऐसी जगह पर रूकना या खाना मै नही करता । दूसरी बात परिवार के साथ एक्सट्रा केयर रखनी होती है और एक्सट्रा सामान भी । फायदे हैं कि आप को घर जैसा ही अनुभव होता है और जीवनसाथी के साथ घूमने की यादगार हमेशा घर आने के बाद भी रोजमर्रा के जीवन में रोमांचकता रखती है । हम आपस में काफी चर्चा करते हैं जो हमारे ज्ञान को बढाती है

घुम्मकड़ – आपकी बहुत यात्राएं काफी रोमांचक रही हैं| रोमांच के साथ खतरा अक्सर हाथ में हाथ डाल कर चलता है| हमें अप्रत्याशित परिस्थितियों में संयम कैसे रखना चाहिए?
मनु – नंदन जी , खतरा तो सब जगह होता है चाहे आप यात्रा कर रहे हों या रोजमर्रा का काम । मै अक्सर पढता हूं कि हिंदुस्तान में इतने लोग तो आतंकवाद से भी नही मरते जितने सडक दुर्घटनाओ में । मै मानता हूं कि इस लाइन को हमेशा अपनाया नही जा सकता पर मुझे लगता है कि रोमांच मेरे जीवन के कुछ साल बढा देता है वैसे मै कभी भी बेवकूफी नही करना चाहता क्योंकि रोमांच और बेवकूफी में थोडा सा ही अंतर होता है जो लोग रोमांच में आकर सुरक्षा का ध्यान नही रखते वो बेवकूफी करते हैं
अगर कोई ऐसी स्थिति आ जाये तेा बस अपना दिमाग ठंडा रखें और चिल्लाने या रोने की बजाय आगे क्या करना है यही सोचे तो बेहतर होगा पर ऐसा सभी कर भी नही पाते ये भी मुझे पता है

बैक वाटर टूर इन केरला

मैसूर पैलेस ,90 हजार बल्बो से सजा हुआ

घुमक्कड़ –  छह महीनों और ४१ कहानियों के बाद, यह कहना तो महज एक औपचारिकता है की घुमक्कड़ों में आपने एक ख़ास जगह बना ली है| इतने कम समय में आप इतनी कहानियां कैसी लिख पाए?
मनु – मुझे आप को टाप पर देखकर रश्क होता है और यही मुझे प्रेरणा देता है (lol )
 
ये तो मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा मंच मिला है जिस पर मैने किसी को नही पर सबने मुझे ढूंढा है और अपनाया भी है । एक घुमक्कड ही ऐसा मंच है जहां पर आपकी पहली कहानी के साथ ही आप हजारो पाठको और सैकडो लेखको के साथ आत्मीय हो जाते हैं । कुछ लोगो को आप अपना दीवाना बना लेते हो और कुछ लोगो के कमेंट से ही वो आपके प्रिय बन जाते हैं ऐसा मैने आज तक तो कहीं और देखा ही नही ।
 
कहानिया लिखने के बारे में मेरा इतना ही कहना है कि अब जैसे ही मै पिछले यात्रा संस्मरणो को देखता हूं तो मुझे एक पहाड सा नजर आता है जैसे कोई आफिस का बाबू फाइलो के ढेर की ओर देखता है कि उसे अभी कितना काम निपटाना है तो अगर घुमक्कड की गाइडलाइन ना होती तो मै तो रोज एक पोस्ट लगा दिया करता | शुरू शुरू मे लवी ने जब मुझे लिखते देखा और घुमक्कड पर लेखको की लिस्ट देखी तो उसमे मेरा नाम नही था जो कि 3 पोस्ट के बाद आया । उस दिन से वो हमेशा देखती थी कि अब तुम टाप 50 में हो अब 20 में और अब 10 में । ये भी मुझे प्रेरित करता था । पता नही आपको किसने ये विचार दिया कि यहां फोटो लगाओ यहां पर नाम दो ये सब चीजे एक प्रेरणा देती हैं आगे बढने की कुछ अलग करने की इसके लिये घुमक्कड की परिकल्पना ही जिम्मेदार है और एक महत्वपूर्ण कारक भी , उसके लिये मेरी ओर से साधुवाद | 
 
घुमक्कड़ – घुमक्कड़ पर लिखना शुरू करने के बाद, कोई मूल पर्तिवर्तन आपने महसूस किया अपनी ताज़ा यात्राओं में ?
मनु – मत पूछीये | सब कुछ बदल गया है , और अच्छे के लिए | सबसे बड़ा परिवर्तन आया फोटोस से मामले में | मेरी पुरानी यात्राओं के मेरे पास हजारों फोटोस हैं पर उनमे में गिनती के फोटो होंगे जिसमे मैं या मेरे 
परिवार का कोई न हो | मणि महेश की यात्रा में मैने १५०० से अधिक फोटो लिए, बहुत से बहुत ५० होंगे जिसमे यात्री हैं, बाकी सभी में प्रक्रति, मुख्य स्थान , दूकान, रास्ता, रेल, फाटक , सभी कुछ इंसानों के सिवा :-) . 
नूरपुर के होटल का चित्र मैने केवल घुमक्कड़ के लिए खीचा जिससे आगे जाने वाले घुमक्कड़ों को इसका लाभ हो सके | 

दूसरा बड़ा परिवर्तन ये है, की जिम्मेवारी बढ़ गयी है | आपने थोडा काम बढ़ा दिया है | दिमाग में ये चलता रहता है की सभी जानकारी कैसे मिले, कुछ छुट तो नहीं गया, ऐसा नया क्या है यहाँ जो जाते ही घुमक्कड़ पर साझा
कर दिया जाए | निश्चित तौर पर मेरी घुमक्कड़ी पहले से प्रचुर और बहुमूल्य हो गयी है | 

घुमक्कड़ – आपके कुछ पसंदीदा लेखक ?
मनु – कई हैं, जो इस वक़्त दिमाग में आते हैं उनमे नाम लेना चाहूँगा संदीप जी, विशाल भाई, SS जी, सुशांत सिंघल जी, D L सर, औरोजित भाई, सुरेन्द्र शर्मा , मनीष कामसेरा , कविता जी, रितेश जी |  

1986 में अपने बडे भाई से नाराज कांवड में ना ले जाने पर

घुमक्कड़ -  घुमक्कड़ और बाकी घुमक्कड़ों के साथ अभी तक जो वक्त आपने गुज़ारा है वह कैसा रहा?
मनु – घुमक्कड तो मेरे परिवार में एक ऐसा सदस्य बन गया है जिसे मै लवी और अनुष्का के बाद और कभी कभी तो उनसे भी ज्यादा समय देता हूं और इससे पत्नी और बेटी कभी कभी चिढ भी जाती हैं । बाकी मुझे घुमक्कड से कई मित्र भी मिले हैं जिनमें से विपिन, विशाल राठौड के साथ मै घूमने भी गया हूं और ये बेहतरीन अनुभव रहा है । बाकी मुकेश जी , एस एस जी , रितेश जी से भी बात होती रहती हैं और हम सब इसे एंजाय करते हैं
 
घुमक्कड़-  अभी तक का आपका सफ़र घुमक्कड़ पर काफी संयमित और सहिष्णुतापूर्ण रहा है| घुमक्कड़ के नए पाठकों से आप क्या कहना चाहेंगे इन्टरनेट कम्युनिटी पर एक आदर्श आचरण के बारे में?
मनु – नंदन जी हर व्यक्ति की अपनी सोच होती है आचरण के बारे में , खासतौर से नेट पर , बहुत से लोग अभद्र भाषा लिखना अपनी शान समझते हैं गलत कमेंट करके दूसरो को विचलित करना चाहते हैं या अपनी शेखी बघारते हैं लेकिन मेरी राय इसके विपरीत है । मै मानता हूं  स्वस्थ कमेंट और शालीन भाषा में आप सभ्य आलोचना कर सकते हैं |
 
इस बारे में एक बात और कहूंगा कि चाहे समाज हो कालोनी हो या वेबसाइट किसी भी जगह को उसके रहने वाले ही उंचा उठाते हैं यानि हम लोग ही घुमक्कड का स्तर तय करते हैं तो हमारा स्तर उंचा है तभी घुमक्कड का स्तर भी उंचा है । मर्यादित भाषा का प्रयोग सभी करते हैं और कुछेक अवसरो और कुछ अमर्यादित आगंतुक जो कि घुमक्कड के निवासियो की परीक्षा लेने के लिये कभी कभी आ जाया करते हैं के सिवाय मैने आज तक यहां यही पाया है कि सभी लोग बहुत ही मिलनसार और उच्च विचारो के हैं और वो ऐसा ही बनाये रखेंगे । नये पाठको से भी मेरी यही विनती है कि जो माहौल आपको मिल रहा है इसमें वृद्धि करें |

जाते जाते एक बोनस फोटो

1999 में अजगर के साथ

एक बार फिर से समस्त घुमक्कड़ परिवार के तरफ से धन्यवाद | आप ऐसे hee घुमते रहे और हमारे साथ अपने संसमरण बाँटतें रहे | जय हिंद |

घुमक्कड़ विशिष्ट लेखक साक्षात्कार – एक बातचीत प्रज्ञ और मृदु मनु के साथ was last modified: October 21st, 2024 by Nandan Jha
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