मसूरी, एक ऐसा पर्यटन स्थल है जहां अधिकतर पर्यटन प्रेमी अपने जीवन में कम से कम एक बार तो अवश्य ही जा चुके हैं। किन्तु कुछ हमारे जैसे पर्यटक भी होते हैं जो पूरे वर्ष किसी भी प्रकार की कोई ट्रिप प्लान नहीं करते लेकिन यदि एक बार दिमाग में फितूर आ जाये तो हाथों-हाथ एक ही दिन में ट्रिप प्लान करने के साथ साथ बैग भी पैक कर लेते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ हमारे साथ और दिसंबर 2024, के पहले हफ्ते में हमने मसूरी जाने की तैयारी कर ली। हालाँकि हमने पहले कभी भी मसूरी दर्शन नहीं किये थे इसलिए भी इस बार सर्वसम्मति से मसूरी यात्रा का प्रस्ताव पूर्ण मतों से पारित कर दिया गया।
गर्म कपडे और अन्य जरूरी सामान जैसे की स्नैक्स और दवाइयां आदि हमने यात्रा से एक दिन पहले ही बैग में पैक कर ली थी। गाडी की सर्विस जैसा अति महत्वपूर्ण कार्य एक माह पूर्व एडवांस में ही हो रखा था क्यूंकि उसकी वार्षिक सर्विस की देय तिथि नवंबर माह में ही थी। अब रही बात होटल बुकिंग की तो उसके लिए थोड़ा बहुत ऑनलाइन सर्च किया और होटल वाइल्ड वुड को आनन् फानन में बुक भी कर लिया। हालाँकि होटल ठीक-ठाक था किन्तु इसकी लोकेशन भीड़ भरे बाजार से होकर मिलती थी, जिसे हम माल रोड का ग्रीन चौक/कुलरी चौक भी बोलते हैं, जिसमे गाडी सहित घुसना एक कठिन किन्तु रोमांचक अनुभव था। इसी चौक पर आपको मसूरी स्वीट शॉप, कालसँग रेस्टोरेंट और ब्रांडेड क्लोथ्स की अनगिनत दुकाने भी मिल जाती है। यहाँ पर एक फेमस मसूरी क्राइस्ट चर्च भी है जो की देखने में काफी सुन्दर लगता है और आपको याद दिलाता है अंग्रेजो के शासनकाल की जब वो यहाँ पर प्रेयर के लिए अधिक संख्या में एकत्रित होते थे।
खैर अब बात करते हैं अपनी यात्रा की जो की हमने दिनांक 4, दिसंबर को अपने घर से सुबह 7, बजे के आस-पास आरम्भ की। घर के पास ही हमने किदवई नगर से लगता हुआ बारापुला मार्ग लिया, जिसे बाबा बंदा बहादुर मार्ग भी बोलते हैं, जो हमे बिना किसी रोक-टोक के सीधा ले गया अक्षरधाम सेतु और फिर वहां से आगे चलते जाने पर हमें मिला मेरठ एक्सप्रेसवे। इसके तत्पश्चात आप खतौली, मुजफ्फरनगर और रुड़की बाईपास से होते हुए पहुंचते है हरिद्वार शहर में जहाँ से आप चलते हुए माँ गंगा के दर्शन भी कर सकते है।

लगभग साढ़े दस तक हम लोग हरिद्वार को क्रॉस कर चुके थे और देहरादून की तरफ जाने वाले मार्ग पर पहुँच चुके थे। क्यूंकि हमारी सुपुत्री, जो की अभी केवल दो वर्ष की है और लम्बे सफर में चलती गाडी में सो जाती है, इसलिए हमने तय किया की जल्दी से ब्रेक नहीं लेंगे और जितना ज्यादा हो सके उतना रास्ता तय कर लेंगे। लेकिन ग्यारह बजते-बजते अब भूख लगने लगी थी और चाय की तलब भी होने लगी थी इसलिए हमने देहरादून मार्ग पर ही एक एक अच्छा सा रेस्टोरेंट देखा जिसका नाम था ग्रीन वैली। इस रेस्टोरेंट में तकरीबन सबकुछ अच्छा था और इनकी फ़ूड क्वालिटी भी बढ़िया थी। चूँकि हम लोग ज्यादा जल्दी पहुँच गए थे इसलिए भीड़ भी नहीं मिली अन्यथा सीटिंग एरिया को देखकर लग रहा था की जब भी यहाँ ज्यादा लोग आते होंगे तो रेस्टोरेंट खचाखच भर जाता होगा।
यहाँ पर पैंतालीस मिनट का ब्रेक लेने और रिफ्रेश होने के बाद अब हम लोग निकल पड़े देहरादून मसूरी की तरफ जहाँ के बारे में इंटरनेट पर बहुत कुछ सुन और देख रखा था। सुपुत्री भी अब अपनी नींद पूरी हो जाने के कारण आराम से सफर का आनंद ले रही थी और रास्ते में मिलते बंदरो के झुण्ड देख-देख कर बेहद प्रफुल्लित हो रही थी।

यूँ ही बातें करते हुए हम लोग जल्दी ही देहरादून पहुँच चुके थे और अब बारी थी पहाड़ी रास्ते पर ड्राइव करने की। यहाँ पर एक बात बतानी बेहद जरुरी है की मसूरी जाने के लिए देहरादून से अलग अलग रास्ते जाते है किन्तु जो अधिक फेमस है वो है प्रकाशेश्वर मंदिर वाला मार्ग। खैर हम लोग तो रास्ते से बिलकुल ही अनजान थे इसलिए गलती से किसी अलग ही मार्ग पर चले गए और सात किलोमीटर आगे जाने के बाद पता चला की यह रास्ता थोड़ा दुर्गम है इसलिए सुगम मार्ग की तलाश में हमे फिर से सात किलोमीटर वापिस आना पड़ा और इस बार हमने प्रकाशेश्वर मंदिर वाला मार्ग ही चुना। इस पुरे प्रक्रम में हमारे तकरीबन बीस मिनट ख़राब हो गए। चलिए कोई बात नहीं, देर आये दुरुस्त आये वाली बात पर कायम रहते हुए हम लोग अब सही दिशा में मसूरी की तरफ आगे बढ़ रहे थे।
अभी मसूरी मार्ग आधा ही तय किया था की तभी होटल स्टाफ ने हमे टेलीफोन किया और यह बताया की आप लोग सांय चार बजे से पहले मसूरी मॉल रोड पर प्रवेश कर लेना अन्यथा उसके बाद यहाँ पर्यटकों की गाड़ियां प्रतिबंधित है। साथ में ही उन्होंने यह भी बताया की आपको होटल आने के लिए मसूरी मल्टीलेवल पार्किंग से लाइब्रेरी चौक वाले रास्ते पर नहीं जाना बल्कि आपको पिक्चर पैलेस वाले रास्ते से आना है ताकि आप बेवजह की ट्रैफिक से भी बच जायेंगे। आदेशों का अनुसरण करते हुए हम लोग लगभग तीन बजे तक अपने होटल वाइल्ड वुड में चेक इन कर चुके थे।
अगले दिन दिनांक 5, दिसंबर को हमने तय किया की आज केम्पटी फाल और कंपनी गार्डन की सैर पर चलते है, किन्तु मन में एक संशय था की यहाँ पर अपनी गाडी से जाये या फिर कोई लोकल टैक्सी बुक करे। अपनी गाडी से जाने में केवल एक ही प्रॉब्लम थी की मॉल रोड की भीड़ भरी बेहद स्टीप रोड से आना जाना पड़ेगा और ट्रैफिक की समस्या अलग से। खैर ज्यादा दिमाग पर जोर ना डालते हुए हमने पहले तो होटल की पिक एंड ड्राप सर्विस का फायदा उठाया और पहुँच गए सीधे मॉल रोड जहाँ पर थोड़ा सा कदमताल और फोटोग्राफी करने के बाद हमने एक रिक्शा किया जो सीधे हमे ले आया लाइब्रेरी चौक। इस चौक पर आपके पहुँचने से पहले ही टैक्सी सर्विस वाले आपके ऊपर ऑफर्स की बरसात करने लगते है जिनसे थोड़ा सा बार्गेन करने के बाद आपको टैक्सी भी आसानी से मिल जाएगी। कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ और एक टैक्सी ड्राइवर ने बाईस सौ रुपये में हमे केम्पटी फॉल और कंपनी गार्डन घुमा लाने का प्रस्ताव रखा। हालांकि बाद में मामला अट्ठारह सौ रुपये पर आकर फिक्स हुआ। ड्राइवर बड़ा ही नेक दिल था और उसकी गाडी भी अच्छी कंडीशन में थी। ड्राइवर के अनुसार हमे समय की कोई पाबन्दी नहीं थी और हम जितनी देर चाहे उतनी देर सुबह से शाम तक घूम सकते थे ।
मसूरी लाइब्रेरी चौक से केम्पटी फाल पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर था जहाँ हम लोग तकरीबन आधे घंटे में पहुँच चुके थे। केम्पटी फॉल मुख्य सड़क से थोड़ा नीचे की तरफ है जहाँ तक पहुँचने के लिए या तो आपको कुछ कदम पैदल चलना होता है या फिर उड़न खटोला की सेवा लेनी पड़ती है। हमारे साथ बच्चा था इसलिए हमने उड़न खटोला को प्राथमिकता दी अन्यथा वापसी के दौरान चढ़ाई करने में दिक्कत का सामना करना पड़ता।
केम्पटी फॉल जो की एक प्राकृतिक झरना है देखने में अत्यंत ही नयनाभिराम है। सड़क से देखने पर यह उतना विशाल प्रतीत नहीं हो रहा था जितना की पास आने पर लगने लगा था। निरंतर गिरते पानी की चट्टानों से टकराती हुयी आवाज जब कानों में पड़ रही तो एकाएक ह्रदय में सिहरन पैदा कर रही थी। पानी के छींटे तो चारो तरफ हवा में उड़ ही रहे थे साथ ही वायु में भी ठंडक और शुद्धता घोल रही थी। अपने जीवन में हमने इतना विशाल झरना पहली दफा देखा था इसलिए हम को भी अलग ही रोमांच महसूस हो रहा था। खैर परमपरानुसार हमने सर्वप्रथम यहाँ पर खूब सारी फोटोज क्लिक की और उसके बाद झरने के बिलकुल समीप बैठकर मैग्गी का चाय के साथ लुत्फ़ उठाया। सबसे अच्छी बात यह हुयी की ठण्ड के कारण झरने में नहाने वाला कोई नहीं था और न ही किसी प्रकार का कोई हुड़दंग ही हो रहा था, जैसा की हम सैलानी लोग अक्सर पहाड़ों पर पहुँच कर करते हैं, इसलिए शांतिपूर्ण तरीके से हम लोग केम्पटी फॉल को निहार भी रहे थे और एन्जॉय भी कर रहे थे । कुछ नवविवाहित जोड़े भी यहाँ आये हुए थे जो झरने के पास विभिन्न प्रकार की मुद्राओं में अपनी फोटोज लेने में व्यस्त थे ताकि इन खूबसूरत पलों को अपने जीवन की स्मृतियों में एक महत्वपूर्ण स्थान दे सकें।

यहाँ हमने करीब-करीब एक घंटा व्यतीत किया और उसके बाद अब बारी थी हमारी कंपनी गार्डन जाने की जो की मसूरी लाइब्रेरी चौक से केवल चार किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित है। अर्थात हमे अब केम्पटी फॉल से वापिस अपने मसूरी वाले रास्ते पर ही जाना था जहाँ कुछ देर घूमने के बाद हम बिना किसी समस्या के अपने होटल पहुँच सकते थे। लेकिन पाठकों किस्मत में तो कुछ और ही लिखा हुआ था और इस बार वो हुआ जिसका हमे कोई पूर्वानुमान नहीं था। हमारी दो वर्षीय सुपुत्री को सफर में मितली होने लगी और कुछ ही देर में उसने सारा खाया पिया बाहर उलट दिया अर्थात वोमिट कर दिया। अब क्यूंकि उसके कपडे ख़राब हो चुके थे इसलिए हमने कहीं और न जाकर सीधे अपने होटल रूम में जाना ही उचित समझा ताकि उसको थोड़ा आराम करा सके। ड्राइवर महोदय भी बड़े भले मानुष थे और जब उन्होंने देखा की इनका आगे का प्रोग्राम कैंसिल हो गया है तो अट्ठारह सौ की जगह केवल पंद्रह सौ लेकर ही उन्होंने हमे लाइब्रेरी चौक पर छोड़ दिया जहाँ से साइकिल रिक्शा लेकर हम ग्रीन चौक/कुलरी चौक तक पहुँच गए और फिर पैदल ही होटल तक आ गए।
अगले दिन दिनांक 6, दिसंबर को फिर एक नयी सुबह के साथ हमने यह तय किया की जब मसूरी आये ही हैं और केवल चार किलोमीटर की दूरी पर कंपनी गार्डन स्थित है तो एक बार वहां घूम ही आते है, वैसे भी मसूरी कौन सा रोज रोज आना होता है। इस बार कार्यक्रम में थोड़ा बदलाव करते हुए हमने अपनी स्विफ्ट कार की सेवा ली और मसूरी की ऊँची-नीची तंग गलियों से निकलकर हम सीधे पहुँच गए कंपनी गार्डन ।

सुबह ग्यारह बजे का समय था और कंपनी गार्डन में भीड़ भी ज्यादा नहीं थी इसलिए पार्किंग की कोई दिक्कत नहीं हुयी। प्रवेश शुल्क देने के पश्चात् हम लोग गार्डन में प्रवेश कर चुके थे जहाँ पर हमारा सामना हुआ कुछ फोटोग्राफर्स के साथ जो अक्सर पर्यटकों को देखकर फोटो खिंचवाने का बलपूर्वक आग्रह करने लगते है। गार्डन के भीतर ही एक छोटा सा वाटर फॉल भी है जहाँ पर हमने भी कुछ फोटोज अपने फोटोग्राफर से खिंचवाई और उसके बाद गुनगुनी धूप में गार्डन के सुन्दर फूलों और बागवानी का आनंद लिया। गार्डन के अंदर ही बच्चों के लिए झूले और अन्य खेलकूद के सीमित विकल्प मौजूद है जिनका लुत्फ़ आप और आपके बच्चे भी उठा सकते हैं । हमारी सुपुत्री अभी छोटी थी इसलिए उसको इनमे कोई रूचि नहीं आयी। वैसे गार्डन का फ़ूड कोर्ट काफी अच्छा है और यहाँ आपको खाने पीने के बहुत सरे आइटम्स मिल जाते है। हमने नाश्ता तो अपने होटल में ही कर लिया था क्यूंकि वहां बुफे सिस्टम था जिसका मूल्य हमारे रूम टैरिफ में ही शामिल था। इसलिए हमने गार्डन के फ़ूड कोर्ट में साउथ इंडियन खाना जैसे की डोसा / इडली / सांभर और चाय से काम चला लिया।

कुछ देर कंपनी गार्डन में घूमने और धूप का स्वाद चख लेने के बाद हमने वापिस अपने होटल जाने का प्लान बनाया क्यूंकि पिछले दो दिन से हम लोग मसूरी में थे किन्तु मॉल रोड को एक्स्प्लोर अभी तक नहीं किया था। हालाँकि मॉल रोड में घूमने का मजा शाम के वक्त ज्यादा आता है क्यूंकि पहाड़ों में शाम की ठंडी हवायें और चमचमाती रोशनियां अक्सर माहौल को गुलज़ार कर देती हैं ।
हम लोग खा पी कर एक बजे तक अपने होटल रूम में वापिस आकर कर सुस्ताने लगे और कब आँख लग गयी पता ही नहीं चला । शाम को चार बजे के आस पास जब नींद से जागे तो तुरंत तैयार होकर फिर से निकल पड़े मसूरी मॉल रोड की तरफ जिसमे हमारा साथ दिया होटल की पिक एंड ड्राप सर्विस वाले ड्राइवर महाशय ने । होटल की गाडी ने हमे कालसँग रेस्टोरेंट पर ड्राप कर दिया जहाँ से हम लोग पैदल ही मॉल रोड घूमने लगे । जैसे जैसे शाम ढल रही थी, हवा में ठंडक भी बढ़ रही थी और ऐसे में बाजार में किनारे लगी हुयी छोटी-छोटी खाने पीने की स्टाल और उनके जलते हुए चूल्हे एक अलग ही सुकून दे रहे थे । जैसा की मैंने पहले भी बताया है की मॉल रोड पर बहुत से ब्रांडेड क्लोथ्स की शॉप्स भी हैं लेकिन यदि आप उनसे कुछ खरीदना चाहते हैं तो डिस्काउंट तो बिलकुल भूल ही जाइये, क्यूंकि वहां डिस्काउंट नहीं मिलता। उदाहरणार्थ यदि आप दिल्ली में किसी ब्रांड की जैकेट परचेस करने जायेंगे तो अक्सर आपको बीस-तीस प्रतिशत के साथ डिस्काउंट मिल ही जाता है या फिर कोई और दूसरा ऑफर जिसे आप वैल्यू फॉर मनी बोल सकते हैं, लेकिन मसूरी मॉल रोड की शॉप्स में ऐसा बिलकुल भी नहीं है और आपको पूरा लिखा हुआ रेट ही देना पड़ता है, बाकी आप सब खुद ही समझदार है।
खैर मसूरी में और भी बहुत सारी जगह है एक्स्प्लोर करने के लिए जहाँ अधिकतर एडवेंचर प्रेमी जाना पसंद करते हैं किन्तु हमारा ऐसा कोई विचार नहीं था क्यूंकि हम तो सुकून के दो दिन बिताने के लिए यहाँ गए थे। हालाँकि सच कहूं तो असली सुकून तो अपने घर में ही आता है लेकिन जब बात पहाड़ों की हो तो फिर क्या ही कहना। पिछले तीन दिनों में हम तीनो ने मसूरी और यहाँ की स्थानीय जीवन शैली को काफी करीब से देखा और एन्जॉय किया। स्वयं भी पहाड़ी संस्कृति से सम्बंधित हूँ इसलिए चीजों को समझने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुयी। लेकिन एक बात जो हमने महसूस की वो यह थी की यहाँ पहाड़ी लोगों की तुलना में अधिकतर लोग कश्मीर, नेपाल और बिहार से आये हुए थे, यदि दूसरों शब्दों में कहूं तो एक मिली-जुली संस्कृति की झलक हमें दिख रही थी।
खैर मसूरी की प्रदूषण मुक्त आबो-हवा और भागमभाग वाले माहौल को अब बाय-बाय कहने का समय आ चुका था इसलिए बिना समय गंवायें हमने भी अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया। अगले दिन शनिवार की सुबह दिनांक 7, दिसंबर को हम तीनो ने मसूरी से दिल्ली की अपनी यात्रा का आरम्भ किया और क्यूंकि मसूरी से देहरादून का रास्ता उतरन वाला था इसलिए मात्र एक घंटे में हम लोग देहरादून पहुँच गए थे। इस बार भी हमने बिना किसी ब्रेक के अपनी यात्रा को जारी रखा और सीधे खतौली में स्थित चीतल रेस्टोरेंट में पहुँच कर एक लंच ब्रेक लिया । इस रेस्टोरेंट से तो मुझे लगता है कि हर कोई वाकिफ होगा क्योंकि यह बहुत वर्षों से पर्यटकों के बीच काफी फेमस है।

दिल्ली से मसूरी और मसूरी से दिल्ली पहुँचने में हमे आठ से नौ घंटे का समय लग गया जिसमे एक घंटे का ब्रेक भी शामिल है। इस तरह हमारी यह छोटी किन्तु प्यारी सी यात्रा का समापन हुआ और घर पहुंचकर हमने ईश्वर का धन्यवाद किया।